ब्रिटिश कोर्ट भी सार्वजनिक नहीं करा पाया नेहरू-एडविना के पत्रों के सभी रहस्य
एडविना माउंटबेटन को भेजे खत में नेहरू क्या लिखते थे? ब्रिटिश कोर्ट ने सार्वजनिक करने से मना किया
अनुराग मिश्र
भारत में अंतिम वायसराय रहे लॉर्ड माउंटबेटन की पत्नी एडविना एक धनी परिवार से ताल्लुक रखती थीं। उनके पति लुई फ्रांसिस अल्बर्ट विक्टर निकोलस माउंटबेटन,1st अर्ल माउंटबेटन आफ माउंटबेटन भारत के आखिरी अंग्रेज गवर्नर जनरल थे। स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल भी उन्ही को बनाया गया था।
हाइलाइट
1-नेहरू और एडविना माउंटबेटन के कुछ पत्रों को सार्वजनिक करने से कोर्ट का इनकार
2-ब्रिटिश ट्राइब्यूनल ने कहा, इसमें शाही परिवार से जुड़ी निजी जानकारी है
3-एक लेखक ने अपने 3 करोड़ रुपये खर्च किए लेकिन कोर्ट से निराशा मिली
नई दिल्ली30अप्रैल।
‘मैं चाहता हूं कि कोई मुझसे समझदारी से और भरोसे के साथ बात करे, जैसा कि तुम कर सकती हो… मैं खुद पर से भरोसा खो रहा हूं… जिन मूल्यों को हमने पाला उनका क्या हुआ, क्या हो रहा है? हमारे महान विचार कहां हैं?’
ये पंक्तियां उस लेटर का हिस्सा हैं जिसे जवाहरलाल नेहरू ने अप्रैल 1948 में एडविना माउंटबेटन को भेजा था। बंटवारे के बाद सांप्रदायिक हिंसा और फिर महात्मा गांधी की हत्या के बाद बने उथल-पुथल भरे माहौल में नेहरू का सहारा एडविना बनी थीं, जिस पर वह भरोसा कर सकते थे और राज़ बता सकते थे। उनके बीच दोस्ती ही कुछ ऐसी थी। नेहरू और एडविना ने एक दूसरे को कई पत्र भेजे थे। इससे पता चलता है कि उनके बीच कैसे संबंध थे और वे किस तरह सोचते थे। हालांकि सभी खतों को सार्वजनिक नहीं किया गया। ताजा मामले में एक ब्रिटिश कोर्ट ने लॉर्ड और लेडी माउंटबेटन की निजी डायरियों और एडविना-नेहरू के निजी खतों को सार्वजनिक करने की लेखक एंड्रयू लाउनी की अपील को ठुकरा दिया।
अचानक मुझे अहसास हुआ और शायद तुमने भी किया था कि हमारे बीच एक गहरा लगाव था। किसी अनियंत्रित ताकत ने, जिसके बारे में मैं बहुत थोड़ा जानता हूं, हमें एक-दूसरे के लिए आकर्षित किया… हमने और गहनता से बात की जैसे कोई घूंघट हटा दिया गया हो और हम एक-दूसरे की आंखों में बिना किसी डर या शर्मिंदगी के देख सकें।
एडविना को लिखे नेहरू के एक लेटर का अंश
तुमने मुझमें खुशी की भावना भर दी…
एक पत्र में एडविना लिखती हैं,
‘इस सुबह तुम्हें ड्राइव करके जाते हुए देखना अच्छा नहीं लगा। तुमने मुझमें शांति और खुशी की एक अजीब भावना भर दी है। शायद मैंने भी तुम्हारे साथ ऐसा ही किया हो।’
दोनों के बीच रिश्तों की गर्मजोशी ही ऐसी थी कि माउंटबेटन के भारत आने के 10 दिनों के भीतर ही वीपी मेनन ने कहा था कि एडविना के साथ नेहरू के रिश्ते कई लोगों की आंखों में चुभ सकते हैं। एडविना की छोटी बेटी ने बाद में बताया था कि भारत से लौटने के बाद मां डिप्रेशन में चली गई थीं। एडविना रोज नेहरू को खत लिखा करतीं। पहले उन पर प्राइम मिनिस्टर लिखा होता। बाद में वह खुद के लिए लिखने लगीं।
जवाब में नेहरू के खत राजनयिक लिफाफे में आते और जब जवाब नहीं आता तो वह भारत फोन लगा देतीं। बाद के वर्षों में एडविना-नेहरू के खतों को लेकर लोगों में एक उत्सुकता बनती गई। पत्रों पर आधारित कई किताबें लिखी गईं और उसका इस्तेमाल किया गया।
अक्सर यह सवाल उठता रहता है कि जवाहरलाल नेहरू का एडविना से कैसा रिश्ता था? ऐसे में लेखक सभी पत्रों को पब्लिक डोमेन में चाहते थे। कोर्ट के मना करने के बाद लाउनी ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि जो कुछ बचा है उसमें कोई सनसनीखेज बात छिपी है।’ ट्राइब्यूनल ने पाया कि साउथहैंपटन यूनिवर्सिटी के पास नेहरू और एडविना के बीच भेजे गए खत नहीं हैं। जज को बताया गया कि यूनिवर्सिटी फिजिकली पेपर्स को अपने परिसर में सुरक्षित रख रही थी लेकिन वह लॉर्ड ब्रेबोर्न के लिए ऐसा कर रही थी। यूनिवर्सिटी के पास इसे करीब 9,600 रुपये में खरीदने का भी विकल्प था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
कौन से राज छिपे हैं पत्रों में?
लाउनी इस केस पर अपनी जेब से 3 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर चुके हैं और बाकी पैसा उन्होंने क्राउडफंडिंग से जुटाया। उन्हें शक है कि डायरी और पत्रों से भारत के बंटवारे और एडविना के रिश्ते के बारे में राज खुल सकते हैं। इसी वजह से पत्रों को सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है। एडविना मोहम्मद अली जिन्ना को पसंद नहीं करती थीं। उन्होंने कहा, ‘एडविना की प्रकाशित डायरी में जिन्ना के मनोरोगी होने का जिक्र है। मुझे नहीं लगता कि पाकिस्तान से संबंध इससे प्रभावित हो रहे हैं।’
लेखक ने आगे कहा कि यह लोगों के लिए एक तरह से जीत है क्योंकि मैं 35,000 पेज रिलीज करा सका। मुझे अपनी किताब के लिए इसकी जरूरत थी, जो तीन साल पहले आई। मैंने इसे दूसरे स्कॉलरों के लिए भी किया और इसके लिए मुझे काफी खर्च करना पड़ा जबकि निजी रूप से यह मेरे किसी काम का नहीं है।
सुनवाई के दौरान नवंबर 2021 में साउथहैंम्पटन यूनिवर्सिटी ने माउंटबेटन डायरीज और पत्रों को जारी करना शुरू किया था और अब तक 35,000 पेज सार्वजनिक हो चुके हैं लेकिन 150 पैसेज या अंशों को जारी नहीं किया गया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केवल दो पैसेज को जारी किया जाए और दो के कुछ हिस्से को सार्वजनिक किया जाए और बाकी जारी नहीं होंगे क्योंकि उनमें क्वीन के साथ सीधे संवाद हुआ है या महारानी या शाही परिवार के किसी सदस्य या माउंटबेटन परिवार के बारे में निजी जानकारी है। इसमें भारत और पाकिस्तान के साथ ब्रिटेन के संबंधों की दृष्टि से उपयुक्त जानकारी नहीं है।
59 साल की उम्र में 21 फरवरी 1960 को एडविना ने अंतिम सांस ली। उन्हें समुद्र की लहरों में दफनाया गया। नेहरू ने अंतिम सलामी देने के लिए त्रिशूल जहाज से भारत के रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन को भेजा था। एडविना चली गईं लेकिन 60 साल बाद भी उनकी भावनाएं उन खतों में सुरक्षित हैं जिसे कोर्ट ने दिखाने से मना कर दिया है। बहरहाल, जितने खत पब्लिक डोमेन में हैं उससे साफ पता चलता है कि वे एक दूसरे से भावनात्मक रूप से कितने करीब थे।
एडविना की बेटी पामेला हिक्स ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘उन पत्रों की शुरुआत हमेशा एक वाक्य से होती थी कि वह मेरी मां को कितना ‘मिस’ कर रहे हैं और वह उनके लिए बहुत खास हैं… पत्र का अंत भी वह निजी टिप्पणी से करते थे। उनमें कुछ भी शारीरिक नहीं था। ये सारे पत्र सुबह दो से चार बजे के बीच लिखे गए थे और इसे नेहरू ने अपने हाथ से लिखा था।’