चार धाम यात्रा: सौ से ज्यादा घोड़े-खच्चरों की मौत से जागा सिस्टम, एक दिन में एक फेरा
Chardham Yatra 2022 ,crualty towards animals: चारधाम यात्रा के दौरान घोड़े-खच्चरों की मौत पर प्रशासन सख्त, एक दिन में एक चक्कर लगाने का निर्देश, केदारनाथ में सिर्फ 50% घोड़ों-खच्चरों का संचालन
उत्तराखंड में चारधाम यात्रा के दौरान अब तक 100 से ज्यादा घोड़े-खच्चरों की मौत हो चुकी है, जिसे लेकर प्रशासन सख्त हो गया है. सचिव पशुपालन ने खच्चरों को लेकर ये निर्देश जारी किए हैं.
चारधाम यात्रा के दौरान हो रही है घोड़े -खच्चरों की मौत
देेेहरादू28 मई।घोड़े-खच्चरों की मौत पर पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने चिंता जताई है। पर्यटन मंत्री महाराज और पशुपालन मंत्री सौरभ बहुगुणा ने इसका संज्ञान लिया है। यह निर्देश दिए कि यदि कोई घोड़ा-खच्चर संचालक नियमों की अनदेखी करता है तो उसके विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराई जाएगी
Kedarnath Yatra में अब प्रतिदिन 50 प्रतिशत घोड़े-खच्चरों का संचालन, मेनका गांधी ने जताई थी चिंता
केदारनाथ यात्रा मार्ग पर यात्रियों की सुविधा के लिए संचालित घोड़े-खच्चरों की मौत पर पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने चिंता जताई है। उन्होंने पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज को फोन कर इस संबंध में सरकार से हस्तक्षेप करने का आग्रह किया। पर्यटन मंत्री महाराज और पशुपालन मंत्री सौरभ बहुगुणा ने इसका संज्ञान लिया है।
संचालक की लापरवाही से मौत हुई तो रोकी जाएगी बीमा राशि
बहुगुणा के अनुसार केदारनाथ यात्रा में अब प्रतिदिन 50 प्रतिशत घोड़े-खच्चरों का संचालन किया जाएगा। साथ ही यह निर्देश भी दिए गए हैं कि यदि कोई घोड़ा-खच्चर संचालक नियमों की अनदेखी करता है तो उसके विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराई जाएगी। यही नहीं, संचालक की लापरवाही से किसी घोड़े-खच्चर की मृत्यु होती है तो उसकी बीमा राशि भी रोकी जाएगी।
पर्यटन मंत्री ने तत्काल पशुपालन मंत्री से वार्ता की
पूर्व मंत्री मेनका गांधी की ओर से चिंता जताए जाने के बाद पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने तत्काल पशुपालन मंत्री सौरभ बहुगुणा से वार्ता की। उन्होंने केदारनाथ यात्रा मार्ग पर घोड़े-खच्चरों की संख्या नियंत्रित करने के मद्देनजर हस्तक्षेप करने पर जोर दिया।
इसके साथ ही महाराज ने सचिव पर्यटन दिलीप जावलकर को निर्देश दिए कि केदारनाथ में संचालित घोड़े-खच्चरों के मामले में ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित की जाए कि भोजन करने के बाद घोड़े-खच्चरों को कम से कम तीन-चार घंटे आराम मिले, इससे यात्रा मार्ग पर इनकी संख्या नियंत्रित हो सकेगी। उन्होंने कहा कि घोड़े-खच्चरों की मौत पर विराम लगना चाहिए।
पर्यटन मंत्री महाराज ने सचिव पर्यटन को यह भी निर्देश दिए कि केदारनाथ में वहन क्षमता से अधिक श्रद्धालुओं की भीड़ नहीं होनी चाहिए। यात्रियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए इस प्रकार की व्यवस्था होनी चाहिए कि श्रद्धालुओं को धीरे-धीरे धामों की ओर भेजा जाए। उन्होंने कहा कि यदि भीड़ कम होगी तो घोड़े-खच्चरों पर भी दबाव कम पड़ेगा। मूक जानवरों का ध्यान रखना भी हमारा दायित्व है।
केदारनाथ में घोड़ों-खच्चरों के लिए गाइडलाइन बनाने की मांग
नवोत्थान सोसाइटी ने केदारनाथ में घोड़ों और खच्चरों की मौत से आहत होकर सरकार से इनके संचालन व रखरखाव के लिए गाइडलाइन बनाने की मांग की है।
शुक्रवार को उत्तरांचल प्रेस क्लब में पत्रकार वार्ता में संस्था की अध्यक्ष नलिनी तनेजा ने कहा कि गौरीकुंड से घोड़ों-खच्चरों से केदारनाथ की यात्रा में चार से पांच घंटे लगते हैं। घोड़ा-खच्चर संचालक धन के लालच में बेजुबानों की ओर ध्यान नहीं दे रहे। उन्होंने कहा कि इस पैदल मार्ग में कहीं पानी का कुंड नहीं है।
ज्यादा ठंड भी घोड़ों-खच्चरों की मौत का कारण बन रही है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि घोड़ों और खच्चरों पर टैग लगाने के साथ हर 15 दिन में उनका मेडिकल चेकअप कराया जाए और पीने के लिए गर्म पानी की व्यवस्था की जाए। इस दौरान रीना सेमवाल, राज सूरी, साकेत गोयल आदि मौजूद रहे।
उत्तराखंड में चारधाम यात्रा में उमड़ी भारी भीड़ के बीच जहां कई श्रद्धालुओं की मौत हो चुकी हैं तो वहीं दूसरी तरफ इस यात्रा में अहम भूमिका निभाने वाले घोड़े-खच्चरों का भी बुरा हाल है. इन जानवरों के लिए खाने पीने से लेकर उचित व्यवस्था नहीं होने की वजह से पिछले कुछ दिनों करीब 100+ खच्चरों की मौत हो चुकी है. जिसे लेकर अब प्रशासन सतर्क हो गया है. सचिव पशुपालन ने यात्रा मार्ग के जिलाधिकारी के निर्देशित किया है कि एक खच्चर से दिन में एक ही बार यात्रा कराई जाए और इन आदेशों का सख्ती से पालन होना चाहिए.
घोड़े-खच्चरों की मौत पर सख्त हुआ प्रशासन
दरअसल केदारनाथ और यमुनोत्री के पैदल मार्ग पर खच्चरों के जरिए ही समान ढुलाई होती है, इसके साथ ही कई श्रद्धालु मंदिर तक पहुंचने के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं. इस बार केदारनाथ यात्रा के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पर पहुंच रहे हैं. ऐसे हालात में ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में इन खच्चरों के मालिक इनसे ज्यादा काम करवा रहे हैं. यही नहीं ज्यादा काम होने की वजह से इनके खाने-पीने का भी ध्यान नहीं रखा जा रहा है जिसके वजह से इनकी दर्दनाक मौत हो रही हैं. कई बार तो इन खच्चरों से पैदल मार्ग पर दो-दो तो कभी तीन तक फेरे लगाए जाते हैं. एक तरफ मौसम की मार और दूसरी तरफ जरुरत से ज्यादा बोझ उठाने से भी इनकी हालत खराब हो रही है.
यात्रामार्ग जिलाधिकारी को दिए ये निर्देश
इन तमाम हालात को देखते हुए पशुपालन सचिव बीवी आरसी पुरुषोत्तम ने अब सख्त निर्देश जारी कर दिए हैं. उन्होंने यात्रा मार्ग के जिलाधिकारी को निर्देशित करते हुए कहा कि एक खच्चर को दिन में एक बार यात्रा कराने का आदेश दिया है, इसके साथ ही मृत पशुओं के मालिकों को 1 लाख रुपए मुआवजा देने का एलान किया है.
यात्रियों की भीड़ से घोड़े-खच्चरों की शामत, थकान से चूर हो गिर रहे, 16 दिन में सौ से अधिक मरे
अब तक 1 लाख 25 हजार तीर्थयात्री घोडे़-खच्चरों से बाबा के धाम की यात्रा कर चुके हैं. पैदल मार्ग पर एक भी स्थान पर घोड़ा-खच्चरों के लिए गर्म पानी की व्यवस्था नहीं है.
घोड़े-खच्चरों की नहीं है कोई कद्र
एक दिन में 2-3 लगाए जा रहे हैं चक्कर
गौरीकुंड से केदारनाथ तक 18 Km की दूरी
केदारनाथ यात्रा में अहम भूमिका निभाने वाले घोड़े-खच्चरों की ही कोई कद्र नहीं की जा रही है. इनके लिए न रहने की कोई समुचित व्यवस्था है और न ही इनके मरने के बाद विधिवत दाह संस्कार किया जा रहा है. केदारनाथ पैदल मार्ग पर घोड़े-खच्चरों के मरने के बाद मालिक और हॉकर उन्हें वहीं पर फेंक रहे हैं, जो सीधे मंदाकिनी नदी में गिरकर नदी को प्रदूषित कर रहे हैं. ऐसे में केदारनाथ क्षेत्र में महामारी फैलने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है. वहीं, अभी तक एक लाख 25 हजार तीर्थयात्री घोड़े-खच्चरों से अपनी यात्रा कर चुके हैं, जबकि अन्य तीर्थयात्री हेलीकॉप्टर और पैदल चलकर धाम पहुंचे हैं.
समुद्रतल से 11750 फिट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ तक पहुंचने के लिए बाबा केदार के भक्तों को 18 से 20 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है. इस दूरी में यात्री को धाम पहुंचाने में घोड़ा-खच्चर अहम भूमिका निभाते हैं. लेकिन इन जानवरों के लिए भरपेट चना, भूसा और गर्म पानी भी नहीं मिल पा रहा है. तमाम दावों के बावजूद पैदल मार्ग पर एक भी स्थान पर घोड़ा-खच्चर के लिए गर्म पानी नहीं है.
एक दिन में 2-3 चक्कर
दूसरी तरफ, संचालक और हॉकर रुपये कमाने के लिए घोड़ा-खच्चरों से एक दिन में गौरीकुंड से केदारनाथ के 2 से 3 चक्कर लगवा रहे हैं और रास्ते में उन्हें पलभर भी आराम नहीं मिल पा रहा है, जिस कारण वह थकान से चूर-चूर होकर दर्दनाक मौत का शिकार हो रहे हैं.
16 दिन में 60 घोड़े-खच्चर मरे
आंकड़े बताने के लिए काफी हैं कि केदारनाथ की रीढ़ कहे जाने वाले इस जानवर की कितनी सुध ली जा रही है. सिर्फ 16 दिनों में 55 घोड़ा-खच्चरों की पेट में तेज दर्द उठने से मौत हो चुकी है, जबकि 4 घोड़ा-खच्चरों की गिरने से और एक की पत्थर की चपेट में आने से मौत हुई है. बावजूद इसके घोड़े-खच्चरों की सुध नहीं ली जा रही है.
जानवरों को आराम नहीं
घोड़ा-खच्चरों का संचालन करने वाले
जिला पंचायत रुद्रप्रयाग की अध्यक्ष अमरदेई शाह ने कहा कि गौरीकुंड से केदारनाथ धाम तक कहीं पर भी घोड़े-खच्चरों के आराम करने को टिन शेड का निर्माण नहीं किया गया और न ही अन्य व्यवस्थाएं की गई. घोड़े-खच्चर मालिक भी अपने जानवरों के प्रति लापरवाही बरत रहे हैं.
रुद्रप्रयाग जिला पंचायत अध्यक्ष अमरदेई शाह
नदी में बहा रहे
उन्होंने कहा कि घोड़ा-खच्चर संचालक और हॉकर घोड़ा-खच्चरों की सुध नहीं ले रहे हैं, जो बड़ा अपराध है. यात्रा मार्ग पर मर रहे घोडे-खच्चर नदी में डाले जा रहे हैं, जो अच्छा नहीं है. मृत जानवर का सही तरीके से दाह संस्कार कर उसे जमीन में नमक डालकर दफनाया जाए. यात्रा में संबंधित कर्मचारियों को मॉनीटरिंग के निर्देश दिए गए हैं.
श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ी तो सरकार ने हाथ खड़े किए, अधिक फेरे की वजह से खच्चरों पर असर
उत्तराखंड में केदारनाथ यात्रा के शुरु हुए 22 दिन हो गए, लेकिन प्रशासन सुचारु व्यवस्था करने में अब भी नाकाम है। हेलीकॉप्टर नहीं मिलने की वजह से श्रद्धालु खच्चर और घोड़े से जाने को मजबूर हैं। इधर, खच्चर मालिक पैसों की लालच एक खच्चर से 3-3 फेरे लगवा रहा है, जिससे अब तक 100 से ज्यादा खच्चरों की मौत हो चुकी है।
वहीं मरने के बाद खच्चरों को केदारनाथ पैदल यात्रा में पड़ने वाली मंदाकिनी नदी में फेंक जा रहा है, जिससे पैदल मार्ग में पड़ने वाली मंदाकिनी नदी ‘मैली’ हो रही है।
केदारनाथ के लगभग 19 किलोमीटर के पैदल पथ पर श्रद्धालुओं के लिए लगभग पांच हजार खच्चर और घोड़े हैं। हेलीकाॅप्टर बुकिंग की सुविधा है, लेकिन पर्याप्त हेलीकाॅप्टर न होने से ज्यादातर लोग खच्चरों पर जाते हैं। ज्यादा कमाई के फेर में खच्चरों से एक दिन में तीन फेरे तक लगवाते हैं। कम चारे और अधिक मेहनत के कारण अब तक मारे गए लगभग 100 से ज्यादा खच्चरों के शव मंदाकिनी में सड़ रहे हैं। डॉक्टर प्रवीण पवार के अनुसार इससे बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।
अब तक 1.25 लाख तीर्थयात्री घोड़े-खच्चरों से यात्रा पूरी कर चुके हैं।
बर्फबारी के बाद यात्रा शुरू, फिर उमड़े श्रद्धालु
बर्फबारी के 2 दिन बाद बुधवार से केदारनाथ यात्रा एक बार फिर से बुधवार फिर शुरू हुई। जिसके बाद हजारों श्रद्धालुओं ने केदारनाथ का रुख किया जिससे व्यवस्थाएं बनाने में पुलिस और मंदिर समिति को खासा मेहनत करनी पड़ रही है। शुक्रवार को भी 30 हजार से ज्यादा यात्री केदारनाथ पहुंचे।
बेस कैंप से भूखे-प्यासे खच्चरों की दिनभर दौड़
संचालक और हॉकर गौरीकुंड से खच्चर- घोड़ों को हांकते हुए सीधे बेस कैंप केदारनाथ में रुकते हैं और थोड़ा बहुत चना व भूसा खिलाकर पुनः नीचे दौड़ाये जाते है। तमाम दावों के बावजूद पैदल मार्ग पर एक भी स्थान पर घोड़ा-खच्चर के लिए गर्म पानी की व्यवस्था नहीं है।
स्थानीय लोग बाेले- मंदिर समिति कदम उठाए
बीमारी की आशंका से ही स्थानीय लोगों ने मंदिर समिति से खच्चरों के शवों के निस्तारण की मांग की है। उधर, जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने बताया कि इस संबंध में उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिए गए हैं। खच्चरों से ज्यादा फेरे ना लगाए जाएं, यह भी प्रशासन की ओर से सुनिश्चित कराया जा रहा है।
चारधाम: अब तक 84 लोगों की मृत्यु
इस साल चारधाम यात्रा शुरू होने के बाद से अब तक 24 दिनों के दौरान 84 लोगों की मौत हो चुकी है। उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग ने अपील जारी की है कि ऐसे लोग यात्रा करने से बचे जिन्हें पिछले साल कोरोना हुआ था और इलाज के दौरान वो ICU में भर्ती रहे थे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पूरी चारधाम यात्रा के दौरान 2019 में 90, 2018 में 102 और 2017 में 112 लोगों की मृत्यु हुई थी।
को-मॉर्बिड सावधान रहें
चिकित्सकों का कहना है कि को-मॉर्बिड लोग विशेष सतर्कता बरतें। मैदानी इलाकों से आने वाले श्रद्धालु केदारनाथ बदरीनाथ के सर्द मौसम के अनुसार एडजस्ट नहीं हो पाते हैं। ज्यादातर श्रद्धालुओं की मृत्यु का कारण हाइपोथर्मिया (अधिक शीत) होता है।