बंबई उच्च न्यायालय के यौन उत्पीडन फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती

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यौन उत्पीड़न पर आए बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देंगे: महिला आयोग
नयी दिल्ली, 25 जनवरी । राष्ट्रीय महिला आयोग ने सोमवार को कहा कि वह बंबई उच्च न्यायालय के उस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देगी जिसमें कहा गया है कि त्वचा से त्वचा का संपर्क हुए बिना नाबालिग लड़की का स्तन स्पर्श करना यौन उत्पीड़न नहीं है। आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने ट्वीट कर कहा कि इस फैसले से न सिर्फ महिला सुरक्षा से जुड़े विभिन्न प्रावधानों पर विपरीत असर होगा, बल्कि सभी महिलाओं को उपहास का विषय बनाएगा। उनके मुताबिक, इस फैसले ने महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित कानूनी प्रावधानों को महत्वहीन बना दिया है। रेखा शर्मा ने यह भी कहा कि आयोग इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देगा। दरअसल, बंबई उच्च न्यायालय ने 19 जनवरी को दिए फैसले में कहा था कि त्वचा से त्वचा का संपर्क हुए बिना नाबालिग पीड़िता का स्तन स्पर्श करना, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (पोक्सो) के तहत यौन हमला नहीं कहा जा सकता। नागपुर खंडपीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने अपने फैसले में कहा कि यौन हमले की घटना मानने के लिए यौन इच्छा के साथ त्वचा से त्वचा का संपर्क होना चाहिेए।

यौन उत्पीडन पर मुंबई हाईकोर्ट का गजब का न्याय,जरूरी बताया है त्वचा से त्वचा का सम्पर्क

न्यायालय की भाषा में न्याय की परिभाषा कभी—कभी बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर देती है। मुंबई उच्च न्यायालय का बच्ची के साथ यौन प्रताड़ना पर दिया गया फैसला समाज के लिए चिंता का विषय बन सकता है। यह फैसला आम लोगों की समझ से परे है। दूसरी भाषा में कहा जाए तो यह गजब का फैसला है। क्योंकि अदालत के हिसाब से यौन प्रताड़ना तभी मानी जाएगी जब ‘स्कीन टू स्कीन’ टच की बात हो। अगर ऐसा नहीं तो संदेह का लाभ आरोपी को मिलेगा और आरोपी बेकसूर साबित हो जाएंगे।

14 सेकेंड से ज्यादा घूरना है यौन अपराध

अदालत ने अपने फैसले में किन-किन बिंदुओं को उजागर किया। इस पर विस्तार से जाने के बजाए इस फैसले का मजमून है कि कपड़े के ऊपर से बच्ची के ऊपरी हिस्सों को छूना यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आता है। एक तरह से यह यौन उत्पीड़न करने की मानसिकता रखने वाले अपराधियों के लिए ‘बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना’ जैसी बात हो जाएगी। जबकि किसी भी युवती या महिला को 14 सेकेंड से ज्यादा घूरना भी अपराध की श्रेणी में आता है।
किसी भी महिला या लड़की के साथ ऐसी हरकतें करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 294 और धारा 509 में गंभीर अपराध माना जाता है। ऐसे सभी मामले ‘ईव टीजिंग’ यानी छेड़छाड़ के अंतर्गत आते हैं। इस पर कानूनी कारवाई का प्रावधान है। फिर कपड़े के ऊपर से छूना अदालत की नजर में कैसे यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आ सकता है?

पोक्सो अधिनियम में यौन शोषण की श्रेणी में नहीं

दरअसल, बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि किसी नाबालिग के ब्रेस्ट को बिना ‘स्किन टू स्किन’ कॉन्टैक्ट के छूना पोक्सो अधिनियम में यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आएगा। सनद रहे कि बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा कि यौन हमले का कृत्य माने जाने को ‘‘यौन मंशा से त्वचा से त्वचा का संपर्क होना” जरूरी हैं महज छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है।

तीन वर्ष की हुई थी सजा

न्यायमूर्ति गनेडीवाला ने एक सत्र अदालत के फैसले में संशोधन किया,जिसने 12 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न करने के लिए 39 वर्षीय व्यक्ति को तीन वर्ष कारावास की सजा सुनाई थी। गवाही के मुताबिक,दिसंबर 2016 में आरोपित सतीश नागपुर में लड़की को खाने का कोई सामान देने के बहाने अपने घर ले गया।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में यह दर्ज किया कि अपने घर ले जाने पर उसने बच्ची का ब्रेस्ट छुआ और उसके कपड़े उतारने की कोशिश की। उच्च न्यायालय ने कहा, चूंकि आरोपित ने लड़की को निर्वस्त्र किए बिना उसे छूने की कोशिश की,इसलिए इस अपराध को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है। इसलिए इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 354 में शील भंग करने का अपराध नहीं माना जा सकता है।

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