नये संसद भवन उद्घाटन पर कांग्रेस ‘सै़गोल’ पर उखड़ी,पुरी और सीआर केसवन का जवाब
New Parliament Video: कैसी है अपनी नई संसद, कहां पर बैठेंगे प्रधानमंत्री मोदी और कहां बैठेगा विपक्ष, अंदर से देखिए
नई संसद भवन के अंदर की पहली झलक, इतना भव्य कि मन गदगद हो जाएगा
नई संसद का वीडियो सामने आ गया है। वीडियो में नई संसद की नक्काशी और स्थापत्य कला देखी जा सकती है। नई संसद बनने में ढाई साल लगा है। चार मंजिला भवन की नक्काशी जबरदस्त है।
मुख्य बिंदु
1-नई संसद भवन का वीडियो जारी, बेहतरीन और विहंगम तस्वीरें
2-28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका करेंगे उद्घाटन
3-रिकॉर्ड समय में बनकर तैयार हुई है नई संसद
नई दिल्ली 27 मई 2023: देश की नई संसद का उद्घाटन से पहले वीडियो आ गया । विहंगम और अद्भुत दिखती संसद का वीडियो भी बेहद जबरदस्त है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को नई संसद का उद्घाटन करेंगें। यह दिन वीर सावरकर की 140वीं जयंती और प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का अंत्येष्टि दिवस है जिस पर कुढ़ कर मोहनदास करमचंद गांधी के पौत्र तुषार गांधी ने लिखा कि नये संसद भवन का नाम ‘सावरकर भवन ‘ और सैंट्रल हाल का नाम माफी हाल रख दो।कुढन में उन्हे यह जानने की भी फुर्सत नहीं कि नये संसद भवन में सैंट्रल हाल है ही नहीं।इस वीडियो में संसद के गेट से लेकर लोकसभा और राज्यसभा में बैठने से लेकर इसकी नक्काशी तक का वीडियो है। हालांकि, नई संसद के उद्घाटन पर पक्ष और विपक्ष में घमासान मचा है। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल नई संसद के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार कर रहे हैं।
नई संसद की छत पर अशोक स्तंभ शान से लगा है। गेट पर सत्यमेव जयते लिखा हुआ है। 4 मंजिला इस भवन में हरियाली का भी खास ध्यान रखा गया है। नई संसद रिकार्ड ढाई साल में बनकर तैयार हुई है।
कहां बैठेंगे प्रधानमंत्री मोदी
संसद में स्पीकर के दायीं तरफ सत्ता पक्ष होता है, वहीं बायीं तरफ वाला हिस्सा विपक्ष का होता है। पुरानी संसद की तरह ही लोकसभा की सीटें यहां भी हरी हैं जबकि राज्यसभा की लाल। नई संसद का निर्माण पुरानी संसद भवन के ठीक बगल में हुआ है। लोकसभा में स्पीकर के बैठने के ठीक ऊपर अशोक चक्र लगा हुआ है। नई लोकसभा में सेंट्रल हॉल नहीं है। लोकसभा में बेहतरीन कालीन बिछा हुआ हैं ।
मोदी का ट्वीट
नई संसद का वीडियो आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से नई संसद के वीडियो को सम्मान से जोड़ दिया है। मोदी ने ट्वीट किया है कि नई संसद भवन सभी भारतीयों को गर्व से भर देगा। इस वीडियो में इस खूबसूरत इमारत की तस्वीरें दिखती हैं। मैं सभी से आग्रह करता हूं कि वीडियो अपनी आवाज में शेयर करें। मैं उसमें से कुछ वीडियो को रीट्वीट करूंगा। हैशटैग #MyParliamentMyPride का यूज करना नहीं भूले।
राज्यसभा बड़ा और विहंगम
राज्यसभा में भी सभापति के आसन के ऊपर अशोक चक्र लगा हुआ है। राज्यसभा में लाल कालीन लगा है। राज्यसभा में दो बड़े स्क्रीन लगे हैं जबकि स्पीकर के ठीक सामने राज्यसभा अधिकारीगण बैठेंगें। नई संसद अत्याधुनिक है। हर सीट पर सांसदों के लिए स्क्रीन लगी हुई है।
सैंगोल पर कांग्रेस का विवाद
परंपरा से चोलादि सम्राटों के समय से सेंगोल सत्ता हस्तांतरित किए जाने का प्रतीक था। लेकिन कांग्रेस ने दावा किया है कि इसका कोई सबूत नहीं है। कांग्रेस ने यह दावा भी किया कि इस ‘राजदंड’ कर्मकांड का तमिलनाडु में राजनीतिक उद्देश्य को लाया जा रहा है। जवाब में कई मंत्रियों ने टाइम मैगजीन की 1947 की रिपोर्ट शेयर की है।
देश की आजादी से ठीक पहले की शाम हिंदू रीति-रिवाज से क्या-क्या हुआ था? अब यह खंगाला जा रहा है। सरकार ने सेंगोल का ‘राज’ खोला है, कांग्रेस इसे झूठा दावा बता रही है। आज सुबह जयराम रमेश ने व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी वाला तंज कसा तो गृह मंत्री अमित शाह ने कह दिया कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति से इतनी नफरत क्यों है। सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ी हुई है। ऐसे में अब सरकार ने सबसे बड़े सबूत के तौर पर 25 अगस्त 1947 की TIME मैगजीन में प्रकाशित रिपोर्ट शेयर की है। इसमें जो लिखा है उससे बहुत कुछ साफ हो जाता है। टाइम का वो आर्टिकल पढ़ने से पहले यह जान लीजिए कि कांग्रेस का विरोध किस बात को लेकर है। जयराम रमेश ने भाजपा पर सेंगोल के बारे में झूठी कहानी फैलाने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि माउंटबेटन, राजाजी और पंडित जवाहरलाल नेहरू के इसे भारत में ब्रिटिश सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में मानने का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है।
So the BJP's FakeFactory stands exposed today by none other than the revered head Swamigal of the Thiruvavaduthurai Adheenam himself in The Hindu. No Mountbatten, No Rajaji, No part in OFFICIAL transfer of power on August 14th 1947. But yes the majestic Sengol was indeed… pic.twitter.com/OKRXBYZg7o
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) June 9, 2023
सेंगोल (राजदंड) का इस्तेमाल सैकड़ों साल पहले चोल साम्राज्य के समय होता था।अब पढ़िए टाइम मैगजीन की वो रिपोर्ट, जिसे केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने प्रूफ के तौर पर दिखाया है।
टाइम मैगजीन की ग्राउंड रिपोर्ट
‘जैसे ही बड़ा ऐतिहासिक दिन करीब आता गया, भारतीयों ने अपने-अपने ईश्वर को धन्यवाद देना शुरू किया और विशेष पूजा प्रार्थना, भजन आदि सुनाई देने लगे… भारत के पहले प्रधानमंत्री बनने से पहले शाम को जवाहरलाल नेहरू धार्मिक अनुष्ठान में व्यस्त रहे। दक्षिण भारत में तंजौर से मुख्य पुजारी श्री अंबलवाण देसिगर स्वामी के दो प्रतिनिधि आए थे। श्री अंबलवाण ने सोचा कि प्राचीन भारतीय राजाओं की तरह, भारत सरकार के पहले भारतीय प्रमुख के रूप में नेहरू को पवित्र हिंदुओं से सत्ता का प्रतीक और अथॉरिटी हासिल करनी चाहिए। पुजारी के प्रतिनिधि के साथ भारत की विशिष्ट बांसुरी की तरह के वाद्य यंत्र नागस्वरम को बजाने वाले भी आए थे। दूसरे संन्यासियों की तरह इन दोनों पुजारियों के बाल बड़े थे और बालों में कंघी नहीं की गई थी… उनके सिर और सीने पर पवित्र राख थी… 14 अगस्त की शाम को वे धीरे-धीरे नेहरू के घर की तरफ बढ़े…।
संन्यासी ने नेहरू को सुनहरा राजदंड दिया
पुजारियों के नेहरू के घर पहुंचने पर नागरस्वम बजता रहा। उन्होंने पूरे सम्मान के साथ घर में प्रवेश किया। दो युवा उन्हें बड़े पंखे से हवा दे रहे थे। संन्यासी ने पांच फीट लंबा स्वर्ण राजदंड लिया हुआ था। इसकी मोटाई 2 इंच थी। उन्होंने तंजौर से लाया पवित्र जल नेहरू पर छिड़का और उनके माथे पर पवित्र भस्म लगाई। उन्होंने नेहरू को पीतांबर ओढ़ा स्वर्ण राजदंड सौंप दिया। उन्होंने नेहरू को पके हुए चावल भी दिए, जो तड़के दक्षिण भारत में भगवान नटराज को अर्पित किये गये थे। वहां से प्लेन से दिल्ली लाया गया था।
शाम में नेहरू आदि संविधान सभा अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद के घर गए। वापसी पर चार केले के पौधे लगाए गए। यह अस्थायी मंदिर के खंभे के स्वरूप थे। पवित्र अग्नि के ऊपर हरी पत्तियों की छत थी और ब्राह्मण पुजारी शामिल हुए। हजारों महिलाओं ने भजन गाए। संविधान तैयार करने वाले और मंत्री बन रहे लोग पुजारी के सामने से गुजरे और उन्होंने पवित्र जल छिड़का। वृद्धा ने पुरुषों के माथे पर लाल टीका लगाया। भारत के शासक शाम को धर्मनिरपेक्ष स्वरूप में थे। 11 बजे वे संविधान सभा हॉल में इकट्ठा हुए… नेहरू ने एक प्रेरक भाषण दिया- आधी रात के इस पहर में जब दुनिया सो रही है…।’
देखें तो केंद्रीय मंत्री ने जो आर्टिकल शेयर किया है उसके पहले हिस्से में सेंगोल नेहरू को दिए जाने का जिक्र तो है लेकिन कांग्रेस इसे अस्पष्ट मानती है।
Parliament Inauguration Sengol Controversy Congress Said No Proof Amit Shah SAID HATRED FOR SANATAN in congress
सेंगोल का सच क्या? 1947 की कहानी फर्जी बता कांग्रेस ने मांगा प्रूफ, शाह बोले- भारतीय संस्कृति से इतनी घृणा क्यों?
नई संसद में देश का ‘राजदंड’ सेंगोल, सदियों पुरानी है कहानी
देश में सेंगोल प्रतीक पर राजनीतिक घमासान मचा है। 2600 वर्ष का इतिहास और चोल वंश की परंपरा का जिक्र करते हुए सरकार ने 14 अगस्त 1947 की रात की घटना बताई और कहा कि तमिलनाडु के पुरोहितों ने सेंगोल को सत्ता ट्रांसफर के प्रतीक रूप में नेहरू को सौंपा था। हालांकि कांग्रेस ने इसे झूठ बताया है।
नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर विवाद पहले से चल रहा था, सेंगोल ने नया ऐंगल जोड़ दिया है। सरकार ने शॉर्ट फिल्म में नेहरू का जिक्र कर सत्ता हस्तांतरण में सेंगोल की महत्ता समझाई। सोशल मीडिया से टीवी स्टूडियो डिबेट में सेंगोल का जिक्र है। 28 मई के कार्यक्रम का बहिष्कार कर चुकी कांग्रेस ने सेंगोल पर सरकार को घेरा। मंत्री रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा कि नई संसद व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की झूठी कहानियों से पवित्र होगी। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा और आरएसएस ने दावे ज्यादा और तथ्य कम रखे हैं। एक न्यूज आर्टिकल का स्क्रीनशॉट शेयर कर जयराम ने 4 बातें कही कि तत्कालीन मद्रास प्रांत में एक धार्मिक प्रतिष्ठान ने शाही राजदंड की बात कही थी और मद्रास शहर में तैयार कर अगस्त 1947 में नेहरू को भेंट की थी।
दूसरे पॉइंट में जयराम ने कहा, ‘इस बात के कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं कि माउंटबेटन, राजाजी और नेहरू ने राजदंड को अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक माना। इस बारे मे किए जा रहे दावे फर्जी हैं। यह कुछ लोगों की दिमागी उपज है और अब उसे फैलाया जा रहा है।’ सरकार और भाजपा के नेता आलोचना कर रहे हैं कि इतना महत्वपूर्ण प्रतीक संग्रहालय में रखकर भुला दिया गया। इस पर जयराम ने लिखा कि राजदंड इलाहाबाद संग्रहालय में सार्वजनिक प्रदर्शन को था। 14 दिसंबर 1947 को नेहरू का कहा सार्वजनिक है। कांग्रेस नेता ने एक पेज स्क्रीनशॉट शेयर किया जिसमें कथन है कि मैं भारत की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता का सम्मान करता हूं।
कांग्रेस ने निकाला तमिलनाडु राजनीतिक कनेक्शन
चौथे पॉइंट में जयराम ने लिखा कि राजदंड का इस्तेमाल प्रधानमंत्री और उनके समर्थक तमिलनाडु में अपने राजनीतिक हितवर्धन को कर रहे हैं। यह ऐसी ब्रिगेड है जो अपने विकृत उद्देश्यों के हिसाब से तथ्य बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती है। असली सवाल यह है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नई संसद उद्घाटन में क्यों बुलाया नहीं जा रहा ? नई संसद में सेंगोल स्थापना की घोषणा के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चेन्नई में कहा था कि यह तमिलनाडु के गर्व की बात है।
चर्चा शुरू हुई तो भारत के पहले भारतीय गवर्नर-जनरल सी राजगोपालाचारी के परपोते सी. आर. केसवन सामने आए। उन्हों ने चेन्नई में प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद दिया कि उन्होंने इस पवित्र राजदंड सेंगोल को फिर से जीवंत किया है। उन्होंने कहा कि 1947 में जब आजादी नजदीक थी तब राजगोपालाचारी ने नेहरू को बताया था कि यह प्राचीन परंपरा है कि सत्ता हस्तांतरण के समय पवित्र राजदंड सेंगोल को मुख्य पुजारी नए राजा को दें और यही होना चाहिए। यह राजदंड पहले माउंटबेटन को दिया गया। बाद में पुजारी ने इसे गंगाजल से पवित्र किया और नेहरू को दे दिया। यह एक ऐतिहासिक घटना थी। इसके बार में किसी को नहीं पता था। उन्होंने यह भी कहा कि इस राजदंड को संग्रहालय में यह कहकर रख दिया गया कि यह एक गोल्डन वॉकिंग स्टिक है जो नेहरू को दी गई थी।
सरकार के जारी वीडियो में 96 साल के वुम्मिडी इत्तिराजुलु और वुम्मिडी सुधाकर दिखाये गये हैं। इत्तिराजुलु कहते हैं, ‘अधीनम ने कहा था कि इसे बनाना है। उन्होंने हमें ड्रॉइंग्स दिखाई। यह गोल चीज थी। लंबा दंड था। वैसा ही बनाना था जो महत्वपूर्ण जगह पर रखा जायेगा। ऐसे में उच्च गुणवत्ता का बनना था। आदेश था कि इसे चांदी का बनाकर सोने की परत चढ़ाई जाए। इसके निर्माण में शामिल हो मैं काफी खुश था।’
शाह बोले, कांग्रेस को इतनी नफरत क्यों है
सरकार ने टाइम मैगजीन का दिया सबूत
कांग्रेस ने इसे वॉकिंग स्टिक मान लिया
जयराम के सवाल उठाने पर सरकारी सूत्रों ने तमिल धार्मिक साहित्य के प्रमाण दिये जिसमें कहा गया है कि सेंगोल नेहरू को अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण प्रतीक के तौर पर मिला था। तब टाइम मैगजीन में प्रकाशित रिपोर्ट में भी सेंगोल की जानकारी आई थी। गृह मंत्री अमित शाह ने भी ट्वीट कर कांग्रेस पर निशाना साधा कि कांग्रेस पार्टी भारतीय सभ्यता और संस्कृति से इतनी नफरत क्यों करती है? तमिलनाडु के पुरोहित ने पंडित नेहरू को पवित्र सेंगोल सौंपा था। यह भारत की स्वतंत्रता का प्रतीक था लेकिन इसे ‘वॉकिंग स्टिक’ बताकर संग्रहालय में रख दिया था।
जयराम ने जो रिपोर्ट शेयर की है, उसके अनुसार 25 अगस्त 1945 को टाइम मैगजीन में प्रकाशित हुआ था कि मुख्य पुजारी ने सेंगोल को सत्ता का प्रतीक बताया था लेकिन यह नहीं लिखा कि नेहरू ने ऐसा किया। किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में भी ऐसा ही है। डॉक्टर आंबेडकर की किताब ‘थॉट्स ऑन लिग्विंस्टिक स्टेट्स’, पेरी एंडरसन की किताब द इंडियन आइडियोलॉजी और यास्मीन खान की ग्रेट पार्टिशन में आलोचना थी कि धार्मिक समारोह में नेहरू ने हिस्सा लिया लेकिन सत्ता ट्रांसफर के प्रतीक सेंगल की बात नहीं की।
अखिलेश का व्यंग्य
सपाध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि सेंगोल सत्ता हस्तांतरण (एक-हाथ से दूसरे हाथ में जाने) का प्रतीक है… भाजपा ने मान लिया कि सत्ता सौंपने का समय आ गया है। सोशल मीडिया पर भी डिबेट छिड़ी है। कईयों ने लिखा कि भारत का राजचिह्न, अशोक सिंह-स्तंभ की अनुकृति है। इसमें चार सिंह परस्पर पीठ किए हैं। फिर सेंगोल विचार कहां से और क्यों आ रहा है। कितने प्रतीक चिन्ह होंगे?