कितना हो चुका पंजाब का ईसाईकरण, कैसे हो रहा है ये सब?

 

पंजाब में धर्मांतरण  – एक ग्राउंड रिपोर्ट

बीबीसी में सरबजीत सिंह धालीवाल 11 सितंबर 2022
“मैं बीमार रहती थी, बहुत दवा ली, पर कुछ फर्क नहीं पड़ा, फिर मैं चर्च गई और वहां पादरी ने प्रार्थना की और उसके बाद मैं ठीक हो गई, अब मेरे जीवन में कोई कष्ट नहीं है.”

ये शब्द है पंजाब के गुरदासपुर ज़िले के गांव घुमान की रहने वाली राजिंदर कौर के.

राजिंदर कौर जाट परिवार से ताल्लुक रखती हैं लेकिन कुछ समय पहले उसने सिख धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपना लिया.

राजिंदर कौर का कहना है कि उनका पूरा परिवार अब ईसाई बन गया है, लेकिन उनके माता-पिता और ससुराल के बाकी लोग अभी भी सिख हैं.

ज़मींदार परिवार से ताल्लुक रखने वाले सुखविंदर सिंह की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. सुखविंदर सिंह का कहना है कि “व्यापार में घाटा हो रहा था, और वो बीमार भी रहते थे, ज़िंदगी के हर कदम पर दिक़्क़तें थीं, एक दिन मैं चर्च में गया. वहां प्रार्थना की और उसके बाद मेरी ज़िंदगी बदल गई, कारोबार भी ठीक हो गया और बीमारी भी ख़त्म हो गई.”

कपड़े के व्यापारी सुखविंदर सिंह का कहना है कि पहले वे पगड़ीधारी थे, लेकिन 2006 में उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया वो भी बिना किसी लालच के. सुखविंदर सिंह का कहना है कि उनके दो बच्चे है, जो इस समय इंग्लैंड में रहते हैं.

उन्होंने कहा, “पहले मुझे लगता था कि ईसाई अंग्रेज़ों का धर्म है, लेकिन चर्च जाने बाद मुझे एहसास हुआ कि ऐसा नहीं है.” उनका कहना है कि शुरू में कुछ लोगों ने मेरे ईसाई धर्म अपनाने का विरोध किया, रिश्तेदार भी नाराज़ हुए लेकिन उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.

सुखविंदर सिंह

‘धर्म जागरूकता आंदोलन’
सुखविंदर सिंह का कहना है कि कुछ लोग सोचते हैं कि उनकी ज़िंदगी ईसाई धर्म में शामिल होने के बदले पैसों से बदली है, जो कि पूरी तरह से ग़लत है.

वे कहते हैं, “सिखों के पास भी बहुत पैसा है, वे भी प्रचार कर सकते हैं और पैसे खर्च करके लोगों को ईसाई धर्म में शामिल होने वाले लोगों को सिख धर्म में वापस ला सकते हैं.”

धर्म परिवर्तन करने के बाद नाम क्यों नहीं बदला, आपने नाम के साथ अभ भी ‘सिंह’ शब्द लगाते हैं?

इस सवाल के जवाब में सुखविंदर कहते है कि चर्च में नाम को लेकर किसी को भी आपत्ति नहीं है, हां अगर सिखों को आपत्ति है तो वो अपना नाम बदल लेंगे.

सुखविंदर सिंह के घर में आज भी उनकी पगड़ी पहने तस्वीरें लगी हुई हैं.

दूसरी तरफ़ दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने पंजाब में ईसाई बन चुके सिखों को वापस सिख धर्म में लेकर आने के लिए धर्म जागरूकता आंदोलन शुरू किया है.

इस काम में लगे मनजीत सिंह का कहना है कि कुछ पादरी लोगों को गुमराह करके ईसाई धर्म में शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इन पादरियों के झांसे में आए कुछ सिख लोग वापस सिख धर्म में आऐ हैं.

पंजाब के सरहदी इलाक़ों में कितना फैला है ईसाई धर्म
चंडीगढ़ से अमृतसर और गुरदासपुर जाते हुए रास्ते में आपको जगह-जगह ईसाई पादरियों के पोस्टर और होर्डिंग दिखाई देंगे.

पाकिस्तान से लगने वाले पंजाब के इलाक़ों में ईसाई धर्म का कितना प्रभाव है. इसका अंदाज़ा गांवों में बने चर्चों से लगाया जा सकता है.

इनमें से अधिकांश नए चर्च निजी तौर पर प्रचार करने वाले पादरियों द्वारा स्थापित किए जा रहे हैं. कई जगहों पर ईसाई धर्म मानने वाले लोगों ने घरों में चर्च स्थापित कर लिए हैं.

गुरदासपुर ज़िले के पादरी सैमुअल, जो व्यक्तिगत रूप से ईसाई धर्म का प्रचार करते हैं, कहते हैं कि अमीर और ग़रीब सहित सभी वर्गों के लोग उनके पास आते हैं.

उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति जो ईसाई है और उसे बाइबल का ज्ञान है, वह पास्टर बन सकता है.

जब उनसे पूछा गया कि वह ईसाई धर्म के किस संप्रदाय को मानते हैं, तो उन्होंने कहा कि वह स्वतंत्र रूप से प्रचार करते हैं और किसी संप्रदाय के अधीन नहीं आते.

इसी में बहुत सारे पास्टर व्यक्तिगत रूप से पंजाब में अलग-अलग जगहों पर प्रचार कर रहे हैं. कुछ ने तो मोहाली, जालंधर और पंजाब जैसे बड़े शहरों में बड़े-बड़े अपने निजी डेरे स्थापित कर लिए हैं.

वह प्रचार के विभिन्न माध्यमों से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ख़ूब प्रचार भी कर रहे हैं.

Harpreet Singh/Facebook

कितनी जनसंख्या और किन इलाकों में अधिक प्रभाव
पंजाब में ईसाई आबादी राज्य की कुल आबादी का डेढ़ प्रतिशत से भी कम है. 2011 तक इस समुदाय की आबादी करीब 3 लाख 48 हज़ार के करीब थी.

जानकारों का कहना है कि धर्मांतरण खासतौर पर पंजाब के पाकिस्तान बॉर्डर से जुड़े इलाकों मे हो रहा है. बटाला, गुरदासपुर, फ़तेहगढ़ चूड़ियां, डेरा बाबा नानक, मजीठा, अजनाला और अमृतसर के ग्रामीण इलाके इसमें शामिल हैं.

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रमुख हरजिंदर सिंह धामी का मानना है पिछले समय में गुरदासपुर ज़िले में लोग बड़े पैमाने पर ईसाई धर्म से जुड़े हैं और इसलिए अब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की तर्फ से गुरदासपुर में सिख धर्म के प्रचार के लिऐ बड़ा अभियान शुरू किया जा रहा है.

जालंधर के कपूरथला में ईसाई पादरियों के बड़े डेरे देखे जा सकते हैं. यहां पर बड़ी संख्या में लोग आते हैं. गुरदासपुर ज़िले के पादरी सैमुअल ने बीबीसी से बात करते हुऐ स्वीकार किया कि बड़ी संख्या में लोग उनके साथ जुड़ रहे हैं. उन्होंने इस बात से इनकार किया कि किसी को भी लालच या पैसे दे कर धर्मातरण किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि किसी भी धार्मिक स्थल पर जाना व्यक्ति की निजी राय है, इस मुद्दे पर किसी को भी मजबूर नहीं किया जा सकता है.

फतेहगढ़ चूड़ियां के कैथोलिक चर्च के फादर जोन का कहना है, “ईसाई धर्म में कई संप्रदाय हैं. लेकिन कैथोलिक चर्च की और से किसी को भी धर्मांतरण के लिए मजबूर नहीं किया जाता है.”

उन्होंने कहा कि ईसाई धर्म की आबादी कितनी बढ़ी है इसका उनके पास कोई रिकॉर्ड नहीं है.

क्या है शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की आपत्ति ?
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी का कहना है कि कुछ पादरियों की तरफ से एक साज़िश के तहत सिखों का जबरन धर्मांतरण किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि कुछ पादरियों की तरफ से सिखों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के बाद, उन्हें पगड़ी पहनने के लिए कहा जाता है, यहां तक कि उनके नाम के पिछे लगने वाले ‘सिंह या कौर’ शब्द को नहीं हटाया जाता.

शिरोमणि कमेटी की सदस्य किरणजोत कौर का कहना है कि ऐसा करके कुछ पादरी आम लोगों में भरम पैदा कर रहे है. उनका कहना है कि एसजीपीसी की आपत्ति इस बात को लेकर है कि सिख परंपराओं को ईसाई धर्म में क्यों लेकर लाया जा रहा है. उनका कहना है कि लंगर की प्रथा सिखों में है. लेकिन लंगर शब्द का प्रयोग ईसाइयों में भी किया जाता है.

इसके अलावा सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो हैं, जिनमें कुछ पादरी चमत्कार कर मरीज़ों को ठीक करने का दावा कर रहे हैं. ऐसा ही एक वीडियो बीजेपी नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने अपने ट्विटर अकाउंट पर 1 अप्रैल, 2022 को शेयर किया था.

जिसमें जालंधर के पास खोजेवाल का एक पादरी चमत्कार करके मरीज़ों को ठीक करने का दावा कर रहा है. सिरसा ने अपने टवीट में पंजाब में हो रहे धर्म परिवर्तन का जिकर किया है.

ईसाई चर्च
क्या है नाम ना बदलने के पीछे का कारण
पंजाब में ईसाई समुदाय की आबादी बहुत कम हैं. जानकारों का मानना है कि कम संख्या का एक कारण यह भी है कि बहुत से लोग धर्मांतरण के बाद अपना नाम नहीं बदलते हैं. इसके पीछे कारण है दलित समुदाय के लोगों को मिलने वाला आरक्षण.

सरहदी इलाक़ों में जो धर्मांतरण हो रहा है उस में ज्यादातर लोग ग़रीब और दलित वर्ग से आते है. जानकारों का कहना है कि बहुत सारे दलित असल में ईसाई बन चुके है पर कागजों में दलित ही हैं क्योकि ईसाई समुदाय को कोई आरक्षण नहीं मिलता है.

इसलिए बहुत सारे लोग असल में ईसाई घर्म को मानते हैं पर वो ना तो आपना नाम बदलते है और ना ही कोई चीज़ पहनते हैं जिससे ये पता लग सके कि ये लोग आपना धर्म बदल कर ईसाई धर्म अपना चुके है.

पंजाब में ईसाई समुदाय की संख्या को देखा जाए तो पता चलता है कि जिन लोगों ने धर्मांतरण किया है उन में से अधिकांश दलित समुदाय के लोग हैं.

ईसाई धर्म के कितने संप्रदाय हैं
पंजाब में ईसाई धर्म के भीतर भी विभिन्न संप्रदाय हैं. इन में से प्रमुख है कैथोलिक, ऑर्थोडॉक्स, प्रोटेस्टेंट. इसके अलावा चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया (सीएनआई), साल्वेशन आर्मी, मेथोडिस्ट चर्च, और कुछ निजी तौर पर भी मिशनरी काम करते हैं. सरल शब्दों में कहें तो पंजाब में ईसाई धर्म की कोई एक बॉडी नहीं है जो इसे नियंत्रित कर सके.

डायोसिस ऑफ़ अमृतसर पूरी तरह से संगठित हैं और इस का नेतृत्व बिशप की और से किया जाता है.

इसके अलावा कई पादरी ऐसे भी हैं जो निजी तौर पर काम करते हैं और वो किसी के नियंत्रण में नहीं है. पंजाब में ईसाई धर्म को संगठित करने के लिए मसीह महासभा भी है.

जिसका नेतृत्व वर्तमान में बिशप डॉक्टर पीके सामंतराय कर रहे हैं. उनका कहना है कि मसीह महासभा का काम ईसाई धर्म के विभिन्न वर्गों को एक साथ लाना है.

लेकिन जो पादरी व्यक्तिगत रूप से आपने डेरे में प्रचार कर रहे हैं, उनका इस संस्था के साथ काई लेना देना नहीं है. साथ ही उन्होंने कहा कि जो पादरी धर्म को बिजनेस की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, वो ग़लत है और ऐसे लोगों के कारण ही धर्म बदनाम हो रहा है. डॉ. पीके सामंतराय का कहना है कि पादरी बनने के लिऐ नियम है हर काई ऐसा नहीं कर सकता.

उन्होंने कहा कि वह जल्द ही यह सुनिश्चित करेंगे कि बाइबल के नियमों का उल्लंघन करने वाले पादरियों के खिलाफ कार्रवाई हो और वह इस संबंध में सरकार से मदद भी मांगेंगे.

पंजाब में अचानक धर्म परिवर्तन पर इतनी चर्चा क्यों?
दरअसल, कुछ दिन पहले तरनतारन क्षेत्र के एक चर्च पर हुए हमले की घटना ने इस विवाद को और गहरा कर दिया है.

भारत-पाकिस्तान सीमा के पास एक गांव में कुछ अज्ञात युवकों ने चर्च में घुसकर वहां तोड़फोड़ की और वहां खड़ी एक गाड़ी में आग लगा दी और फरार हो गए. इस घटना की पुलिस की तरफ़ से अभी जांच चल रही है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने भी इस घटना की निंदा की थी.

पर इस घटना से पहले श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने पंजाब में कुछ तथाकथित पादरियों की तरफ़ से सिखों और हिंदुओं के जबरन धर्म परिवर्तन के संबंध में बयान दिया था.

इस के अलावा पंजाब के ही जडियाला गुरु में निहंग सिखों और ईसाई भाईचारे के लोगों बीच झड़प हुई थी.

चर्च पर हुए हमले की जांच के बाद ईसाइयों ने पहले पट्टी में धरना दिया और उसके बाद पूरे पंजाब में कैंडल मार्च निकाला जा रहा है. नियमित एसजीपीसी ने चर्च पर हमले की निंदा की.

फिलहाल पंजाब पुलिस की एसआईटी घटना की जांच कर रही है.

इससे पहले पंजाब में धर्म परिवर्तन के मुद्दे को इस साल हुऐ विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने भी उठाया था. देश के गृह मंत्री अमित शाह ने पंजाब में एक रैली में कहा था कि यहां बहुत बडी गिनती में धर्म परिवर्तन हो रहा है इस को रोकना होगा और बीजेपी ही इस को रोक सकती है.

पंजाब में धर्मांतरण का इतिहास
हालांकि पंजाब में धर्म परिवर्तन का मामला नया नहीं है. यह मामला समय-समय सामने आता रहा है.

राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर प्रमोद कुमार बताते हैं कि आजादी से पहले सिखों में अमृत प्रचार, आर्य समाज में शुद्धि और इस्लाम में तब्लीग और तंजीम आंदोलन चलाए गए थे.

वर्ष 2014 में, कुछ रिपोर्टें प्रकाशित हुईं जिनमें कहा गया था कि लगभग 8000 ईसाइयों को सिख धर्म में परिवर्तित किया गया था.

उस समय पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने कहा था कि हम अपने राज्य में जबरन धर्म परिवर्तन नहीं होने देंगे.

डॉ. प्रमोद कुमार का कहना है कि पंजाब के राजनीतिक गलियारों में धर्म परिवर्तन का मुद्दा थोड़ा बहुत रहा है लेकिन समाज के लोगों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है. हां, अलग-अलग धर्मों के नेता इस बात को लेकर चिंतित जरूर हैं।

 

*पंजाब में 65000 पादरी, जिस चर्च के 14 साल पहले थे 3 मेंबर- अब हैं उसके 300000 सदस्य: पंज प्यारों की जमीन पर ‘पगड़ी वाले ईसाइयों’ की छाया कैसे…..

सबसे बड़ा सवाल यह है कि पंज प्यारों की जमीन पर देखते-देखते ही कैसे ‘पगड़ी वाले ईसाई’ छा गए। इस सवाल का जवाब देने में जितनी देरी होगी, धर्मांतरण माफिया की जड़ें उतनी ही मजबूत होती जाएगी।*

*भारत धर्मांतरण (Religious Conversion) के घातक जाल में उलझा हुआ है। भोले-भाले जनजातीय समाज के लोगों को प्रलोभन दे ईसाई बनाने से मिशनरियों ने इस घातक जाल के धागे जोड़ने शुरू किए। अब यह एक ऐसे जाल के रूप में सामने आ चुका है, जिसमें दलित, पिछड़े, सर्वण… सब उलझे नजर आ रहे हैं। इस घातक जाल की जद में पंजाब (Religious Conversion In Punjab) भी है। इंडिया टुडे मैगजीन ने पंजाब में ईसाई धर्मांतरण पर कवर स्टोरी की है। इससे जो तथ्य सामने आए हैं, वे बताते हैं कि यदि इस पर लगाम न लगी तो परिणाम घातक हो सकते हैं।*
*साल 2022 की शुरुआत में जब पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए, तब यहाँ की आबादी का एक ऐसा वर्ग चर्चा में था जो खुद को दलित भी बताता है और ईसाई भी। वास्तव में ये वो लोग हैं जिन्हें मिशनरियों ने कन्वर्ट कर ईसाई बना दिया है। हालाँकि, आँकड़े यह कहते हैं कि राज्य की 1.26% आबादी ही ईसाई है। लेकिन, यहाँ बढ़ रहे धर्मांतरण के कारण जमीनी हकीकत पूरी तरह बदल चुकी है।*
*पंजाब में ईसाई मिशनरियों द्वारा सिखों के धर्मांतरण की स्थिति का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को सामने आकर धर्मांतरण विरोधी कानून की माँग करनी पड़ी है। यही नहीं, उन्होंने स्पष्ट रूप से यह भी कहा है कि ईसाई मिशनरियाँ चमत्कारिक इलाज और कपट से सिखों का जबरन धर्म परिवर्तन करा रही हैं। पंजाब के सिखों और हिंदुओं को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए गुमराह किया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया था कि वोट बैंक की राजनीति के कारण सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने यह भी कहा था कि पंजाब एक सीमावर्ती राज्य है और यहाँ के गरीब हिंदुओं और सिखों को धर्मांतरित करने के लिए ‘विदेशी ताकतें’ फंडिंग कर रही हैं।*
*यूँ तो पूरे पंजाब में ईसाई मिशनरी सक्रिय होकर सिखों को ईसाई बना रही है और ऐसा लगता है कि यह सब दबे पाँव हो रहा है। लेकिन, जालंधर जिले के खाँबड़ा गाँव में बने चर्च में प्रत्येक रविवार को प्रार्थना करने के लिए मोटर साइकिल से लेकर कारों और किराए की स्कूली बसों में पहुँचने वाले 10-15 हजार लोगों को देखने के बाद यह स्पष्ट होता है कि धर्मांतरण का ‘बाजार’ तेजी से फल-फूल रहा है।*
*इंडिया टुडे की कवर स्टोरी के अनुसार, इस गाँव में हजारों लोगों के जमा होने के पीछे जो व्यक्ति है उसका नाम है- पादरी अंकुर नरूला। अंकुर का जन्म हिंदू खत्री परिवार में हुआ था। लेकिन, साल 2008 में ईसाई मिशनरियों के संपर्क में आने के बाद उसने धर्मांतरण कर लिया। इसके बाद उसने अंकुर नरूला मिनिस्ट्री की स्थापना की और फिर ‘चर्च ऑफ साइंस एंड वंडर्स’ भी शुरू कर दिया। दावा किया जा रहा है कि यहाँ निर्माणाधीन चर्च का निर्माण पूरा होने के बाद यह एशिया के सबसे बड़ा चर्च होगा। शुरुआत में इस चर्च से जुड़े लोगों की संख्या महज 3 थी। लेकिन, बीते 14 सालों में यह संख्या 3 लाख के आँकड़े को पार कर चुकी है।*
*अंकुर नरूला ने खाँबड़ा गाँव 65 एकड़ से अधिक क्षेत्र में धर्मांतरण का साम्राज्य स्थापित किया हुआ है। इसके अलावा पंजाब के नौ जिलों व बिहार और बंगाल के साथ ही अमेरिका, कनाडा, जर्मनी और ग्रेटर लंदन के हैरो में भी उसके ठिकाने हैं। अंकुर नरूला को उसकी मिनिस्ट्री से जुड़े हुए लोग या यह कहें कि धर्मांतरण का शिकार हुए लोग ‘पापा’ बुलाते हैं।*
*ऐसा कहा जाता है कि पंजाब में हो रहे धर्मांतरण के पीछे सबसे बड़ा हाथ नरूला का ही है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, पंजाब में ईसाइयों की कुल जनसंख्या 348000 (3 लाख 48 हजार) थी। लेकिन, अब नरूला मिनिस्ट्री से जुड़े लोगों की संख्या ही 3 लाख से पार हो चुकी है। यानी राज्य में, ईसाई मिशनरियों के जाल में फँसकर ‘पगड़ी वाले ईसाईयों’ की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है।*
*जालंधर ही नहीं, अमृतसर में भी मिशनरियों ने सिखों को ‘पगड़ी वाला ईसाई’ बना दिया है। अमृतसर सिखों का पवित्र शहर है। यहीं पवित्र स्वर्ण मंदिर भी है। लेकिन यहाँ के सेहंसरा कलां गाँव की सकरी गलियों के बीच बना चर्च कथित तौर पर धर्मांतरण का केंद्र है। इस चर्च का पादरी गुरुनाम सिंह है जो कि एक पुलिसकर्मी भी है। इस चर्च में रविवार को प्रार्थना होती है। गुरुनाम सिंह का दावा है कि वह सिर्फ प्रार्थना कराता है। लेकिन, सवाल यह है कि यदि वह सिर्फ प्रार्थना कराता है तो लोग ईसाई कैसे बन रहे हैं?*
*ईसाइयों के लिए पंजाब धर्मांतरण की नई प्रयोगशाला नहीं है। लेकिन यहाँ सैकड़ों पादरी नए हैं। इन पादरियों में अमृत संधू, कंचन मित्तल, रमन हंस, गुरनाम सिंह खेड़ा, हरजीत सिंह, सुखपाल राणा, फारिस मसीह कुछ बड़े नाम हैं। इनका नाम इसलिए बड़ा है क्योंकि ‘पगड़ी वाले ईसाइयों’ की संख्या बढ़ाने में इनका बड़ा योगदान है। पंजाब में इनकी कई शाखाएँ हैं और यूट्यूब पर लाखों फॉलोअर्स भी। ये सभी वे लोग हैं जो या तो पेशे से डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, पुलिस, कारोबारी और जमींदार हैं। वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो नौकरी या काम छोड़कर रविवार को प्रार्थना के नाम पर ईसाइयत का प्रचार करते हैं।*
*कपूरथला जिले के खोजेवाल गाँव में बना ओपन डोर चर्च पूर्वी यूरोपीय प्रोटेस्टेंट डिजाइन का है। इस चर्च के पादरी हरप्रीत देओल जट्ट सिख हैं, जिनके ऑफिस में बड़े-बड़े बाउंसर्स तैनात हैं। इसी प्रकार बटाला के हरपुरा गाँव के सर्जन-पादरी गुरनाम सिंह खेड़ा भी जट्ट सिख हैं। पटियाला के बनूर में चर्च ऑफ पीस के पादरी मित्तल बनिया हैं। चमकौर साहिब के रमन हंस मजहबी सिख हैं। इन पादरियों में से कई पादरियों के पास निजी सुरक्षा गार्ड भी हैं।*
*पंजाब में सिखों को ईसाई बनाने के तमाशे ने लाखों लोगों को चर्च तक पहुँचा दिया है। यह संख्या लगातार बढ़ रही है। हालत यह है कि ईसाई मिशनरी और नरूला जैसे लोगों की मिनिस्ट्री यहाँ के सभी 23 जिलों में फैली हुई हैं। ये मिशनरियाँ माझा और दोआबा बेल्ट के अलावा मालवा में फिरोजपुर और फाजिल्का के सीमावर्ती इलाकों में सबसे ज्यादा सक्रिय हैं। पंजाब में ईसाइयत के प्रचार का बेड़ा उठाए लोगों की संख्या का कोई ठोस आँकड़ा नहीं हैं। लेकिन, इंडिया टुडे की रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुमान के मुताबिक यहाँ पादरियों की संख्या 65,000 के करीब है।*
*कुछ समय पहले न्यूज़ नेशन ने यूनाइटेड क्रिश्चियन फ्रंट के आँकड़ों के हिसाब से बताया था कि पंजाब के 12,000 गाँवों में से 8,000 गाँवों में ईसाई धर्म की मजहबी समितियाँ हैं। वहीं अमृतसर और गुरदासपुर जिलों में 4 ईसाई समुदायों के 600-700 चर्च हैं। इनमें से 60-70% चर्च पिछले 5 सालों में अस्तित्व में आए हैं।*
*कुल मिलाकर आज पंजाब की कुछ-कुछ वैसी ही स्थिति तमिलनाडु जैसे दक्षिण के राज्यों में 1980 और 1990 के दशक में हुआ करती थी। हालाँकि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष एचएस धामी धर्मांतरण पर अधिक चिंतित नहीं हैं। उनका कहना है, “लोग जिंदगी की समस्याओं के हल के लिए पादरियों के पास जाते हैं। देर-सबेर उन्हें सच्चाई पता चलेगी और वे मूल धर्म में लौट आएँगे।” लेकिन ‘घर घर अंदर धर्मसाल’ जैसे अभियान बताते है कि स्थिति कितनी विस्फोटक हो चुकी है। इस अभियान के तहत सिख स्वयंसेवक अपने धर्म का प्रचार करने घर-घर जा रहे हैं।*
*इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि पंज प्यारों की जमीन पर देखते-देखते ही कैसे ‘पगड़ी वाले ईसाई’ छा गए। इस सवाल का जवाब देने में जितनी देरी होगी, धर्मांतरण माफिया की जड़ें उतनी ही मजबूत होती जाएगी।*

*साभार इंडिया टुडे नवंबर 2022*

ईसाईकरण का सूत्र ‘हेन, तेन, पेन’
ईसाई मिशनरी जनजाति क्षेत्रों में आर्थिक लालच, उन्मुक्त समाज और शिक्षा की आड़ में लोगों को ईसाई बना रहे हैं। कई संगठन उनके इस षड्यंत्र को विफल करने को कार्य कर रहे हैं।

पांचजन्य 19 जुलाई 2023

पादरियों ने सबसे पहले कलकत्ता में हिंदुओं को ईसाई बनाना शुरू किया। कुछ वर्षों के बाद ईसाई बने ये लोग फिर से हिंदू धर्म में वापस आ गए। फिर इन पादरियों ने कलकत्ता छोड़कर रामपुरहाट के पास बेनागढ़िया गांव में एक मिशन स्थापित किया ।

फिर इन पादरियों ने कलकत्ता छोड़कर रामपुरहाट के पास बेनागढ़िया गांव में एक मिशन की स्थापना की। आजकल यह गांव दुमका जिले के शिकारीपाड़ा प्रखंड में है। उन दिनों यह गांव घने जंगलों से घिरा था। इस क्षेत्र में संथाल जनजाति के लोग रहते हैं। पादरियों ने संथालों से दोस्ती करनी शुरू की। धीरे-धीरे उन्होंने संथाली भाषा भी सीख ली। जब कोई पादरी किसी संथाल से उसकी भाषा में बात करता था, तो उसे लगता था कि वही उसका सगा है।

पादरियों ने संथालियों की सरलता का लाभ उठाकर इन्हें ईसाई बनाना शुरू किया। फिर पादरियों ने संथाल समाज के गुरु केकाराम से संपर्क बढ़ाया। उनसे संथालसमाज की हर बात की जानकारी लेकर उसे लिपिबद्ध किया। संथाली भाषा में छोटे-छोटे गीत, कथा, कहानी, पहेली आदि की रचना की गई। बाद में संथालों की सृष्टि कथा, जन्म से मरण तक का संस्कार, पर्व-त्योहार, देवी-देवता आदि के बारे में लिखा। इसमें फादर स्क्रैपरूड और फादर पाउल ओलाप बोडिंग का सबसे अधिक हाथ था। फादर बोडिंग ने संथाली-अंग्रेजी शब्दकोश की रचना की। सबसे पहले बेनागढ़िया मिशन में ही प्रेस शुरू किया। इसी प्रेस से 1900 में संथाली भाषा में बाईबिल प्रकाशित हुई।

‘चंगाई सभा’ भी एक तरीका है कन्वर्जन का। क्या गांव, क्या शहर सभी जगह चंगाई सभाएं हो रही हैं। उसके एजेंट पहले से ही तैयार रहते हैं। कोई लंगड़ा बन के आता है, कोई अंधा, कोई बहरा आदि। इस चंगाई सभा में कथित ईसाई पादरी पानी और तेल छिड़क कर बीमारी ठीक करने का ढोंग करता है। दुर्भाग्य से समाज के कुछ लोग इनके चक्कर में पड़ जाते हैं। यह स्थिति बदलने की आवश्यकता है।
स्वतंत्रता के बाद पादरियों ने कन्वर्जन के लिए एक सूत्र अपनाया, उसे ‘हेन, तेन, पेन’ सूत्र कहा जाता है। हेन यानी मुर्गी। तेन संथाली भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है युवक-युवती का खुल्लम-खुल्ला संपर्क। पेन माने कलम। मुर्गी के माध्यम से उन लोगों ने जनजातियों को आर्थिक मदद दी। इसके बाद उन्हें ईसाई बना लिया। सबसे अधिक लड़कियों के लिए स्कूल खोले गए और जो लड़की उस स्कूल में गई, वह ईसाई बन गई। उसके माध्यम से हिंदू लड़कों को फंसाकर ईसाई बनाया गया। फिर शिक्षा के नाम पर भी हिंदुओं को ईसाई बनने के लिए मजबूर किया।

स्वतंत्रता के बाद पादरियों ने कन्वर्जन के लिए एक सूत्र अपनाया,उसे ‘हेन, तेन, पेन’ सूत्र कहा जाता है।
अभी भी कन्वर्जन का यही तरीका है। मिशनरी से जुड़े लोग गांव-गांव जाते हैं और कौन युवा बेरोजगार है, उससे संपर्क करते हैं। जब वह ईसाई बन जाता है तो उसे मोटरसाइकिल और कुछ मानधन देकर समाज के अन्य लोगों को भी ईसाई बनाने के कार्य में लगा दिया जाता है। मिशनरी वाले गांव-गांव में उन लोगों से भी मिलते हैं, जिनके दो-चार बच्चे होते हैं। वे उनसे कहते हैं कि उनके एक बच्चे को मिशनरी स्कूल में मुफ्त में शिक्षा दी जाएगी।

उस बच्चे को ऐसी शिक्षा दी जाती है कि वह बाद में अपने घर वालों से ईसाई बनने की जिद करने लगता है। बीमारी ठीक करने की आड़ में भी कन्वर्जन किया जाता है। मिशनरी के लोग किसी बीमार व्यक्ति को ईसा मसीह के नाम से दवाई खाने के लिए कहते हैं और रोज उसके घर पर प्रार्थना करते हैं। वह बीमार व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है तब उसको कहा जाता है कि तुम ईसा मसीह के कारण ही ठीक हुए हो। उसके बाद पूरा परिवार ईसाई बन जाता है।

‘चंगाई सभा’ भी एक तरीका है कन्वर्जन का। क्या गांव, क्या शहर सभी जगह चंगाई सभाएं हो रही हैं। उसके एजेंट पहले से ही तैयार रहते हैं। कोई लंगड़ा बन के आता है, कोई अंधा, कोई बहरा आदि। इस चंगाई सभा में कथित ईसाई पादरी पानी और तेल छिड़क कर बीमारी ठीक करने का ढोंग करता है। दुर्भाग्य से समाज के कुछ लोग इनके चक्कर में पड़ जाते हैं। इस स्थिति को बदलने की आवश्यकता है।

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