पूर्व केंद्रीय सचिव मायाराम पर नोट छपाई में मुकदमा, कांग्रेस को आपत्ति
भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए पूर्व वित्त सचिव अरविंद मायाराम पर मुकदमा, नोटों की छपाई का मामला
सीबीआई ने गुरुवार को पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव अरविंद मायाराम और एक ब्रिटेन की कंपनी के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर उनके ठिकानों पर छापेमारी की है.
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, जांच एजेंसी के अधिकारियों ने कहा है कि भारतीय बैंक नोट में शिफ़्ट सिक्युरिटी थ्रेड की सप्लाई में कथित धांधली के मामले में ये कार्रवाई की गई.
एफ़आईआर में सीबीआई ने आरोप लगाया है कि अरविंद मायाराम, ब्रिटेन की कंपनी डी ला रुई इंटरनेशनल लि. और वित्त मंत्रालय और आरबीआई के अज्ञात अधिकारियों ने कंपनी को फ़ायदा पहुंचाने के लिए आपराधिक साज़िश रची थी.
जांच एजेंसी का आरोप है कि केंद्रीय वित्त सचिव रहते अरविंद मायाराम ने शिफ़्ट सिक्युरिटी थ्रेड सप्लाई करने वाली कंपनी के ख़त्म हो चुके कांट्रैक्ट को ग़ैरक़ानूनी तरीके से तीन साल के लिए आगे बढ़ाया था.
इसके लिए न तो गृह मंत्रालय से मंजूरी ली गई और ना ही वित्त मंत्रालय को इसकी जानकारी दी गई.
एफ़आईआर में कहा गया है कि अरविंद मायाराम ने कंपनी को चौथी बार अवैध तरीक़े से एक्सटेंशन दिया.
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने ट्वीट कर कहा है, “क्या ये भारत जोड़ो यात्रा में साथ चलने की सज़ा है?”
वर्तमान में राजस्थान सरकार के आर्थिक सलाहकार
उल्लेखनीय है कि अभी कुछ दिन पहले अरविंद मायाराम राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए थे.
मायाराम वर्तमान में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आर्थिक सलाहकार हैं.
सीबीआई ने आपराधिक साज़िश रचने और धोखाधड़ी के मामले में आईपीसी की विभिन्न धाराओं और भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून के तहत एफ़आईआर दर्ज कर मायाराम के दिल्ली और जयपुर के निवास स्थानों पर छापेमारी की.
जांच एजेंसी ने कहा है कि वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले आर्थिक मामलों के विभाग के चीफ़ विजिलेंस अफ़सर की ओर से शिकायत मिलने के बाद 2018 में जांच शुरू की गई थी.
जांच एजेंसी के मुताबिक, भारत सरकार ने डी ला रुई इंटरनेंशनल लि. के साथ 2004 में पांच साल का क़रार किया था. ये क़रार 31 दिसम्बर 2015 तक चार बार आगे बढ़ाया गया.
इस समझौते में विशेष तौर पर लिखा गया था कि कंपनी ने भारतीय बैंक नोट की सिक्युरिटी के लिए हरे से नीले में बदलने वाले विशेष रंग को विकसित किया है और इसके उत्पादन का अधिकार उसके पास रहेगा.
सीबीआई ने पाया कि कंपनी ने 28 जून 2004 को पेटेंट के लिए अप्लाई किया और उसे 2011 में पेटेंट मिल भी गया, जबकि समझौते के समय कंपनी के पास कोई वैध पेटेंट नहीं था.
आरोप- कांट्रैक्ट ख़त्म होने के बाद भी दिया विस्तार
सीबीआई ने आरोप लगाया है कि कंपनी ने पेटेंट को लेकर ग़लत दावे किए और इस विशेष समझौते पर आरबीआई के एक्जीक्युटिव डायरेक्टर पीके बिस्वास ने डी ला रुई के दावे को बिना जांच किए मंज़ूरी दे दी.
जांच में पाया गया है कि इस कांट्रैक्ट में अंतिम तिथि का कोई उल्लेख नहीं था.
आरबीआई और सिक्युरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कार्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लि. ने 2006 और 2007 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कंपनी के पास पेटेंट का हक़ नहीं है.
सीबीआई ने आरोप लगाया है कि मायाराम ने ये बात वित्त मंत्री को कभी बताई ही नहीं.
पेटेंट की हक़दार न होने के बावजूद कंपनी को 31 दिसम्बर 2012 तक लगातार कांट्रैक्ट का विस्तार मिलता रहा.
एफ़आईआर में कहा गया है कि जब 10 मई 2013 को उस समय आर्थिक मामलों के सेक्रेटरी पद पर रहे अरविंद मायाराम को कांट्रैक्ट ख़त्म होने की जानकारी दी गई तो उन्होंने इसे नज़रअंदाज़ कर कंपनी को तीन साल का और विस्तार दे दिया.
इसके लिए तत्कालीन वित्त मंत्री से कोई मंजूरी नहीं ली गई जबकि उससे पहले तीन एक्सटेंशन को वित्त मंत्री ने खुद मंजूरी दी थी.
एफ़आईआर में ये भी आरोप लगाया गया है कि, डी ला रुई के कांट्रैक्ट एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने वाले अनिल रघबीर को डी ला रुई की ओर से 2011 में किए गए भुगतान के अलावा विदेशी संस्थाओं से 8.2 करोड़ रुपये मिले थे.