कांग्रेस क्यों बौखलाई:चुनाव आयोग को बदनाम कर रहे राहुल और वामपंथी, पूर्व जजों-ब्यूरोक्रेट्स समेत 272 प्रमुख जनों का खुला खत

चुनाव आयोग को बदनाम कर रहे राहुल गाँधी और वामपंथी NGOs: पूर्व जजों-ब्यूरोक्रेट्स समेत 272 प्रमुख जनों ने लिखा खुला खत, कहा- चुनावी जीत नहीं मिली तो हो रहा ‘ड्रामा’
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान राहुल गाँधी (फोटो: मिंट)

नई दिल्ली 20 नवंबर 2025।  कॉन्ग्रेस की चुनाव आयोग के खिलाफ की जा रही बयानबाजी को लेकर 272 हस्तियों ने खुला खत लिखा है। इन हस्तियों ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी के चुनाव आयोग पर बार-बार हमलों को लेकर भी अपनी चिंता व्यक्त की है। पत्र लिखने वाले 272 लोगों में 16 पूर्व न्यायाधीश, 14 पूर्व राजदूत, 123 सेवानिवृत्त उच्चाधिकारी, 133 सेवानिवृत्त सैन्य,  अर्द्धसैनिक बल और पुलिस अधिकारी शामिल हैं।

अलका लांबा ने एक्स पर एक न्यूज वेबसाइट की खबर शेयर की जिसमें 272 प्रतिष्ठित लोगों की तरफ से राहुल गांधी को लेटर लिखे जाने की जानकारी दी गई है। लांबा ने इसके साथ लिखा, ‘शब्द : बेशर्म, बिकाऊ, भ्रष्ट, कायर, सत्ता के दलाल।’  लांबा ने इसमें किसी का नाम नहीं लिखा ,लेकिन उन्होंने राहुल को लेटर लिखे जाने की खबर साझा की है उससे साफ है कि उनका निशाना उन्हीं 272 लोगों पर है।

इन वरिष्ठ नागरिकों ने मंगलवार को एक खुले पत्र में कहा ” नागरिक संगठन दृढ़ता से मानते हैं कि सेना, न्यायपालिका तथा चुनाव आयोग जैसी संस्था निष्पक्ष लगी है। राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए इस तरह के संवैधानिक संस्थानों की छवि को धूमिल करने का प्रयास गलत और निंदनीय है। हमारा लोकतंत्र लचीला है और हमारे नागरिक बहुत समझदार हैं। अब समय आ चुका है कि लोकतंत्र के नेतृत्व की बुनियाद में सत्य  और  लोककल्याण हो।

इन सभी ने कहा है कि आयोग पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से देश के लोकतंत्र मजबूत कर रहा है और उस पर निराधार पक्षपात का आरोप  राजनीति प्रेरित है। पत्र के साथ दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस एन ढींगरा तथा झारखंड के पूर्व पुलिस महानिदेशक निर्मल कौर का नाम मोबाइल नम्बर के साथ दिया गया है। इसके साथ ही वरिष्ठ नागरिकों के हस्ताक्षरों की सूची भी है।

पत्र में क्या कहा गया है?

इसमें कहा गया है, “भारत का लोकतंत्र किसी हथियार से नहीं बल्कि उसकी बुनियादी संस्थाओं के खिलाफ फैल रही जहरीली बयानबाजी से चोट खा रहा है। कुछ राजनीतिक नेता असली नीतियों का विकल्प देने के बजाय, बिना सबूत के गंभीर आरोप लगाते रहते हैं।” पत्र में आगे लिखा है, “पहले उन्होंने भारतीय सेना की बहादुरी पर सवाल उठाए, फिर न्यायपालिका, संसद और संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को निशाना बनाया और अब चुनाव आयोग की बारी आ गई है।”

पत्र में राहुल गाँधी पर सीधा हमला करते हुए लिखा गया है, “लोकसभा में विपक्ष के नेता ने बार-बार चुनाव आयोग पर हमला करते हुए दावा किया है कि उनके पास सबूत है कि चुनाव आयोग वोट चोरी करा रहा है और उनकी बात 100% प्रमाणित है। उन्होंने यहाँ तक कहा कि अगर मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त रिटायर भी हो जाएँ, तो भी वह उन्हें छोड़ेंगे नहीं।”

आगे पत्र में कहा गया है, “इतने गंभीर आरोप लगाने के बावजूद उन्होंने अब तक कोई औपचारिक शिकायत, या शपथपत्र के साथ, दर्ज नहीं कराई। जिससे उन्हें अपनी बात के लिए जवाबदेह न होना पड़े।” इस पत्र में कॉन्ग्रेस समेत कई राजनीतिक दलों, वामपंथी झुकाव वाले NGOs और कई अन्य लोगों की EC के खिलाफ तीखी भाषा को लेकर भी सवाल उठाए हैं।

पत्र में कहा गया, “चुनाव आयोग ने अपनी SIR प्रक्रिया सार्वजनिक की है, कोर्ट से अनुमति लेकर सत्यापन कराया है, फर्जी नाम हटाए हैं और नए योग्य मतदाता जोड़े हैं। इससे साफ लगता है कि ये आरोप एक राजनीतिक हार को संकट का नाम देने की कोशिश है।”

पत्र में कहा गया है, “यह व्यवहार ‘बौखलाए हुए गुस्से’ की निशानी है जो लगातार चुनावी हार और जनता से दूर हो जाने के कारण पैदा हुआ है। जब नेता जनता की आकांक्षाओं को समझ नहीं पाते, तो वे अपनी कमियों को सुधारने की जगह संस्थाओं पर हमला करना शुरू कर देते हैं। गंभीर विश्लेषण की जगह ड्रामा ले लेता है।”

इसमें आगे लिखा है, “विडंबना यह है कि जब कुछ राज्यों में चुनाव नतीजे विपक्षी दलों के पक्ष में आते हैं, तब चुनाव आयोग पर कोई सवाल नहीं उठता। जहाँ नतीजे उनके पक्ष में नहीं आते, वहीं आयोग हर कहानी का खलनायक बन जाता है। इस तरह का गुस्सा केवल अवसरवाद दिखाता है।”

पत्र में लोगों से चुनाव आयोग के साथ खड़ा होने को कहा गया है। इसमें लिखा है, “अब समय है कि देश के लोग चुनाव आयोग के साथ मजबूती से खड़े हों चापलूसी के लिए नहीं बल्कि विश्वास और सिद्धांत के कारण। समाज को यह माँग उठानी चाहिए कि नेता बेबुनियाद आलोचनाओं और नाटकीय भाषणबाजी से इस संस्था को बदनाम न करें। एक बड़ा सवाल यह भी है कि देश की मतदाता सूची में कौन होना चाहिए। नकली वोटर, फर्जी लोग, गैर-नागरिक या वे जिनका भारत के भविष्य से कोई वैध संबंध नहीं उन्हें सरकार चुनने का अधिकार नहीं होना चाहिए। ऐसे लोगों को चुनावों में शामिल होने देना देश की संप्रभुता और स्थिरता के लिए बड़ा खतरा है। दुनिया के बड़े लोकतंत्र भी अवैध प्रवासियों के मामले में बहुत सख्त होते हैं।”

EC से पारदर्शिता बनाए रखने की अपील

लोकतंत्र को ‘थियेटर’ मत बनाओ 

वरिष्ठ हस्तियों ने नेताओं पर आरोप लगाया कि चुनाव नतीजे मनमुताबिक न आने पर आयोग पर निशाना साधा जा रहा है, जबकि संवैधानिक संस्थाओं पर ऐसा हमला लोकतंत्र के लिए खतरा है.पत्र में निर्वाचन आयोग की पारदर्शिता का बचाव करते हुए कहा गया है कि भारत की चुनाव प्रणाली को कमजोर करने वाली राजनीति जनता और राष्ट्र दोनों के हितों के खिलाफ है.

270 हस्तियों का आरोप- चुनाव आयोग पर हमला… राजनीतिक हताशा का परिणाम,ये रहा वह पूरा पत्र 

भारत के चुनाव आयोग पर हाल के दिनों लगाए गए आरोपों और तीखी राजनीतिक भाषा के बीच अब देश के 270 से ज्यादा पूर्व जजों, IAS–IPS अधिकारियों, राजनयिकों और सैन्य अफसरों ने खुला पत्र जारी कर कहा है कि लोकतंत्र की संस्थाओं को निराधार आरोपों और धमकियों से ‘राजनीतिक पंचिंग बैग’ न बनाया जाए.

ये पूरा मामला तब उठा जब विपक्ष के एक शीर्ष नेता ने EC पर वोट चोरी, देशद्रोह और षड्यंत्र जैसे गंभीर आरोप लगाए, लेकिन अब तक कोई औपचारिक शिकायत या शपथ-पत्र नही दिया. वरिष्ठ नागरिकों ने इसे लोकतंत्र के संवैधानिक स्तंभों पर हमला बताया है.

पत्र में कहा गया कि कुछ नेता चुनावी हार के बाद निराशा में संस्थाओं पर हमला शुरू कर देते हैं. जब चुनाव परिणाम उनके पक्ष में आते हैं, तब चुनाव आयोग पर कोई सवाल नहीं उठाते. फिर हार मिलते ही EC को षड्यंत्र, शर्मनाक और BJP की B-टीम तक कहा जाता है. ये सब राजनीतिक रणनीति से ज्यादा खोखली नाराजगी है.

पत्र में इस व्यवहार को बेबस गुस्सा कहा गया है जो जनता से कट चुके नेताओं में दिखता है. पत्र में कहा गया है कि ECI ने प्रक्रिया पारदर्शी रखी. राजनीतिक दलों को नीतियों और समाधानों पर बात करनी चाहिए, न कि आरोप-प्रत्यारोप करना चाहिए

यहां पढ़ें वो पूरा खत (FULL TEXT OF LETTER)

हम, देश के वरिष्ठ नागरिक और नागरिक समाज से जुड़े लोग, भारत के लोकतंत्र पर बढ़ते हमलों को लेकर गहरी चिंता व्यक्त करते हैं. ये हमला किसी ताकत से नहीं, बल्कि जहरीली भाषा और बेबुनियाद आरोपों के जरिए हमारे संवैधानिक संस्थानों को निशाना बनाने से हो रहा है. कुछ राजनीतिक नेता नीतियों पर ठोस विकल्प देने के बजाय संस्थाओं पर उग्र और बिना सबूत के आरोप लगाकर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश कर रहे हैं.

पहले उन्होंने भारतीय सेना के साहस और उपलब्धियों पर सवाल उठाए,फिर न्यायपालिका,संसद और अन्य संवैधानिक पदाधिकारियों पर हमला किया और अब चुनाव आयोग को निशाने पर ले लिया है.

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष ने बार-बार चुनाव आयोग पर आरोप लगाया है कि आयोग मतदान में धांधली कर रहा है. उन्होंने दावा किया कि उनके पास खुला-बंद सबूत है और यs 100 प्रतिशत प्रूफ है. उन्होंने ये भी कहा कि जब ये एटम बम फूटेगा तो चुनाव आयोग कहीं छिप नहीं पाएगा. इतना ही नहीं, उन्होंने ऊपर से नीचे तक चुनाव आयोग के अधिकारियों को धमकी दी है कि अगर वे रिटायर भी हो गए तो वो उन्हें छोड़ेंगे नहीं. उन्होंने आयोग पर देशद्रोह करने तक का आरोप लगाया है.

लेकिन, हैरानी की बात है कि इतने गंभीर आरोप लगाने के बावजूद उन्होंने आज तक कोई औपचारिक शिकायत या शपथपत्र चुनाव आयोग के पास नहीं दिया. दूसरी तरफ, कई विपक्षी नेता, कुछ NGO, कुछ बुद्धिजीवी और कुछ अवसरवादी लोग भी इसी तरह की भाषा में चुनाव आयोग पर हमले कर रहे हैं. वे आरोप लगाते हैं कि आयोग BJP की B-टीम बन गया है.

ऐसे आरोप भले भावनात्मक रूप से जोरदार हों, लेकिन तथ्यों पर टिकते नहीं हैं. चुनाव आयोग SIR प्रक्रिया सार्वजनिक कर चुका, कोर्ट की निगरानी में उसका परीक्षण हुआ और उसने नियमों के मुताबिक अपात्र नाम हटाए और नए योग्य मतदाता जोड़े हैं. ये साफ दिखता है कि ये आरोप हताशा को संस्थागत संकट का रूप देकर जनता को भ्रमित करने की कोशिश हैं.

ये व्यवहार निष्क्रिय क्रोध (impotent rage) जैसा है. लगातार चुनावी हार और जनता से दूर होते जाने की निराशा. जब नेता जनता की अपेक्षाओं को समझने में असफल हो जाते हैं तो वे संस्थाओं पर हमला करना शुरू कर देते हैं. थियेटर असली काम की जगह ले लेता है. सार्वजनिक सेवा की जगह सार्वजनिक तमाशा लेने लगता है.

विडंबना ये है कि जहां चुनावी नतीजे विपक्ष के पक्ष में आते हैं, वहां चुनाव आयोग पर कोई सवाल नहीं उठता. लेकिन जहां नतीजे पसंद न आएं, आयोग अचानक खलनायक बन जाता है. ये चयनात्मक गुस्सा अवसरवाद (opportunism) है विश्वास नहीं. हमारे स्वतंत्रता नायकों और संविधान निर्माताओं ने संस्थाओं की मर्यादा हमेशा बनाए रखी, भले ही उनमें मतभेद रहे हों. उन्होंने संस्थाओं को मजबूत किया, कमजोर नहीं.

आज जब हम चुनाव आयोग की बात करते हैं तो स्व. टी.एन. शेषन और एन. गोपालस्वामी जैसे पूर्व चुनाव आयुक्त याद आते हैं जिन्होंने आयोग को मजबूत और निडर संस्था बनाया. वे लोकप्रियता के पीछे नहीं भागे. उन्होंने नियमों को सख्ती से लागू किया और केवल जनता के प्रति जवाबदेह थे.

आज जरूरत है कि नागरिक समाज मजबूती से चुनाव आयोग के साथ चापलूसी में नहीं, बल्कि देशहित में खड़ा हो. ये मांग उठनी चाहिए कि राजनीतिक दल बिना सबूत के ऐसे आरोप लगाना बंद करें और गंभीर नीति और विजन पर बात करें.

इसके साथ ही एक महत्वपूर्ण सवाल है कि कौन भारत के चुनावों में वोट देने का अधिकार रखे? फर्जी मतदाता, गैर-नागरिक और वे लोग जिनका भारत के भविष्य से कोई वास्तविक संबंध नहीं है. उन्हें कभी भी मतदाता सूची में जगह नहीं मिलनी चाहिए. ये देश की संप्रभुता और स्थिरता के लिए बड़ा खतरा है.

दुनिया के लगभग सभी बड़े लोकतंत्र अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी और फ्रांस गैर-कानूनी प्रवासियों को वोट देने की अनुमति बिल्कुल नहीं देते और कड़ी कार्रवाई करते हैं. भारत को भी अपनी मतदाता सूची की पवित्रता को उतनी ही कठौरता से सुरक्षित करना होगा.

हम चुनाव आयोग से अपील करते हैं कि वो पारदर्शिता बनाए रखे, सभी डेटा सार्वजनिक करे और जब जरूरी हो तो कानूनी कार्रवाई के जरिए अपना बचाव करे.

हम राजनीतिक दलों से आग्रह करते हैं कि वे संवैधानिक प्रक्रिया का सम्मान करें, बेबुनियाद आरोपों से बचें और जनता के सामने ठोस नीतियां रखें.

हम भारतीय सेना, न्यायपालिका, कार्यपालिका और विशेष रूप से चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर अपना अटूट भरोसा दोहराते हैं.
हमारे लोकतांत्रिक संस्थान राजनीतिक लड़ाई का पंच‍िंंग बैग नहीं बन सकते. भारत का लोकतंत्र मजबूत है और हमारी जनता समझदार है.
अब वक्त है कि राजनीति सच, विचार और सेवा की राह पर चले, न कि तमाशा, आरोप और धमकी की राह पर.

(इस पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं में दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एस. एन. ढींगरा और झारखंड के पूर्व डीजीपी न‍िर्मल कौर के अलावा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और पूर्व चेयरमैन एनजीटी जस्टिस आदर्श कुमार गोयल, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस हेमंत गुप्ता, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एस.एन. ढींगरा शामिल हैं.)

पत्र में ये बड़े नाम भी शामिल

जस्टिस शुब्रो कमल मुखर्जी (पूर्व मुख्य न्यायाधीश, कर्नाटक)
जस्टिस एस.एम. सोनी (पूर्व जज, गुजरात HC और लोकायुक्त)
जस्टिस के.ए. पुज (पूर्व जज, गुजरात हाई कोर्ट)
जस्टिस आर.एस. राठौड़ (पूर्व जज, राजस्थान हाई कोर्ट)
जस्टिस पी.एन. रविंद्रन (पूर्व जज, केरल हाई कोर्ट)
जस्टिस करम चंद पुरी (पूर्व जज, पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट)
जस्टिस राजीव लोचन (पूर्व जज, इलाहाबाद हाई कोर्ट)

इन ब्यूरोक्रेट्स ने भी किए हस्ताक्षर

प्रवीण डिक्सित (IPS) – पूर्व DGP, महाराष्ट्र
बी. एस. बसी (IPS) – पूर्व पुलिस कमिश्नर, दिल्ली; पूर्व UPSC सदस्य
योगेश चंद्र मोदी (IPS) – पूर्व DG, NIA
पी. सी. डोगरा (IPS) – पूर्व DGP, पंजाब
विक्रम सिंह (IPS) – पूर्व DGP, उत्तर प्रदेश
टी.पी. सेंकुमार (IPS) – पूर्व DGP, केरल
संजय दीक्षित (IAS) – पूर्व एडिशनल चीफ सेक्रेटरी, राजस्थान
दीपक सिंहल (IAS) – पूर्व मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश
एल. वी. सुब्रह्मण्यम (IAS) – पूर्व मुख्य सचिव, आंध्र प्रदेश
राजीव लाखड़ा (IRS) – पूर्व आयकर आयुक्त

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