कतर 24 घंटे में लाइन पर, अमीर और मंत्री संयुक्त आयोग आयेगा भारत

कल तक सिकुड़ी हुई थीं नाक-भौं, आज भारत संग दोस्‍ती बढ़ाने को उतावले, ताली पीटने वालों को लेना चाहिए सबक

दो देशों में संबंध न तो यूं ही बन जाते हैं न इतनी जल्‍दी बिगड़ जाते हैं। इसकी बानगी है पैगंबर विवाद। कल तक तमाम अरब देश इसे लेकर श‍िकायत कर रहे थे। लेकिन, नूपुर शर्मा के निलंबन के बाद अगले दिन सब कुछ शांत पड़ गया। सोमवार को खाड़ी देशों में से एक कतर भारत के साथ दोस्‍ती बढ़ाने के लिए उतावला दिखा।
पैगंबर के खिलाफ नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) की विवादित टिप्पणी के बाद कल तक इस्‍लामिक ममालिक भारत से रूठे-रूठे दिख रहे थे। इनमें कतर, ईरान, कुवैत से लेकर इंडोनेशिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), बहरीन, पाकिस्‍तान और अफगानिस्तान तक शामिल थे। ऐसा लगने लगा था कि कहीं अरब मुल्‍कों (Arab World Ire) के साथ हमारे रिश्‍ते बिगड़ न जाएं। हालांकि, एक दिन में सब कुछ फिक्‍स हो गया। उदाहरण के लिए कतर को ही लेते हैं। कल तक शिकायतें कर रहा कतर आज भारत के साथ दोस्‍ती की नई इबारत लिखने को तैयार है। कतर के अमीर भारत आने वाले हैं। विदेश मंत्रियों का एक संयुक्त आयोग इस साल के अंत में मिलने वाला है। सचिव (वाणिज्य दूतावास, पासपोर्ट और वीजा) औसफ सईद (Ausaf Sayeed) ने यह जानकारी दी है। यह दिखाता है कि जिस तरह का पब्लिक परसेप्‍शन बनता है, अक्‍सर कूटनीतिक स्‍तर पर वो चीजें नहीं होती हैं। सरकार को बैकफुट पर देख जो लोग ताली पीट रहे थे, उनके लिए यह सीख है।

तमाम अरब देशों के साथ पाकिस्‍तान और अफगानिस्तान तक ने नूपुर शर्मा की टिप्‍पणी की निंदा की थी। इन्‍होंने अपने-अपने यहां भारतीय राजनयिकों को तलब कर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी। बीजेपी ने एक्‍शन लेते हुए अपनी राष्ट्रीय प्रवक्ता को रविवार को पार्टी से निलंबित कर दिया था। वहीं, दिल्ली इकाई के मीडिया प्रमुख नवीन कुमार जिंदल को भी निष्कासित करने का फैसला लिया।

मुस्लिम समूहों के विरोध के बीच बीजेपी ने एक बयान भी जारी किया था। इसका मकसद अल्पसंख्यकों की चिंताओं को शांत करना और इन सदस्यों से किनारा करना था। इसमें कहा गया था कि वह सभी धर्मों का सम्मान करती है। किसी भी धार्मिक शख्सियत के अपमान की कड़ी निंदा करती है। 57 सदस्य वाले इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) ने भी पैगंबर के खिलाफ बीजेपी नेता की टिप्पणी की कड़ी निंदा की थी। ओआईसी ने संयुक्त राष्ट्र से भारत के मुसलमानों को अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी उपाय करने का भी आग्रह किया था।

एक दिन में सबकुछ गया बदल

कल तक माहौल कुछ था, लेकिन आज यह बिल्‍कुल बदल गया। कतर के विदेश मंत्रालय ने दोहा में रविवार को भारतीय राजदूत दीपक मित्तल को तलब किया था। सोमवार को औसफ सईद ने बताया कि दोनों देश अपनी दोस्ती को और मजबूत करने के लिए सहमत हुए हैं। कतर के अमीर भारत की यात्रा पर शीघ्र आएंगे। इसके जरिये संबंधों को और मजबूत बनाया जाएगा।

विवाद के बारे में पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए सईद ने कहा कि यह आज के समाचार पत्रों में छप चुका है। इसमें जोड़ने के लिए कुछ नया नहीं है। वह बोले, ‘जो कुछ भी कहना था, हमारे राजदूत पहले ही अवगत करा चुके हैं। इसलिए , मुझे नहीं लगता कि जोड़ने के लिए कुछ भी नया है। आप उनके जवाब पढ़ चुके है।’

सईद ने कहा कि उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भारतीय समुदाय का ध्यान रखने के लिए कतर के नेतृत्व का शुक्रिया अदा किया है। उन्होंने कहा कि भारत ने कतर के नए श्रम कानून का स्वागत किया है। सईद ने यह भी कहा कि इस साल के अंत में विदेश मंत्रियों का एक संयुक्त आयोग बैठक करेगा।

उपराष्ट्रपति नायडू तीन देशों की अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव पर शनिवार को यहां पहुंचे। उन्होंने कतर के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री शेख खालिद बिन खलीफा बिन अब्दुलअजीज अल थानी से रविवार को मुलाकात की थी। सोमवार को वह कतर की ‘कंसल्टेटिव असेंबली’ के स्पीकर से मिले।

 

India-Qatar business: इमोशन पर बिजनेस Equation भारी, भारत को स्पेशल ट्रीटमेंट देता है कतर

Qatar India relations: कतर-भारत के रिश्ते व्यावसायिक कसौटी पर कसे जाते हैं. भारत कतर से गैस का सबसे बड़ा खरीदार है तो कतर भी उसे स्पेशल ग्राहक का ट्रीटमेंट देता है और भारत को अरबों का गैस रियायत पर मुहैया कराता है. तिजारत की बुनियाद पर पनपे इस रिश्ते को दोनों देशों के नागरिकों के धार्मिक विश्वास की कसौटी पर भी खरा उतरना होगा.

कतर के अमीर के साथ प्रधानमंत्री  मोदी (फाइल फोटो)

कतर का बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है भारत
भारत को मिली है कई रियायतें
1940 में बदली कतर की किस्मत

India-Qatar ties: पैगंबर मोहम्मद पर बीजेपी से निलंबित नेता नूपुर शर्मा की विवादित टिप्पणी के बाद भले ही कतर ने भारत को लेकर तल्खी दिखाई हो. लेकिन इंडिया से 2900 किलोमीटर की दूरी पर फारस की खाड़ी में बसे इस देश ने अतीत में भारत से दोस्ताना संबंधों की ही वकालत की है. दोनों देशों के बीच बिजनेस एक ऐसा सूत्र है जिससे कतर के शेखों को भी फायदा है तो भारत की कंपनियां भी से इससे मुनाफा कमाती हैं.

29 लाख की आबादी और क्षेत्रफल में भारत के त्रिपुरा राज्य (10,486 वर्ग किलोमीटर) से कुछ ही बड़े कतर (11,571 वर्ग किलोमीटर) ने भारत को एनर्जी सिक्योरिटी के क्षेत्र में बड़ी गारंटी दी है. कतर में मौजूद भारतीय दूतावास के मुताबिक कतर भारत का सबसे बड़ा LNG (लिक्विफाइड नेचुरल गैस) निर्यातक है. भारत अपने कुल LNG आयात का 40 फीसदी कतर से मंगाता है. जबकि कतर के कुल LNG निर्यात में भारत की खरीदारी 15 फीसदी है.

कतर का गैस भारत के लिए स्वच्छ और सुरक्षित ऊर्जा की गारंटी है. खरीदार के रूप में कतर के लिए भारत कितना अहम है इसे इस बात से समझा जा सकता है.

भारत को स्पेशल ट्रीटमेंट

2016 में कतर ने भारत के लिए LNG की कीमतों में 50 फीसदी से ज्यादा की कटौती कर दी थी. तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के अनुसार कतर से कई दौर की वार्ता के बाद LNG की कीमतें 5 डॉलर प्रति मीट्रिक मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट करने पर राजी हो गया है. इससे पहले 2015 में भारत को कतर से 12 डॉलर प्रति मीट्रिक मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट के दर से लिक्विफाइड नेचुरल गैस खरीदनी पड़ती थी. भारत को इस डील से अरबों डॉलर का फायदा हुआ था. हालांकि कतर ने भारत को जब ये फायदा दिया था तब दुनिया भर में पेट्रोलियम पदार्थों और गैस की कीमतें कम हो रही थी.

कतर की राजधानी दोहा अपनी गगनचुंबी इमारतों के लिए प्रसिद्ध है. (फोटो-PTI)

2016 में जब 51 मीटिंग्स के बाद इस डील पर फाइनल मुहर लगी थी तो धर्मेंद्र प्रधान ने कहा था कि “कतर भारत का अच्छा व्यापारिक मित्र रहा है. हमें खरीदार-विक्रेता संबंधों से दूर दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी की ओर बढ़ने की जरूरत है.” धर्मेंद्र प्रधान की इस टिप्पणी को आज तब समझने की जरूरत है जब भारत ने कतर की नाराजगी का सम्मान करते हुए अपनी ही पार्टी के बड़े नेता पर कार्रवाई की है.

बता दें कि भारत की सरकारी कंपनी पेट्रोनेट एलएनजी लिमिटेड कतर की रासगैस से LNG मंगाती है. कतर के साथ अच्छे बिजनेस डील की वजह से भारत ने 2003 से लेकर अगले 11 साल तक गैस डील पर 15 अरब डॉलर बचाये. ऐसा कतर द्वारा कम कीमतों पर भारत को गैस बेचने के कारण संभव हो सका है.

12000 करोड़ रुपये चुकाने से भी भारत को छूट

ऊर्जा के क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एग्रेसिव कूटनीति का असर ये हुआ कि कतर ने भारत को 12000 करोड़ रुपये की छूट दी. ये रकम भारत को बतौर जुर्माना कतर को चुकाना था. भारत ने साल 2015 में तय समझौते से कम एलएनजी खरीदी थी. इसी के एवज में भारत को ये जुर्माना देना था. लेकिन 2015-0216 में पीएम मोदी और कतर के अमीर के बीच हुए समझौते की वजह से कतर भारत को ये छूट देने पर राजी हो गया.

बता दें कि समझौते में पेट्रोनेट ने कतर की कंपनी से 7.5 मिलियन टन गैस प्रति वर्ष खरीदने का समझौता किया था. लेकिन 2015 में इस भारतीय कंपनी ने मात्र 68 प्रतिशत गैस ही खरीदा था. लेकिन ‘टेक या पे’ क्लॉज के तहत, पेट्रोनेट को पूरी अनुबंधित राशि का भुगतान करना था. क्योंकि इसकी खरीद 90 प्रतिशत से कम थी.

31 दिसंबर 2015 को भारत की पेट्रोनेट एलएनजी ने कतर के रासगैस से 10 लाख टन अतिरिक्त एलएनजी हर साल आयात करने के समझौते पर हस्ताक्षर किया. ये समझौता 2028 तक के लिए है.

भारत ने भी निभाई दोस्ती

अरब के देश देखने में भले ही एक सांस्कृतिक इकाई लगते हो लेकिन इनके बीच भी आपस में गहरे मतभेद हैं. ऐसा ही एक भू-राजनीतिक घटनाक्रम देखने को मिला जून 2017 में. जून की गर्मियों में खाड़ी की राजनीति में तब उबाल आ गया जब 5 जून को सऊदी अरब, UAE, बहरीन और इजिप्ट ने कतर से अपने कूटनीतिक रिश्ते खत्म कर लिए और कतर के विमानों का अपने हवाई क्षेत्र में प्रवेश रोक दिया. सऊदी अरब इस मुहिम की अगुवाई कर रहा था. सऊदी ने आरोप लगाया कि कतर आतकंवाद को समर्थन दे रहा है. कतर पर मुस्लिम ब्रदरहूड और और IS को भी समर्थन देने के आरोप लगे. हालांकि कतर ने इन आरोपों को नकार दिया.

दोहा का समुद्री किनारा

इस अभूतपूर्व स्थिति पर भारत के सामने विकट स्थिति थी. भारत के व्यापार साझीदार दोनों ही ओर थे. सऊदी और UAE भी भारत का अहम व्यापारिक साझीदार है. भारत ने इस दौरान तटस्थता की नीति अपनाई. भारत ने कहा कि ये गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (GCC) का आतंरिक मुद्दा है. इधर सऊदी ने कतर के लिए समुद्री-जमीन और हवाई रास्तों को ब्लॉक कर दिया था.

ऐसी स्थिति में भारत के सामने दोतरफा चुनौती थी. पहला- भारत कतर के साथ अपने व्यापारिक रिश्ते को कैसे कायम रखे, दूसरा- कतर से भारत अपने प्रवासी नागरिकों को कैसे निकाले. भारत के सामने एक चिंता यह भी थी कि अगर ये विवाद बढ़ता तो सऊदी और UAE भारत पर भी दबाव डाल सकते थे कि वो कतर के साथ अपने रिश्ते पर विचार करे. हालांकि ऐसा नहीं हुआ. भारत ने संयम के साथ काम लिया और उसे रूट ब्लॉकेज की वजह से कतर को किए जाने वाले निर्यात को कुछ दिन स्थगित करना पड़ा. स्थिति सामान्य होते ही भारत ने कतर के साथ अपने रिश्ते सामान्य कर दिए. भारत ने कतर के साथ अपने रिश्तों को निर्धारित करने में सिर्फ और सिर्फ अपने और दोहा के हितों का ख्याल किया.

ऐसे बदली कतर की किस्मत

बता दें कि आमतौर पर पानी के जहाजों के जरिए LNG को बड़ी मात्रा में उन देशों में भेजा जाता है जहां लंबी दूरी की वजह से पाइपलाइन का जाना असंभव सा है. प्राकृतिक गैस को 160 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा करके लिक्विड फॉर्म (तरल अवस्था) में ट्रांसपोर्ट किया जाता है. 20वीं सदी में कतर के साथ भारत के साधारण व्यापारिक रिश्ते थे. भारत कतर से मोतियों का आयात करता था और मसालों का निर्यात करता था. ये सिलसिला चल ही रहा था कि आया साल 1940.

कतर के निर्माण क्षेत्र में बड़ी संख्या में भारतीय टैलेंट काम करते हैं.

लहलहा उठी डॉलर की फसल

20वीं सदी का ये दशक कतर के भाग्य पर सौभाग्य की दस्तक लेकर आया. कतर ने इस साल पहली बार अपने समुद्र के तट पर तेल के कुएं की खोज की. इसका नाम था दुखन ऑनशोर ऑयल फील्ड. 80 किलोमीटर में फैले इस ऑयल फील्ड से तेल की निकासी 1940 में शुरू हुई और यहां से निर्यात शुरू हुआ 1949 में. इसके बाद मरूस्थल में फैले इस देश में मानों डॉलर की फसल लहलहा उठी.

कतर का ध्यान अब समुद्र में मौजूद तेल के कुएं की ओर गया. खोज शुरू की गई और 20 साल गुजरते गुजरते कतर ने दो ऑफशोर समुद्री कुएं खोज लिए. कुछ ही सालों में यहां से तेल का उत्पादन शुरू हो गया और इसके साथ ही कतर की किस्मत चमक उठी. कतर की अर्थव्यवस्था ने करवट ली तो उसे श्रम की जरूरत हुई और उसकी इस आवश्यकता को पूरा किया भारत के विशाल श्रम बाजार ने. 1990 आते-आते कतर में काम करने वाले विदेशी मजदूरों और श्रमिकों में 5 लाख से ज्यादा भारत के थे.

इस वक्त कतर में लगभग 7 लाख भारतीय रहते हैं. ये भारतीय कतर के संविधान के मुताबिक अपनी धार्मिक आस्था का पालन करते हैं. दरअसल भारत और कतर ने व्यापार की नींव पर रिश्तों का जो ताना-बाना बुना है वहां जरूरी है कि दोनों देश एक दूसरे की भावना का सम्मान करें.

ताली पीटने वालों के लिए क्‍या है सबक?

दो देशों के बीच के रिश्‍ते न तो एक दिन में बन जाते हैं न एक दिन में बिगड़ जाते हैं। ये कई सालों की कसौटियों पर तैयार होते हैं। किसी एक घटना से इन पर फर्क नहीं पड़ता है। इसमें आपसी हितों के साथ और भी कई तरह के समीकरण जुड़े होते हैं। पैगंबर मामले में बीजेपी सरकार जिस तरह की स्थिति में फंस गई थी, उसे लेकर कल तक जो अंदर ही अंदर खुश हो रहे थे, उनके लिए यह सबक भी है। अरब मुल्‍कों के साथ भारत के काफी अच्‍छे संबंध हैं। किसी के कुछ कह देने भर से इन संबंधों पर आंच नहीं आ जाती है।

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