जनसांख्यिकी परिवर्तन पर कांग्रेस-भाजपा में ले-दे, संतों में चिंता

डेमोग्राफिक चेंज पर संतों ने जताई चिंता, कांग्रेस ने BJP को बताया जिम्मेदार, सरकार ने रखा पक्ष –

डेमोग्राफिक चेंज को लेकर मुख्यमंत्री धामी ने 4 सितंबर को पुलिस विभाग को वेरिफिकेशन ड्राइव चलाने के निर्देश दिए. अब इस मुद्दे ने राजनीतिक रूप ले लिया है. कांग्रेस ने इसके लिए भाजपा को जिम्मेदार बताया है. उधर संत समाज ने चिंता जाहिर की है.

Uttarakhand Demographic Change
उत्तराखंड में डेमोग्राफिक चेंज पर राजनीति

हरिद्वार 08 सितंबर 2024.उत्तराखंड में डेमोग्राफिक चेंज, धर्मांतरण समेत लव जिहाद जैसे मामलों को लेकर मुख्यमंत्री धामी काफी गंभीर हैं. मुख्यमंत्री धामी ने पुलिस को विशेष अभियान चलाने के आदेश भी जारी कर दिए हैं. जिस पर हर जिले की पुलिस जिलों में वेरिफिकेशन ड्राइव चला रही है. दूसरी तरफ इस मुद्दे पर राजनेता और संत भी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं. हालांकि, सरकार भी विषय पर अपना मजबूती से पक्ष रख रही है.

संतों ने जताई चिंता: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी का कहना है कि, डेमोग्राफिक चेंज एक गंभीर समस्या है. आज देश के 10 ऐसे राज्य हैं जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं. इसलिए देवभूमि उत्तराखंड में ऐसी स्थिति से बचने के लिए कठोर कानून बनाए जाने चाहिए. अखाड़ा अध्यक्ष ने चारधाम के आसपास हो रही बसावट को चिंताजनक बताया है.

कांग्रेस का आरोप: वहीं, इस विषय पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का कहना है कि, इस स्थिति के लिए जिम्मेदार केवल और केवल भाजपा है. भाजपा के नेताओं ने प्रदेश के अलग-अलग शहरों में नदी-नालों पर कब्जा किया हुआ है. उन्होंने उत्तराखंड सरकार द्वारा चलाई जा रही वेरिफिकेशन ड्राइव पर व्यंग्य कसा कि जब-जब धामी डरता है, तब-तब मुस्लिम-मुस्लिम करता है.

सरकार का पक्ष: डेमोग्राफिक चेंज और वेरिफिकेशन ड्राइव प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल का कहना है कि उत्तराखंड सरकार किसी भी हालत में प्रदेश में डेमोग्राफिक बदलाव नहीं होने देगी. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड सरकार के द्वारा धर्मांतरण कानून और यूसीसी विधेयक लाया है. वहीं पुलिस वेरीफिकेशन की बात भी भाजपा सरकार ही कर रही है.
उत्तराखंड डेमोग्राफी चेंज: जंगलों में मुस्लिम वन गुज्जरों की घुसपैठ, बेबस दिख रहा वन विभाग, अतिक्रमण पर भड़के सीएम धामी
उत्तराखंड के जंगलों में मुस्लिम संगठनों के द्वारा मुस्लिम वन गुज्जरों की घुसपैठ करवाई जा रही है, कांग्रेस शासनकाल में जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर में जंगलों में रहने वाले मुस्लिम वन गुज्जरों को स्थानीय नागरिक का दर्जा देते हुए इनके नाम वोटर लिस्ट में शामिल कर लिए गए हैं। जिसे लेकर स्थानीय जनजाति लोगो में गुस्सा भी है।

राज्य में जनसंख्या असंतुलन की खबरें इन दिनों सुर्खियों में हैं, छोटे-छोटे क्षेत्रों को लक्ष्य बनाकर मुस्लिम संगठन कैसे उत्तराखंड की डिमोग्राफी को चेंज करने में लगे हैं इसका उदाहरण राज्य की वन भूमि है जहां योजनाबद्ध तरीकों से मुस्लिम गुज्जर बसाए जा रहे है, फिर उनके बीच जाकर इस्लामिक मदरसे और मस्जिदे बनाई जा रही है। पहले ये माना जाता था कि वन गुज्जर मांस नहीं खाते और जंगल के रखवाले होते हैं, अपने दुधारू पशु चराने के लिए वन गुज्जरों को जंगल के अधिकार मिले हुए थे।

लेकिन इनके बीच मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों की सक्रियता को देखते हुए उन्हें जंगलों से बाहर लाकर बसाया गया और बदले में सरकार ने इनकी सुख सुविधाओं का ख्याल भी रखा, किंतु कुछ साल बीत जाने के बाद वन गुज्जर समूह के समूह जंगलों में घुसपैठ करने लगे हैं। खबर पुख्ता है कि उत्तराखंड में सत्तर फीसदी जंगल है जहां हजारों की संख्या में मुस्लिम वन गुज्जर अपनी घुसपैठ कर चुके हैं इनमें ज्यादातर अवैध कब्जे किए हुए है और ये कब्जे छोटे-छोटे नहीं बल्कि कई हेक्टेयर में किए जा चुके है और वन विभाग इन्हें खाली कराने के लिए मौन साधे बैठा हुआ है।

उत्तराखंड के उधम सिंह नगर और नैनीताल जिले के जंगलों में मुस्लिम गुज्जरों ने सैकड़ों हैक्टेयर सरकार की जंगल भूमि पर अतिक्रमण कर लिया है, कब्जाई गई जमीन पर मस्जिद मदरसे खोल दिए गए है, जिनकी अनुमति जिला प्रशासन से नहीं ली गई है। इन मस्जिद मदरसों में जमीयत से जुड़े मौलवी आकर उर्दू अरबी की तालीम दे रहे हैं। खास बात ये है कि पुलिस की खुफिया रिपोर्ट के आधार पर वन विभाग ने इस मामले में पिछले दिनों कागजी कार्यवाई भी की थी। उत्तराखंड के तराई क्षेत्र के तराई सेंट्रल, तराई पूर्वी और तराई पश्चिमी फॉरेस्ट डिविजन के घने जंगलों में मुस्लिम गुज्जरों ने अवैध रूप से कब्जे कर हजारों हैक्टेयर सरकारी वन भूमि पर खेती करनी शुरू कर दी है, खास बात ये कि वन विभाग के अधिकारियों ने इस जानकारी कई महीनो तक छिपाए रखा? अब स्टेलाइट तस्वीरों ने उक्त अतिक्रमण की पोल खोल कर रख दी है।

तराई ही नहीं हरिद्वार, देहरादून, राजा जी पार्क, कालसी, चकराता त्यूनी, वन प्रभागों में भी वन मुस्लिम गुज्जरों के अवैध कब्जे सामने आए है। कुछ ऐसे वन गुज्जर गिरोह भी पकड़ में आए जो कि वन्यजीव शिकार में लिप्त है, टाइगर की खालें, हाथी दांत तस्करी में इनकी लिप्तता जाहिर हुई है।

पैरवी के लिए पत्राचार
अभी हाल ही में मुस्लिम वन गुज्जरों के लिए पैरवी करने वाली एक संस्था ने उत्तराखंड सरकार को एक पत्र लिख कर खटीमा क्षेत्र में तराई केंद्रीय वन प्रभाग के किलापुर रेंज और टांडा क्षेत्र में सत्तर मुस्लिम वन गुज्जर परिवारों को बसाने के लिए दबाव बनाना शुरू किया है। वन विभाग ने पिछले अनुभवों और मीडिया में आ रही खबरों के बाद से इन जंगल में जाने से रोका हुआ है। मुस्लिम गुज्जर ट्राइबल वेलफेयर सोसाइटी नाम की संस्था जंगलों में वन गुज्जरों के अवैध कब्जो की पैरवी के लिए पत्राचार कर रही है।

सरकार के पास रिपोर्ट
वन गुज्जरों को लेकर कुछ माह पहले खुफिया विभाग ने सरकार को एक रिपोर्ट दी थी, जिसमें वन भूमि पर अवैध कब्जे किए जाने की जानकारी के साथ-साथ अवैध रूप से बनी मस्जिद मजारों मदरसे और अन्य धार्मिक संस्थाओं का भी जिक्र किया गया था। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस पर इस सूचना को वन विभाग के उच्च अधिकारियों के सामने रखा तो उसके बाद वन महकमे में कुछ दिन तो हलचल हुई फिर मामला ठंडे बस्ते में चला गया, ऐसा माना गया कि सीएम धामी के निर्देशों को एक खास आईएफएस लॉबी कोई न कोई बहाना देकर टालती रही है।

वन मुस्लिम गुज्जरों के बीच सक्रिय है कट्टरपंथी
जानकारी के मुताबिक, घने जंगलों से मुस्लिम गुज्जरों को ऐसे ही नहीं कुछ साल पहले बाहर किया गया था इसके पीछे कुछ वजहें थीं। तर्क ये दिया जाता रहा है कि टाइगर रिजर्व , वाइल्ड लाइफ रिजर्व से मुस्लिम गुज्जरों को इसलिए बाहर किया गया कि जंगल का स्वाभाविक स्वरूप बना रहे और वन्य जीव को कोई जीवन जीने में कोई बाधा न हो। कहा ये जाता था कि वन मुस्लिम गुज्जर मांस नहीं खाते और जंगल के रख वाले होते हैं। किंतु समय के बदलाव के साथ-साथ वन मुस्लिम गुर्जरों का सामाजिक, आर्थिक जीवन भी बदल रहा है और यहां भी मुस्लिम कट्टरपंथ प्रवेश करने लगा और ईद पर कुर्बानी होने लगी और धीरे-धीरे ये लोग रिजर्व फॉरेस्ट के जंगल में अपने झाले खत्ते के आसपास खेती के लिए वन कर्मियों से मिलीभगत कर सरकारी वन भूमि को कब्जाने लगे।

यहां मस्जिदें बन गई और लाउडस्पीकर लगा कर पांच वक्त की नमाज पढ़ी जाने लगी है, बच्चों के लिए जमीयत के उलेमाओं ने यहां आकर कट्टपंथ के मदरसे खोल दिए है जहां हिंदी नही, बल्कि उर्दू अरबी पढ़ाई जा रही है। इन मदरसों मस्जिदों को बनाए जाने के लिए, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, जिला अधिकारी से अनुमति लेना आवश्यक है। जो कि नहीं ली गई है। ऐसे तीन मदरसे वन विभाग ने जाकर बंद करवाए है।

सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिकाओं पर सुनाए गए फैसलों के बाद वन विभाग ने और खास तौर पर राजा जी नेशनल पार्क, कॉर्बेट पार्क, वेस्टर्न सर्कल के रिजर्व फॉरेस्ट, से इन्हें जंगल से बाहर निकाल कर भूमि आबंटित कर एक तरफ बसा दिया। बताया जाता है कि इस भूमि आबंटन की प्रक्रिया के दौरान भी बंदर बांट हुई और बड़ी संख्या में यूपी से आए मुस्लिम गुज्जर भी यहां आकर बस गए।

ऐसा बताया गया कि जब 1983 में सर्वे हुआ था तब राजा जी पार्क में कुल 512 मुस्लिम गुज्जर और जब 1998 में सर्वे हुआ तो 1393 परिवार थे। जब कांग्रेस की विजय बहुगुणा सरकार में इन्हें जंगल से बाहर निकाल कर प्रत्येक परिवार को 0.87 हेक्टेयर (करीब एक हेक्टेयर) भूमि का आबंटन किया गया तो इनके संख्या 2500 से अधिक थी। सूत्रों के अनुसार, आबंटन से पूर्व मुस्लिम गुजारो में जमीयत ए उलेमा हिंद संगठन की घुसपैठ हो चुकी थी। एक मुस्लिम गुज्जर की तीन तीन बीवियां, विधवाओं के मुस्लिम निकाह, रिश्ते नातेदारी दिखा कर जमीनों पर अधिकार जता कर आबंटन करा लिए और सरकारी वन भूमि को एक जमीन जिहाद षडयंत्र में हथिया लिया जाने लगा है।

बताया जाता है कि अब बहुत बड़ी संख्या में मुस्लिम गुज्जरों ने अपनी जमीन के एक बड़े हिस्से को यूपी हरियाणा के मुस्लिम गुज्जरों को सौ सौ रुपए के स्टांप पेपर पर बेच डाला है। जमीन खुरबुर्द करने ये वन गुज्जर अपने जानवर लेकर पहाड़ों की तरफ पहले की तरह आने जाने लगे हैं क्योंकि इन्हें “माईग्रेट” होने और जंगलों में जानवर ले जाने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। वन गुज्जरों ने जौनसार बावर के त्यूनी इलाके में भी अब अपने स्थाई डेरे बना लिए हैं इन डेरों में जमीयत के लोगों का आना जाना है वहां मस्जिद मदरसे खुल गए हैं और इस्लामिक तालीम और गतिविधियां चल रही है। खुले मैदानों में नमाज अता की जाती है।

जौनसार बावर क्षेत्र में मतदाता सूची में दर्ज हुए नाम
जौनसार बावर के चकराता त्यूनी आदि क्षेत्रों में मुस्लिम गुज्जर विरोधी आंदोलन उठ खड़े हुए हैं और स्थानीय लोगों ने इनके मदरसे तोड़ डाले है। जानकारी के मुताबिक, मुस्लिम गुज्जरों के नाम स्थानीय मतदाता सूची में कांग्रेस नेताओ ने दर्ज करवा दिए है जिनकी संख्या हजारों में है और अब वो जौनसार बावर के जनजाति क्षेत्र का लाभ उठा कर नौकरियों में आरक्षण की मांग करने लगे है। तराई के जंगल में ऐसे कई मामले चिन्हित हुए है कि एक एक मुस्लिम गुज्जर परिवार पच्चास पच्चास हैक्टेयर जमीन पर कब्जा कर खेती कर रहा है, ये जंगल की जमीन कैसे वनाधिकारियों ने कब्जा होने दी ये एक गंभीर जांच का विषय है।

मुख्यमंत्री धामी का बयान
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ,कहते है कि अतिक्रमण हटाओ अभियान रुका नहीं है। हम उत्तराखंड में डेमोग्राफी चेंज के किसी भी षड्यंत्र को कामयाब नही होने देंगे। जंगल को इंसानी दखल से दूर करना होगा। किसी भी सरकारी जमीन पर अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

पछुवा देहरादून में मुस्लिम आबादी कैसे जमीनों पर कब्जा करने में हुई कामयाब, आखिर क्यों धामी सरकार को चलाने पड़े बुलडोजर

हिमाचल और उत्तर प्रदेश सीमा के बीच बसा हुआ पश्चिम देहरादून जिले का क्षेत्र जिसे पछुवा दून भी कहते हैं। यहां डेमोग्राफी चेंज की समस्या उत्तराखंड सरकार के लिए चिंता का विषय बन चुकी है। यूपी से आई मुस्लिम जनसंख्या ने यहां की सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से बसावट करती जा रही है, ग्राम सभा की जमीनों पर मुस्लिम आबादी को बसाने में स्थानीय मुस्लिम ग्राम प्रधानों, प्रधान पतियों की भूमिका सामने आई है।

बाहर से आई मुस्लिम आबादी ने पछुवा दून की नदी, नहरों के किनारे, वन विभाग की जमीनों पर अवैध रूप से कच्चे पक्के मकान खड़े कर लिए हैं और अब इनके आधार कार्ड, वोटर लिस्ट में नाम दर्ज किए जा रहे हैं और इनमें ग्राम प्रधानों और जिला पंचायत सदस्यों की भूमिका भी संदेह के घेरे में है।

पछुवा देहरादून के गांव के गांव जो कभी हिंदू बाहुल्य हुआ करते थे वो अब मुस्लिम बाहुल्य हो गए हैं। आबादी की घुसपैठ का ये खेल हरीश रावत कांग्रेस सरकार के समय शुरू हुआ जो अब तक बराबर चल रहा है। इन ग्रामों में मुस्लिम प्रधानों की हुकूमत चल रही है जो कभी भी मूल रूप से उत्तराखंड के निवासी थे ही नहीं।

उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, बंगाल, यहां तक की बंग्लादेशी, म्यामार के रोहिग्या मुस्लिम आबादी यहां पछुवा दून में आकर कैसे बसती चली गई ? ये बड़ा सवाल है।

देहरादून जिले में प्रेम नगर से हिमांचल पोंटा साहिब तक जाने वाली शिमला बाईपास, चकराता रोड के आसपास के इलाकों में देवभूमि उत्तराखंड का सामाजिक, आर्थिक धार्मिक स्वरूप बिगड़ चुका है। मुख्य मार्गों पर फड़ खोकों के कब्जे हैं और उनके पीछे अवैध रूप से आबादी बस चुकी है। सरकारी जमीनों पर सौ से ज्यादा मस्जिदों, मदरसों की ऊंची मीनारें दिखाई देती हैं।

आखिर ऐसा कैसे हुआ कि पिछले कुछ सालों में ये इलाका एकदम बदल गया और यहां हिंदू अल्पसंख्यक होते चले गए और मुस्लिम आबादी ने पूरे क्षेत्र को घेर लिया।

उत्तराखंड के क्या लचर भू-कानून की वजह से ऐसा हुआ ? ये सवाल भी उत्तर खोज रहा है।

जानकारी के अनुसार उत्तराखंड उत्तर प्रदेश की सीमा वाला ये क्षेत्र हिमाचल से लगता है, हिमाचल ने सख्त भू-कानून की वजह से कोई भी बाहरी व्यक्ति वहां जमीन नहीं खरीद सकता और न ही कब्जे कर सकता है। मुस्लिम आबादी वहां बाग बगीचे में कारोबार करने जाती है और अस्थाई रूप से रहती है और वापिस चली जाती है। किंतु उत्तराखंड में ऐसा नहीं है जिसका फायदा उठाते हुए बाहरी राज्यों के मुस्लिमों ने इस क्षेत्र में अपनी अवैध बसावट कर ली और जहां मौका मिला वहां जमीनों पर कब्जे कर लिए।
पहले कुछ मुस्लिम यहां हिंदू बाहुल्य गांवों में आकर बसे धीरे-धीरे वो अपने साथ अपने रिश्तेदार लाकर बसाने लगे फिर वो धन-बल और वोट बैंक के बलबूते ग्राम प्रधान बनते चले गए और उन्होंने ग्रामसभा की सरकारी जमीनों पर अपने और मुस्लिम रिश्तेदार लाकर बसाने शुरू कर दिये, ताकि उनका वोट बैंक और मजबूत होता जाए, यहीं मस्जिदें बनी और मदरसे खुलते चले गए। यानि सरकारी जमीनों को कब्जाने का षड्यंत्र रचा गया जो आज भी जारी है।

अवैध कब्जे करने का खेल सरकार की सिंचाई, पीडब्ल्यूडी, वन विभाग की जमीनों पर भी धन बल और वोट बैंक की राजनीति के दमखम पर आज भी चल रहा है और इसमें सत्ता पक्ष विपक्ष के नेताओ का संरक्षण भी मिलता रहा है।

राजनीति संरक्षण के पीछे बड़ी वजह यहां की नदियों में चल रहा वैध अवैध खनन है जहां हजारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है जो कि यहां के राजनीति से जुड़े नेताओ को धन बल की आपूर्ति करते है।

उत्तराखंड सरकार या शासन ग्राम सभाओं की जमीनो की जिस दिन गंभीरता से जांच करवा लेगी तो उसे मालूम चल जाएगा कि उसकी ग्राम सभाओं की जमीन आखिर कहां चली गई ? कहां ठिकाने लगा दी गई?

ढकरानी में शक्ति नहर किनारे अवैध कब्जे हुए, धामी सरकार ने दो चरणों में ये अतिक्रमण भी ध्वस्त किए और इसमें कई धार्मिक स्थल भी हटाएं। उत्तराखंड जल विद्युत निगम ने अपनी जमीन उन्हें तारबाड़ से सुरक्षित नहीं की, अब यहां उत्तराखंड सरकार को सोलर प्रोजेक्ट लगाने हैं, तो देहरादून जिला प्रशासन का बुल्डोजर गरजने लगा, यहां सात सौ से ज्यादा मकान ध्वस्त किए लेकिन यहां रहने वाली आबादी उत्तराखंड छोड़कर नहीं गई वो आसपास ही मुस्लिम नेताओं के संरक्षण में फिर से अवैध कब्जे कर रही है और इस बार वो पीडब्ल्यूडी, वन विभाग की जमीनों पर बस रही है।

इसी तरह सहसपुर, जीवनगढ़, तिमली, हसनपुर कल्याणपुर, केदाखाला, सरबा आदि ग्रामों की हालत है जहां ग्राम सभाओं की सरकारी जमीन पर मुस्लिम आबादी यहां के प्रधानों ने लाकर बसा दी है।

प्रधानों के फर्जी दस्तावेज

ऐसी चर्चा भी है कि ढकरानी और सहसपुर के ग्राम प्रधानों ने कथित रूप से अपने फर्जी दस्तावेजों के जरिए ही अपना कार्यकाल काट लिया और इनके मामले अदालती कार्रवाई में लटके हुए हैं। इन्हें किसका संरक्षण मिला ये सवाल भी उठने लाजमी है ?

दिल्ली और देवबंद से चलता है धार्मिक संरक्षण का खेल

जानकार बताते है कि सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से यहां हो रहा है और इसके पीछे राजनीतिक शक्तियां ही नही धार्मिक शक्तियां भी काम कर रहीं हैं। दिल्ली देवबंद की इस्लामिक संस्थाएं यहां पूरी तरह से मस्जिदों, मदरसों में सक्रिय हैं और जमात के जरिए यहां मुस्लिम समुदाय को संचालित किया जा रहा है। मुस्लिम सेवा संगठन और अन्य संगठनों के माध्यम से राजनीति, धार्मिक, ताकत को तेजी से बढ़ाया जा रहा है। ग्राम सभाओं पर इनका नियंत्रण हो चुका है आगे जिला पंचायत,फिर विधानसभा सीटों में इनका असर दिखाई देगा।

ऐसे ही नहीं यहां मुस्लिम राजनीतिक पार्टी या मुस्लिम यूनिवर्सिटी की आवाज पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान सुनाई दी थी। इसके पीछे बहुत बड़ी साजिश दिखलाई देती है।

वन विभाग के अधिकारी खामोश

पछुवा देहरादून में नदियों के किनारे अवैध रूप से बसाए गए लोगों को हटाने के आदेश कई बार मुख्यमंत्री कार्यालय से दिए गए, किंतु इसका असर क्षेत्र के डीएफओ, वन निगम के अधिकारियों में नहीं दिखाई दिया, कभी फोर्स न होने देने का बहाना तो कभी वीआईपी ड्यूटी के बहाने देकर ये अभियान ठंडे बस्ते में डाल दिए जाते हैं। विभागीय लापरवाही का आलम ये है कि अभी तक सरकारी विभागों ने इन अवैध कब्जेदारों को नोटिस तक जारी करने की जहमत नहीं उठाई।

हिंदू समुदाय पर हमले

इसी इलाके में राशिद पहलवान और उसके साथियों ने कांवड़ियों पर पथराव किया था, राशिद पर गैंगस्टर लगी और उसकी जमानत भी हो गई, जमानत होने के बाद जिस तरह से क्षेत्र में जुलूस निकाला गया। उसके पीछे मंशा, हिंदू समुदाय को अपना दबदबा दिखाने की थी। राशिद पहलवान, मुस्लिम सेवा संगठन का संयोजक है और यहां कथित रूप से अवैधखनन, सरकारी भूमि कब्जाने जैसे मामले में वो सक्रिय रहता आया है।

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