हेट स्पीच से बचाव को बन सकता है कानूनी कवच?
कोई कानूनी कवच बचा सकता है हेट स्पीच से?
Hate Speech Prevent By Law Supreme Court Know All About
एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय बताते हैं कि हेट स्पीच रोकने के लिए स्पष्ट कानून नहीं है। पिछले दिनों हेट स्पीच की चर्चा फिर शुरू हो गई। वैसे यह किसी एक क्षेत्र, देश की समस्या नहीं है। अक्सर ऐसे नफरत भरे भाषणों की खबरें आती रहती हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने पहुंच गया है।
हाइलाइट्स
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, मूक दर्शक क्यों बनी है सरकार
एक्सपर्ट बोले, अभी कानून में इस बाबत कुछ नहीं है
चुनाव आयोग ने भी बताई है परिभाषा की जरूरत
नई दिल्ली 03 अप्रैल: हेट स्पीच पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया है। इसके बाद सवाल उठा कि क्या किसी कानूनी कवच से हेट स्पीच को रोका जा सकता है? इस पर नजर डालने की जरूरत है। एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय बताते हैं कि हेट स्पीच रोकने और अफवाहों पर लगाम लगाने के लिए आईपीसी में स्पष्ट कानून नहीं है। इस मामले में पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई थी। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया है कि केंद्र को निर्देश दिया जाए कि वो अफवाह और नफरत वाली स्पीच को रोकने के लिए लॉ कमिशन की सिफारिशों को लागू करे।चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में 14 सितंबर 2022 को कहा था कि हेट स्पीच से संबंधित देश में कोई स्पष्ट कानून नहीं है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में आदेश पारित करना चाहिए। साथ ही कहा कि लॉ कमिशन ने 267वीं रिपोर्ट दी थी और कहा था कि हेट स्पीच को लेकर जरूरी संशोधन की जरूरत है। चुनाव आयोग की ओर से सुप्रीम कोर्ट को बताया गया था कि किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने से तब तक रोका नहीं जा सकता है, जब तक कि हेट स्पीच को परिभाषित नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी गंभीर चिंता जताई
सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच मामले में चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि क्यों केंद्र सरकार इस मामले में मूक दर्शक बनकर खड़ी है। 21 सितंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में कहा था कि हमारा देश किस ओर जा रहा है। कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में हेट स्पीच पर गंभीर चिंता जताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह क्यों मूक दर्शक बनी हुई है जब यह सब चल रहा है। जस्टिस जोसेफ ने सवाल किया था कि हेट स्पीच के मामले में कानून में क्या प्रावधान है।
केंद्र सरकार से पूछा जा चुका है सवाल
जस्टिस जोसेफ ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह जवाब दाखिल करे। साथ ही कहा कि वह इस बात को साफ करें कि क्या वह लॉ कमिशन की सिफारिश पर कोई कार्रवाई कर रही है? लॉ कमिशन ने हेट स्पीच क्राइम को डील करने को लेकर सिफारिश कर रखी है। केंद्र ने बताया कि 29 राज्यों में 14 के जवाब आए हैं। कोर्ट ने राज्यों से जवाब देने को कहा है।
भारतीय दंड संहिता में शामिल करने की पहल
पिछले दिनों इंडियन पीनल कोड (IPC) में अब भड़काऊ भाषण और हेट स्पीच शामिल करने की पहल की गई। इसके लिए होम मिनिस्ट्री ने कुछ प्रस्ताव पर विचार भी किया। लेकिन चुनौती बनी हुई है। होम मिनिस्ट्री ने भले ही हेट स्पीच पर अंकुश लगाने और इसे सजा दिलाने का प्रावधान बनाने की पहल की है लेकिन इसके लिए रास्ता आसान नहीं है। कमिटी के सामने हेट स्पीच को परिभाषित करने की चुनौती है। ऐसे कई मसले अभी देश की अलग-अलग अदालतों में भी हैं।
सूत्रों के अनुसार कमिटी ने होम मिनिस्ट्री में इस बारे में जो प्रस्ताव पेश किया है, उसमें इसके लिए हेट स्पीच शब्द का इस्तेमाल नहीं हुआ है। साथ ही कब-कब किन बातों को हेट स्पीच में शामिल किया जाएगा, उसे बताने की कोशिश की गई है। साथ ही महज आलोचना जैसे बयानों पर इसका कानूनी इस्तेमाल नहीं हो, इसके लिए प्रावधान देने का दावा किया गया है। लेकिन हेट स्पीच के खिलाफ कार्रवाई को कानूनी जामा देने का यह प्रस्ताव पहली बार नहीं आया है। पिछले कई सालों से इस बारे में बात तो हुई है लेकिन बात चर्चा से आगे नहीं बढ़ सकी है।
हेट स्पीच पर सख्ती जरूरी?
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से हेट स्पीच (द्वेषपूर्ण भाषण) के मामलों में सख्ती बरतने की बात कही है। मामला भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी पर हेट स्पीच से जुड़े कई केस का है।
एक ही बयान, किसी के लिए नफरत फैलाने वाली बात हो जाता है और किसी के लिए बोलने की आजादी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार इसी उलझन में फंसा रहता है। अपनी बात कहने की आजादी से जुड़े कई कानून हमारे देश में मौजूद हैं और एकता व शांति भंग करने वाले बयानों पर पाबंदी भी है। इन कानूनों का उपयोग और दुरुपयोग दोनों की ही चर्चा होती रहती है। परिभाषा के मुताबिक किसी भी ऐसी बात, हरकत या भाव को, बोलकर, लिखकर या दृश्य माध्यम से प्रसारित करना, जिससे हिंसा भड़कने, धार्मिक भावना आहत होने या किसी समूह या समुदाय के बीच धर्म, नस्ल, जन्मस्थान और भाषा के आधार पर विद्वेष पैदा होने की आशंका हो, वह हेट स्पीच में आती है। सहिष्णुता और असहिष्णुता के शोर के बीच यह मामला और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि समस्या के मूल में यही है कि जनता और नेता किसी की बात को सह पाते हैं या नहीं। क्या किसी की बात सहन न होने पर हिंसा भड़क सकती है, इसलिए बयानों पर कानून के जरिए सजा दिलवाकर लगाम लगाना जरूरी है। या फिर अपनी बात कहने की आजादी सभी को है, इस दृष्टि से कानून की बंदिश नहीं होनी चाहिए।
कानून का होता है दुरुपयोग
स्वामी ने अपनी पिटीशन में आरोप लगाया है कि हेट स्पीच से जुड़े कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों में दखल देते हैं। इनका इस्तेमाल अपनी राय जाहिर करने वाले लोगों के खिलाफ हो रहा है। उनका यह भी कहना था कि वर्तमान कानूनों की वजह से कोई व्यक्ति लोगों की सोच बदलने को पब्लिक डिबेट नहीं कर सकता क्योंकि इन कानूनों से उसे चुप करा दिया जाएगा। स्वामी की बातों से कई लोग सहमत हैं। ऐसा कई मौकों पर देखा भी गया है कि हेट स्पीच से जुड़े कानूनों का बदला निकालने या किसी को नुकसान पहुंचाने को इस्तेमाल होता है।
उदाहरण को पिछले वर्ष मुंबई में फेसबुक पर स्वर्गीय बाल ठाकरे से जुड़ी टिप्पणी लिखने वाली लड़कियों को शिवसेना पार्टी की शिकायत के सेक्शन 66(ए) में गिरफ्तार कर लिया गया था। (बाद में यह कानून खत्म कर दिया गया) ऐसे और भी उदाहरण मौजूद हैं इसलिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े पुराने कानूनों में संशोधन की मांग होती रहती है।
इसलिए जरूरी कानून
हेट स्पीच से जुड़े कानूनों के सख्त पालन के पक्षधर मानते हैं कि कई मौकों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग होता है। ऐसे बयान दिए जाते हैं जिनसे आक्रोश बढ़ता है और फिर फ्री स्पीच के नाम पर इनसे कन्नी काट ली जाती है। ऐसे में हेट स्पीच पर सख्ती से लगाम लगाना जरूरी है। कानून अब भी मौजूद हैं, लेकिन कितनी बार उनका सख्ती से पालन हो पाता है?
सुब्रह्मण्यम स्वामी के केस में भी सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि हेट स्पीच से जुड़े कानून हमारे लिए जरूरी हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि अगर लोग बिना किसी डर के ऐसे कार्य करेंगे या बातें फैलाएंगे जिससे जनता के बीच विद्वेष या नफरत बढ़ेगी तो समाज में आपसी टकराव बढ़ने की आशंका है। बात दंगों तक भी पहुंच सकती है, जिससे कानून और शांति को नुकसान पहुंचता है। इसलिए जो कानून हैं उनका सख्ती से पालन हो और अगर जरूरत हो तो नए कानून भी बनाए जाएं। इससे भड़काने वाले बयानों पर लगाम लग सकेगी और कानून व्यवस्था बनी रहेगी।
अभी हैं ये कानून
हमारे देश में अब भी ऐसे कई कानून हैं जिनका संबंध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और हेट स्पीच से है। इन कानूनों का समय-समय पर विरोध होता रहता है। सुब्रह्मण्यम स्वामी के केस में भी इनमें से कुछ धाराओं का इस्तेमाल हुआ है।
> सेक्शन 295A
क्या है? :
लिखकर, बोलकर, सांकेतिक रूप से या अन्य माध्यम से किसी भी वर्ग के भारतीय नागरिकों की धार्मिक भावनाओं को भड़काने, धर्म को बेइज्जत करने या ऐसा करने की कोशिश करने का अपराध इस धारा में आता है।
सजा
तीन साल तक की जेल या जुर्माना या फिर दोनों
> सेक्शन 153A
क्या है? :
लिखित, मौखिक, सांकेतिक या अन्य माध्यमों से धर्म, नस्ल, जाति, जन्मस्थान, निवास स्थान, भाषा, संप्रदाय या अन्य किसी आधार पर नफरत की भावना को बढ़ावा देना या शांति व्यवस्था भंग करना इस धारा में आता है।
सजा
तीन साल तक की जेल या जुर्माना या फिर दोनों।
> सेक्शन 499
क्या है?
यह आईपीसी की मानहानि से जुड़ी धारा है। इसमें लिखित, मौखिक, सांकेतिक या अन्य माध्यम से किसी व्यक्ति के बारे में ऐसी बात कहने का अपराध आता है, जिससे उसकी समाजिक प्रतिष्ठा या इज्जत को नुकसान पहुंचता हो।
सजा
दो साल तक की जेल या जुर्माना या फिर दोनों।
> सेक्शन 124A
क्या है?
आईपीसी की यह धारा राजद्रोह से जुड़ी हुई है। इसमें उस व्यक्ति को सजा दी जा सकती है जो भारत सरकार के विरुद्ध नफरत फैलाने या सरकार के खिलाफ भड़काने की कोशिश करता है या सरकार की अवमानना करता है।
सजा
कुछ वर्षों की जेल से लेकर आजीवन कारावास तक हो सकता है।
> सेक्शन 505
क्या है?
इस धारा में ऐसी अफवाह या खबरें फैलाना या छापना आता है, जिससे जनता में डर की भावना बढ़ती हो। इसमें किसी धर्म, जाति या भाषा के प्रति भड़काऊ बात करना भी आता है। वर्ष 1860 से चली आ रही यह धारा गैरजमानती है।
सजा
दो साल तक की जेल या भारी जुर्माना या फिर दोनों।
> कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट एक्ट
क्या है?
संविधान के मुताबिक कोर्ट के किसी फैसले की निंदा नहीं की जा सकती। विधि विशेषज्ञ केवल विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण कर सकते हैं। फैसले से सहमत न हों तो उच्च अदालत में सिर्फ अपील की जा सकती है।
सजा
कोर्ट की अवमानना करने पर सजा कोर्ट ही तय करता है।