मत: सुरेश चव्हाणके का घेराव, विमर्श में हिंदू कहां है?
सुरेश चव्हाणके पर निशाना क्यों? क्योंकि विमर्श में हिन्दू कहीं नहीं है, इसे शीघ्रातिशीघ्र समझ लिया जाए तो बेहतर है!
पिछले लेख में हमने बात की थी कि कैसे विमर्श से हिन्दुओं के बच्चों के शवों की पीड़ा गायब है, उसका एक और उदाहरण है सुदर्शन चैनल के सुरेश चव्हाणके पर संगठित प्रहार। हिन्दुओं की बात करने वाले एवं लव जिहाद जैसे मामलों पर मुखर स्वर रखने वाले सुरेश चव्हाणके पर न्यायपालिका की आड़ लेकर हमला किया जा रहा है।
हिन्दुओं के विरुद्ध विमर्श स्थापित करने वाले चैनल जहाँ प्रगतिशील एवं सेक्युलर चैनल कहलाते हैं तो वहीं हिन्दुओं की पीड़ा दिखाने वाला सुदर्शन चैनल नफरत फैलाने वाला बताया जाता रहा है। न्यायपालिका में भी हिन्दू विमर्श कई उदाहरणों से कहीं न कहीं कम दिखाई पड़ता है, तभी वहां पर कहा जाता है कि हिन्दू धर्म उदार है और यह कहकर हिन्दू-विरोधी जुबैर को जमानत प्रदान कर दी जाती है।
जबकि हिन्दू धर्म को उदार कहने वाले न्यायालय में उसी हिन्दू धर्म को लेकर हिन्दू राष्ट्र को लेकर जो याचिका जाती है वह कहती है कि सुरेश चव्हाणके हिन्दू राष्ट्र की शपथ लेकर घृणा फैला रहे हैं! अब ऐसा कैसे हो सकता है कि जिस धर्म को माननीय न्यायालय उदार कहते हैं, उसके नाम पर राष्ट्र की शपथ घृणा फ़ैलाने वाली हो गयी?
परन्तु आज मानवतावादी कार्यकर्ताओं एवं कथित सेक्युलर लोगों का विमर्श पूरी तरह से सुरेश चव्हाणके के विरुद्ध है और वह भी हिन्दू राष्ट्र की शपथ को लेकर। वैसे तो हर उस व्यक्ति की ही हर बात इस विमर्श में खलनायक बना दिया जाता है जो तनिक भी हिंदुत्व की बात करता है। फिर वह कोई भी हो। कथित तरक्कीपसंद विमर्श उसे खलनायक या पिछड़ा बना देता है।
उच्चतम न्यायालय की जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने महात्मा गांधी की पड़पोते तुषार गांधी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई थी कि आखिर अब तक कोई कार्यवाई क्यों नहीं हुई?
यह ध्यान देने योग्य है कि सुदर्शन न्यूज़ के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके ने 19 दिसंबर 2021 को गोविंदपुरी, दिल्ली में एक हिंदू युवा वाहिनी कार्यक्रम में भाग लिया, जहाँ उन्होंने कथित तौर पर हिंदू धर्म की संस्कृति, धर्म की रक्षा और पारंपरिक मूल्यों के प्रचार के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर एक हिंदू राष्ट्र की शपथ ली। 2022 जनवरी में हरिद्वार में किए गए भाषणों की समानता को जगाने के लिए इस हिंदू युवा वाहिनी कार्यक्रम को धर्म संसद के रूप में बार-बार गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है।
और यह भी ध्यान देने योग्य है कि पुलिस ने इस मामले में एक बार यह हलफनामा न्यायलय में प्रस्तुत किया था कि इस मामले में किसी भी प्रकार से ऐसे आरोपों की पुष्टि नहीं हुई है, जो शिकायतकर्ता ने अपनी याचिका में लगाए थे। दिल्ली की घटना की वीडियो क्लिप में किसी भी विशेष धारा का उल्लंघन नहीं है। अत: इस वीडियो को देखने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि कथित भड़काऊ वीडियो ने किसी भी विशेष सम्प्रदाय के विरुद्ध कोई बात नहीं की है।”
परन्तु विमर्श की विडंबना यही है कि उसमें तुषार गांधी द्वारा व्यक्त “चिंता” की बात होती है, परन्तु तथ्यों पर आधारित दिल्ली पुलिस की हलफनामे की नहीं। विमर्श ने उस हलफनामे को स्वीकार नहीं किया और माननीय न्यायालय ने पुलिस से और गहराई से जाँच करने के लिए कहा और फिर विमर्श की सबसे बड़ी जीत रही दिल्ली पुलिस का अपने हलफनामे के पक्ष में खड़े होने के स्थान पर इस मामले में एफआईआर ही दर्ज न करना बल्कि साथ ही सुरेश चव्हाणके को उसमें आरोपी बना देना।
अब प्रश्न यह भी उठता है कि आखिर जो प्रमाण पहले नहीं था, वह अब कैसे आ गया? यह आना और विवाद में आना ही हिन्दू-विरोधी विमर्श की जीत है।
हिन्दू-विरोधी विमर्श की जीत तब और खुलकर सामने आई जब एक बार फिर पुलिस से पूछा गया कि अब तक कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया। यहीं पर हिन्दू-विमर्श पराजित हो जाता है क्योंकि अकबरुद्दीन ओवैसी के उस भाषण को जिसमें वह पंद्रह मिनट के लिए पुलिस हटाने की बात कह रहे हैं, उस पर न्यायालय की ओर से कोई बात नहीं होती है बल्कि विशेष न्यायालय बरी भी कर देता है, परन्तु सुरेश चव्हाणके के साथ ऐसा नहीं है। जबकि पुलिस ने पहली बार कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया था।
इतना ही नहीं, नुपुर शर्मा को लेकर जब फतवे निकाले जा रहे थे और सर तन से जुदा की बातें हो रही थीं, तब भी विमर्श में वह सभी धमकियां नहीं आ पाई थीं। यहाँ तक कि उसके बाद कितने हिन्दुओं की हत्याएं हो गईं, मगर विमर्श में एक मौन पसरा रहा।
फिर ऐसा क्यों है कि हिन्दुओं की हत्याओं का भी विमर्श नहीं बन पाता है और एक ऐसे भाषण को भड़काऊ और विषैला विमर्श बना दिया जाता है, जिसमें किसी की विरुद्ध कुछ न कहकर मात्र अपनी बात कही गयी है! ऐसा ही विमर्श साध्वी प्रज्ञा के उस भाषण का बनाया था जिसमें उन्होनें केवल लव जिहादियों से हिन्दू लड़कियों को सुरक्षित रखने की बात की थी।
क्या हिन्दुओं का आत्मरक्षा में बोलना अपराध है? क्या उसी विमर्श को अपनाना है जिसमें यह कहा जा रहा है कि हिन्दू तो सहिष्णु है! सहिष्णु का अर्थ आत्मरक्षा के विमर्श का अभाव कब से हो गया? सहिष्णु का अर्थ आत्मगौरव से रहित विमर्श कैसे हो गया?
यह विमर्श बना दिया गया कि नुपुर शर्मा का आत्मरक्षा में हथियार का लाइसेंस लेना भी अपराध है क्योंकि उसने कुछ ऐसा कह दिया है जिसके कारण उसे कथित लिबरल और कट्टर इस्लामी वर्ग जीने नहीं दे रहा है। वह कैद होकर रह गयी है, उसके सांकेतिक पुतलों को फांसी दी जा रही है। और एक ऐसे वातावरण में जब उसे हथियार का लाइसेंस मिलता है तो उसके पीछे वही लॉबी पड़ी है जो उन्हें जीने नहीं देना चाह रही है।
जिहादी “पत्रकार” राना अयूब, जिसपर अभी भी वह मामला चल रहा है कि कैसे कोविड के नाम पर जमा धन का दुरूपयोग किया, उसने ट्वीट किया कि
“विशेषाधिकार!”
सही ही तो है, विमर्श में नुपुर शर्मा का जीवित रहना विशेषाधिकार ही तो है! एक काफ़िर इस इस्लामी मुल्क में जिंदा है वह वास्तव में विशेषाधिकार ही है। यही इस्लामिस्ट कट्टरपंथी तत्वों का मानना है कि काफिरों का जिंदा रहना विशेषाधिकार है।
वास्तव में यदि विमर्श में हिन्दुओं की पीड़ा जीवित है तो वह विशेषाधिकार ही है क्योंकि स्वामी श्रद्धानन्द से लेकर कमलेश तिवारी और अब कन्हैया लाल तक सभी विमर्श में मार ही तो दिए गए हैं।
नुपुर शर्मा के वीडियो को जानबूझकर एडिट करके कट्टरपंथियों को भड़काने वाला और मुस्लिम देशों में हिन्दुओं के विरुद्ध विमर्श बनाने वाला जुबैर अभी तक नायक है परन्तु नुपुर शर्मा विमर्श से गायब हो जाए, और एक दिन वह जीवन से गायब हो जाए ऐसा प्रयास निरंतर चल रहा है।
तनिक प्रश्न करें कि विमर्श में हिन्दू कहाँ है?
@सोनाली मिश्रा