मेक इन इंडिया की धाक: कोवैक्सीन को WHO से इमरजेंसी यूज मंजूरी से मिला आलोचकों को जवाब
देर आए दुरुस्त आए… Covaxin को मंजूरी, आलोचकों को जवाब, मजबूत होगी ‘मेड इन इंडिया’ इमेज।
दिवाली के मौके पर कोवैक्सीन को मंजूरी बड़ी खुशखबरी है। इससे ‘मेड इन इंडिया’ इमेज को मजबूती मिलेगी।
हाइलाइट्स
कोवैक्सीन को मंजूरी में देरी से बढ़ रही थी उलझन
अप्रूवल मिलने से मजबूत होगी ‘मेड इन इंडिया’ इमेज
वैक्सीन हेजिटेंसी खत्म होगी, वैक्सीनेशन को मिलेगा बढ़ावा
नई दिल्ली 04 नवंबर।भारत बायोटेक की Covaxin को आखिरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मंजूरी दे दी है। यह ‘मेड इन इंडिया’ की ताकत को भी दिखाता है। मंजूरी में देरी से कुछ लोगों के मन में थोड़ा डर जरूर था। लेकिन, अब वह खत्म हो जाना चाहिए। हमारी वैक्सीन पूरी तरह सेफ और वैज्ञानिक पैरामीटर पर सौ फीसदी खरी है। यह उनको भी करारा जवाब है जो भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन पर सवाल उठा रहे थे।
कोवैक्सीन को काफी समय से डब्लूएचओ के इमर्जेंसी अप्रूवल का इंतजार था। आखिरकार बुधवार को यह इंतजार खत्म हुआ। इसके चलते जिन लोगों ने कोवैक्सीन लगवाई है, उनके लिए अंतरराष्ट्रीय यात्रा करने के लिए बंदिशें नरम हो जाएंगी। यह कोवैक्सीन के निर्यात का रास्ता भी खोल देगा। दूसरे देशों में कोवैक्सीन की सप्लाई के लिए जरूरी है कि उसे डब्लूएचओ की इमर्जेंसी यूज लिस्टिंग (EUL) अप्रूवल मिला हो। अब जब कोवैक्सीन को ईयूएल मिल गया है तो इन मोर्चों पर समस्याएं खत्म होंगी।
दुनिया के लगभग सभी देशों में डब्लूएचओ से मंजूरी मिली कोविड वैक्सीन को अपने आप मान्यता मिलने का नियम है। ऐसे में कोवैक्सीन की दोनों डोज ले चुके नागरिकों को अब दुनिया के किसी भी देश की यात्रा करने के दौरान जरूरी क्वारंटीन का सामना नहीं करना पड़ेगा। इसके पहले कुछ देशों ने आपसी संबंधों को देखते हुए कोवैक्सीन को मंजूरी दी थी। इनमें मेक्सिको, नेपाल, ईरान, फिलीपींस, मॉरीशस, ओमान जैसे देश शामिल थे।
बढ़ गई थी लोगों की टेंशन
कोवैक्सीन को मंजूरी के बजाय विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ‘तारीख पे तारीख’ दे रहा था। मंजूरी में अड़चन से कोवैक्सीन लगवा चुके लाखों लोगों की नींद उड़ी हुई थी। इनमें खासतौर से वे लोग शामिल थे जो विदेश जाना चाहते थे। कोवैक्सीन को डब्लूएचओ की मंजूरी नहीं मिलने से ये बंध गए थे। कुछ ने सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया था। इसमें उन्होंने कोर्ट से किसी दूसरी कंपनी का टीका लगवाने की अनुमति देने के लिए कहा है। हालांकि, अब इसकी नौबत ही नहीं आएगी। याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने WHO के फैसले का इंतजार करने को कहा था। अपेक्षा के अनुसार, डब्लूएचओ ने पक्ष में बात कही है।
उलझन खत्म, चाहे जहां जाएं
कोवैक्सीन का अप्रूवल पेंडिंग होने के कारण ही यूरोपीय देश और अमेरिका उन लोगों को एंट्री देने से हिचक रहे थे जिन्होंने यह वैक्सीन लगवाई है। इन्हें नॉन-वैक्सीनेटेड जैसा ही माना जा रहा था। डब्लूएचओ की मंजूरी मिलने के बाद यह उलझन अपने आप खत्म हो गई है। यह कोवैक्सीन लगवा चुके करोड़ों लोगों के लिए बड़ी राहत की खबर है।
एक और वैक्सीन को WHO की इमर्जेंसी यूज लिस्टिंग। स्वदेशी वैक्सीन बनाने और इतने बड़े वैक्सीनेशन प्रोग्राम के लिए सरकार के साथ भारत बायोटेक, ICMR को शुभकामनाएं।
सौम्या स्वामिनाथन, चीफ साइंटिस्ट, WHOमेड इन इंडिया की धाक
यह ‘मेड इन इंडिया’ ब्रांड के लिए भी बड़ी खुशी का पल है। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि यह मंजूरी बहुत लंबी प्रक्रिया से गुजरने के बाद मिलती है। इस पाना भी इतना आसान नहीं है। डब्लूएचओ की ग्लोबल एडवाइजरी कमेटी कई बातों का मूल्यांकन करने के बाद ईयूएल देती है। इनमें कोरोना वैक्सीन की क्वालिटी, सेफ्टी और उपयोगिता शामिल हैं। कोवैक्सीन सातवीं वैक्सीन है जिसे डब्लूएचओ ने ईयूएल दिया है। इसके पहले फाइजर-बायोएनटेक, एसके बायो और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII), एस्ट्राजेनेका ईयू, जैनसन, मॉडर्ना और सिनोफार्म की वैक्सीन को मंजूरी दी जा चुकी है।
क्यों लंबा हुआ इंतजार?
जैसा कि बताया गया कि वैक्सीन को मंजूरी देने से पहले बहुत सारी औपचारिकताएं पूरी करने की जरूरत पड़ती है। कई चीजों का इवैलुएशन किया जाता है। लंबे हो रहे इंतजार के पीछे यह बड़ी वजह थी। कोवैक्सीन को बहुत ठोक-बजा कर अंत में मंजूरी दी गई है। एक्सपर्ट्स भी पहले यह बात कह चुके हैं। कोवैक्सीन दो डोज में दी जाती है। पहली और दूसरी वैक्सीन के बीच अंतर चार हफ्तों का होता है।
आलोचकों को मिला जवाब
ब्राजील के ड्रम रेगुलेटर ने 30 मार्च 2021 को अपनी वेबसाइट पर एक डराने वाली रिपोर्ट पब्लिश की थी। इस रिपोर्ट में उसने इशारा किया था कि कोवैक्सीन को बनाने में हैदराबाद की भारत बायोटेक ने किस तरह की गलतियां की हैं। इन्हीं रिपोर्टों के आधार पर ब्राजील ने भारत बायोटेक से 2 करोड़ कोवैक्सीन डोज का ऑर्डर सस्पेंड किया था।
सवाल यह उठा था कि अगर वैक्सीन की मैन्यूफैक्चरिंग प्रक्रिया में गड़बड़ियां थीं तो भारतीय दवा नियामक डीसीजीआई ने मंजूरी कैसे दे दी? भारतीय कंपनी ने बताया था कि कमी भारतीय वैक्सीन में नहीं, बल्कि ब्राजील के नजरिये में है। वह कोवैक्सीन को देश से बाहर रखना चाहती है। डब्लूएचओ की मंजूरी के बाद इस तरह के तमाम सवाल अपने आप खत्म हो गए हैं। अब किसी तरह की शक-शुबा की कोई गुंजाइश नहीं बची है।
वैक्सीनेशन प्रोग्राम को मिलेगा बढ़ावा
कोवैक्सीन को मंजूरी मिलने में देरी से जहां आलोचक तरह-तरह की बातें बनाने में लगे थे, वहीं एक्सपर्ट्स को भरोसा था। उन्होंने कहा था कि किसी भी चीज की सही परख के लिए टेस्ट से गुजरना अच्छा है। दुनिया तभी आप पर भरोसा करती है। बात सिर्फ कॉस्ट की नहीं, बल्कि क्वालिटी की भी है। डब्लूएचओ की मंजूरी ने दिखा दिया है कि भारतीय वैक्सीन न सिर्फ कॉस्ट बल्कि क्वालिटी इफेक्टिव भी है।
इस अप्रूवल का एक दूरगामी परिणाम होगा। वह यह है कि इससे वैक्सीन हेजिटेंसी (वैक्सीन लगवाने के प्रति झिझक) भी खत्म होगी। इससे वैक्सीनेशन प्रोग्राम को बढ़ावा मिलेगा। भारत ने हाल में 100 करोड़ वैक्सीनेशन का आंकड़ा पार किया है। चीन के बाद भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसने इतने बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन किया है। इसमें कोवैक्सीन की भी करोड़ों डोज लगाई गई हैं। देश के वैक्सीनेशन प्रोग्राम में मुख्य रूप से कोविशील्ड और कोवैक्सीन ही लगाई गई हैं। अब यह डर खत्म हो गया है कि अगर डब्लूएचओ ने कोवैक्सीन को मंजूरी नहीं दी तो क्या होगा, कहीं दोबारा वैक्सीन तो नहीं लगवानी होगी?