क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल ऑफ इंडिया देहरादून का कर्टेन रेज़र, तीसरे संस्करण को मंच तैयार 

क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल ऑफ इंडिया ने आयोजित किया कर्टेन रेज़र, तीसरे संस्करण को मंच तैयार 
एक समान न्याय- क्या यह आज भी पुरूषों के लिए दूर का सपना है?
क्या समाज में महिलाओं का पावर में होना एक सामान्य बात है या अभी भी इस दिशा में बहुत कुछ करना बाकी है?
इस तरह की बातचीत से दर्शकों और प्रवक्ताओं में जिज्ञासा एवं जानकारी का वातावरण बनता है।
नई दिल्ली, 29 नवम्बर, 2025: दून कल्चरल एंड लिटरेरी सोसाइटी ने आज क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल ऑफ इंडिया (सीएलएफआई) के तीसरे संस्करण की घोषणा को कर्टेन रेज़र कार्यक्रम आयोजित किया। यह अपराध, साहित्य, मीडिया एवं कानून प्रवर्तन के बीच अंतर को दूर करने की दिशा में शक्तिशाली पहल है। आज नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर ऑडिटोरियम में प्रतिष्ठित जनों में रोचक वार्ता हुई, जिन्होंने 12 से 14 दिसम्बर 2025 के बीच ह्यात सेंट्रिक, देहरादून में प्रस्तावित मुख्य कार्यक्रम पर प्रकाश डाला।
इस कार्यक्रम ने महोत्सव के लिए मंच तैयार किया। यहां आयोजित दो सत्रों में पुलिस, मीडिया, कानूनी सुधार एवं सामाजिक न्याय सहित विभिन्न क्षेत्रों से देश के दिग्गज इकट्ठा हुए।
पहला सत्रः मैडम सर- समाज की रूढ़ीवादी अवधारणाओं को तोड़ना
पहले सत्र में वर्दी में अग्रणी पुरूषों एवं महिलाओं ने विचार रखे, जिन्होंने पुलिस एवं प्रशासन की पारम्परिक बाधायें तोड़ी हैं। सत्र संचालक  पूर्व डीजीपी, जाने-माने लेखक और फेस्टिवल डायरेक्टर आलोक लाल   ने कहा कि अपराध को समझना मामले सुलझाने से कहीं बढ़कर है; इसके लिए लोगों, सिस्टम और समाज की समझ ज़रूरी है। क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया से, हम वास्तविक कहानियां सामने लाना चाहते हैं, ताकि लोग न सिर्फ  क्या हुआ, यह समझ सकें बल्कि यह क्यों हुआ और हमें इससे क्या सीखना चाहिए,भी जानें । यह फेस्टिवल वास्तविक अनुभवों एवं सामाजिक जागरुकता; दस्तावेजों एवं बदलाव, कानून लागू करने वालों और इसकी कहानियाँ सुनाने वालों के बीच पुल की तरह काम करेगा।’’

पुडुचैरी के पूर्व डीजी मनोज कुमार लाल ने अपराध एवं कानून प्रवर्तन में अपने अनुभव तथा साहित्यिक अन्वेषणों पर विचार रखे। उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों जैसे सोनम रघुवंशी मामला एवं अतुल सुभाष मामले पर अपने विचार बताये;  सीआरपीएफ के पूर्व डीजी और विशेष सचिव (गृह), एमएचए ए. पी. माहेश्वरी  ने अपराध प्रबन्धन एवं भीतरी सुधार में लीडरशिप और सुधारों पर चर्चा की; डीसीपी, ( ट्रैफिक), गुरूग्राम डॉक्टर राजेश मोहन ने शहरी नीतिगत चुनौतियों पर मौलिक परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत किया।

दूसरा सत्रः ­एक समान न्याय, क्या पुरूष पीछे छूट रहे हैं?
भारत में लिंग अपराध कानूनों की विवादित एवं बदलती स्थितियों पर चर्चा के दूसरे सत्र के संचालक उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी, खाकी फेस्टिवल के चेयरमैन और डीसीएलएस प्रेज़िडेंट अशोक कुमार ने  कहा कि देश में लगातार बढ़ती अपराध दर  देखते हुए, समाज को जागरूक बनाने और इतिहास से सीखने को अलग-अलग तरह के साहित्य को बढ़ावा देने की ज़रूरत है। इसके अलावा, किसी भी मामले को समझदारी से सुलझाने में अधिकारियों का योगदान सराहा जाना चाहिए। क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल ऑफ इंडिया के साथ, हम ऐसा प्लेटफॉर्म प्रस्तावित करते हैं, जो पुलिस बिरादरी के साथ-साथ जाने-माने कंटेंट क्रिएटर्स को भी एक मंच पर लाएगा। इस मंच के प्रतिभागी साहित्य से न सिर्फ लोगों को जागरुक बनाएंगे बल्कि एंटरटेनमेंट सेक्टर में भी अपराध शैली को लेकर उत्सुकता बढ़ाएंगे। हमें विश्वास है कि तीसरे संस्करण में हिस्सा लेने वाले लेखक और फिल्म प्रोड्यूसर नए विचारों, उपलब्धियों, शिक्षा तथा रोमांचक किस्से साझा करेंगे।
वरिष्ठ पत्रकार और भारत में समाचार जगत की सबसे विश्वसनीय आवाज़ निधि कुलपति ने पत्रकारिता की दृष्टि से स्पष्ट विचार रखे; वृतचित्र फिल्मनिर्माता और पुरुषों के अधिकारों की पक्षधर दीपिका नारायण भारद्वाज ने लिंग संबंधी न्याय में दृष्टिविगत बातों पर ज़रूरी सवाल उठाए। दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर, देवेश श्रीवास्तव ने अपने दशकों के अनुभव के आधार पर कानून प्रवर्तन में संतुलन और सहानुभूति की आवश्यकता बताई; और सुप्रीम कोर्ट की वकील जूही अरोड़ा ने कई महत्वपूर्ण विषयों पर ज़रूरी जानकारी दी जैसे कानूनों का तात्पर्य कैसे निकाला जा सकता है, उनका गलत इस्तेमाल कैसे हो और उनमें सुधार कैसे हो सकता है।

दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर देवेश श्रीवास्तव ने कहा, “कानून लागू करने वाली एजेंसी को समाज के साथ बदलना होगा, उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि सहानुभूति और निष्पक्षता भी अनुशासन एवं कानून लागू करने की तरह ही ज़रूरी बनी रहे। हमारे सामने आने वाला हर मामला हमें याद दिलाता है कि अपराध अकेले नहीं होता; यह इंसान से जुड़ी वास्तविक कहानियों, संघर्षों और हालात से पैदा होता है। क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया जैसे प्लेटफ़ॉर्म ऐसी बातचीत प्रोत्साहित  करते हैं जो एक समान समाज के निर्माण को ज़रूरी है, जहाँ हर आवाज़ सुनी जाती है और हर सच की जांच बिना भेदभाव की जाती है।”

फिल्मनिर्माता और पुरुषों के अधिकारों की पक्षधर दीपिका नारायण भारद्वाज ने कहा कि देश में ज़्यादातर कानून महिला विरोधी  अपराधों से निपटने और महिलाओं को सशक्त बनाने को बनाए गए हैं। हालांकि, ऐसे मामले भी बढ़ रहे हैं जहां कुछ नियमों का गलत इस्तेमाल होता है और पुरुष इसके शिकार बनते हैं। ऐसे कई मामले हैं जहां पुरुष दोषी नहीं होते, फिर भी मौजूदा कानूनों के गलत इस्तेमाल या असंतुलन से उन्हें गंभीर नतीजे भुगतने पड़ते हैं, जिससे न्याय के बजाय दबदबे की भावना पैदा होती है। अब इस कमी को दूर करने और ऐसे सुधारों की दिशा में काम करने की आवश्यकता है जो पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए निष्पक्षता, जवाबदेही और सही मायने में एक समान न्याय सुनिश्चित करें,”

बिहार की पहली महिला आईपीएस अधिकारी और  लेखिका मिस मंजरी जरूहर ने अपनी यात्रा के शानदार किस्से सुनाए तथा सुरक्षा बलों में लिंग भेदभाव के प्रति संवेदनशीलता पर विचार रखते हुए कहा, कि “जब मैंने पहली बार अकेली महिला ऑफिसर के तौर पर यूनिफॉर्म पहनी, तो वातावरण स्वयं में चुनौतीपूर्ण था। कुछ अजीब पल थे, लोग अजीब तरह से घूरते थे, और उन लोगों में हैरानी थी जिन्होंने कभी किसी महिला को इस तरह चार्ज लेते नहीं देखा था। लेकिन समय के साथ, वो नज़रें सम्मान में बदली, और मुझे प्यार से ‘हंटरवाली’ कहा जाने लगा; और ऐसा लोग ज़बरदस्ती या गुस्से से नहीं, बल्कि निष्पक्ष और आत्मविश्वासी नेतृत्व के साहस के लिए कहते थे।
उन्होने अपनी मान्यता बताई कि व्यक्तिगत एवं पेशेवर, दोनों क्षेत्रों में सशक्त महिलाएं, अपनी हर भूमिका ज़िम्मेदारी और नैतिकता से निभाती हैं। यह यात्रा न सिर्फ मेरे लिए, बल्कि पुलिस में कार्यरत सभी महिलाओं की बड़ी कामयाबी रही है। आज, स्वीकार्यता है, कमांड पॉज़िशन पर बराबरी सामान्य है, और क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल जैसे प्लेटफ़ॉर्म इन ज़रूरी बदलावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद कर रहे हैं।”
कार्यक्रम में प्रायोजकों का आभार व्यक्त किया गया। एम3एम फाउंडेशन की ट्रस्टी डॉक्टर ऐश्वर्या महाजन को सुधार और संवाद को प्रेरित करने वाला प्लेटफॉर्म सक्षम बनाने में फाउंडेशन की समर्पित भूमिका को सम्मानित किया गया।

पिछले तीन सालों से, क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया ने न सिर्फ़ साहित्य क्षेत्र, बल्कि आज के भारत की नैतिक और कानूनी कहानी को आकार देने में भी कई बेंचमार्क स्थापित किए हैं। इस कर्टेन रेज़र ने साफ़ तौर पर उस मुख्य आयोजन की झलक प्रस्तुत की जिसकी सभी को अधीरता से प्रतीक्षा है ।ऐसी कहानियों का जश्न जो सिर्फ़ मनोरंजन ही नहीं करतीं, बल्कि समाज पर सवाल उठाती हैं, उसे चुनौती दे बड़े बदलाव लाती हैं।

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