ख़तरा: उप्र और असम के सीमांत जिलों में मुस्लिम आबादी बढ़ी 10 साल में 32%

नेपाल-बांग्लादेश बॉर्डर इलाकों में मुस्लिम आबादी 32% बढ़ी:खुफिया एजेंसियों ने इसे खतरनाक बताया, BSF का दायरा 100 किलोमीटर करने की सिफारिश
नई दिल्ली03अगस्त।उत्तर प्रदेश और असम में इंटरनेशनल बॉर्डर से लगते जिलों में पिछले सिर्फ 10 साल में अप्रत्याशित डेमोग्राफिक (जनसांख्यिक) बदलाव हुआ है। ग्राम पंचायतों के ताजा रिकॉर्ड के आधार पर उत्तर प्रदेश और असम की पुलिस ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को अलग-अलग रिपोर्ट भेजी हैं।

दोनों ही रिपोर्ट में कहा गया है कि बॉर्डर के साथ लगते जिलों में मुस्लिम आबादी 2011 के मुकाबले 32% तक बढ़ गई है, जबकि पूरे देश में यह बदलाव 10% से 15% के बीच है। यानी, मुस्लिम आबादी सामान्य से 20% ज्यादा बढ़ी है।

सुरक्षा एजेंसियों और राज्यों की पुलिस ने इस बदलाव को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से बेहद संवेदनशील माना है। इसलिए दोनों राज्यों ने सिफारिश की है कि BSF के अधिकार क्षेत्र का दायरा 50 किलोमीटर से बढ़ाकर 100 किलोमीटर किया जाए। यानी BSF को सीमा से 100 किलोमीटर पीछे तक जांच और तलाशी करने का अधिकार होगा।

डेमोग्राफिक बदलाव सिर्फ आबादी बढ़ने का मसला नहीं

केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि इतना ज्यादा डेमोग्राफिक बदलाव सिर्फ आबादी बढ़ने का मसला नहीं है। यह भारत में घुसपैठ का नया डिजाइन हो सकता है। इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए हमें अभी से पुख्ता तैयारी रखनी होगी। इसीलिए उत्तर और असम की सुरक्षा एजेंसियों ने BSF का दायरा बढ़ाने की सिफारिश की है।

अक्टूबर 2021 में जांच का दायरा बढ़कर 50 किलोमीटर हुआ गुजरात को छोड़कर अन्य सीमावर्ती राज्यों पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, असम, उत्तर प्रदेश और उत्तर-पूर्वी राज्यों में पहले BSF का अधिकार क्षेत्र 15 किलोमीटर के दायरे तक सीमित था। अक्टूबर 2021 में जांच का दायरा बढ़ाकर 50 किलोमीटर  कर दिया गया। कुछ राज्यों ने इस पर आपत्ति भी जताई थी। अब असम और उत्तर प्रदेश जांच का दायरा 100 किलोमीटर करने की मांग कर रहे हैं। सूत्र बता रहे हैं कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसे लेकर तैयारी भी शुरू कर दी है।

नेपाल की सीमा से लगते उत्तर प्रदेश के पांच जिलों पीलीभीत, खीरी, महराजगंज, बलरामपुर और बहराइच में मुस्लिमों की आबादी 2011 के राष्ट्रीय औसत अनुमान के मुकाबले 20% से ज्यादा अधिक बढ़ी है।
राज्यों की पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती अब यह पता लगाना है कि जो लोग पंचायतों के रिकॉर्ड में नए दर्ज हुए हैं, उनमें कितने वैध और कितने अवैध हैं। सुरक्षा एजेंसियों को यह भी संदेह है कि बाहर से आकर लोग बस गए हैं। इनके कागजात की जांच बेहद जटिल है।
उत्तर प्रदेश के 5 सीमावर्ती जिलों में 1000 से अधिक गांव बसे हुए हैं। इनमें से 116 गांवों में मुस्लिमों की आबादी अब 50% से ज्यादा हो चुकी है। कुल 303 गांवों ऐसे हैं, जहां मुस्लिमों की आबादी 30 से 50% के बीच है।
उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिलों में मस्जिदों और मदरसों की संख्या अप्रैल 2018 से लेकर मार्च 2022 तक 25% बढ़ी है। 2018 में सीमावर्ती जिलों में कुल 1,349 मस्जिदें और मदरसे थे, जो अब बढ़कर 1,688 हो गए हैं।
पुलिस रिपोर्ट में इस बात की ओर भी इशारा किया गया है कि सीमाई इलाकों में काफी समय से घुसपैठ जारी है। बाहर से आने वाले लोग ज्यादातर मुस्लिम हैं। समय-समय पर ऐसी खुफिया रिपोर्ट्स मिलती रही हैं।
बांग्लादेश से लगते असम के जिले धुवरी, करीमगंज, दक्षिण सलमारा और काछर में मुस्लिम आबादी 32% तक बढ़ी है। 2011 में हुई जनगणना के राष्ट्रीय औसत अनुमान के लिहाज से आबादी में बढ़ोतरी 12.5% और राज्य स्तरीय अनुमान के मुताबिक 13.5% होनी चाहिए थी।

नेपाल बॉर्डर से लगे 116 गॉंवों में मुस्लिम 50% के पार, 4 साल में 25% बढ़ गए मस्जिद-मदरसे: रिपोर्ट में दावा- घुसपैठियों की पहचान नहीं आसान

नेपाल से सटे इलाके, डेमोग्राफिक चेंज, मुस्लिम आबादी
नेपाल से सटे इलाकों में बढ़ी मुस्लिम आबादी (तस्वीर साभार: नेशनल हेराल्ड)

नेपाल की सीमा से लगते उत्तर प्रदेश के जिलों में मुस्लिमों की बढ़ती संख्या एक बार फिर चिंता का विषय बन गई है। एकदम से जनसंख्या में आए उछाल के पीछे पुलिस अंदाजा लगा रही है कि शायद यहाँ मुस्लिमों को बाहर से लाकर बसाया जा रहा है। आँकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश के 5 जिलों के 116 गाँवों में 50 प्रतिशत मुस्लिम बढ़ गए हैं। वहीं 4 साल में 25% मस्जिद-मदरसों में वृृद्धि देखी गयी है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के 5 जिले जिनकी जनसांख्यिकी में परिवर्तन हुआ, वह पीलीभीत, खीरी, महाराजगंज, बलरामपुर और बहराइच हैं। 2011 के राष्ट्रीय औसत अनुमान के मुकाबले यहाँ 20% ज्यादा मुस्लिम बढ़े हैं। इन पाँचों सीमावर्ती जिलों में 1000 से अधिक गाँव बसे हुए हैं। लेकिन उनमें भी 116 ऐसे छाँटे गए हैं जहाँ मुस्लिम आबादी 50 प्रतिशत तक बढ़ गई है जबकि 303 गाँव वो हैं जहाँ 30-50% का उछाल आया है।

इसके अलावा अप्रैल 2018 से लेकर मार्च 2022 तक में उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में मदरसों-मस्जिदों की संख्या भी 25% बढ़ी हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में सीमावर्ती जिलों में जहाँ कुल 1349 मस्जिदें और मदरसे थे, वो अब बढ़कर 1688 हो गए हैं।

बता दें कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने सीमा से जुड़े इस मामले को गंभीरता से लेते हुए अपनी रिपोर्ट बनाई और इसे गृह मंत्रालय के पास भेजा। उन्होंने घुसपैठ की आशंका जताते हुए कहा कि इन सीमावर्ती इलाकों में आने वाले ज्यादातर लोग मुस्लिम हैं और पुलिस के सामने चुनौती ये है कि वो ये चीज कैसे पता लगाए कि पंचायत के रिकॉर्ड में जो नए नाम दर्ज हुए हैं वो वैध है या अवैध। सुरक्षा एजेंसियाों को भी संदेह है कि इन इलाकों में लोग बाहर से ही आए हैं और इनके दस्तावेजों की जाँच बेहद मुश्किल है।

असम में भी खतरा

उत्तर प्रदेश  पुलिस को ही सीमावर्ती इलाकों में अचानक से मुस्लिमों की बढ़ती संख्या राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा नहीं लग रही, बल्कि असम में भी यही हाल है। असम के कुछ क्षेत्र बांग्लादेश से लगते हैं। ऐसे में देखा गया है कि धुवरी, करीमगंज, दक्षिण सलमारा और काछर जैसे इलाकों में मुस्लिमों की संख्या 32% बढ़ी है, जबकि 2011 की जनगणना के राष्ट्रीय औसत अनुमान के हिसाब से ये 12.5 और राज्य स्तरीय अनुमान के मुताबिक 13.5 होना चाहिए था।

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