रक्षाबंधन: बहुत याद आती है भगिनी,सुधा कलश छलकाती सी
रक्षा बन्धन का पर्व
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बहुत याद आती है भगिनी सुधा कलश छलकाती सी।
हँसी खुशी के महा पर्व पर भीतर तक हुलसाती सी।।
सच्चा प्रेम धरा धरती पर जब देखो तब दिखता है।
रेशम के कच्चे धागों पर पक्का रिश्ता टिकता है।।
आज बहिन भाई का दिन है सच्ची प्रेम निशानी का।
धीर वीरता सहनशीलता कविता और कहानी का।।
आज श्रावणी यही सनूनो यही पूर्णिमा सावन की।
रक्षा कवच ब्राह्मणी डोरी वीरन राखी बन्धन की।।
“रक्षा-बंधन” महापर्व है कुशल क्षेम से जीने का।
यही देववाणी संस्कृत का दिवस सुधारस पीने का।।
मल्लों का अभ्यास दिवस यह खेलकूद का शुभ दर्शन।
आज पुरोहित क्षात्र सुतों का करता है रक्षाबंधन।।
सरस्वती उठ गयी शयन से करो आज से पुन: नमन।
सिरा भुजरियों को पानी में करो कलाओं का चिन्तन।।
यही धरा है जहाँ वीरता बँधी हुई है धागों से।
यही धरा है जहाँ सुरक्षित बहिन हजारों आगों से।।
यही धरा है जहाँ कलाई निष्कलंक हो जाती है।
यही धरा है जहाँ प्रीति पावन निशंक हो जाती है।।
यही धरा है जहाँ पत्थरों पर कलियाँ खिल सकतीं हैं।
यही धरा है जहाँ नियति की अंजलियाँ मिल सकतीं हैं।।
यही धरा है जहाँ कि निष्ठा वस्तु रही हृदयंगम की।
जहाँ पनपती रही संस्कृति सत्यं शिवं सुन्दरम् की।।
शीतल नीर पिलाती सी, बिजना मधुर डुलाती सी।
भैया दादा करती आती मीठी याद दिलाती सी।।
बहुत याद आती है भगिनी सुधा कलश छलकाती सी।
हँसी खुशी के महा पर्व पर भीतर तक हुलसाती सी।।
रक्षा की यह रीति नीति है प्रीति बहन से भाई की।
जय की मंगलमयी कामना शोभा शेष कलाई की।।
बहिन हमारी और तुम्हारी तुतलाती इठलाती सी।
अकुलाती कुम्हलाती आती झल्लाती सहलाती सी।।
हकलाती लड़ जाती फिर फिर बहलाती फुसलाती सी।
शर्माती शकुचाती जाती शिथिलाती बल खाती सी ।।
छुप छुप कर अपने हिस्से की चीजों को देने वाली।
जानबूझकर हार हार कर जीतों को देने वाली।।
पलते हैं अहसास सुहाने भाई भगिनी होने में।।
बचपन से बूढ़े होने तक मन के कच्चे कोने में।
नटखट बचपन की यादों में पोर-पोर महका करती।
एक-दूसरे से लड़ने की परत-दर – परत सी खुलती।।
स्वाद नहीं बतला पाऊँगा लगते हैं कितने मीठे।
रेशम के धागे में लिपटी यादों के शीतल छींटे।।
मेरी मम्मी मेरे पापा इसी बात पर उलझ गए।
मेरी कापी मेरी बोतल तू ले ले यूँ सुलझ गए।।
उल्टे सीधे नाम धर लिए उछल कूद की शैतानी।
भूल गए तो भूल गए सब ऐसी भोली नादानी।।
थोड़ा प्यार ढेर सी चिन्ता मिलीजुली भावना पली।
थोड़ी खुशी जलन थोड़ी सी ढ़ेरों शुभकामना पली।।
खाती नहीं खिलाती सी, बोले बिना बुलाती सी।
कभी फुलाती गाल कभी खुद जलती और जलाती सी।
बहुत याद आती है भगिनी सुधा कलश छलकाती सी।
हँसी खुशी के महा पर्व पर भीतर तक हुलसाती सी।।
मासूमियत और मोहकता बहुत झमेला करती थी।
छुपा खिलौने, धींगा मस्ती, खुलकर खेला करती थी।।
इमली पर झूला डलवाना, फिर धकियाना भूल गयी।
अरी बहिन, क्या चिड़ियों सा खुद का चिचियाना भूल गयी।।
भूल न जाना एक कोख से हम दोनों का जन्म हुआ।
भूल न जाना, अरी बावरी अपना सपना छनन हुआ।।
भैया सुनो, आज बतलाऊँ मेरे राजा भैया सा।
कोई जन्मा नहीं आज तक कुल की नाव खिवैया सा।
फिर भी भैया धरती मैया के कुछ ऐसे बेटे हैं।
जो सीमा पर सांँस थाम अरि की छाती पर लेटे हैं।।
जिनके बल पर निर्भय होकर सोते हम गाते साखी।
डटे हुए सीमा पर सैनिक को भेजूँ पहली राखी।।
वीर बाँकुरों को सीमा पर राखी चली हमारी है।
जिनकी कोई बहिन नहीं है उनकी बहिन तुम्हारी है।।
करती हूँ कल्याण कामना मेरे भाई अजर रहें।
बाल न बाँका होने देना हे परमेश्वर अमर रहें।।
नभ में मेघ धरा पर बूँदें मन भावन पावन आता।
भादों को दायित्व सौंपता बता रहा सावन जाता।।
चाँद सितारों सी चमकीली राखी लायी सहोदरा।
चलो तिलक करवाओ बैठो हुक्म दे रही प्रियंकरा।।
जमा खून खौलाती सी क्या हूँ मैं बतलाती सी।
चिल्लाती झल्लाती आती अपनी दाल गलाती सी।।
बहुत याद आती है भगिनी सुधा कलश छलकाती सी।
हँसी खुशी के महा पर्व पर भीतर
तक हुलसाती सी।।
गिरेन्द्र सिंह भदौरिया “प्राण”
9424044284
6265196070
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सभी बंधुओ को मेरा सादर प्रणाम
मेरा प्रश्न यह है कि, रक्षा सूत्र बांधते समय कौनसे मंत्र का उच्चारण किया जाता है और इसका अर्थ क्या है?
कई बार लोग दूसरों को भ्रमित करते पाए जाते हैं कि रक्षा सूत्र एक तरह का तंत्र मंत्र है, जिसके मदद से लोगो को वश में कर लिया जाता है।
कृपया इसका बारे में बताएं 🙏🙏
[8/3, 10:50] +91 97608 70277: प्रायः इस मंत्र का प्रयोग किया जाता है :
“येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः | तेन त्वां मनुबध्नामि, रक्षंमाचल माचल ||
इस मंत्र का सामान्यत: यह अर्थ लिया जाता है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं।
हे रक्षे!(रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।
धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहत अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं।
इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है
[8/3, 11:22] +91 94144 03937: जब आजाद को बांधा रक्षा सूत्र
निष्काम, निस्वार्थ प्रेम का सुत्र है राखी
रक्षाबंधन का पावन त्यौहार जिस दिन बहिने अपने भाइयों की खुशहाली की प्रार्थना करती है रक्षा सूत्र रूपी कवच पहनाकर दीर्घायु की मंगल कामना करती है वहीं भाई इस दिन बहनों की हर पल रक्षा का संकल्प लेते हैं ।अगर इस त्यौहार के विस्तार पर जाए तो यह त्यौहार केवल बहन भाई के प्रेम-व्यवहार तक ही सीमित नहीं ,अपितु यह पर्व हमें देशभक्ति, समर्पण ,त्याग व सहयोग का भी संदेश देता है। आजादी के दिनों में जब देश प्रेम के मतवाले आजादी का कफन बांधकर समर में कूद पड़े थे तब रक्षा सूत्र बांध कर देशवासियों ने उनकी सफलता की दुआए की थी,
✍️ऐसी ही एक घटना एक बार स्वंतत्रता सैनानी चन्द्रशेखर आजाद तूफानी रात में शरण लेने के लिए किसी गांव में एक दरवाजा खटखटाते हैं एक विधवा दरवाजा खोलती है पहले तो डाकू या लुटेरा समझ डर जाती है तथा शरण देने से मना कर देती है, लेकिन आजाद जब अपना परिचय देते हैं तब वह सब कुछ समझ उन्हें शरण देती है। बातचीत के दौरान आजाद को मालूम हुआ कि गरीबी के कारण उस विधवा की बेटी की शादी नहीं हो पा रही है तो आजाद ने कहा कि मेरी गिरफ्तारी पर अग्रेजो ने 5000 का इनाम घोषित किया हुआ है, तुम मुझे गिरफ्तार करवा दो तथा इनाम प्राप्त कर उस राशि से अपनी बेटी की शादी कर दो,यह सुनकर विधवा रो पड़ी और बोली भैया तुम देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हो अनगिनत मां बहनों की रक्षा में लगे हो, सभी की इज्जत तुम्हारे भरोसे है मैं इतनी स्वार्थी भी नहीं कि अपनी बेटी के लिए हजारों बेटियों का गला धोट दू। यह कहते हुए उसने आजाद के हाथ में रक्षा सूत्र बांधा देश सेवा का वचन लिया तथा सफलता की मंगल कामना की। रात बीती आजाद जा चुके थे लेकिन जब उस विधवा ने आजाद के सोने वाले बिस्तर का तकिया हटाया तो उसके नीचे कुछ रुपए रखे हुए थे तथा एक पर्ची भी थी जिस पर लिखा था अपनी प्यारी बहन हेतु छोटी सी भेट।
✍️अतः राखी केवल एक मामूली रेशम का धागा नहीं है अपितु यह निष्काम, निस्वार्थ प्रेम का सुत्र है ।आइए आज के दिन हम संकल्प ले देश भक्ति, त्याग, समर्पण ,सहयोग की भावना का परिचय देते हुए एक दूसरे का सहयोग करेंगे तथा आत्मनिर्भर व स्वदेशी को अपनाकर देश को आगे बढ़ाने में अपना अमूल्य योगदान देगे।
✍️ *सुनील कुमार शर्मा*
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था* 🇮🇳 *9414403937*