मत-सम्मत:कांग्रेस काल में कोरोना आता तो?
#The_Rat_Flood – 1
#Mautam…!
क्या चूहे अलग राष्ट्र माँग सकते हैं??
नहीं मैं किसी कार्टून फ़िल्म की बात नहीं कर रहा… वास्तविक जीवन की बात कर रहा हूँ…
या बात को थोड़ा सीधा कर देखते हैं क्या चूहों के चलते कहीं अलग देश की माँग उठ सकती है…
यक़ीन करें अगर देश भारत हो और सरकार काँग्रेस की…
ये भी होता है…
हो चुका है!!
ये कहानी आपको जाननी चाहिए क्योंकि इससे आपको ये भी समझ आएगा कि वर्तमान कोरोना संकट में आप कहीं काँग्रेस सरकार के हाथ होते आपका क्या हश्र होता…
भारत के उत्तर-पूर्व के राज्यों से एक बेहद खूबसूरत अभिशाप जुड़ा हुआ है जो हर 48-50 साल में यहाँ उथल पुथल मचा देता है
और इस अभिशाप को उत्तर-पूर्व के लोग सदियों से झेल रहे हैं….
उत्तरपूर्व के जीवन का बड़ा महत्वपूर्ण हिस्सा हैं बाँस और इस बाँस पर फूल आता अपने जीवनकाल में दो बार देख पाना बड़ा ही दुर्लभ नज़ारा है…
बाँस पर फूल आने की ये 50 साला ऋतु #Mautam कहलाती है….
अब देखने में भले ये बेहद सुंदर नज़ारा हो पर इसके परिणाम भयावह भी होते हैं कई बार और उसकी वजह होते हैं बाँस के गिरे बीजों की वजह से बेतहाशा बढ़ने वाली चूहों की तादाद…
ये इतनी तेजी से और इतने ज्यादा बढ़ते हैं के बहुत जल्द बाँस के पौष्टिक बीजों को खत्म कर लाखों की संख्या में इंसानी आबादी और उनके खेतों पर हमला कर देते हैं…
घरों खेतों में लाखों चूहे… बस कुछ घंटों में खड़ी फसलें, घरों में रखा अनाज, खाने पीने का सामान, कपड़े आदि सब तबाह कर डालती है चूहों की फौज…
ये हर जगह होते हैं पानी के स्रोत तक इनकी सड़ती लाशों से पट जाते हैं
और पानी पीने योग्य नहीं रह जाता…
चूहों के इस भयानक आक्रमण के बाद आता है अकाल और उससे होती मौतों का मौसम…
भूख और बीमारियों से फैलती तबाही….
यक़ीन करें जिन्होंने इसे देखा है वे जानते हैं के ये भूकंप, सुनामी, तूफान जैसा ही भयावह संकट होता है…भी
ऐसे ही संकट ने भारत के उत्तरपूर्व में 1958-59 में दस्तक दी….
स्थिति बहुत जल्द बिगड़ने लगी….
मिज़ोरम के हालात सबसे भयावह थे और हमारी तब की सरकार ने इससे निपटने को तंत्र मंत्र का मार्ग चुना… जी हाँ यही सच है…
चूहों को नियंत्रित करने को सरकारी तंत्र मंत्र…
और ये कौन कर रहा था उस पार्टी के नेता जो आज ताली थाली पर व्यंग्य करते हैं….
पर चूहों पर मंत्रों, तंत्र क्रियाओं का असर न होना था न हुआ तो सरकार ने लोगों को चूहे मारने के लिए प्रोत्साहित किया और एक चूहे की लाश पर इनाम था 40 पैसे…
अब सरकारी स्कीम लेने में हर भारतीय आगे रहता है… लोगों ने मिज़ोरम में 10 दिनों में ही लाखों चूहे मार डाले….
लोग बोरे भर भर कर चूहे लिए सरकारी ईनाम खोज रहे थे और सरकार मुँह छिपा गयी….
ये वो दौर था जब देश का प्रधानमंत्री अपने प्रेम पत्र विशेष विमान से लंदन और अपने कपड़े सिलवाने धुलवाने को पेरिस भेजता था…
लेकिन देश के ही एक हिस्से में भूख से मरते लोगों को भोजन नहीं पहुँचाया जा सकता था,
बच्चों के लिए दूध उपलब्ध न हो सकता था,
बीमारियों के लिए दवाई नहीं थी…
क्योंकि ताजा ताजा आजाद देश के पास संसाधन न होने का बहाना था….
ये #नेहरू_का_भारत_था!!
खैर मिज़ोरम के हालात भयावह थे…
ऐसे में वहाँ के कुछ युवाओं ने अपनी लड़ाई खुद लड़ने का निश्चय किया….
और संगठन बना मदद जुटाने और करने में जुट गए…
इन्ही में से एक था पूर्व भारतीय सैनिक और तब राज्य कर्मचारी लालडेंगा…
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#The_Rat_Flood – 2
#The_Revolt!!
मिज़ोरम के हालात भयावह थे ऐसे में वहाँ के कुछ युवाओं ने अपनी लड़ाई खुद लड़ने का निश्चय किया….
और संगठन बना मदद जुटाने और देने लग गए…. इन्ही में से एक था पूर्व भारतीय सैनिक और तब राज्य कर्मचारी #लालडेंगा…
लालडेंगा ने सरकारी नौकरी छोड़ी और अपने लोगों की मदद में जुट गया…
और इस मदद की कीमत तब की असम सरकार ने लालडेंगा के खिलाफ तमाम षणयंत्र रच अदा की…
तब मिज़ोरम असम का ही भाग था अलग राज्य न बना था…
लालडेंगा अपने लोगों की लड़ाई लड़ रहा था और सरकार को ये चुभ रहा था नतीजा 1961 में उसे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया…
याद रहे तब तक लालडेंगा या उनके संगठन ने कोई अलगाववादी माँग नहीं की थी…
तब बांग्लादेश ईस्ट पाकिस्तान हुआ करता था
और भारत में पनपे किसी भी असंतोष को भुनाने की बीमारी पाकिस्तान को जन्म से ही थी तो मिज़ो लोगों के असंतोष को भी पाकिस्तान ने तुरंत गोद ले लिया…
1966 में लालडैंगा पश्चिम पाकिस्तान में सैन्य सलामी लेते हुए
1963 आते आते अलग मिज़ो राष्ट्र की माँग मिज़ोरम में गूँजने लगी…
और इस माँग ने हथियार भी उठा लिए…
मिज़ोरम के चूहे भारत को कुतरने लग रहे थे…
और मेरे देश की सरकार सो रही थी…
सरकार की नींद तब टूटी जब 28 फरवरी 1966 को #स्वतंत्र_मिज़ो_राष्ट्र की घोषणा के साथ मिज़ो नेशनल फ्रंट के हथियारबंद दस्तों ने आइजॉल सहित पूरे मिज़ोरम में सरकारी कार्यालयों और सैन्य ठिकानों पर हमला बोल दिया…
मिज़ोरम 1 मार्च की शाम तक पूरी तरह MNF के कब्जे में आ गया…
असम और भारत सरकार के हाथ पैर फूल गए
और हड़बड़ी में भारत की सेना को मिज़ोरम पर कब्जे का आदेश दे दिया गया…
4 मार्च की दोपहर को वायु सेना के 29th Squadron ने आइजॉल पर हवाई हमले शुरु किये…
आज़ाद भारत का ये एकलौता मौका था जब भारतीय वायु सेना अपने ही नागरिकों पर मशीनगन से भारी गोलियाँ दाग रही थी और बम बरसा रही थी….
5 मार्च की रात को आइजॉल पर जोरहाट में तैनात 17th Squadron के हंटर विमानों ने कहर बरपाया….
5 घंटे भीषण बमबारी की गई और वे napalm बम गिराए गए जो इंसानी जिस्म को राख में बदल देते हैं… आइजॉल धू धू कर जल रहा था भारी संख्या में बेगुनाह आम नागरिकों को क्रूर मृत्यु दी गयी…
गाँव के गाँव राख हो गए और लोगों को पहाड़ों में भागकर छिपना पड़ा….
करीब महीने भर की भीषण लड़ाई के बाद भारतीय सेना ने अंततः मिज़ोरम पर नियंत्रण पा लिया…
मिज़ो लोगों का विश्वास तार तार करने के बाद… इस लड़ाई में कितने भारतीय सैनिक और मिज़ो नागरिक मारे गए ये आँकड़ा कभी सही सही सामने नहीं आया…
और इसकी कीमत अगले 20 साल के उग्रवाद और खून खराबे के तौर पर अदा की गई भारत द्वारा… मिज़ो लोगों द्वारा…
बड़ा सामान्य प्रश्न करता हूँ
आतंकी, देशद्रोही कौन बड़ा था…?
नेहरू??
गुलजारी लाल नंदा???
या लालडेंगा और मिज़ो लोग????
लेकिन जहाँ विलेन होते हैं… एक हीरो भी होता है….
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#The_Rat_Flood – 3
#Pied_Piper….
जहाँ विलेन होते हैं… एक हीरो भी होता है….
और अंततः एक हीरो ने मिज़ो विद्रोह के अंत की कहानी भी लिखी ही…. आराम से रम का गिलास हाथ में ले, लालडेंगा का दोस्त बन,
उसका यक़ीन जीत, मिज़ो लोगों का भरोसा जगा…..
भूख से जन्मी, रक्त से नहा पली #मिज़ो_अलगाववाद की कहानी बातचीत से समाप्त हुई….
सिख सांप्रदायिक राजनीति के चलते 1984 में नेहरू पुत्री इंदिरा की हत्या हुई और शायद व्यक्तिगत जुनून का भी और नई सरकार में उनके अनुभवहीन पुत्र राजीव गांधी के सलाहकारों ने कुछ बेहतर फैसले भी करवाये….
ऐसे ही सलाहकार मंत्री थे पूर्वोत्तर से PA संगमा जिन्होंने मिज़ो समस्या के हल के असैन्य विकल्प खोजने पर हामी भरवा ली और लालडेंगा को बातचीत की टेबल पर लाने का जिम्मा भारत की रॉ को दिया गया….
रॉ ने मिज़ो गुटों से निपटने को एक टीम मैदान में उतारी और इसकी जिम्मेदारी दी गयी एक अधिकारी को….
रॉ अधिकारी डिसूजा नाम से बहुत जल्द MNF में शामिल हो गए और फिर कुछ महीनों के प्रयत्न के बाद वे MNF की टॉप लीडरशिप के करीबियों में गिने जाने लगे…
MNF के लिए डिसूज़ा सीआईए का उनकी मदद को आया एजेंट था…
लालडेंगा का बेहद ख़ास, उनके साथ म्यांमार, चीन और बांग्लादेश में साये की तरह रहने वाला और ऐसा व्यक्ति जिसके साथ लालडेंगा शाम को रम पीना पसंद करते और आगे की प्लानिंग डिसकस करते….
अचानक MNF नेतृत्व में फुट दिखने लगी…
कई लीडर्स की संदेहास्पद हत्याएं हुई…
कई भारतीय सेना के हाथ लग गए और हरेक दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखने लगा…
लालडेंगा परेशान थे किस
पर यक़ीन करें किस पर नहीं…
ये रॉ एजेंट का कारनामा ही था…
ऐसी स्थिति में डिसूज़ा ने उन्हें दो बातें समझा दीं पहली उन्ही के कुछ साथी भारत सरकार से मिल चुके हैं और पूरी संभावना है के उन्ह रास्ते से हटा दिया जाए
दूसरी अगर वे बातचीत चाहें तो वे व्यवस्था कर सकते हैं वे मुख्यधारा की राजनीति में आकर अपने लोगों का नेतृत्व कर सकते हैं….
जल्द ही लालडेंगा को ये मानना पड़ा और फिर जनवरी 1985 में यूरोप में भारत सरकार के प्रतिनिधियों और लालडेंगा की मुलाकात हुई…
बात आगे बढ़ी और फरवरी 1985 में लालडेंगा भारत के प्रधान मंत्री से मिले…
समझौते का प्रारूप तैयार हुआ । भारत मिज़ोरम को अलग राज्य बनाने पर राजी हुआ और लालडेंगा उसके पहले अंतरिम मुख्यमंत्री बने।
उसके बाद हुए चुनाव में MNF ने जीत दर्ज की!
जब सब सही हो गया एक दिन लालडेंगा के ऑफिस में गुलदस्ता ले वो कथित सीआईए एजेंट डिसूज़ा पहुँचा…
वहाँ बातचीत में उसने बताया के वो भारत सरकार का कर्मचारी है एक रॉ एजेंट और उसने वो सब अपनी सरकार के आदेश पर किया…
उस रॉ एजेंट को उसके शानदार काम और बहादुरी के लिए 1988 में वीरता सम्मान कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया…
और लालडेंगा के साथ रम पीने वाला वो भारतीय एजेंट था हमारे वर्तमान #NSA_अजित_डोभाल – मिज़ोरम की शांति स्थापना के असली नायक!!!!
✍🏻अजय सिंह