भाजपा का बृजभूषण शरण को किनारे करने की योजना तैयार, एक्शन को कोर्ट निर्णय का इंतजार
भाजपा का बृजभूषण को ‘किनारे’ करने की योजना तैयार:एक्शन में देरी की वजह- रसूख और सपा से नजदीकी, पार्टी कोर्ट के फैसले के इंतजार में
नई दिल्ली 13 जुलाई। बृजभूषण शरण सिंह। नाम में वजन है तो कद में हनक। 6 बार सांसद रह चुके। इलाके में कोई इन्हें बाहुबली कहता है, कोई सांसदजी, तो कोई नेताजी। इस वजन और हनक का अनुमान आप सेक्सुअल हैरसमेंट (पॉक्सो ऐक्ट) के केस से भी लगा सकते हैं।
पहलवान 6 महीने से सड़क से संसद तक, खाप पंचायतों से खलिहानों तक सांसद के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन इस केस में सांसद बृजभूषण का रवैया अभी भी बिल्कुल अक्खड़ और कड़क मिजाज है, वो न झुके हैं और न झुकते दिख रहे हैं। इसकी बानगी दो दिन पहले महिला पत्रकार के सवाल वाले वीडियो में भी दिखाई दी।
बृजभूषण के इस मिजाज और रवैये का कारण पार्टी (भाजपा) समर्थन बताया जा रहा है। हालांकि, सूत्रों के मुताबिक भाजपा हाईकमान बृजभूषण शरण सिंह को धीरे-धीरे किनारे करने के फिराक में है। इसकी प्लानिंग भी हो चुकी है।
इसीलिए पार्टी उनके खिलाफ सीधे कोई ऐक्शन न लेकर, कानूनी प्रक्रिया और जनांदोलन से बने वातावरण से उन्हें कमजोर करना चाहती है। पार्टी की इस रणनीति का कारण भी बृजभूषण का कद और जनाधार ही है। एक बड़े भाजपा नेता कहते हैं कि पार्टी में हर किसी पर समय और परिस्थिति के हिसाब से फैसला लिया जाता है, क्योंकि यहां व्यक्ति से ज्यादा पार्टी की छवि का सवाल होता है।
बृजभूषण के खिलाफ 21 लोगों ने गवाही दी है
सूत्र बताते हैं कि भाजपा से बृजभूषण को किनारे करने की पटकथा दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में अपनी चार्जशीट पेश करके कर दी है। इस चार्जशीट में महिला रेसलर का 6 जगहों पर यौन उत्पीड़न की बात है। इतना ही नहीं, बृजभूषण के खिलाफ 21 लोगों ने गवाही दी है।सबके बयान एक जैसे हैं और सभी ने आरोप सही बताये हैं। अब इस मामले में 18 जुलाई को बृजभूषण को कोर्ट में पेश भी होना है। सांसद को सजा भी संभव है। इसी से सांसद को गुस्सा भी ज्यादा आ रहा है।
आइए उन 5 बड़े कारण जानते हैं, जिनसे भाजपा ने अब तक बृजभूषण के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की-
1- राजनीति में गेमचेंजर वाला कद
बृजभूषण सिंह 90 के दशक से राजनीति में हैं। राम मंदिर आंदोलन में भी वह शामिल थे। 1991 में पहली बार भाजपा से सांसद चुने गए। छात्र राजनीति और जन्मभूमि आंदोलन के कारण बृजभूषण क्षेत्र में काफी पहले से लोकप्रिय थे। उनका जनाधार धीरे-धीरे और बढ़ता गया। मौजूदा समय में बृजभूषण का उत्तर प्रदेश की 6 से 8 लोकसभा और करीब 20 से 22 विधानसभा सीटों पर मजबूत पकड़ है। इनमें बलरामपुर, गोंडा, बहराइच, श्रावस्ती, अयोध्या, सिद्धार्थनगर, संतकबीर नगर आदि जिले शामिल हैं।
बृजभूषण अब तक 6 बार सांसद रह चुके हैं। उनके गोंडा-बलरामपुर और आसपास के जिलों 50 से ज्यादा स्कूल-कॉलेज भी हैं। बृजभूषण के समर्थक और विरोधी, दोनों मानते हैं कि वो कुछ सीटों पर सीधे तौर पर चुनाव को प्रभावित करने की ताकत रखते हैं।
चुनाव में वो पार्टी नहीं खुद की ताकत से प्रचार करते हैं। उनके खुद के कार्यकर्ता हैं, जो पार्टी से ज्यादा उनके प्रति समर्पित रहते हैं। यही वजह है कि भाजपा बृजभूषण पर सीधे तौर पर कोई ऐक्शन नहीं लेना चाहती है, क्योंकि आम चुनाव नजदीक है और पार्टी बृजभूषण के खिलाफ कठोर कदम उठाकर उनके और अपने काडर में गलत मैसेज नहीं जाने देना चाहती।
2- सपा के खेमे में जाने का डर
बृजभूषण सपा से भी एक बार सांसदी जीत चुके। कुछ दिन पहले तक राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि भाजपा उनके खिलाफ कार्रवाई करती है, तो वो सपा का दामन थाम सकते हैं। बृजभूषण शरण की सपा से काफी नजदीकी भी है। वह 2014 चुनाव के पहले ही भाजपा में शामिल हुए थे।
बृजभूषण कभी अखिलेश पर सीधे हमलावर भी नहीं होते । दो महीने पहले बृजभूषण ने कहा था, ‘मैं अखिलेश यादव का धन्यवाद करता हूं, उन्हें बचपन से जानता हूं, मैं उनसे बड़ा हूं। हमारे बीच राजनीतिक मतभेद भी हैं, लेकिन अखिलेश सच्चाई जानते हैं। अगर उत्तर प्रदेश में 10 हजार पहलवान हैं, तो उसमें से 8 हजार पहलवान यादव हैं और समाजवादी परिवार के हैं। इसलिए अखिलेश सच्चाई जानते हैं।’
इस बयान पर जब अगले दिन पत्रकारों ने अखिलेश यादव से सवाल पूछा कि बृजभूषण शरण सिंह आपकी तारीफ कर रहे हैं? तो जवाब में अखिलेश ने पूरी बात ही बदल दी। इससे आप बृजभूषण और अखिलेश की नजदीकियां समझ सकते हैं। इस बात से भाजपा हाईकमान भी परिचित है और इसी से पार्टी बृजभूषण पर कार्रवाई करके गेंद सपा के पाले में नहीं जाने देगी।
बृजभूषण शरण पर यदि आरोप सही साबित होते हैं और उन्हें कोर्ट से सजा होती है, तो वो किसी भी पार्टी में जाने लायक नहीं रहेंगे। भाजपा भी यही चाहती है। पार्टी यह भी चाहती है कि बृजभूषण खुद ही इस्तीफा दें।
3- ठाकुर नेता और बड़ा वोटबैंक
UP में राजपूत (ठाकुर) वोटर 6-7 प्रतिशत तक हैं। आजादी के बाद उत्तर प्रदेश में 5 राजपूत मुख्यमंत्री रहे हैं। उत्तर प्रदेश के दो ठाकुर नेता प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं। ब्राह्मणों के बाद सत्ता पर सबसे ज्यादा पकड़ ठाकुरों की ही रही है। इससे उत्तर प्रदेश की राजनीति में ठाकुर नेताओं का कद समझा जा सकता हैं।
बृजभूषण शरण सिंह की छवि भी एक कड़कमिजाज ठाकुर नेता की है। उनका जनसमर्थन भी ठीक है। भाजपा की टॉप लीडरशिप का भी यही मानना है कि यदि पार्टी बृजभूषण के खिलाफ सीधे कोई कार्रवाई करेगी तो उसके वोटबैंक पर इसका असर दिख सकता है, जो पार्टी किसी भी कीमत पर मोल नहीं ले सकती है।
बृजभूषण UP में स्टेट लीडरशिप के बजाय सेंट्रल लीडरशिप के ज्यादा करीब हैं। इसलिए भी उन पर आखिरी फैसला हाईकमान को ही लेना है। बृजभूषण भी पार्टी हाईकमान का जमकर हवाला दे रहे हैं। पार्टी ने कुछ दिनों तक उनके बोलने पर भी पाबंदी लगा रखी थी, लेकिन वक्त बदला, दिल्ली पुलिस ऐक्शन में आई और बृजभूषण सामने आए और अब खुलकर मुखर हैं। अब बृजभूषण इस्तीफे की बात पर कहते हैं, ‘मोदीजी ही नहीं, अगर गृह मंत्री अमित शाह या भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी कह दें तो मैं इस्तीफा देने में देर नहीं करूंगा।’
4- अयोध्या और संतों में अच्छी पैठ
बृजभूषण सिंह की हमेशा से अयोध्या और वहां की राजनीति में खासी दिलचस्पी रही है। ये आज से नहीं 1990 से है। जब भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी राम मंदिर आंदोलन की रथ यात्रा लेकर अयोध्या आए थे, उस वक्त बृजभूषण शरण सिंह रथ की ड्राइविंग सीट पर थे।
बृजभूषण समय-समय पर अयोध्या प्रेम और यहां के साधु-संतों के बीच अपनी पैठ की ताकत का एहसास भी करवाते रहते हैं। चाहे वह राज ठाकरे को अयोध्या आने से रोकने की चुनौती हो या पिछले महीने साधु-संतों का जमावड़ा हो।
बृजभूषण हनुमान गढ़ी मंदिर से भी जुड़े हैं। वो वहां भोजन भंडारा कराते हैं, महंतों के पैर छूते हैं, उनका आदर सत्कार करते हैं। वो नृत्य मणिराम छावनी के नृत्यगोपाल दास, लक्ष्मण किले के महंत मैथली रमण शरण के करीबी हैं।
अयोध्या पर बृजभूषण की पकड़ का अंदाजा आप इससे भी लगा सकते हैं कि जब इस साल अप्रैल में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अयोध्या आए तो बृजभूषण दोनों के साथ कंधे से कंधा मिलाते हुए नजर आए। इन सब वजहों से भी भाजपा बृजभूषण की बगावत मोल नहीं लेना चाहती है।
5- योगी के खिलाफ राज्य में बोलने वाले एकमात्र नेता
CM योगी पहलवानों के आंदोलन और बृजभूषण शरण सिंह पर लगातार चुप ही रहे हैं। राजनीतिक जानकार इसके अलग मायने बताते हैं। कहते हैं कि UP और भाजपा में ठाकुर राजनीति के ये दो क्षत्रप हैं। कभी CM योगी आदित्यनाथ और बृजभूषण को करीबी माना जाता था, लेकिन पिछले दिनों में दोनों नेताओं में दूरी साफ दिखी। बुलडोजर एक्शन की चपेट में बृजभूषण परिवार भी आया।
दरअसल, बृजभूषण ने UP विधानसभा चुनाव 2022 में करीबियों के लिए टिकट मांगे थे, लेकिन उनके मन का नहीं हो सका। इसके बाद 2022 में गोंडा और बलरामपुर की बाढ़ में बृजभूषण ने जमकर योगी सरकार पर हमले किए। उन्होंने योगी सरकार और अधिकारियों को कटघड़े में खड़ा किया।
2023 की शुरुआत में भी जब योगी सरकार ने माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई शुरू की तो निशाने पर बृजभूषण भी आ गए। गोंडा में सरकारी जमीन पर कब्जा मामले में बृजभूषण के भाई शशिभूषण सिंह के बेटे सुमित सिंह के खिलाफ जालसाजी का केस दर्ज किया गया। इसमें 9 लोगों को नामजद बनाया गया। राजनीतिक जानकर कहते हैं कि भाजपा हाईकमान का ये बैलेंस गेम है, ताकि सत्ता बेलगाम न हो सके। यही वजह कि बृजभूषण हमेशा से हाईकमान के लाडले रहे हैं।
2024 से पहले दाग पोंछने में जुटी भाजपा:मंत्री टेनी की हो सकती है मोदी कैबिनेट से विदाई, बृजभूषण पर भी संकट
2024 यानी लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा खासतौर से UP में अपने ऊपर लगे सभी दाग और धब्बे धो-पोंछ लेना चाहती है। इसके लिए PM मोदी के अगले मंत्रिमंडल विस्तार में ही कई बड़े फैसले लिए जाएंगे। सबसे चौंकाने वाला फैसला इस कड़ी में लखीमपुर खीरी कांड से विवाद में आए गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी की मोदी मंत्रिमंडल से छुट्टी हो सकती है। इसी तरह भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह को अगले लोकसभा चुनाव में टिकट मिलना भी मुश्किल होगा।