भ्रष्ट छवि और नये सीबीआई चीफ से वैर ने रोका डीके शिवकुमार का रास्ता
जिसे नालायक कहा, वो अब CBI चीफ:सीएम बनते ही खुल जाती फाइल; डीके शिवकुमार के खिलाफ गईं ये 6 बातें
बैंगलुरू 17 मई। ‘हमारा एक संयुक्त परिवार है, हमारी संख्या 135 है। मैं यहां किसी को तोड़ना नहीं चाहता। वे मुझे पसंद करें या न करें, मैं एक जिम्मेदार व्यक्ति हूं। मैं पीठ में छुरा नहीं घोंपूंगा और न ही ब्लैकमेल करूंगा।’
यह बयान कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के दावेदार डीके शिवकुमार का है। ये बात उन्होंने उस वक्त कही जब मुख्यमंत्री पद के नाम पर चर्चा चल रही थी। हालांकि पार्टी और कांग्रेस हाईकमान के प्रति अपनी निष्ठा जाहिर करने के बावजूद मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को नहीं, बल्कि सिद्धारमैया को बनाया गया।
इस विश्लेषण में जानेंगे वो 6 कारण जो डीके शिवकुमार के मुख्यमंत्री बनने में आड़े आईं…
1. कर्नाटक के DGP से झगड़ा, जो अब CBI चीफ नियुक्त
14 मार्च 2023 को शिवकुमार ने पत्रकारों से कहा- कर्नाटक के DGP नालायक हैं और वह इस पद के लायक नहीं हैं। तीन साल हो गए और कितने दिन बीजेपी के कार्यकर्ता बने रहेंगे? उनकी ड्यूटी और आचरण को लेकर हमने चुनाव आयोग को भी पत्र लिखा है। उनके खिलाफ FIR होनी चाहिए। शिवकुमार ने कहा कि चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बनी तो उन पर कठोर कार्रवाई होगी।
ठीक 2 महीने बाद यानी 14 मई को कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिल गया। रिजल्ट के एक दिन बाद ही कर्नाटक के DGP प्रवीण सूद को CBI का नया प्रमुख नियुक्त कर दिया गया। हालांकि नियुक्ति समिति में नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी भी थे। उन्होंने सूद के नाम का विरोध किया था।
कई राजनीतिक विश्लेषक प्रवीण सूद की नियुक्ति को डीके शिवकुमार से जोड़कर देख रहे हैं। माना जा रहा है कि डीके शिवकुमार अगर मुख्यमंत्री बनते तो CBI एक बार फिर आय से अधिक संपत्ति के मामले में जांच तेज कर सकती थी। इसमें CBI के नए प्रमुख की भूमिका महत्वपूर्ण होती।
मुख्यमंत्री बनते ही अगर CBI और ED जैसी एजेंसियां डीके से पूछताछ करतीं या फिर गिरफ्तार कर लेतीं तो कांग्रेस की किरकिरी होती और सरकार भी उलझ जाती। इससे यह संदेश जाता कि कांग्रेस ने एक भ्रष्ट को मुख्यमंत्री बना दिया। डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री न बनाए जाने के पीछे ये सबसे बड़ा कारण है।
कर्नाटक के डीजीपी प्रवीण सूद हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा के रहने वाले हैं। IIT दिल्ली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में B Tech किया है। 1986 में वे 22 साल की उम्र में IPS बने।
2 शिवकुमार पर मनी लॉन्ड्रिंग, टैक्स चोरी समेत 19 से ज्यादा आरोप
डीके शिवकुमार पर मनी लॉन्ड्रिंग, टैक्स चोरी समेत 19 से ज्यादा मामले दर्ज हैं। 8 करोड़ रुपए से अधिक के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ED चार्जशीट पेश कर चुकी है। वहीं CBI आय से अधिक संपत्ति के मामले में भी जांच कर रही है। साल 2017 में शिवकुमार और उनके सहयोगियों पर 300 करोड़ रुपए से अधिक की आयकर चोरी का आरोप लगा था।
ED ने शिवकुमार पर मंत्री रहने के दौरान भारी मात्रा में अवैध और बेहिसाब कैश इकट्ठा करने का आरोप लगाया है। डीके शिवकुमार 1999-2004 तक एसएम कृष्णा सरकार में शहरी विकास मंत्री थे। 2013 में सिद्धारमैया सरकार में डीके ऊर्जा मंत्री थे।
2017 में शुरू हुई आयकर जांच में शिवकुमार पर एजुकेशन ट्रस्ट और रियल एस्टेट के बिजनेस के जरिए बेहिसाब और अवैध रकम को छिपाने का आरोप लगा था।
आयकर विभाग ने अगस्त 2017 में डीके शिवकुमार से जुड़े लगभग 70 परिसरों में छापेमारी की थी। इस दौरान मिले सबूतों के आधार पर CBI ने अक्टूबर 2020 में शिवकुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी।
2017 में बेंगलुरु में कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार के घर पर छापेमारी करती CBI टीम।
सीबीआई ने आरोप लगाया था कि शिवकुमार ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार में ऊर्जा मंत्री के रूप में अप्रैल 2013 से अप्रैल 2018 तक आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक 74.93 करोड़ रुपए की संपत्ति जुटाई।
शिवकुमार को ED ने सितंबर 2019 में मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया था और एक महीने बाद जमानत पर रिहा कर दिया था। वह 2020 में कर्नाटक कांग्रेस के प्रमुख बने।
इस बार के विधानसभा चुनाव के लिए अपने नामांकन पत्र में शिवकुमार ने 1,214 करोड़ रुपए की संपत्ति घोषित की। इसमें दिए हलफनामे के अनुसार, इस घोषित संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा बेंगलुरु में एक मॉल से मिलता है। डीके शिवकुमार के मुख्यमंत्री न बन पाने के प्रमुख कारणों में से एक यह भी है।
24 अक्टूबर 2019 को दिल्ली की तिहाड़ जेल से रिहा होने के बाद मीडिया से बात करते डीके शिवकुमार।
3. कर्नाटक के 135 में से 90 विधायक सिद्धारमैया के साथ
रविवार को विधायक दल की बैठक में सभी विधायकों से उनकी राय पूछी गई थी। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसके लिए महाराष्ट्र के पूर्व CM सुशील कुमार शिंदे, कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी जितेंद्र सिंह और पूर्व जनरल सेक्रेटरी दीपक बाबरिया को ऑब्जर्वर बनाकर भेजा था।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कांग्रेस के 135 में से 90 विधायक सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में थे। कर्नाटक के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री नहीं बनाना एक जोखिम भरा फैसला होता।
कुरुबा और मुस्लिम समुदाय पूरे कर्नाटक में फैले हुए हैं और पार्टी के कई विधायक अपनी सीटों के लिए सिद्धारमैया की लोकप्रियता पर निर्भर हैं। इसी से सिद्धारमैया को ज्यादा विधायकों का समर्थन मिला।
रविवार को बेंगलुरु में कांग्रेस विधायक दल की बैठक के दौरान कांग्रेस नेता सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार।
4. सिद्धारमैया की एक्टिव पॉलिटिक्स का आखिरी दौर
कर्नाटक में इस वक्त दो बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा और सिद्धारमैया हैं। येदियुरप्पा सक्रिय राजनीति में नहीं हैं। ऐसे में सिद्धारमैया राज्य के सबसे कद्दावर नेता बचे हैं। 1983 में पहली बार विधायक बने थे।
सिद्धारमैया का प्रशासनिक अनुभव उनके पक्ष में एक और मजबूत पॉइंट साबित हुआ। उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है। दो बार उपमुख्यमंत्री रहे हैं। कर्नाटक के वित्तमंत्री के रूप में 13 बार बजट पेश कर चुके हैं।
सिद्धारमैया की सबसे खास बात उनकी अपेक्षाकृत स्वच्छ छवि होना है। उन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है, राजनीति में ऐसा बहुत दुर्लभ है। साफ-सुथरी छवि ही उनकी नेतृत्व क्षमता को विश्वसनीयता देती है और मतदाताओं में उनकी अपील की ताकत है। एक सफल प्रशासक का ट्रैक रिकॉर्ड ही उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे सफल दावेदार बनाता है। ये बात डीके शिवकुमार की मुख्यमंत्री राह का रोड़ा बन गई।
5. सिद्धारमैया का समुदाय
सिद्धारमैया कुरुबा समुदाय से हैं। कर्नाटक में लिंगायत और वोक्कालिगा के बाद कुरुबा तीसरा सबसे बड़ा समुदाय है। कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग में भी वे फिट बैठते हैं। अहिंदा के जरिए सिद्धारमैया ने अल्पसंख्यकों, ओबीसी और दलितों को कांग्रेस से जोड़ा है।
अहिंदा नेता के रूप में वो सामाजिक न्याय की बात करते हैं। ‘अहिंदा’ अल्पसंख्यकों, ओबीसी और दलितों को एकजुट करता है।
कर्नाटक में ओबीसी जनसंख्या 20% है। इसमें अकेले कुरुबा 7% हैं। मुस्लिम जनसंख्या 16%, एससी-एसटी जनसंख्या 25% से ज्यादा है। यानी अगर हम सिर्फ कुरुबा, एससी-एसटी और मुस्लिमों की बात करें तीनों समुदाय करीब 48% हैं।
सिद्धारमैया इन्हीं तीनों समुदायों की राजनीति करते हैं। इसी से कांग्रेस में उनका कद अभी सबसे बड़ा है। इस विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को इन तीनों समुदायों का पूरा साथ मिला है, जिससे वह 135 सीटें जीत सकी है।
ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सिद्धारमैया को किनारे करना कांग्रेस के लिए काफी मुश्किल भरा फैसला था।
6. सामाजिक योजनाओं की वजह से सिद्धारमैया का पीपल कनेक्ट
2013 में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते सिद्धारमैया।
सिद्धारमैया 13 मई 2013 को पहली बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने। अपने कार्यकाल में सिद्धारमैया ने कई कल्याणकारी योजनाएं लागू की…
अन्न भाग्य योजना: 10 जुलाई 2013 को अन्न भाग्य योजना लॉन्च की। इसमें बीपीएल परिवारों को एक रुपए की दर से अधिकतम 30 किलोग्राम चावल दिया जाता है। अगर किसी परिवार में एक व्यक्ति है तो उसे हर महीने 10 किलोग्राम चावल दिया जाएगा। वहीं परिवार में 2 व्यक्ति हैं तो उसे 20 किलोग्राम और 3 से ज्यादा व्यक्ति हैं तो हर महीने 30 किलोग्राम चावल दिया जाएगा।
क्षीर भाग्य योजना : 1 अगस्त 2013 को क्षीर भाग्य योजना शुरू की। इसमें सरकारी और एडेड स्कूलों में एक से दसवीं क्लास तक छात्रों को हफ्ते में तीन दिन 150 मिलीलीटर दूध दिया जाता है।
अनिला भाग्य योजना : 21 फरवरी 2018 को सिद्धारमैया सरकार ने अनिला भाग्य योजना लागू की। इसमें बीपीएल परिवार को फ्री में एलपीजी कनेक्शन दिया जाता है।
लैपटॉप भाग्य योजना : 2017-18 के बजट में सिद्धारमैया ने सभी कॉलेज छात्रों को फ्री लैपटॉप की घोषणा की थी।
इसके अलावा सिद्धारमैया ने भूख, शिक्षा, महिला और नवजात मृत्यु दर से निपटने वाली योजनाओं में सभी जातियों और समुदायों के गरीबों को कवर कर अहिंदा के आधार पर उन्हें बढ़ाया।
मुख्यमंत्री रहते सभी बजट में महिलाओं को सशक्त बनाने को कुछ न कुछ किया है। जैसे ग्रेजुएट होने तक मुफ्त शिक्षा, कॉलेज छात्रों के लिए लैपटॉप, पंचायतों में महिलाओं का होना अनिवार्य और गर्भवती होने के बाद से 16 महीने तक महिलाओं को पौष्टिक भोजन।
यही वजह है कि लगभग सभी एग्जिट और ओपिनियन पोल ने सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री के लिए पहली पसन्द दिखाया है। ABP-सी वोटर के एग्जिट पोल में 40.1% लोगों ने उन्हें मुख्यमंत्री पद की पहली पसंद बताया। वहीं डीके शिवकुमार को सिर्फ 5% लोगों ने मुख्यमंत्री पद के लिए पहली पसंद बताया।