बाघ बकरी चाय के मालिक पराग देसाई की मौत का कारण बने आवारा कुत्ते
Who Was Wagh Bakri Tea Group’s Executive Director Parag Desai Who Dies After Attack By Street Dogs
कंपनी को जमीं से आसमां तक पहुंचाया पर किस्मत का खेल देखिए… पढ़िए बाघ बकरी चाय के मालिक पराग देसाई की कहानी
पराग देसाई जब 1995 में वाघ बकरी ग्रुप का हिस्सा बने थे तो कंपनी का टर्नओवर 100 करोड़ रुपये का था। आज इस ग्रुप का टर्नओवर 2000 करोड़ रुपये है। कंपनी का कारोबार 24 राज्यों और दुनिया के 60 देशों में फैला है।
हाइलाइट्स
वाघ-बकरी टी ग्रुप की ईडी पराग देसाई का निधन
ग्रुप को आगे ले जाने में निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका
24 राज्यों और 60 देशों में फैला है इसका बिजनस
Parag Desai
पराग देसाई
नई दिल्ली 23 अक्टूबर: देश की प्रमुख चाय कंपनियों में से एक बाघ बकरी चाय के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पराग देसाई का निधन हो गया है। मीडिया खबरों के मुताबिक 49 साल के पराग पिछले हफ्ते अहमदाबाद में मॉर्निंग वॉक पर निकले थे। इस दौरान आवारा कुत्तों ने उन पर हमला कर दिया। खुद को बचाने में वह फिसलकर गिर गए और उन्हें ब्रेन हेमरेज हो गया था। उनका अहमदाबाद के एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था। देसाई वाघ बकरी ग्रुप में चौथी पीढ़ी के उद्यमी थे। ग्रुप को देश की टॉप तीन चाय कंपनियों में जगह दिलाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। 1995 में जब वह कंपनी में शामिल हुए तो इसकी वैल्यू करीब 100 करोड़ रुपये थी। आज कंपनी का बिजनस करीब 2,000 करोड़ रुपये का है। कंपनी का कारोबार देश के 24 राज्यों और दुनिया के 60 देशों में फैला है।
पराग देसाई वाघ बकरी टी ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर रसेश देसाई के बेटे थे। देसाई ने अमेरिका में न्यूयॉर्क की लॉन्ग आइलैंड यूनिवर्सिटी से से एमबीए किया था। उनका 30 साल से अधिक का कारोबारी अनुभव था। वह टी टेस्टर भी थे और वाघ बकरी ग्रुप के इंटरनेशनल बिजनस को भी देख रहे थे। पराग सीआईआई जैसे इंडस्ट्री प्लेटफॉर्म्स पर भी काफी सक्रिय थे। उन्होंने मार्केटिंग, ब्रांडिंग और पैकेजिंग के लिए कई सफल स्ट्रैटजी बनाई थी जिसके लिए उन्हें अहमदाबाद मैनेजमेंट एसोसिएशन ने सम्मानित भी किया था। पराग ने ग्रुप का कायाकल्प करते हुए इस नए जमाने के अनुरूप बनाया। इनमें टी लाउंजेज, ई-कॉमर्स और डिजिटल तथा सोशल मीडिया इनिशिएटिव शामिल हैं।
1892 में हुई दक्षिण अफ्रीका से शुरुआत
साल 1892 में नारणदास देसाई नाम के एंटरप्रेन्योर दक्षिण अफ्रीका में जाकर 500 एकड़ के चाय बागानों के मालिक बने। वहां उनका जुड़ाव महात्मा गांधी से हुआ। दक्षिण अफ्रीका में नारणदास देसाई ने 20 साल बिताए और चाय की खेती, प्रयोग, टेस्टिंग आदि सब किया। उस वक्त दक्षिण अफ्रीका भी भारत की ही तरह अंग्रेजों के अधीन था। नारणदास ने दक्षिण अफ्रीका में व्यवसाय के मानदंडों के साथ-साथ चाय की खेती और उत्पादन की पेचीदगियों को सीखा। लेकिन दक्षिण अफ्रीका में नारणदास देसाई नस्लीय भेदभाव के शिकार हो गए। पहले तो वह इस सबका मुकाबला और विरोध करते रहे लेकिन नस्लीय भेदभाव की घटनाएं बढ़ने पर नारणदास को दक्षिण अफ्रीका छोड़कर भारत लौटने पर मजबूर होना पड़ा।
वह कुछ कीमती सामान के साथ 1915 में भारत लौट आए। उनके साथ महात्मा गांधी का एक प्रमाण पत्र भी था, जो दक्षिण अफ्रीका में सबसे ईमानदार और अनुभवी चाय बागान के मालिक होने के लिए उन्हें गांधी की ओर से दिया गया था। भारत लौटने के बाद नारणदास ने दक्षिण अफ्रीका में हासिल किए गए चाय बिजनस के अनुभव और बारीकियों के साथ सन 1919 में अहमदाबाद में गुजरात चाय डिपो की स्थापना की। दो से तीन साल उन्हें अपनी चाय का नाम बनाने में लग गए। लेकिन फिर कारोबार ने रफ्तार पकड़ी और कुछ ही साल में वह गुजरात के सबसे बड़े चाय निर्माता बन गए।
लोगो का मतलब
वाघ बकरी चाय का लोगो एकता और सौहार्द का प्रतीक है। इस लोगो में दिखने वाला बाघ उच्च वर्ग और बकरी निम्न वर्ग के प्रतीक हैं। लोगो में दोनों को एकसाथ चाय पीते हुए दिखाना अपने आप में एक बड़ा सामाजिक संदेश है। सन 1934 में इस लोगो के साथ ‘गुजरात चाय डिपो’ ने ‘वाघ बकरी चाय’ ब्रांड लॉन्च किया। 1980 तक गुजरात टी डिपो ने थोक में और 7 खुदरा दुकानों के माध्यम से रिटेल में चाय बेचना जारी रखा। यह पहला ग्रुप था जिसने पैकेज्ड चाय की जरूरत को पहचाना। लिहाजा ग्रुप ने 1980 में गुजरात टी प्रोसेसर्स एंड पैकर्स लिमिटेड को लॉन्च किया।
साल 2003 तक वाघ बकरी ब्रांड गुजरात का सबसे बड़ा चाय ब्रांड बन चुका था। वाघ बकरी ग्रुप की मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटीज की क्षमता दो लाख किलो प्रतिदिन और सालाना पांच करोड़ किलो चाय के उत्पादन की है। देश ही नहीं विदेश में भी वाघ बकरी की चाय बिकती है। कंपनी की बिक्री का 90 प्रतिशत टीयर 2 और टीयर 3 शहरों से आता है। पूरे देश में वाघ बकरी टी लाउंज भी खुल चुके हैं। वाघ बकरी चाय के 30 लाउंज और कैफे हैं। वाघ बकरी टी ग्रुप आज वाघ बकरी, गुड मॉर्निंग, मिली और नवचेतन ब्रांड के तहत विभिन्न तरह की चाय की बिक्री करता है। कंपनी साथ ही आइस टी, ग्रीन टी, ऑर्गेनिक टी, दार्जिलिंग टी, टी बैग्स, फ्लेवर्ड टी बैग्स और इंस्टैंट प्रीमिक्स टी भी बेचती है।
Wagh Bakri Director Parag Desai Death Ahmedabad Hospital Denied Dog Bites In Official Statement
कुत्तों ने पराग देसाई को नहीं काटा… वाघ बकरी के मालिक की मौत पर गुजरात के अस्पताल ने जारी किया आधिकारिक बयान
लीडिंग टी ब्रांड वाघ बकरी के मालिक पराग देसाई की मौत से हर कोई हतप्रभ है। 50 साल की आयु में देसाई की मौत को लेकर अहमदाबाद के अस्पताल ने आधिकारिक तौर पर स्टेटमेंट जारी किया है। इसमें अस्पताल प्रशासन मौत की वजह के बारे में जानकारी दी है।
वाघ बकरी चाय के मालिक पराग देसाई।
बाघ बकरी चाय के मालिक पराग देसाई की मौत से हर कोई सकते में हैं। पराग देसाई की 22 अक्टूबर को देर शाम अहमदाबाद के एक अस्पताल में मौत हो गई थी। मीडिया रिपोर्ट में कहा गया था कि पराग देसाई पर कुत्तों ने हमला किया था। इसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनकी इलाज के दौरान ब्रेन हैमरेज से मौत हो गई। पराग देसाई की मौत पर अस्पताल प्रशासन ने बयान जारी किया है। इसमें कुत्तों के काटने की बात का खंडन किया है। अस्पताल प्रशासन ने कहा है कि पराग देसाई की शरीर पर कोई घाव और निशान नहीं थे।
hospital statement
शेल्बी हॉस्पिटल का बयान।
नहीं मिले थे कोई निशान
पराग देसाई अहमदाबाद के शेल्बी हॉस्पिटल (Shalby Hospitals) में भर्ती थे। अस्पताल के मुताबिक पराग देसाई को 6 बजे इमरजेंसी डिपार्टमेंट में दाखिल किया गया था। वे कुत्तों के पीछा करने के चलते फिसलकर गिर गए थे। अस्पताल में भर्ती किए जाने के बाद पराग देसाई का सीटी स्कैन किया गया था। उनके शरीर पर डॉग बाइट के निशान नहीं मिले थे।अस्पताल प्रशासन के अनुसार पराग देसाई को उनके परिवार की अनुमति से आईसीयू में भर्ती किया गया। इसके बाद उन्हें 72 घंटे ऑब्जर्वेशन में रखा गया था। Shelby ग्रुप के सीईओ निशिता शुक्ल के जारी ऑफिशल स्टेटमेंट में कुत्तों के काटने की बात से इनकार है। पराग देसाई के परिवार की ओर से अब तक कोई औपचारिक बयान नहीं आया है। उनके परिवार में उनकी पत्नी विदिशा और बेटी परीशा हैं।
क्या था पूरा मामला
15 अक्टूबर को पराग देसाई को फिसलकर गिरने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। शुरुआती जानकारी में सामने आया था कि देसाई के गिरने पर सुरक्षा गार्ड ने परिवार को घटना के बारे में सूचित किया। परिवार ने उन्हें पहले शैल्बी अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन बाद में सर्जरी को ज़ाइडस अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया। सात दिनों तक वेंटिलेटर पर रहने के बाद 22 अक्टूबर को कई स्वास्थ्य जटिलताओं से देसाई की मृत्यु हो गई थी। देसाई के फिसलकर गिरने के पीछे कुत्तों के हमले की बात सामने आई थी। यह घटना इस्कॉन अंबली रोड के पास सुबह हुई थी।