बैठ रही चीनी अर्थव्यवस्था, सबसे ज्यादा परेशान अमेरिका
China’s Economic Turmoil Could Hurt Us See What Is The Connection
चीन को लग रही चोट तो अमेरिका की क्यों निकल रही चीख… दिलचस्प है कनेक्शन
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी चीन को आर्थिक मोर्चे पर एक के बाद एक झटके लग रहे हैं। चीन की इस हालत से अमेरिका भी परेशान है। अमेरिका की कई कंपनियों के लिए चीन बड़ा ग्राहक है। साथ ही कई अमेरिकी कंपनियों ने चीन में जमकर निवेश कर रखा है।
मुख्य बिंदु
चीन की हालत दिन-ब-दिन खस्ता हो रही है
अमेरिका की कंपनियां का निवेश खतरे में है
कई कंपनियां का ज्यादातर रेवेन्यू चीन से है
नई दिल्ली 19 अगस्त: चीन की इकॉनमी संकट (China Economic Crisis) में है। जीडीपी सुस्त पड़ी है, एक्सपोर्ट लगातार गिर रहा है, फैक्ट्रियों में प्रॉडक्शन कम हो रहा है, विदेश निवेश कम हो रहा है, विदेशी कंपनियां अपना बोरिया बिस्तर समेट रही हैं, बेरोजगारी चरम पर है, खपत कम हो रही है और रियल एस्टेट सेक्टर बैठ गया है। हालत यह हो गई है कि चीन की सरकार ने बेरोजगारी के आंकड़े देना बंद कर दिया है। अमेरिका और चीन के बीच तनाव हर बीतते दिन के साथ बढ़ता जा रहा है। ट्रेड पॉलिसी से लेकर टेक्नोलॉजी तक, कई मुद्दों पर दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच ठनी हुई है। लेकिन चीन से बज रही खतरे की इस घंटी से अमेरिका में खलबली है।
पिछले हफ्ते अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चीन की एडवांस्ड टेक्नोलॉजी इंडस्ट्रीज में अमेरिका के निवेश को सीमित कर दिया। इससे फंड मैनेजरों में चिंता है कि वे चीन में कैसे निवेश करेंगे। साथ ही संसद की एक समिति इस बात की जांच कर रही है कि ब्लैकरॉक और एमएससीआई कहीं चीन की प्रतिबंधित कंपनियों में निवेश तो नहीं कर रही हैं। ब्लैकरॉक दुनिया की सबसे बड़ी एसेट मैनेजमेंट कंपनी है जबकि एमएससीआई इंडेक्स फंड्स देने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है। सवाल यह है कि अमेरिका के लिए चीन की क्या अहमियत है।
थम गई दुनिया की फैक्ट्री
करीब दो दशक से अधिक समय तक चीन दुनिया की फैक्ट्री बना रहा। अमेरिका समेत दुनियाभर की कंपनियों ने वहां सस्ते में सामान बनाकर पूरी दुनिया में बेचा और दोनों हाथों से माल कमाया। वजह साफ है कि अगर चीन की इकॉनमी में सुस्ती आती है तो इसका असर पूरी दुनिया पर होगा। अगर ऐसा हुआ इसका असर अमेरिकी कंपनियों के शेयरों पर भी पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि अमेरिका की कई कंपनियों ने चीन में जमकर निवेश किया हुआ है। साथ ही कई कंपनियों के लिए चीन सबसे बड़ा मार्केट है।
यहां तक कि जिन कंपनियों का चीन में ज्यादा बिजनस नहीं है वे भी चीन की स्थिति से चिंता में हैं। उदाहरण के लिए ExxonMobil का चीन में ज्यादा बिजनस नहीं है लेकिन चीन की ग्रोथ में गिरावट आती है तो तेल की डिमांड गिरेगी। इसका असर भी दिखने लगा है। चीन से आ रही खबरों के कारण तेल की कीमत में गिरावट आने लगी है। ऐपल, इंटेल, फोर्ड और टेस्ला जैसी कंपनियों ने चीन में बड़ी-बड़ी यूनिट लगा रखी हैं। इसी तरह स्टारबक्स और नाइकी जैसी कंपनियां चीन के ग्राहकों पर टिकी हैं।
चीन में निवेश घटाया
इसी साल बैंक ऑफ अमेरिका ने ऐसी टॉप कंपनियों की एक लिस्ट बनाई थी जिनका चीन में सबसे ज्यादा एक्सपोजर है। इस लिस्ट में पहले नंबर पर लास वेगास सैंड्स पहले नंबर पर है। इस कसीनो कंपनी का 68 परसेंट रेवेन्यू चीन से आता है। पिछले एक महीने में कंपनी के शेयरों में करीब 10 परसेंट गिरावट आई है। इसी तरह सेमीकंडक्टर बनाने वाली कंपनी क्वालकॉम का 67 परसेंट एक्सपोजर चीन में है। पिछले एक महीने में कंपनी के शेयरों में करीब 11 परसेंट गिरावट आई है। इसी तरह एनवीडिया, विन रेजॉर्ट्स और एमजीएम रेजॉर्ट्स का भी चीन में बहुत एक्सपोजर है।
चीन में अमेरिका का प्राइवेट इक्विटी और वेंचर कैपिटल इनवेस्टमेंट्स आठ साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है और लगातार गिर रहा है। माइकल बरी के सायन एसेट मैनेजमेंट, मूर कैपिटल मैनेजमेंट, Coatue, डी1 कैपिटल और टाइगर ग्लोबल ने दूसरी तिमाही में चीन की कंपनियों में अपना निवेश कम किया है। इसी तरह अमेरिका और पश्चिमी देशों की कई कंपनियां चीन में अपना बिजनस सीमित कर रही हैं। इसकी वजह यह है कि कोरोना काल में चीन से सप्लाई बाधित हुई थी। साथ ही पश्चिमी देश चीन पर अपनी निर्भरता कम कर रहे हैं।
China Economy Engine That Propelled Global Economy Is Sputtering
China Economy: थम गया दुनिया का इंजन, निकल गए कलपुर्जे… चीन से आ रहे डराने वाले संकेत
दो दशक से अधिक समय तक चीन ग्लोबल इकॉनमी का इंजन रहा। इस दौरान दुनियाभर की कंपनियों ने चीन में भारी निवेश किया और दोनों हाथों से खूब प्रॉफिट कमाया। लेकिन हाल में चीन की इकॉनमी के बारे में जिस तरह की खबरें आई हैं, उससे लग रहा है कि दुनिया की इकॉनमी का इंजन अब थक चुका है। जानिए वे इशारे जो चीन की इकॉनमी के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।
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China Economy: थम गया दुनिया का इंजन, निकल गए कलपुर्जे… चीन से आ रहे डराने वाले संकेत
चीन को दुनिया की फैक्ट्री माना जाता है। इसकी वजह यह है कि पूरी दुनिया चीन में बने माल से पटी पड़ी है। दो दशक से अधिक समय तक दुनियाभर की कंपनियों में चीन में सस्ते में सामान बनाया और इसे पूरी दुनिया में बेचा। इसके दम पर चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी बन गया। लेकिन हाल के दिनों में चीन से एक के बाद एक कई डराने वाली खबरें आई हैं। देश की इकॉनमी सुस्त पड़ गई है, एक्सपोर्ट गिर गया है, मैन्यूफैक्चरिंग का दम निकल गया है, कीमतों में गिरावट आई है और दुनियाभर की कंपनियों ने मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है। खुद चीन के लोग आशंकित हैं। पैसे खर्च करने के बजाय वे पैसा बचाने में लगे हैं। समझिए इन संकेतों में…
बेरोजगारी चरम पर
चीन में बेरोजगारी चरम पर पहुंच गई है। हालत यह हो गई है कि चीन की सरकार ने युवाओं की बेरोजगारी से जुड़े आंकड़े जारी करना बंद कर दिया है। इसे चीन की आर्थिक मंदी के अहम संकेत के रूप में देखा जा रहा था। जून में चीन के शहरी क्षेत्रों में 16 से 24 साल के युवाओं के लिए बेरोजगारी दर 20 परसेंट से अधिक की रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थी। चीन में बेरोजगारी से जुड़े आंकड़े जारी करने वाली संस्था एनबीएस ने कहा है कि इस महीने अब बेरोजगारी डेटा को जारी नहीं करेगा। उसका कहना है कि वह इस बात पर फिर से विचार करेगा कि बेरोजगारी दर को किस तरह से मापा जाए।
पैसा बचाने में लगे लोग
करीब तीन साल से चीन ने कोरोना से निपटने के लिए सख्त पाबंदी लगा रखी थी। इससे कंज्यूमर स्पेंडिंग में गिरावट आई। 2022 के अंत में जब पाबंदियां हटाई गईं तो लाखों लोगों ने रेस्टोरेंट्स और शॉपिंग मॉल्स का रुख किया और छुट्टियां मनाने चले गए। लेकिन यह जोश कुछ ही दिन में ठंडा पड़ गया। रिकवरी पटरी से उतर गई और लेबर मार्केट दबाव में आ गया। कंज्यूमर डिमांड में कमी के कारण कंपनियां लोगों को नौकरी नहीं दे रही हैं और इकनॉमिक स्थिति के कारण लोग खर्च करने की स्थिति में नहीं हैं। देश में हाउसहोल्ड डिपॉजिट 1.7 ट्रिलियन डॉलर पहुंच गया है जो एक दशक में इसका सबसे बड़ा एक्सपेंशन है।
एक्सपोर्ट में गिरावट
चीन के एक्सपोर्ट जुलाई में लगातार तीसरे महीने गिरा। ग्लोबल डिमांड के सुस्त पड़ने से चीन का एक्सपोर्ट गिरा है। इससे चीन पर अपनी इकॉनमी में फिर से जान फूंकने के लिए दबाव बढ़ गया है। जून में चीन का एक्सपोर्ट पिछले साल के मुकाबले 14.5 परसेंट गिरा था जो फरवरी 2020 के बाद उसके एक्सपोर्ट में सबसे बड़ी गिरावट थी। जून की तुलना में जुलाई में देश का एक्सपोर्ट 0.9 परसेंट गिरा है। आने वाले महीनों में चीन के एक्सपोर्ट में और गिरावट आने की आशंका है। खासकर अमेरिका को चीन के एक्सपोर्ट 13 परसेंट गिरा है। अमेरिका चीन का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है।
डिफ्लेशन
जुलाई में चीन की इकॉनमी भी पिचक गई। चीन के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स जुलाई में पिछले साल से 0.3 प्रतिशत गिरा। दो साल में पहली बार ऐसा हुआ। वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में गिरावट डिफ्लेशन कहलाता हैं। इकॉनमी में फंड की सप्लाई और क्रेडिट में गिरावट से ऐसा होता है। कई महीनों से चीन में कीमतें स्थिर बनी थी। वजह यह कि लोग कीमतें और घटने की उम्मीद में सामान नहीं खरीद रहे। डिमांड में कमी से कंपनियां सामान नहीं बना रही।
रियल एस्टेट संकट
चीन के मिडल क्लास ने प्रॉपर्टी के दम पर कई साल तक अपनी वेल्थ बढ़ाई। डिमांड के कारण प्रॉपर्टी की कीमत आसमान छूने लगी थी लेकिन 2020 में इस पर ब्रेक लग गया। इससे डेवलपर्स की मुश्किलें बढ़ गई हैं और कई प्रोजेक्ट अधूरे पड़े हैं। चीन के सेंट्रल बैंक ने रियल एस्टेट सेक्टर को इस स्थिति से उबारने के लिए डेवलपर्स को लोन रिपेमेंट में एक्सटेंशन देने का फैसला किया है। लेकिन जानकारों का कहना है कि इस तरह के प्रयास रियल सेक्टर को बचाने के लिए नाकाफी हैं। इस संकट के कारण चीन की कई बड़ी रियल एस्टेट कंपनियां बर्बाद हो चुकी हैं।
विदेशी निवेशकों ने मुंह मोड़ा
चीन की इकॉनमी की खस्ता हालत को देखते हुए विदेशी निवेशकों ने उससे किनारा करना शुरू कर दिया है। गोल्डमैन सैश के मुताबिक इस साल के पहले छह महीनों में जापान के शेयरों में विदेशी निवेश चीन के मुकाबले आगे निकल गया है। साल 2017 के बाद यह पहला मौका है जब ऐसा हुआ है। जुलाई में भी यह बिकवाली जारी है जबकि चीन और हॉन्ग कॉन्ग के बाजारों में तेजी आई है। मोर्गन स्टेनली ने पिछले हफ्ते एक रिपोर्ट में लिखा कि विदेशी निवेशक चीन से किनारा कर रहे हैं और जापान के शेयरों में निवेश कर रहे हैं। लंबे समय बाद विदेशी निवेशक जापानी मार्केट का रुख कर रहे हैं।
जियोपॉलिटिकल तनाव
चीन और अमेरिका के बीच बढ़ रहे तनाव के कारण भी बीजिंग को नुकसान उठाना पड़ रहा है। अमेरिका और दूसरे कई पश्चिमी देश चीन पर निर्भरता कम करने के लिए काम कर रहे हैं। अमेरिका ने चीन को सेमीकंडक्टर की सप्लाई पर तरह-तरह की बंदिशें लगाई हैं। साथ ही वह अपने मित्र देशों को भी ऐसा करने के लिए कह रहा है। यूरोप के कई देशों ने भी चीन पर अपनी निर्भरता घटाने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। चीन में विदेशी निवेश में भी गिरावट आई है। कई कंपनियां चीन से अपना कारोबार समेटकर दूसरे देशों में ले जा रही है।
जीडीपी में सुस्ती
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी चीन माओत्से तुंग यानी माओ जेडोंग के दौर के बाद सबसे सुस्त इकनॉमिक ग्रोथ के कगार पर है। चीन की इकॉनमी अप्रैल-जून तिमाही में 6.3 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ी। यह पिछले एक साल में चीन की जीडीपी की सबसे तेज ग्रोथ है लेकिन यह अनुमानों से कम है। पिछली तिमाही के मुकाबले इसमें 0.8 प्रतिशत की तेजी रही। इनवेस्टमेंट बैंक Macquarie के इकनॉमिस्ट लैरी हू का कहना है कि चीन की स्थिति जापान की याद दिलाती है जहां कई साल तक गतिरोध की स्थिति पैदा हो गई थी।