पाक गृहयुद्ध: इमरान की पार्टी आतंकी घोषित होगी कि लगेगा मार्शल लॉ?
Imran Khan Arrest Know Is Pakistan Hurtling Towards Civil War What Expert Says
इमरान खान की गिरफ्तारी से सुलगा पाकिस्तान, मार्शल लॉ या PTI पर ‘आतंकी बैन’, आगे क्या हैं विकल्प?
पाकिस्तान में जंग जैसे हालात, जेल में इमरान खान
पाकिस्तान में पीटीआई नेता इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद गृहयुद्ध जैसे हालात हैं। पाकिस्तानी सेना इमरान खान के समर्थकों के निशाने पर है। सेना ने रातभर इमरान खान समर्थकों को हटाने की कोशिश की है। पाकिस्तान इस महासंकट के बाद किस ओर जा रहा है, आइए विशेषज्ञों से समझते हैं।
हाइलाइट्स
1-पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को सेना के इशारे पर अरेस्ट कर लिया गया है
2-इमरान खान को आज 4 से 5 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में भेजा जा सकता है
3-पाकिस्तानी सेना के पास मार्शल लॉ से लेकर पीटीआई पर बैन समेत कई विकल्प मौजूद हैं
इस्लामाबाद10मई : पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पीटीआई के नेता इमरान खान को सेना के इशारे पर अरेस्ट कर लिया गया है। इमरान खान को 4 से 5 दिनों को न्यायिक हिरासत में भेजा जा सकता है। इमरान की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसे हालात हैं। लाखों पीटीआई समर्थकों ने सेना के मुख्यालय से लेकर एयरबेस तक को निशाना बना आगजनी की है। पाकिस्तानी सेना के जवाबी ऐक्शन में कई इमरान समर्थक हताहत भी हुए हैं। सेना और पीटीआई समर्थकों में देशभर में झड़प जारी है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर से बैठक करने वाले हैं। बैठक में इमरान खान का भविष्य तय हो सकता है।
विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान के लिए अगले 48 घंटे बेहद महत्वपूर्ण हैं और पाकिस्तानी सेना के पास मार्शल लॉ से लेकर पीटीआई पर बैन समेत कई विकल्प मौजूद हैं। पाकिस्तानी मामलों के विशेषज्ञ ‘एफजे’ का कहना है कि पाकिस्तान में अगले 48 – 72 घंटे बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। पाकिस्तान में कई विकल्प अभी मौजूद हैं । इसमें से एक विकल्प पाकिस्तान में इमरान खान की पार्टी को आतंकवादी पार्टी घोषित करना शामिल है। इसकी संभावना भी ज्यादा है क्योंकि पाकिस्तान में जारी हिंसा के बीच सेना की ओर से प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की गई है।
पाकिस्तान में मार्शल लॉ आखिरी विकल्प
उन्होंने कहा कि यह सेना की इमरान खान समर्थकों को फंसाने की चाल हो सकती है जिसमें वे फंस गए हैं। एफजे ने कहा कि एक और विकल्प यह हो सकता है कि सरकार सेना को मदद के लिए बुलाए और पूरे देश में आपातकाल का ऐलान हो जाए। हालांकि सेना की ओर से मार्शल लॉ की घोषणा आखिरी विकल्प हो सकता है। इस विकल्प पर अभी विचार नहीं किया जा रहा है। एफजे ने लोगों को सलाह दी कि वे जरूरी सामान खरीद लें क्योंकि भविष्य में संकट रहेगा।
वहीं पाकिस्तानी सेना पर करीबी नजर रखने वाले अफगानिस्तान के पूर्व गृह मंत्री अमरुल्ला सालेह कहना है कि पाकिस्तानी सेना के पास दो विकल्प हैं। पहला वह हस्तक्षेप कर विवाद खत्म करा चुनाव कराने का ऐलान करे। सालेह ने कहा कि इस चुनाव से भी पाकिस्तान में एक अस्थिर सरकार ही बनेगी। वजह यह है कि पाकिस्तान में किसी भी दल को पूरे देश में समान लोकप्रियता हासिल नहीं है। उन्होंने कहा कि दूसरा विकल्प यह है कि सेना देश पर कब्जा कर ले और मिस्र की तरह से मार्शल लॉ का ऐलान कर दे।
पाकिस्तानी सेना खुद बनी पक्ष
सालेह ने कहा कि इस विकल्प में दिक्कत है कि पाकिस्तानी सेना खुद ही इस संकट में एक पक्ष बन गई है। जनरल असीम मुनीर इमरान खान समर्थकों के निशाने पर हैं। इस पूरे मामले में अगर विदेश हस्तक्षेप होता है तो इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। पाकिस्तानी संस्थानों के पास इस संकट का समाधान करने को विश्वसनीयता और संसाधनों का संकट है।
इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी से पाकिस्तान सेना का क्या ‘कनेक्शन’
नितिन श्रीवास्तव
इस्लामाबाद में इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी के बाद से ही हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं. कई जगह सड़कें ब्लॉक है
इसी सोमवार यानी 8 मई की शाम इस्लामाबाद के सेक्टर G-5 इलाक़े में गतिविधियां एकाएक तेज़ हो गई थीं.
डिप्लोमैटिक एनक्लेव में 40 से ज़्यादा देशों के दूतावास और हाई कमीशन हैं और यहां एंट्री को विशेष पास की ज़रूरत होती है.
इसमें प्राइम मिनिस्टर स्टाफ़ कॉलोनी है जिसके ‘यूटिलिटी स्टोर’ में उस शाम लगभग सभी ज़रूरी सामान ख़रीद लिया गया था.
दिल्ली स्थित एक बड़े पश्चिमी देश के दूतावास के एक डिप्लोमैट ने नाम न लिए जाने की शर्त पर बताया, “वहां लगातार बात हो ही रही थी और जैसे ही पाकिस्तानी फ़ौज ने अपने और आईएसआई पर इमरान ख़ान के लगाए आरोप बेबुनियाद बताये, इस्लामाबाद डिप्लोमैटिक एनक्लेव में लोग किसी भी आशंका की तैयारी में जुट गए थे. मामला अब सीधे पाकिस्तानी फ़ौज से टकराव का जो था”.
9 मई को पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के प्रमुख इमरान ख़ान लाहौर “फ़ौज से न डरने वाला हूँ, न देश छोड़ कर जाने वाला” सदेंश जारी करते हुए इस्लामाबाद हाईकोर्ट पहुंचे.
अगले चार घंटो में पाकिस्तान की नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो (नैब) ने उन्हें ‘कमांडो स्टाइल’ से अदालत के बायोमेट्रिक रूम के ‘शीशे तोड़ते हुए’ गिरफ़्तार कर लिया.
पाकिस्तान में नैब भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करती है और उसने बाद में जारी किए गए बयान में कहा, “इमरान ख़ान को अल क़ादिर यूनिवर्सिटी ट्रस्ट मामले की जांच के बाद हिरासत में लिया है.”
पाकिस्तानी फ़ौज की भूमिका
रावलपिंडी में सैन्य छावनी में प्रदर्शनकारी घुस गए और जमकर तोड़फोड़ की.
एक तरफ़ हाईकोर्ट से पाकिस्तानी रंजेर्स द्वारा इमरान ख़ान को ‘अगवा’ और ‘गिरफ़्तार’ किए जाने की खबरें आ रहीं थी दूसरी ओर उनके समर्थक सड़कों पर जमा हो रहे थे.
राजधानी इस्लामाबाद में बख्तरबंद गाड़ियों और पुलिस की बढ़ती तादाद के बीच इमरान के समर्थकों ने रावलपिंडी आर्मी मुख्यालय के एक हिस्से पर, लाहौर में एक फ़ौजी कमांडर के सरकारी घर पर और कई अन्य जगहों पर विरोध-प्रदर्शन जारी रखे, जिसमें तोड-फोड़ भी हुई.
ज़ाहिर है पूर्व प्रधानमंत्री इमरान की गिरफ़्तारी को शहबाज़ शरीफ़ के नेतृत्व वाली पाकिस्तानी सरकार से ज़्यादा पाकिस्तानी फ़ौज से जोड़ कर देखा जा रहा है.
इमरान ख़ान को अल क़ादिर ट्रस्ट मामले में गिरफ़्तार किया गया है और भ्रष्टाचार के बड़े आरोप हैं. वैसे तो पाकिस्तान में बड़े राजनेताओं की गिरफ़्तारी या विशाल राजनीतिक प्रदर्शन पहले भी हुए हैं लेकिन फ़ौजी ठिकानों पर हिंसक विरोध प्रदर्शन पहली बार देखने को मिले हैं.
ग़ौरतलब है कि पाकिस्तानी फ़ौजों ने अभी तक प्रदर्शनकारियों या फ़ौजी ठिकानों पर हमला करने वाले इमरान-समर्थकों के साथ कड़ाई नहीं की है और न ही अपने संस्थानों की सुरक्षा बढ़ाई है.
हालांकि बुधवार को पाकिस्तान सेना के जनसंपर्क विभाग ने एक बयान जारी कर कहा है कि सेना के ठिकानों पर तोड़फोड़ करने वाले लोगों को पहचान लिया गया है और उन पर सख़्त क़ानूनी कार्रवाई की जायेगी.
न्यूयॉर्क स्थित पाकिस्तानी लेखक, इतिहासकार और पत्रकार रज़ा अहमद रूमी को नहीं लगता कि सोशल मीडिया पर ‘फ़ौज के कमज़ोर होने की खबरों में कोई दम है’.
उनके मुताबिक़, “पाकिस्तानी सैन्य कमांडरों के अपने-अपने नज़रिए हो सकते हैं लेकिन उनकी ताक़त आंतरिक अनुशासन है जो एक संस्थान तौर पर फ़ौज को मज़बूत करता है.”
सवाल फिर भी हैं कि दशकों से अपनी सख़्ती और सरकारों में नियमित दख़लअंदाजी को जानी जाने वाली पाकिस्तानी सेना इतनी नरम क्यों दिख रही है?
इस पॉलिसी के पीछे फ़िलहाल तो तीन बड़ी वजह ही हो सकती हैं. पहली ये कि फ़ौज को लगता है कि ये विरोध प्रदर्शन समय के साथ धीमे पड़ जाएंगे, इनका पैमाना सीमित हो जाएगा. जब पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ गिरफ़्तार होकर जेल गए थे तब भी शुरुआती दिनों में व्यापक पीएमएल पार्टी के प्रदर्शन बाद में धीमे पड़ते दिखे थे.
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में सुरक्षा व्यवस्था संभालने के लिए सेना को तैनात किया गया है
हाल ही में बिलावल भुट्टो के साथ भारत दौरे पर आए नया दौर मीडिया के संपादक मुर्तज़ा सोलांगी के अनुसार, “क़ानून सबके लिए बराबर है और पाकिस्तान की अदालतें सभी को सुनवाई का मौक़ा भी देती हैं. क़ानून में होने वाली किसी भी कार्रवाई या फ़ैसले को क़ानूनी तौर पर ही चुनौती देनी चाहिए। क़ानून को हाथ में लेना सही नहीं है”.
पाकिस्तानी सेना के मौजूदा रुख़ की दूसरी वजह ये भी हो सकती है कि पाकिस्तानी सेना प्रदर्शनकारियों से हिंसक झड़पों से बचना चाह रही हो क्योंकि अगर ये मामला सड़कों पर खिंचा तो फ़ौज में भी इमरान की लोकप्रियता बढ़ सकती है.
जियो न्यूज़ के सम्पादक एज़ाज़ सईद ने इस्लामाबाद से बताया, “इमरान ख़ान ने एक तरफ़ जनता की चुनी सरकार से बात करने से मना कर दिया है और दूसरी तरफ़ वे फ़ौज की आलोचना कर रहे हैं. इस पूरी प्रक्रिया में फ़ौज ने पहली बार ये खुल कर दोहराया है कि वो न्यूट्रल रहेगी. पाकिस्तानी सेना के अभी तक के एक्शन से भी यही दिखा है. रहा सवाल इमरान पर लगे आरोपों का तो हम सब को पता है कि चाहे भारत हो या पाकिस्तान, राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप सही भी होते हैं, ग़लत भी. फ़ैसला अदालत करेगी”.
तीसरी और आख़िरी वजह ये भी हो सकती है कि पाकिस्तानी सेना इमरान ख़ान हिरासत मामले से अपना पल्ला इसलिए भी झाड़ रही हो क्योंकि कथित भ्रष्टाचार का ये मामला किसी फ़ौजी अदालत या बॉडी ने नहीं दायर किया है और नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो (नैब) एक असैनिक संस्था है.
इस तरह पाकिस्तानी सेना अपने को इमरान के उन आरोपों से भी दूर रखना चाह रही है जिसमें उनकी पार्टी ने एक साल पहले सत्ता से बाहर होने की वजह उस समय के आर्मी चीफ़ जनरल क़मर जावेद बाजवा का “समर्थन खींच लेना” बताया था.
इमरान खान और फ़ौज के रिश्ते
2018 में जब इमरान ख़ान सत्ता में आकर प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने एक “नए पाकिस्तान” का वादा किया था.
हालांकि इमरान ने हमेशा इसे ख़ारिज किया है कि वे पाकिस्तानी सेना के ‘ब्लू आइड बॉय’ रहे हैं लेकिन कई जानकार राजनीति में उनके उत्थान को इससे जोड़ कर देखते हैं.
ख़ुद इमरान ख़ान के मुताबिक़ उनकी सरकार और पाकिस्तानी फ़ौज में शुरुआती दो साल तक रिश्ते “हारमोनियस” या सामंजस्यपूर्ण रहे.
लेकिन 2021 आते-आते पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख लेफ़्टिनेंट जनरल फ़ैज़ अहमद और इमरान सरकार में तनाव दिखा और उनके पदभार संभालने पर आर्मी चीफ़ बाजवा के साथ इमरान ख़ान के ताल्लुकात कथित तौर पर “बिगड़ गए”.
2022 में वायरल हुए एक वीडियो में तो इमरान ख़ान ने यहां तक दावा किया कि “अगर उन्हें सत्ता से हटाने की कोशिश की गई तो वे ख़तरनाक हो जाएंगे”.
कुछ पाकिस्तान विश्लेषकों ने तभी कहा था कि इमरान ख़ान का सीधा इशारा पाकिस्तान फ़ौज पर ही था.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ वॉरिक में पाकिस्तान के समाजशास्त्र और सुरक्षा मामलों की असिस्टेंट प्रोफ़ेसर ज़ोहा वसीम को लगता है कि, “मंगलवार की ताज़ा कार्रवाई बिना पाकिस्तानी फ़ौज की पूरी इजाज़त मुश्किल लगता है।भले ही पाकिस्तानी रेंजर्स की तैनाती राज्य सरकारों की रिक्वेस्ट और पाकिस्तान सरकार की रज़ामंदी से ही होती है लेकिन पाकिस्तान में पैरामिलिट्री फ़ोर्सेस पाकिस्तान आर्मी को ही रिपोर्ट करती हैं. पाकिस्तान रेंजर्स के सीनियर अफ़सर आर्मी से ही डेप्यूटेशन पर आते हैं और वापस जाकर उन्हें प्रमोशन भी मिलता है.”