10 दिन हर घर से 138 रु. एकत्र करेगी कांग्रेस,पहले दिन आये एक करोड़
Congress Party Collected Rs 1 Crore Through Crowdfunding In Just 6 Hours Donate For Desh Campaign
तेजी से भर रहा कांग्रेस का खजाना! क्राउडफंडिंग से महज 6 घंटे में पार्टी ने जमा किए 1 करोड़ रुपये
लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने डोनेट फॉर देश नाम के क्राउडफंडिंग अभियान की शुरुआत कर दी है। जिसमें महज 6 घंटे में पार्टी ने एक करोड़ रुपये की रकम जमा कर ली है। बता दें कि खुद मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस क्राउडफंडिंग अभियान में 1,38,000 रुपये का दान दिया है
नई दिल्ली 19 दिसंबर: लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने क्राउडफंडिंग का अभियान शुरू किया है। जिसकी शुरुआत कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने डोनेट फॉर देश नाम के कैंपेन के साथ ही। इस अभियान में 6 घंटे में काफी पैसे डोनेट किए गए। पार्टी ने दावा किया है कि उन्होंने इस क्राउडफंडिंग से महज 6 घंटे में एक करोड़ रुपये जुटा लिए हैं। बता दें कि इस क्राउडफंडिंग को खुद खड़गे ने 1,38,000 रुपये दान दिया है।
6 घंटे में पार्टी ने इकट्ठा किए 1 करोड़ रुपये
अभियान की शुरुआत के दौरान माकन ने कहा कि हमारा उद्घाटन अभियान ‘बेहतर भारत के लिए दान’ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की 138 साल की यात्रा की याद दिलाता है। उन्होंने कहा कि हम समर्थकों को 138 रुपये या 1380 रुपये या 13,800 रुपये या उससे अधिक के गुणकों में दान करने को आमंत्रित करते हैं, जो बेहतर भारत के लिए पार्टी की स्थायी प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
10 दिनों तक चलेगा ये अभियान
कांग्रेस अपने ऑनलाइन जनसहयोग अभियान देश के लिए दान करें को 28 दिसंबर तक चलाएगी। इस बीच पार्टी जमीनी स्तर पर भी अभियान चलाएगी। पार्टी नेता ने बताया कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष प्रेस कॉन्फ्रेंस और सोशल मीडिया से लोगों को इस अभियान के बारे में बताएंगे। कांग्रेस ने इस अभियान की शुरुआत पार्टी की स्थापना के 138 साल पूरे होने के मौके पर की।
हर घर से 138 रुपये का दान करेंगे इकट्ठा
28 दिसंबर (पार्टी का स्थापना दिवस) तक ये अभियान मुख्य रूप से ऑनलाइन चलेगा। उसके बाद पार्टी स्वयंसेवकों को हर बूथ के कम से कम 10 घरों में जाएगा, जहां वे 138 रुपये प्रति घर का दान इकट्ठा करेंगे। पार्टी नेताओं से आग्रह किया गया है कि वो पार्टी के शुभचिंतकों और पदाधिकारियों से बड़े दान लेने की कोशिश करें, जैसे 1,380 रुपये या 13,800 रुपये। पार्टी का मानना है कि यह रणनीति उनके सपने को साकार करने में मदद करेगी, यानी एक बेहतर भारत बनाने में।
कांग्रेस ने शुरू की क्राउड
फंडिंग, चुनाव लड़ने को
जनता से पैसे लेने की
नौबत क्यों आई?
कांग्रेस ने अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले पैसा जुटाने के लिए ‘क्राउड फंडिंग’ अभियान शुरू किया है.
पार्टी मुख्यालय में कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल और कोषाध्यक्ष अजय माकन ने ‘डोनेट फॉर देश’ अभियान शुरू करते हुए कहा कि 18 साल से ऊपर का भारतीय नागरिक कांग्रेस को न्यूनतम 138 रुपये और अधिकतम 138 रुपये के गुणज में पैसा दे सकता है, जैसे 1380 रुपये, 13,800 रुपये.
वेणुगोपाल ने पार्टी के इस अभियान को महात्मा गांधी के ‘तिलक स्वराज’ फंड से जोड़ते हुए कहा ये फंड ऐसा भारत बनाने में मदद करेगा जिसमें संसाधनों का समान बंटवारा होगा और सबको बराबर मौका मिलेगा.
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने कांग्रेस के इस अभियान का मजाक उड़ाते हुए ट्वीट किया, जिसमें एक फिल्म की क्लिपिंग लगाई गई.
क्लिप में जनता के चुनावी चंदे से मिले पैसे को काले धन में मिलाकर सफेद बनाने की ‘तरकीब’ बताई जा रही है.
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आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने कांग्रेस के इस ऐलान के लोगों को धोखा देने की तरकीब बताई है और कहा है कि ये लोग गांधी और तिलक की छवि को धूमिल करने निकले हैं.
भाजपा नेता शहजाद पूनावाला ने हाल में कांग्रेस के राज्यसभा सांसद धीरज साहू के घर से 300 करोड़ रुपये बरामदगी का हवाला देते हुए कहा कि ये पार्टी में फैले भ्रष्टाचार से लोगों का ध्यान हटाने का तरीका है.
भले ही भाजपा ने कांग्रेस के इस अभियान पर हमला किया हो लेकिन ये साफ है कि कांग्रेस को मिल रहा चुनावी चंदा काफी घटा है.
लगातार दस साल सत्ता से बाहर रहने से उसके आय के स्रोत घटते जा रहे हैं और अब मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनावी हार ने उसकी पैसा इकट्ठा करने की ताकत और कमजोर की है.
यही वजह है कि कांग्रेस ने लोगों से पैसा जुटाने को ये अभियान शुरू किया है.
किसके पास कितना पैसा?
राजनीतिक पार्टियों के कामकाज पर नजर रखने वाले संगठन एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने इस साल सितंबर में राजनीतिक दलों की इनकम टैक्स रिटर्न फाइलिंग के आधार पर एक रिपोर्ट पेश की थी.
इसके मुताबिक़ वर्ष 2020-21 राष्ट्रीय पार्टियों में सबसे ज्यादा संपत्ति भाजपा के पास थी.
भाजपा के पास 2015-16 में 893 करोड़ रुपये की संपत्ति थी लेकिन साल 2020-21 में ये बढ़ कर 6047 करोड़ रुपये पर पहुंच गई.
वहीं कांग्रेस के पास 2013-14 में कांग्रेस के पास 767 करोड़ रुपये की संपत्ति थी. 2019-20 में ये बढ़ कर ये संपत्ति 929 करोड़ रुपये पर पहुंच गई थी लेकिन 2021-22 में ये घट कर 806 करोड़ रुपये रह गई.
जबकि 2013-14 के बाद भाजपा की संपत्ति में लगभग आठ गुना बढ़ोतरी हुई है. ये एक मात्र ऐसी पार्टी है, जिसकी संपत्ति लगातार हर साल बढ़ी है.
दरअसल जो भी पार्टी सत्ता में रहती है उसे ज्यादा चुनावी चंदा मिलता है और उसकी संपत्ति में वृद्धि होती है. 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस के पास 586 करोड़ की संपत्ति थी जबकि भाजपा की संपत्ति 464 करोड़ रुपये थी.
हाल में चुनाव आयोग में जो ऑडिट रिपोर्ट जमाई कराई गई है, उसके मुताबिक़ क्षेत्रीय पार्टियों में सबसे ज्यादा संपत्ति केसीआर की पार्टी भारत राष्ट्र समिति यानी वीआरएस के पास है.
पार्टी के पास 737.37 करोड़ रुपये की संपत्ति है. इसके बाद तृणमूल कांग्रेस के पास 333.4 करोड़ रुपये संपत्ति है.
‘तिलक स्वराज’ फंड क्या था?
कांग्रेस का कहना है कि उसका क्राउड फंडिंग का ये अभियान महात्मा गांधी की ओर से शुरू किए गए ‘तिलक स्वराज फंड’ से प्रेरित है.
ये फंड दिसंबर 1920 में कांग्रेस के नागपुर सेशन में शुरू किया गया था. ये फंड स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक की याद में शुरू किया गया था, जिनका उसी साल अगस्त महीने में निधन हो गया था.
फंड का मकसद असहयोग आंदोलन के लिए पैसा जुटाना था ताकि ‘स्वराज’ की स्थापना हो सके.
मुंबई ( उस समय बॉम्बे) से शुरू किया गया ये अभियान 1921 में अप्रैल से जून तक चला. लक्ष्य एक करोड़ रुपये जुटाना था.मुंबई से 60 लाख रुपये और बाकी पूरे देश से 40 लाख रुपये. जून के आखिर तक करोड़ रुपये से अधिक जमा हो चुके थे.
चुनाव या किसी दूसरे काम के लिए पार्टियों का आम जनता से पैसा मांगना कोई बात नहीं है. अक्सर छोटी या नई पार्टियां ‘एक नोट और एक वोट’ का नारा देती रहे हैं.
हाल के वर्षों में आम आदमी पार्टी ने चुनावी चंदे के लिए सबसे बड़ा क्राउड फंडिंग अभियान शुरू किया था. इसमें मिले पैसे का हिसाब एक वेबसाइट पर दर्ज होता था
कांग्रेस को क्राउड फंडिंग अभियान से क्या फायदा?
इसमें कोई दो मत नहीं है कि जो पार्टी सत्ता में होती है उसे आम लोग, उद्योगपति या कंपनियां सबसे ज्यादा पैसा देती है.
कांग्रेस फिलहाल कर्नाटक, हिमाचल और तेलंगाना में ही सत्ता में रह गई है. छत्तीसगढ़ और राजस्थान उससे छिन चुके हैं.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक स्मिता गुप्ता कहती हैं,”जाहिर है कि अब कांग्रेस इन्हीं राज्यों के मुख्यमंत्रियों और सांसदों-विधायकों की क्षमता पर निर्भर है. हालांकि भले ही छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में चुनाव हार गई है लेकिन चुनाव नतीजों ने दिखाया है कि उसका जनाधार अभी बचा हुआ है. लेकिन पैसे के बिना तो आजकल के चुनाव लड़े नहीं जा सकते. इसलिए वो फंड इकट्ठा कर रही है.”
वो कहती हैं,” कांग्रेस को इससे दो फायदे होंगे. एक तो ये अभियान एक राजनीतिक अभियान की तरह चलेगा. इसके जरिये कांग्रेस एक तरह की कैंपेनिंग करेगी और इसे अपनी विश्वसनीयता का सबूत बताएगी. अगर कांग्रेस बड़ी रकम जमा कर लेती है तो कहेगी कि देखिये हमें अभी भी जनता का कितना समर्थन हासिल है.”
स्मिता गुप्ता मध्य प्रदेश के समाजवादी नेता डॉक्टर सुनीलम का उदाहरण देती हैं. वो बताती हैं कि किसानों के लिए काम करने वाले डॉक्टर सुनीलम ने क्राउड फंडिंग से जमा पैसे के दम पर चुनाव लड़े और जीते.
गुप्ता कहती हैं कि क्राउड फंडिंग से जमा पैसा से चुनाव जीतना किसी नेता की लोकप्रियता और विश्वसनीयता का प्रमाण होता है.
वरिष्ठ पत्रकार कांग्रेस से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ राशिद किदवई कहते हैं,”ये सही बात है कि कांग्रेस भले ही चुनाव हार गई हो लेकिन अभी भी उसका बड़ा जनाधार है. हाल में जो चुनाव हुए उसमें उसे लगभग 44 प्रतिशत वोट मिले.”
किदवई कहते हैं,”क्राउड फंडिंग से कांग्रेस को अपनी आर्थिक स्थित सुधारने का मौका मिलेगा और वो ये भी बताएगी कि देखिये भाजपा को रुपये-पैसे की कोई चिंता नहीं है. एक तरह से ये इशारा होगा कि भाजपा को दो-तीन बड़े औद्योगिक घरानों से पैसा मिल रहा है.”
वो कहते हैं,”इससे वो एक राजनीतिक संदेश भी देगी और जो रकम इकट्ठा होगी उसे वो अपनी राजनीतिक उपलब्धि भी बताएगी. अगर 100 करोड़ रुपये जमा हुए तो कांग्रेस कहेगी कि देखिये इतने लोगों ने हमें समर्थन दिया. चूंकि क्राउड फंडिंग से लोग छोटी रकम देते हैं. तो जब इस छोटी रकम से कांग्रेस के पास बड़ी रकम इकट्ठा होगी तो कांग्रेस इसे अपनी विश्वसनीयता करार देगी.”
इलेक्टोरल बॉन्ड का गणित और चुनावी राजनीति
चुनावी फंडिंग के लिए जब से इलेक्टोरल बॉन्ड शुरू हुए तब से सत्ताधारी दल फंडिंग के मामले में प्रतिद्वंद्वियों से आगे हो गए हैं.
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम ऐसी है कि कि सिर्फ सत्ताधारी पार्टी यानी भाजपा जान सकती है कि इससे किस पार्टी को चुनावी फंड दिया जा रहा है.
इसलिए इससे दूसरे दलों को राजनीतिक चंदा देने वालों के लिए मुश्किल खड़ी हो जाती है. सत्ताधारी पार्टी के पास उनकी बांह मरोड़ने का पूरा मौका होता है.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के संस्थापक सदस्य और ट्रस्टी प्रोफेसर जगदीप छोकर कहते हैं,”कांग्रेस ने क्राउड फंडिंग क्यों शुरू की है ये तो मैं नहीं जानता लेकिन 1 फरवरी 2017 से इलेक्टोरल बॉन्ड शुरू होने के दो दिन बाद ही मैंने कहा था कि इस बॉन्ड में सभी विपक्षी दलों की फंडिंग का रास्ता रोक देने की क्षमता है. ये सिर्फ सत्ताधारी पार्टियों की फंडिंग का रास्ता तैयार करेगा. और विपक्षी दलो की फंडिंग रोकने की क्षमता साल दर साल साबित हो रही है.”
वो कहते हैं, ”आज भाजपा को चुनावी चंदे का करीब 70 प्रतिशत मिलता है. बाकी सभी दलों में बंटता है. इससे अगर कांग्रेस के पास पैसे कम हो गए हैं और उनका दिवाला निकल रहा है तो मुझे कोई अचंभा नहीं होगा.”
पिछले दिनों राजनीतिक क्षेत्रों में ये चर्चा तेज हुई कि चुनाव के लिए एक फंड बना दिया जाए और इसी से चुनाव में उतरने वाली पार्टियों को पैसा मिले. इससे महंगे चुनावों पर रोक लगेगी और भ्रष्टाचार का रास्ता बंद होगा. लेकिन इसे लेकर किसी भी राजनीतिक पार्टी का रुख उत्साहजनक नहीं है.
राशिद किदवई कहते हैं,”आज विधानसभा चुनाव लड़ने का न्यूनतम खर्चा 40 और लोकसभा चुनाव लड़ने का खर्चा न्यूनतम खर्चा 75 लाख रुपये है. कुछ मामलों में से इससे दस से सौ गुना तक खर्च होता है. ये पैसा आता कहां से है. सभी राजनीतिक दल काले धन के मामले में एक दूसरे की आलोचना तो करते हैं लेकिन चुनाव सस्ते हों इसका उपाय को कोई आगे नहीं आना चाहता. इस तरफ किसी का ध्यान नहीं है.”
राष्ट्रीय चुनावी फंड बनाने के लिए कोई भी राजनीतिक दल आगे क्यों नहीं आना चाहता.
जगदीप छोकर कहते हैं, ” चुनावी फंड बनाने की बात हवा में है. उसके लिए कभी कोई पार्टी तैयार नहीं होगी. राष्ट्रीय चुनावी कोष तैयार करने को पहले शर्त ये होगी कि अगर राजनीतिक दल चुनाव लड़ने को जनता का पैसा लेंगे तो उन्हें कहीं और से पैसा लेने की इजाजत नहीं होगी. लेकिन ये शर्त वे मानेंगे नहीं.”
वो कहते हैं,”अगर चुनावी फंड बना और ऐसी शर्त नहीं रही तो जनता भी पैसा देती रहेंगी और पार्टियां दूसरी और जगहों से पैसा लेती रहेंगी. कम से कम मैं तो इसके सरासर खिलाफ हूं. जनता का एक रुपया इन राजनीतिक दलों को नहीं मिलना चाहिए जब तक वे ये सुनिश्चित न कर दें कि इनके पास एक भी रुपया कहीं और से नहीं आ रहा है.”