विवेचना:कोविशील्ड की दो डोज में अंतर का विवाद क्या और क्यों है?
विवेचना:डेल्टा वैरिएंट से ही तीसरी लहर आएगी तो UK की तरह हमारे यहां कोवीशील्ड के दो डोज का गैप 8 हफ्ते क्यों नहीं?
रवींद्र भजनी
नई दिल्ली 19 जून। पिछले हफ्ते कोविड-19 वैक्सीन कोवीशील्ड के दो डोज के गैप पर नया बखेड़ा हो गया। जिस नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्युनाइजेशन (NTAGI) ने गैप बढ़ाकर 12-16 हफ्ते किया था, उसके तीन सदस्यों ने विरोध में झंडा उठा लिया। कहा कि इस फैसले में उनका समर्थन नहीं था। आनन-फानन में NTAGI के चीफ डॉक्टर एनके अरोड़ा को मीडिया के सामने आ कर सरकारी पक्ष रखा ।
कोवीशील्ड के दो डोज के गैप पर इतनी बात हो गई है कि दूसरा डोज कब लगेगा, इसका जवाब कन्फ्यूज कर देता है। भारत में ही तीन बार गैप बदल चुका है। हर बार कहा गया कि UK में स्टडी हुई है। उससे जो डेटा मिला, उसके आधार पर गैप तय किया है। पर अब UK 40+ को 8 हफ्ते के गैप से दूसरा डोज दे रहे हैं। यह फैसला हाल ही में लिया गया। जब UK ने कहा कि डबल डोज से ही डेल्टा वैरिएंट से प्रोटेक्शन मिलता है।
खैर, हमारे यहां कोविड टास्क फोर्स ने चेताया है कि भारत में डेल्टा+ वैरिएंट कोरोना की तीसरी लहर ला सकता है। इससे निपटना है तो UK जैसा वैक्सीनेशन प्लान बनाना होगा। सवाल तो उठेगा ही कि जब UK में दो डोज का गैप घट गया है तो हमारे यहां 12 हफ्ते का इंतजार क्यों? हर बात में UK के डेटा की आड़ लेने वाले सरकारी अफसरों के पास फिलहाल इसका कोई जवाब नहीं है।
आइए समझते हैं कोवीशील्ड और उसके दो डोज के गैप की कहानी…
कोवीशील्ड के दो डोज के गैप पर नया विवाद क्या है?
सरकार ने अब तक कोवीशील्ड के दो डोज का गैप तीन बार बदला है। 13 मई को आखिरी बार इसे बढ़ाकर 12-16 हफ्ते किया। इस फैसले पर 14 सदस्यों वाले NTAGI के तीन सदस्यों ने सवाल उठाए हैं।
रॉयटर्स को दिए इंटरव्यू में ग्रुप के सदस्य डॉक्टर एमडी गुप्ते और मैथ्यू वर्गीज ने कहा कि हमने तो वही कहा था जो WHO ने कहा। डोज का गैप 8 से 12 हफ्ते करने को कहा था। पर 12 से 16 हफ्ते तो हमने कहा ही नहीं था। सरकार के सात कोविड वर्किंग ग्रुप्स के सदस्य जेपी मुलियिल का कहना है कि NTAGI में गैप बढ़ाने पर चर्चा जरूर हुई, पर हमने 12-16 हफ्ते का जिक्र नहीं किया था।
ग्रुप में ही तलवारें खिंच गईं तो सरकार ने क्या कहा?
सरकार की ओर से NTAGI के चीफ डॉक्टर एनके अरोड़ा सामने आये। कहा कि हमने इंग्लैंड के डेटा को आधार बनाकर फैसले लिए । जो भी तय हुआ, वह साइंटिफिक आधार पर था। कोवीशील्ड एक एडेनोवायरस वैक्सीन है। इसके व्यवहार में आ रहे बदलाव को आधार बनाकर हम फैसले ले रहे हैं। ग्रुप डिस्कशन में रिकमंडेशन पर किसी ने विरोध नहीं किया था।
तो अब तक कोवीशील्ड के दो डोज का गैप बढ़ाया क्यों?
डॉक्टर अरोड़ा का कहना है कि 16 फरवरी को भारत में वैक्सीनेशन शुरू हुआ, तब हमारे पास सिर्फ ब्रिजिंग ट्रायल्स के नतीजे थे। उसके आधार पर हमने कोवीशील्ड के दो डोज 4 से 6 हफ्ते के अंतर से लगाने का फैसला किया था।
फिर अप्रैल में UK का डेटा आया। कहा गया कि गैप बढ़ाकर 12 हफ्ते करते हैं तो वैक्सीन से प्रोटेक्शन 65% के बजाय 88% मिलेगा। उस समय UK में अल्फा वैरिएंट हावी था। हमने उन्हें फॉलो किया। गैप बढ़ाकर 12-16 हफ्ते कर दिया। पर इसके दो-तीन दिन बाद इंग्लैंड से नई रिपोर्ट आ गई। पता चला कि एस्ट्राजेनेका (भारत में कोवीशील्ड) की वैक्सीन का सिंगल डोज 33% ही प्रोटेक्शन देता है। वहीं, डबल डोज 60% प्रोटेक्शन देता है।
तब, 15 मई के आसपास फिर चर्चा शुरू हुई कि भारत में भी गैप घटाकर 4 या 8 हफ्ते करना चाहिए। तब हमने तय किया कि वैक्सीन ट्रैकिंग प्लेटफॉर्म बनाएंगे। ताकि पता चल सके कि हमारे यहां सिंगल और डबल डोज से कितना प्रोटेक्शन मिल रहा है। आगे जो भी डेवलपमेंट सामने आएंगे, उसके आधार पर हम फैसले लेते रहेंगे।
तो क्या दो डोज का गैप फिर घटेगा?
इसके लिए और डेटा चाहिए। वैक्सीनेशन पर बने ग्रुप की सदस्य और देश की टॉप वैक्सीन साइंटिस्ट डॉक्टर गगनदीप कंग ने कहा कि, ‘बहुत से लोग कह रहे हैं कि दो डोज का गैप घटाकर 8 हफ्ते कर दो। पर इतनी जल्दबाजी की जरूरत नहीं है। भारतीय स्ट्रैटजी का इम्पैक्ट देखना चाहिए।’
उन्होंने कहा, ‘जब UK की पहली रिपोर्ट आई थी तो उसमें कहा गया था कि एक डोज से 33% और दो डोज से 60% प्रोटेक्शन मिलता है। यह सभी सिम्प्टोमेटिक इंफेक्शन थे। यानी माइल्ड, मॉडरेट और सीवियर सभी मामले थे। नई रिपोर्ट में डेटा और साफ हुआ है। इसमें पता चला कि हॉस्पिटलाइजेशन से सिंगल डोज 71% और डबल डोज 92% तक बचाता है। हमें भी तो यही चाहिए। माइल्ड इंफेक्शन की चिंता करने की जरूरत नहीं है।’
डॉक्टर कंग के मुताबिक इस समय सप्लाई कम है। अधिक से अधिक आबादी को एक डोज देकर प्रोटेक्शन देना जरूरी है। लगा तो 45+ में हाई रिस्क ग्रुप्स को या प्रायोरिटी ग्रुप्स को दूसरा डोज 8 हफ्ते में लग सकता है। पर इसके लिए ऐसी स्ट्रैटजी बनानी होगी।
क्या भारत में डोज के असर की कोई स्टडी हुई है या यूके के भरोसे ही बैठे हैं?
हां, हुई है। PGI चंडीगढ़ की स्टडी में पता चला है कि सिंगल और डबल डोज से बराबरी से 75% प्रोटेक्शन मिलता है। हम मान सकते हैं कि यह प्रोटेक्शन हमें अल्फा वैरिएंट के खिलाफ मिला है, जो उस समय पंजाब के साथ-साथ उत्तरी भारत में हावी था।
फिर, अप्रैल और मई में तमिलनाडु के वेल्लोर में क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के हेल्थकेयर वर्कर्स पर स्टडी हुई। इसमें कोवीशील्ड के सिंगल डोज ने 61% और डबल डोज ने 65% प्रोटेक्शन दिया। यानी अंतर बहुत ज्यादा नहीं है। अब तक की स्टडी बताती है कि सिंगल और डबल डोज से प्रोटेक्शन में 1% से 5% का ही अंतर है।
डॉक्टर कंग की एक और थ्योरी है। उनका कहना है-सीरो पॉजिटिविटी रेट देखें तो जनवरी तक 20% से ज्यादा लोग कोरोना से इंफेक्ट हो चुके थे। तब उनके लिए पहले डोज ने बूस्टर डोज का काम किया होगा। हमारे यहां यूके के मुकाबले कोविड से एक्सपोजर ज्यादा था। हो सकता है कि एक डोज का असर यहां UK से बेहतर हो।