कालेजियम टकराव: वाकई कोर्ट हटा सकता है धनकड़ और किरिन रिजीजू को?
उपराष्ट्रपति को पद से हटवा देंगे जज-वकील: जानिए क्या है प्रक्रिया, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को लेकर पागलपन किस हद तक?
सुधीर गहलोत
सुप्रीम कोर्ट (फोटो साभार: Bar And Bench)
जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्र और सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के बीच खींचतान जारी है। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की गई थी। इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को कड़ा कदम उठाने की चेतावनी दी। इसके बाद केंद्र ने हलफनामा देकर जजों की नियुक्ति वाली सिफारिशों को पाँच दिन में मंजूरी देने की बात कही।
जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्र के रूख के बाद बेंगलुरु के एडवोकेट्स एसोसिएशन अवमानना की याचिका लगाई थी। जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृति दिए जाने में देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा, “यह बेहद गंभीर मामला है। हमें ऐसा स्टैंड लेने पर मजबूर न करें, जिससे परेशानी हो।”
दूसरी तरफ कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना करने पर देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और कानून मंत्री किरेन रिजिजू के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में दाखिल की गई है। बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन द्वारा दाखिल याचिका में धनखड़ और रिजिजू को उनके पद से हटाने की माँग की है।
कड़ा स्टैंड लेने की चेतावनी के बाद केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को कह दिया कि कॉलेजियम द्वारा भेजी गई सिफारिशों को वह पाँच में दिनों में मंजूरी दे देगी। ऐसे में बॉम्बे हाईकोर्ट में दाखिल उपराष्ट्रपति और कानून मंत्री को हटाने की याचिका पर हाईकोर्ट ऐसा कोई निर्णय ले सकता है, यह लोगों के मन में जिज्ञासा है। सबसे पहले हम उपराष्ट्रपति के चुनाव को समझते हैं और फिर उन्हें हटाने की प्रक्रिया को जानेंगे।
उपराष्ट्रपति का चुनाव?
उपराष्ट्रपति का पद संवैधानिक पद होता है। राष्ट्रपति के बाद यह देश का दूसरा सर्वोच्च पद होता है। उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, लेकिन कार्यकाल की समाप्ति के बावजूद वह पद पर तब तक रह सकता है, जब तक कि उत्तराधिकारी द्वारा पद ग्रहण नहीं कर लिया जाता।
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम 1952 तथा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव नियम 1974 के साथ संविधान के अनुच्छेद 324 में उपराष्ट्रपति के चुनाव का वर्णन है। उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन, निर्देशन और नियंत्रण भारत निर्वाचन आयोग द्वारा किया जाता है।
वर्तमान उपराष्ट्रपति के कार्यकाल के समाप्त होने के 60 दिन पहले उपराष्ट्रपति पद के चुनाव की अधिसूचना जारी की जाती है। इसके बाद केंद्र सरकार से परामर्श के बाद चुनाव आयोग लोकसभा और राज्यसभा के महासचिव को बारी-बारी से निर्वाचन अधिकारी (रिटर्निंग ऑफिसर) के रूप में नियुक्त करता है।
इसके बाद राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनाव नियम 1974 के नियम 8 में चुनाव के लिए मतदान संसद भवन में आयोजित किया जाता है। इस चुनाव में संसद के दोनों सदनों के प्रतिनिधि भाग लेते हैं।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 66 के अनुसार, उप राष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचन मंडल के सदस्यों द्वारा किया जाता है। निर्वाचन मंडल में राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य, राज्यसभा के मनोनीत सदस्य और लोकसभा के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं।
उपराष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया
उपराष्ट्रपति संसद के सर्वोच्च सदन यानी राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। उपराष्ट्रपति के पास लाभ का कोई पद नहीं होता है। उपराष्ट्रपति भारत के राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र देकर पद देकर अपने पद से मुक्त हो सकता है। जिस दिन राष्ट्रपति त्यागपत्र को स्वीकार करेंगे, उस दिन से यह प्रभावी हो जाता है।
अगर उपराष्ट्रपति को हटाने की बात करें तो उन्हें राज्यसभा के एक प्रस्ताव द्वारा पद से हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जाती है। यह प्रस्ताव सदन में उपस्थित सदस्यों के बहुमत से पारित होना चाहिए।
राज्यसभा में पास होने के बाद महाभियोग का प्रस्ताव संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में जाता है, जहाँ बहुमत द्वारा उसे स्वीकृति दी जाती है। प्रस्ताव पेश करने के पहले कम-से-कम 14 दिनों का नोटिस दिया जाना जरूरी है।
इस तरह हाईकोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट द्वारा उपराष्ट्रपति को नहीं हटाया जा सकता है। उपराष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया संसद लेती है और संविधान में वर्णित नियमों के अनुसार ही उन्हें हटाया जा सकता है।
हालाँकि, संविधान के अनुच्छेद 71(1) के तहत उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित निर्वाचन अनाचार के आधार पर या फिर अनुच्छेद 71(3) के तहत किसी कारण से अयोग्य घोषित होने पर उपराष्ट्रपति को उनके पद से मुक्त किया जा सकता है।
मंत्री की नियुक्ति और हटाने की प्रक्रिया
मंत्रीमंडल प्रधानमंत्री के अंतर्गत निहित होता है। ऐसे में किसी मंत्री को राष्ट्रपति हटा सकता है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री की सलाह पर किसी भी मंत्री को उसके पद से हटाया जा सकता है। इसके अलावा, अगर कोर्ट से मंत्री किसी मामले में अयोग्य घोषित हो जाता है तो उसे पद से मुक्त किया जा सकता है।
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