चीन संकट में: अमेरिकी कंपनियां पीछा छुड़ा भारत आने की ताक में
Us Treasury Secretary Janet Yellen Sees India As An Indispensable Partner
चीन में नहीं चल रहा सबज्ञकुछ ठीकठाक, कारोबार समेटने की तैयारी में अमेरिकी कंपनियां, भारत आने को आतुर
अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन नौ महीने में तीसरी बार भारत यात्रा पर आई हैं। वह हाल में चीन होकर आई हैं। इसलिए उनकी भारत यात्रा को अहम माना जा रहा है। उनका कहना है कि चीन की इकॉनोमी में सुस्ती आ रही है जिसका असर दूसरे कई देशों पर पड़ रहा है।
मुख्य बिंदु
अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन भारत यात्रा पर
नौ महीने में तीसरी बार भारत आई हैं जेनेट येलेन
भारत आने को आतुर हैं अमेरिका की कंपनियां
नई दिल्ली 16 जुलाई: अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन (Janet Yellen) भारत यात्रा पर आई हुई हैं। नौ महीने में उनकी यह भारत की तीसरी यात्रा है। उनकी इस यात्रा इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि हाल ही में वह चीन होकर आई हैं। चीन की इकॉनोमी सुस्ती से बाहर नहीं निकल पा रही है जबकि भारत दुनिया में सबसे तेजी से ग्रोथ कर रहा है। येलेन ने रविवार को गांधीनगर में कहा कि वह अमेरिका और भारत के रिश्तों को नया आयाम देने की कोशिश कर रही हैं। चीन और अमेरिका के बीच पिछले कुछ समय से तनाव चल रहा है। दोनों देशों ने एक दूसरे की टेक कंपनियों पर कई तरह के प्रतिबंध लगाये हैं। इनके चलते अमेरिका की कंपनियां चीन के बाहर ठिकाना खोज रही हैं ताकि बीजिंग पर अपनी निर्भरता को कम किया जा सके। ऐसी स्थिति में भारत उनके लिए निवेश का मनपसंद देश बनकर उभरा है।
येलेन ने कहा कि अमेरिका की कंपनियां सामान बनाने और उसके अमेरिका को एक्सपोर्ट करने के लिए भारत को एक शानदार जगह मानती हैं। उन्होंने साथ ही कहा कि चीन की ग्रोथ धीमी पड़ गई है जिससे दुनिया के कई दूसरे देशों पर प्रभाव पड़ा है। येलेन ने कहा, ‘मैंने चीन के नेताओं के साथ इस बारे में बात की। चीन के नेता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि उनके यहां बिजनस का माहौल ओपन है। जाहिर तौर पर वे विदेशी निवेश चाहते हैं।’ इस बीच भारत निवेश के लिए दुनियाभर की कंपनियों की मनपसंद जगह बनी हुई है। हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की यात्रा पर गए थे। इस दौरान दोनों देशों के बीच कई बिजनस डील हुईं।
भारत नेचुरल पार्टनर
हडसन इंस्टीट्यूट में सीनियर फेलो Harold W. Furchtgott-Roth ने कहा कि येलेन का भारत दौरा दोनों देशों के बीच बन रहे स्वाभाविक गठजोड़ को दिखाता है। चीन के मानवाधिकार रेकॉर्ड और अंतरराष्ट्रीय कानूनों को ठेंगा दिखाने की प्रवृत्ति के कारण पश्चिमी देशों की उससे दूरी बढ़ती जा रही है। यूरोप की सबसे बड़ी इकॉनोमी वाले देश जर्मनी ने क्रिटिकल सेक्टर्स में चीन पर निर्भरता कम करने को रणनीति बनाई है। इसमें कहा गया है कि चीन अब पहले जैसा नहीं रह गया है और इसलिए जर्मनी को भी बदलने की जरूरत है। कोरोना काल में ग्लोबल कंपनियों की सप्लाई चेन बुरी तरह प्रभावित हुई थी। इसलिए वे चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने में लगी हैं।
अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देश चीन पर अपनी निर्भरता कम करने चाहते हैं। ऐसे में भारत उनके लिए स्वाभाविक विकल्प बनकर उभरा है। हाल में अमेरिका की कई कंपनियों ने भारत में अपना कारोबार फैलाया है। अमेरिका की कंपनियों ने भारत में 60 अरब डॉलर का निवेश किया है जबकि भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में 40 अरब डॉलर से अधिक का इन्वेस्टमेंट किया है। दोनों देशों के बीच व्यापार की अपार संभावनाएं हैं। दोनों देशों में द्विपक्षीय व्यापार 191 अरब डॉलर के रेकॉर्ड स्तर तक पहुंच चुका है। चीन को पछाड़कर अमेरिका भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर बन चुका है। दिलचस्प बात यह है कि इसमें ट्रेड बैलेंस भारत के पक्ष में है।
दोनों देशों का फायदा
अमेरिका के लिए भारत उसका नौवां सबसे बड़ा साझेदार है। अमेरिकी कंपनियों ने भारत में मैन्यूफैक्चरिंग, टेलीकम्युनिकेशंस, कंज्यूमर गुड्स से लेकर एयरोस्पेस में निवेश किया है। भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में आईटी, फार्मा और ग्रीन एनर्जी में इनवेस्ट किया है। अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने 12 जून को India Ideas Summit of the US-India Business Council (USIBC) में कहा था कि भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में कैलिफोर्निया से लेकर जॉर्जिया तक 425,000 लोगों को नौकरी दी है। यानी इस दोस्ती में दोनों देशों का फायदा है। दोनों देश अपने रिश्तों को बढ़ाने को कितने गंभीर हैं, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी विभिन्न स्तरों पर 50 से अधिक द्विपक्षीय डायलॉग मैकेनिज्म चल रहे हैं।