शपथपत्र: प्रत्याशी का हर संपत्ति का विवरण अनावश्यक: सुप्रीम कोर्ट
Supreme Court Judgement On Candidate Asset Details Why It Is Important Detailed Article
शपथपत्र में प्रत्याशी का हर संपत्ति का विवरण देना जरूरी नहीं, क्यों महत्वपूर्ण है सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि उम्मीदवारों को अपनी हर चल संपत्ति के अनावरण की जरूरत नहीं है। केवल उन संपत्तियों का अनावरण करना होगा जो उनकी सार्वजनिक छवि या जीवनशैली को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं और मतदाता की पसंद पर असर डालती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में असम, नगालैंड, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को पलटते हुए व्यवस्था दी कि चुनाव में किसी प्रत्याशी के लिए अपनी हरेक चल संपत्ति का विवरण देना जरूरी नहीं है। फैसला इस दृष्टि से विशेष है कि इसमें मतदाताओं के साथ-साथ प्रत्याशी के अधिकार का भी ध्यान रखने की जरूरत पर जोर दिया गया है। इसके अलावा यह इस बात की ओर भी ध्यान खींचता है कि शब्दों पर जरूरत से ज्यादा बल देना कभी-कभी अनजाने ही कानून को निरर्थकता की ओर ले जाने लगता है।
प्रत्याशियों की निजता
चुनाव सुधारों की बात करते हुए सामान्यतः मतदाताओं के जानने के अधिकार पर ज्यादा जोर रहता है। इस फैसले ने ध्यान दिलाया है कि प्रत्याशी भी इस देश के नागरिक हैं। ऐसे में मतदाताओं के सूचित होने के अधिकार को समुचित महत्व देते हुए भी प्रत्याशियों के निजता के अधिकार की ओर से पूरी तरह आंखें मूंद लेना ठीक नहीं होगा।
कागजी खानापूर्ति
ध्यान रहे, जिस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया है उसमें प्रत्याशी पर तीन वाहनों की जानकारी न देने और सरकारी आवास से जुड़े नो ड्यूज सर्टिफिकेट जमा न करने का आरोप था। शीर्ष अदालत ने इस तथ्य की ओर ध्यान दिया कि तीनों वाहन भले ही कागज पर प्रत्याशी के परिजनों के नाम पर हों, लेकिन वे पहले ही बेचे या गिफ्ट किए जा चुके थे। ऐसे ही इस तथ्य को लेकर कोई विवाद नहीं था कि प्रत्याशी पर किसी तरह का बकाया नहीं था, बस नो ड्यूज सर्टिफिकेट जमा न करने की बात थी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि इसे प्रत्याशी का निर्वाचन रद्द करने का आधार नहीं माना जा सकता।
सीधी लकीर नहीं
फैसले में कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में कोई एक लकीर नहीं खींची जा सकती कि कौन सी चल संपत्ति ब्योरा देने लायक है और कौन सी नहीं। हर केस के हिसाब से गौर किया जाना चाहिए। किसी प्रत्याशी के परिजनों की सामान्य घड़ी का ब्योरा देना अनावश्यक हो सकता है, लेकिन अगर किसी के परिवार में बेहद महंगी कई सारी घड़ियां हों तो उसका विवरण छिपाया जाना अपराध हो सकता है।
व्याख्या की गुंजाइश
यहां इस सवाल से नहीं बचा जा सकता कि क्या इस फैसले से आगे ऐसे मामलों में अलग-अलग व्याख्याओं की गुंजाइश बन गई है, जिसका दुरुपयोग हो सकता है। क्या इसका फायदा उठाते हुए आगे चलकर कुछ प्रत्याशी ऐसी भी सूचनाएं छुपा सकते हैं, जो चुनाव और वोटर की दृष्टि से महत्वपूर्ण हों?
सतर्कता की जरूरत
जाहिर है इस संभावना को लेकर ज्यादा सतर्कता बरतने की जरूरत होगी। लेकिन इसमें संदेह नहीं कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने इस महत्वपूर्ण कानून की सार्थकता बढ़ाने और इसे प्रासंगिक बनाया है।