त्रुटि सुधार लें- “ये नव-वर्ष हमें स्वीकार नही” दिनकर की नही अंकुर आनंद की है रचना

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं | कवि अंकुर ‘आनंद’ की है ये कविता

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं, अंकुर आनंद
पिछले कई वर्षों से भारत के सोशल मीडिया में अँग्रेजी नव वर्ष पर विरोध स्वरूप पढ़ी जाने वाली कविता ‘ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं’ के रचनाकर के नाम पर है विवाद

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं… यह पंक्ति एक प्रसिद्ध कविता की शुरुआत है, जो अंग्रेजी नववर्ष (1 जनवरी) को भारतीय परंपरा के अनुसार अस्वीकार का प्रतीक बन गई है। कविता प्रकृति की सर्दी और भारतीय नववर्ष (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, जो वसंत में आता है) की तुलना करती है। हालाँकि यह कविता अक्सर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के नाम से वायरल होती है, लेकिन वास्तव में यह उनकी रचना नहीं है। कई स्रोतों और टिप्पणियों से पता चलता है कि यह अंकुर ‘आनंद’ (रोहतक, हरियाणा) की मौलिक कविता है। दिनकर की किसी पुस्तक में यह नहीं मिलती। पूरी कविता कुछ इस प्रकार है:

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं

धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़-बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है

सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं, उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं

चंद मास अभी इंतज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नकल में सारी अक्ल बही

उल्लास मंद है जन-मन का
आई है अभी बहार नहीं

ये धुंध-कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो

प्रकृति दुल्हन का रूप धर
जब स्नेह-सुधा बरसाएगी
शस्य-श्यामला धरती माता
घर-घर खुशहाली लाएगी

तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जाएगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय-गान सुनाया जाएगा

युक्ति-प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा-सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा

कवि अंकुर ‘आनंद’ जी की है। बहुत सुंदर तरीके से भारतीय परंपरा और प्रकृति के साथ नववर्ष के महत्व को दर्शाती है।

अंकुर आनंद की अन्य कविताएँ

अंकुर ‘आनंद’ जी (रोहतक, हरियाणा) एक संवेदनशील कवि हैं, जो भारत संचार निगम लिमिटेड में कार्यरत हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना तो आप पहले ही जान चुके हैं – “ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं…”।

उनके प्रकाशित काव्य-संग्रह हैं: 1)काश तुम्हारे अश्रु पोंछू
2)कलम जब ठान लेती है

इन संग्रहों में उनकी कई कविताएँ संकलित हैं, जो जीवन, प्रकृति, देशप्रेम और भावनाओं को छूती हैं। ऑनलाइन उपलब्ध उनकी एक अन्य सुंदर कविता है “तलाश”, जो पौराणिक कथा (शायद रामायण की सीता की खोज) को वर्तमान से जोड़ती हुई स्वदेशी और आत्मखोज की बात करती है। पूरी कविता कुछ इस प्रकार है:

खो गई है वो धरती की कोख में
जो कभी थी सोने की चिड़िया
लाहौर, झंग, मुल्तान और पेशावर
की मुक्ति के लिए तलाश जारी है
आज भी कोई राम निकलेगा
जो विभीषण बनकर लंका जाए
और सीता को वापस लाए
तलाश है उस विभीषण की
जो अपने ही घर में गद्दार कहलाए
लेकिन देश की खातिर सब कुछ त्याग दे
तलाश है उस लक्ष्मण की
जो रेखा खींचकर सीता की रक्षा करे
और रावण के भाई को भी न बख्शे
तलाश है उस हनुमान की
जो लंका जलाकर भी संदेशा लाए
कि सीता सुरक्षित है
तलाश है उस राम की
जो बिना सेना के भी युद्ध जीते
और मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए
(यह कविता स्वदेशी भावना और पौराणिक संदर्भों से भरपूर है। मूल रूप थोड़ा भिन्न हो सकता है, लेकिन थीम यही है।)उनकी कविताएँ ज्यादा मुख्यधारा की पत्रिकाओं में नहीं मिलतीं, इसलिए ऑनलाइन सीमित ही उपलब्ध हैं। अगर आप उनके संग्रह पढ़ना चाहें तो किताबें खोज सकते हैं या रोहतक से संबंधित साहित्यिक मंचों पर संपर्क कर सकते हैं।

 

पहले आप कविता ‘ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं’ के शब्दों का आनंद लें, फिर कविता के अंत में इसके विवाद के बारे में विस्तार से पढेंगें……

अब जाने ‘ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं’ के रचनाकर के नाम पर विवाद के बारे में…………

उनके अनुसार अंकुर ने इसकी रचना दिसंबर 2012 में की थी लेकिन 2017 के बाद से अचानक न जाने किसने उनकी इस रचना को ‘दिनकर’ जी के नाम के साथ जोड़ दिया और फिर धीरे – धीरे सोशल मीडिया पर यह ‘दिनकर’ के नाम के साथ वायरल हो गई। अंकुर के अनुसार उन्होंने इसके बारे में सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म पर अनेक बार अपना विरोध दर्ज कराया है।

आगे कवि अंकुर ‘आनंद’ के ही शब्दों में पढ़िये…….

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं के रचनाकर से ही जाने इसके रचनाकर का नाम
यह कविता मैंने दिसंबर 2012 में उधमपुर( जम्मू कश्मीर) पोस्टिंग के दौरान लिखी थी। प्रथम बार 31 दिसम्बर 2012 को एक हिमाचल के लाइनमैन के सेवानिवृत्ति उत्सव में इसका वाचन किया था। तभी से इस रचना को सोशल मीडिया पर पोस्ट करना आरंभ किया था। मार्च 2017 को प्रतिपदा के अवसर पर मेरी दूसरी पुस्तक ‘कलम जब ठान लेती है’ का विमोचन हुआ। उस पुस्तक में यह रचना प्रकाशित है। नया ज्ञानोदय पत्रिका में स्तंभ लिखने वाले ndtv के वरिष्ठ संपादक प्रियदर्शन ‘नया साल और नकली माल’ लेख में इस रचना के दिनकर के नाम से वायरल होने पर फरवरी 2018 के अंक में अपना वामपंथी रुदन प्रदर्शित कर चुके हैं। प्राच्य विद्याओं के उद्भट विद्वान ‘भारत वैभव’ पुस्तक के लेखक श्री ओम प्रकाश पाण्डेय ने भी इसे दिनकर जी की रचना नही माना और जानकारी के अभाव में अज्ञात कवि की रचना बताया है।

इस रचना शैली का स्तर दिनकर जी शैली से बहुत निम्न है, साहित्यिक सूझ बूझ वाले व्यक्ति उस कमी को सहज पकड़ लेते हैं  क्योंकि मेरी साहित्यिक पढाई लगभग शून्य है। इस रचना में अनेक स्थानों पर लयबद्धता टूटती है, छंद विधा का भी पालन नही हुआ है। प्रत्येक रचनाकार की अपनी भाव भूमि होती है, अनेक साहित्यकारों ने इसकी विषयवस्तु देखकर ही इसे दिनकर की रचना मानने से इनकार कर दिया था। आप सोशल मीडिया पर खोज कर सकते हैं। एक ने तो टिप्पणी की कि यह अवश्य किसी संघी दिमाग की उपज है जिसे दिनकर के नाम से प्रसारित किया जा रहा है।

Tagsnav varsh, अंकुर आनंद, चैत्र शुक्ल, नव वर्ष, विवाद
ब्लफ-बुक : अनसंग हीरोज

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