कांग्रेस मूल के विधायकों में फूट से भाजपा में राहत
RELIEF TO BJP FROM SPLIT AMONG REBEL LEADERS IN UTTARAKHAND
बागियों में फूट से BJP को राहत! हरक और बहुगुणा खेमे में बंटे विधायक
बीजेपी में बागी नेताओं का गुट कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत और विजय बहुगुणा के खेमों में बंट गया है. जिससे बीजेपी पर हरक विधायक उमेश शर्मा काऊ का दबाव कम दिख रहा है.
देहरादून 24 अक्तूबर: पिछले कुछ दिनों से बागी नेताओं की नाराजगी ने चुनावी मौसम में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी थी, लेकिन अब बागी नेताओं की आपसी फूट और निजी हित की राजनीति ने भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलों को कुछ हद तक कम कर दिया है. दरअसल 2016 में कांग्रेस बागी नेता बड़ी संख्या में भाजपा में शामिल तो हुए थे, लेकिन अब इन बागी नेताओं में आपसी कलह के कारण इनकी ताकत कुछ कम हुई है. जिससे अब भारतीय जनता पार्टी पर दबाव कम दिखाई दे रहा है.
कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के बयान इन दिनों पार्टी के लिए मुसीबत बने हुए हैं. हरक रावत और विधायक उमेश शर्मा काऊ को पार्टी के नेता मनाने में जुटे हुए हैं. लेकिन भाजपा पर बागियों का यह दबाव उतना नहीं है, जितना बनाया जा सकता था.बता दें कि साल 2016 में भारतीय जनता पार्टी में कांग्रेस के करीब 9 विधायक शामिल हुए थे. दिग्गज नेताओं के इतनी बड़ी संख्या में शामिल होने का नतीजा यह रहा कि भाजपा ने प्रदेश में पहली बार 57 सीटों पर जीत हासिल कर सत्ता पर काबिज हो गई.
इस बार भारतीय जनता पार्टी 60 पार का नारा दे रही है, लेकिन पार्टी में कांग्रेस से आए बागियों की समस्याएं लगातार बनी हुई है. उस पर पार्टी नेता निराकरण की बात तो कह रहे हैं, लेकिन पार्टी बहुत ज्यादा दबाव में नहीं दिखाई दे रही है. इसकी वजह है कि उत्तराखंड में कांग्रेस से भाजपा में आए बागियों का गुट दो भागों में टूट गया है. हरक सिंह रावत नाराज विधायकों के साथ मिलकर तीन से चार विधायकों तक की सीमित रह गए हैं. उधर विजय बहुगुणा खेमा अपने निजी हितों के चलते अलग दिखाई दे रहा है.
बागियों में फूट से बीजेपी को राहत
विजय बहुगुणा, सुबोध उनियाल और सौरभ बहुगुणा भाजपा के साथ दिखाई दे रहे हैं. जाहिर है बागी विधायकों के इस गुट में निजी हितों के आने से उन दिग्गज नेताओं की मजबूती में कमी आई है. भारतीय जनता पार्टी के नेता कहते हैं कि भाजपा में काफी बड़ी संख्या में नेता शामिल हुए हैं. नेताओं की बेहद ज्यादा उम्मीदें रहती हैं. लिहाजा कुछ हद तक दबाव तो पार्टी पर रहता ही है.प्रदेश में राजनीतिक समीकरणों को देखा जाए तो फिलहाल हरक सिंह रावत और उमेश शर्मा एक पाले में दिखाई दे रहे हैं. उधर प्रणव चैंपियन, प्रदीप बत्रा समेत केदार सिंह रावत भी राजनीतिक समीकरणों के लिहाज से पाला बदल सकते हैं. विजय बहुगुणा को पिछले 5 साल में कोई पद नहीं मिला, बावजूद इसके वह अपने बेटे को सितारगंज से विधायक का टिकट मिलने के बाद से संतुष्ट दिखाई दे रहे हैं. दूसरी तरफ सुबोध उनियाल को मंत्री पद मिलने से उन्हें भाजपा में संतोष है.कांग्रेस का कहना है कि बागियों ने 2016 में जितना नुकसान हो सकता था, वह किया है. अब बागियों में जो अंतर्कलह देखने को मिल रहा है. उससे वह खुद ही कमजोर हुए हैं. इसके अलावा भाजपा के अंदर भी अंतर्कलह हैं, जिससे भाजपा कमजोर हो रही है.
हरक सिंह अपने कामों से संतुष्ट नहीं, कोटद्वार में पा रहे खुद को कमजोर
कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत का कहना है कि उन्होंने अपने इस कार्यकाल में जितना काम किया है, वह उससे खुश नहीं हैं. उन्होंने कहा कि वह इससे बेहतर काम कर सकते थे, लेकिन इस बार वह सरकार में अपना बेहतर काम नहीं कर पाए.
उत्तराखंड के कद्दावर मंत्री हरक सिंह रावत का नया बयान फिर विवाद पैदा करने वाला है. दरअसल, इस बार हरक सिंह रावत ने अपने मंत्री पद के कार्यकाल को लेकर जो बात कही है, उससे पूरी सरकार के कार्यकाल पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं. यही नहीं, हरक सिंह रावत के कोटद्वार सीट छोड़ने की मंशा को भी उनके इस बयान ने बल दे दिया है. वैसे भी राज्य बनने के बाद के तीनों विधानसभा चुनाव में डॉक्टर हरक सिंह रावत ने हर बार नई विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा है।
कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत यूं तो हरीश रावत के साथ इन दिनों बयानों में उलझे हुए हैं. लेकिन उनके कुछ बयान पार्टी से नाराजगी और कांग्रेस में जाने को लेकर भी चर्चा में हैं. हालांकि, इस बार उनका जो बयान आया है वह इन सभी बातों से कुछ अलग है. दरअसल, हरक सिंह रावत ने कहा है कि उन्होंने अपने इस कार्यकाल में जितना काम किया है, उससे वह खुश नहीं हैं. उन्होंने कहा वह इससे और बेहतर काम कर सकते थे, लेकिन इस बार वह सरकार में अपना बेहतर काम नहीं कर पाए.
कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत.
इसके लिए उन्होंने कई कारण बताएं हैं. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि उन्हें मौका मिलता तो वे कोटद्वार में मेडिकल कॉलेज खुलवा लेते. भले ही उनके खिलाफ जांच चलती रहती, लेकिन एक विधायक होने के नाते वे अपने क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज तो खुलवा ही लेते, मगर ऐसा नहीं हो पाया.
हरक सिंह रावत के इस बयान के बाद उनके कोटद्वार सीट छोड़ने की इच्छा को और बल मिला है. वहीं, विपक्षी दल कांग्रेस का इस पर कहना है कि हरक सिंह रावत के साथ ही राज्य सरकार भी प्रदेश में कोई काम नहीं कर पाई है. बताया जा रहा है कि यही कारण है कि हरक सिंह रावत कोटद्वार सीट छोड़ना चाहते हैं. यहां इस बार उन्हें अपनी हार नजर आ रही है.