जयंती:जोरावर सिंह बारहट ने दिल्ली षड्यंत्र केस के बाद भोगा था 27 वर्ष वनवास
….. चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।🙏🙏🌹🌹🌹🌹 ………………………………………………………………………………………………………………………..
*जन्म:-* 12.09.1883 *पुण्यतिथि:-* 17.10.1939
🇮🇳 *जोरावर सिंह बारहठ 🇮🇳*
राष्ट्रभक्त साथियों, आज हम राजस्थान की बलिदानी भूमि पर जन्मे महान क्रांतिकारी जोरावर सिंह बारहठ के जीवन के त्याग से परिचित होने का प्रयास करेंगे। गौरवर्ण, उर्ध्व ललाट, दीर्घ नेत्र, मुखाकृति फैली हुई, भव्य दाढ़ी सब मिलाकर ठाकुर जोरावर सिंह बारहठ का व्यक्तित्व बड़ा आकर्षक था। इनका जन्म 12 सितम्बर 1883 को इनके पैैतृक गाँव देवखेडा (शाहपुरा) में हुआ था। देशप्रेम, साहस और शौर्य उन्हें वंश परंपरा के रूप में प्राप्त हुआ था। जोधपुर में प्रसिद्ध क्रांतिकारी भाई बालमुकुन्द से (जिन्हें दिल्ली षड़यंत्र अभियोग में फाँसी हुई थी) जो राजकुमारों के शिक्षक थे, उनका संपर्क हुआ। राजकीय सेवा का वैभवपूर्ण जीवन उन्हें क्रांति दल में सम्मिलित होने से नहीं रोक सका। निमाज़ (आरा, बिहार) के महंत की राजनैतिक हत्याओं में वे सम्मिलित थे, परन्तु वे फरार हो गए। जब रासबिहारी बोस ने लार्ड हार्डिंग पर बम फेंक कर “ब्रिटिश अजेय है” इस भावना को समाप्त करने की योजना तैयार की तो इसका जिम्मा जोरावर सिंह व प्रताप सिंह को सौंपा।
दिल्ली बम काण्ड सन् १९१२ में बनायी गयी मास्टर अमीरचन्द, लाला हनुमन्त सहाय, मास्टर अवध बिहारी, भाई बालमुकुन्द और बसन्त कुमार विश्वास द्वारा लार्ड हार्डिंग नामक ब्रिटिश वायसराय को जान से मार डालने की एक क्रान्तिकारी योजना थी जो सफल न हो सकी। लार्ड हार्डिंग तो बच गया किन्तु जिस हाथी पर बैठाकर दिल्ली के चाँदनी चौक क्षेत्र में वायसराय की शानदार शाही सवारी निकाली जा रही थी उसका महावत मारा गया। पुलिस ने इस काण्ड में चारो प्रमुख क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार करके उन पर वायसराय की हत्या की साजिश का मुकदमा चलाया। लालाजी को उम्रकैद की सजा देकर अण्डमान भेज दिया गया जबकि अन्य चारों को फाँसी की सजा हुई। लाला हनुमन्त सहाय ने इस फैसले के विरुद्ध अपील की थी जिसके परिणाम स्वरूप उनकी उम्र कैद को सात वर्ष के कठोर कारावास में बदल दिया गया। पुरानी दिल्ली में बहादुरशाह जफर रोड पर दिल्ली गेट से आगे स्थित वर्तमान खूनी दरवाजे के पास जिस जेल में दिल्ली बम काण्ड के इन चार शहीदों को फाँसी दी गयी थी उसके निशान भी मिटा दिये गये। अब वहाँ जेल की जगह मौलाना आजाद मेडिकल कालेज बन गया है।
जनता की बेहद माँग पर अब इस मेडिकल कॉलेज के परिसर में चारो शहीदों की मूर्तियाँ स्थापित कर दी गयी हैं।
📝 23 दिसंबर 1912 को जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद की शक्ति के प्रतीक वायसराय लार्ड हार्डिंग का भव्य जुलूस दिल्ली के चांदनी चौक में पहुँचा तो जोरावर सिंह ने बुर्के से चुपके से हाथ निकाल कर बम फेंक कर वायसराय को रुधिर स्नान करा दिया। प्रताप सिंह भी उस समय उनके पास थे। इस घटना से अंग्रेजों की दुनिया के सभी गुलाम देशों में राजनैतिक भूकंप आ गया था। भारतवासी ब्रिटिश शासन को वरदान के रूप में स्वीकार करते हैं, इस झूठे प्रचार का भवन ढह गया। जोरावर सिंह, प्रताप सिंह को लेकर दिल्ली से निकल गए। उस दिन से जीवन के अंत तक वीरवर जोरावर सिंह राजस्थान और मालवा के वनाच्छादित पर्वतीय प्रदेशों में अमरदास वैरागी के नाम से फरार अवस्था में भटकते रहे। निरंतर 27 वर्षों तक वे राजस्थान व मध्यप्रदेश के जंगल-बीहड़ों में भूख प्यास, सर्दी, गर्मी, वर्षा सहते हुए आजादी की अलख जगाते रहे। इसी दौरान एक बार अंग्रेजों को उनकी भनक लगी तो उन्होंने सीतामऊ के तत्कालीन राजा रामसिंह को आदेश दिया कि वे जोरावर को गिरफ्तार कर उन्हें सुपुर्द कर दे। रामसिंह नहीं चाहते थे कि वे किसी चारण क्रांतिवीर को गिरफ्तार करे। अतः उन्होंने गुप्तचर के माध्यम से उन्हें सीतामऊ से बाहर निकल जाने का समाचार कहलवाया । इस पर जोरावर ने महाराजा को रहीम का एक भावपूर्ण दोहा भेजा-
*सर सूखे पंछी उड़े, और ही सर ठहराय।*
*मच्छ कच्छ बिन पच्छ के, कहो रहिम कित जाय।।*
📝दोहा पढ रामसिंह की आँखों में आँसू आ गए। अब स्वयं उन्होंने जोरावर सिंह बारहठ को कहलवाया कि आप मेरे राज्य में निर्भय रहे। इस प्रकार जंगलों में भटकते – भटकते भारत माँ का यह लाल आश्विन शुक्ल पंचमी दिनांक 17 अक्तूबर 1939 को एकलगढ (मंदसौर) में नारू रोग से जूझते हुए फरारी अवस्था में ही इस नश्वर देह को त्याग परलोक गामी हुआ। वहीं उनकी स्मृति में बनी एक जीर्ण-शीर्ण छतरी हमारी कृतघ्नता और उनकी वीरता की गाथा गा रही है।
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✍️ कैलाश सिंह जाड़ावत *&* राकेश कुमार
*🇮🇳 मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477 🇮🇳*