जनसांख्यिकी परिवर्तन चुनाव को बना रहा बेमतलब: धनकड़

There Should Be No Election In Certain Areas Due To Demographic Change Says Vice President Jagdeep Dhankhar

देश में जहां चुनाव की जरूरत ही नहीं… उपराष्ट्रपति धनकड़ के कथन का मर्म जान खुल जायेगी आंखें
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि कुछ क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय बदलाव से राजनीतिक दुर्ग बन गए हैं जहां चुनाव परिणाम पूर्व निर्धारित हो जाते हैं। जयपुर में चार्टर्ड अकाउंटेंट्स सम्मेलन में उन्होंने कहा कि यह चुनौती देश और दुनिया दोनों के लिए चिंताजनक है। हमें एकजुट होकर इससे निपटना होगा।

मुख्य बिंदु
1-उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कुछ क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय बदलावों पर जताई चिंता
2-धनखड़ ने कहा कि कुछ इलाकों में इतना हो चुका है जनसांख्यिकी बदलाव कि चुनाव हो गया बेमतलब
3-उन्होंने चेताया कि अगर इस चुनौती से व्यवस्थित तरीके से नहीं निपटा गया तो अस्तित्व का खतरा हो जाएगा
Jagdeep Dhankar on Demographic Change.

नई दिल्ली 16 अक्टूबर 2024: दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है भारत लेकिन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ देश के कुछ खास इलाकों में चुनाव और लोकतंत्र को ही बेमतलब बता रहे हैं। कह रहे हैं कि उन इलाकों में चुनाव कराना ही नहीं चाहिए क्योंकि उसका कोई मतलब ही नहीं है। उपराष्ट्रपति की इन बातों में खीझ है, चिंता है। चुनौती को लेकर चेतावनी है। चिंता डेमोग्राफी में नाटकीय बदलाव को लेकर। खीझ है राजनीतिक स्वार्थों के तहत डेमोग्राफिक चेंज को होने देने को लेकर। चेतावनी है चुनौती को लेकर।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को जयपुर में चार्टर्ड अकाउंटेंट्स के एक सम्मेलन में कहा कि देश के कुछ क्षेत्रों में डेमोग्राफिक चेंज यानी जनसांख्यिकीय बदलाव इतना ज्यादा हो गया है कि वे ‘राजनीतिक किले’ बन गए हैं। वहां चुनाव चुनाव और लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रह गया है क्योंकि परिणाम पहले से तय होते हैं।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि दुनिया में जनसांख्यिकीय परिवर्तन एक चुनौती बनता जा रहा है। उन्होंने आगे कहा, ‘अगर इस बेहद चिंताजनक चुनौती से व्यवस्थित तरीके से निपटा नहीं किया गया, तो यह एक अस्तित्वगत चुनौती बन जाएगी। ऐसा दुनिया में हो चुका है। मुझे उन देशों के नाम लेने की जरूरत नहीं है जिन्होंने इस जनसांख्यिकीय विकार, जनसांख्यिकीय भूकंप के कारण अपनी पहचान 100% खो दी है।’

जगदीप धनखड़ ने कहा, ‘जनसांख्यिकीय विकार, परमाणु बम से कम गंभीर परिणाम नहीं देता है।’

देशों का नाम लिए बिना, उन्होंने कहा कि कुछ विकसित देश ऐसे हैं जो ‘इसकी गर्मी महसूस कर रहे हैं’। धनखड़ ने कहा, ‘हमारी संस्कृति को देखिए, हमारी समावेशिता और विविधता में एकता, सकारात्मक सामाजिक व्यवस्था के पहलू हैं। बहुत सुखदायक। हम सभी के लिए खुले हाथों से स्वागत करते हैं और हो क्या रहा है? इसे इन जनसांख्यिकीय अव्यवस्थाओं, जाति के आधार पर दुर्भावनापूर्ण विभाजन और इसी तरह की अन्य चीजों से हिलाया जा रहा है और गंभीर रूप से समझौता किया जा रहा है।’

अगर इस बेहद चिंताजनक चुनौती से व्यवस्थित तरीके से निपटा नहीं किया गया, तो यह एक अस्तित्वगत चुनौती बन जाएगी। ऐसा दुनिया में हो चुका है। मुझे उन देशों के नाम लेने की जरूरत नहीं है जिन्होंने इस जनसांख्यिकीय विकार, जनसांख्यिकीय भूकंप के कारण अपनी पहचान 100% खो दी है।
डेमोग्राफिक चेंज की चुनौती पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

किसी विशेष राज्य या क्षेत्र का जिक्र किए बिना उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘कुछ क्षेत्रों में जब चुनाव आते हैं तो जनसांख्यिकीय अव्यवस्था लोकतंत्र में राजनीतिक अभेद्यता का गढ़ बनते जा रहे हैं। हमने देश में यह बदलाव देखा है। जनसांख्यिकीय बदलाव इतना ज्यादा है कि वह क्षेत्र एक राजनीतिक गढ़ बन जाता है। लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रह जाता, चुनाव का कोई मतलब नहीं रह जाता। कौन चुना जाएगा यह एक पूर्व निष्कर्ष बन जाता है और दुर्भाग्य से हमारे देश में ये क्षेत्र बढ़ रहे हैं।’

धनखड़ ने देश में सामाजिक सामंजस्य को निशाना बनाने वाले नैरेटिव और प्रयासों के प्रति भी आगाह किया। उन्होंने कहा, ‘इसलिए, हम सभी को एक ऐसे एकजुट समाज के निर्माण के लिए जुनून और मिशनरी मोड में काम करना होगा जो राष्ट्रवादी सोच रखता हो और जाति, पंथ, रंग, संस्कृति, आस्था और व्यंजनों के गुटों से ग्रस्त न हो…।’

उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘हम बहुसंख्यक होने के नाते सर्व-समावेशी हैं, हम बहुसंख्यक होने के नाते सहिष्णु हैं, हम बहुसंख्यक होने के नाते एक खुशनुमा इकोसिस्टम बनाते हैं। दूसरी तरफ दीवार पर लिखी इबारत है एक ऐसे बहुमत की जो क्रूर, निर्दयी और अपने कामकाज में लापरवाह है। जो सभी मूल्य रौंदने में विश्वास करता है।’
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उपराष्ट्रपति धनखड़ और डेमोग्राफी बदलाव
देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने देश में हो रहे डेमोग्राफिक बदलावों को लेकर बड़ी बात कही है। उन्होंने मंगलवार (15 अक्टूबर 2024) को कहा कि देश के कुछ इलाकों में जनसांख्यिकीय बदलाव हुआ है और अब राजनीतिक किला बन गए हैं। उन्होंने कहा कि इन जगहों पर चुनाव और लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रह गया है, क्योंकि वहाँ परिणाम पहले से तय हैं।

राजस्थान की राजधानी जयपुर में चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि जनसांख्यिकीय परिवर्तन दुनिया में एक चुनौती बन रहा है। उन्होंने कहा कि देश के कुछ क्षेत्रों में जनसांख्यिकी परिवर्तन बहुत अधिक हुआ है। उन्होंने कहा, ऐसे क्षेत्रों में चुनाव का कोई मतलब ही नहीं रह जाता। कौन चुनेगा यह तो तय बात हो गई है।”

उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे क्षेत्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है और एक इस खतरे को देशवासियों को महसूस करना चाहिए। धनखड़ ने कहा, “हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के प्रति ऋणी हैं। यह सभ्यता जिसमें 5000 साल का लोकाचार है, इसका सार है, इसकी महानता है, इसकी आध्यात्मिकता है, इसकी धार्मिकता है, उसे हमारी आँखों के सामने नष्ट नहीं होने दिया जा सकता।”

धनखड़ ने हिंदू बहुलता को लेकर कहा, “हम बहुसंख्यक के रूप में सभी को गले लगाने वाले, सहिष्णु और एक सुखदायक पारिस्थितिकी तंत्र बनाते हैं।” डेमोग्राफी बदलाव के बाद मुस्लिमों की बढ़ती की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, “दूसरी तरह का बहुसंख्यक अपने कामकाज में क्रूर, निर्दयी और लापरवाह है, जो दूसरे पक्ष के सभी मूल्यों को रौंदने में विश्वास करता है। यह चिंताजनक है।”

उन्होंने आगे कहा, “हम सभी को जुनून के साथ, एक मिशनरी मोड में काम करना होगा। हमें एक संगठित समाज का निर्माण करना होगा, जो आवश्यक शर्तों पर सोचता हो। जो जाति, पंथ, रंग, संस्कृति, विश्वास और खान-पान के आधार पर गुटों से विभाजित न हो। हमारी साझा संस्कृति पर कुठाराघात हो रहा है। उसको हमारी कमजोरी बताने का प्रयास हो रहा है।”

उपराष्ट्रपति ने कहा, “उसके तहत देश को ध्वंस करने की योजना बनी हुई है। ऐसी ताकतों पर वैचारिक और मानसिक प्रतिघात होना चाहिए। हमें संकीर्ण विभाजनों को पीछे छोड़ना होगा। राष्ट्रवादी दृष्टिकोण वाले नागरिक को विविधता अपनाने में कोई कठिनाई नहीं होगी। वह अपनी आस्था की परवाह किए बिना इस देश के गौरवशाली अतीत का जश्न मनाता है, क्योंकि वह हमारी साझा सांस्कृतिक विरासत है।”

आने वाले खतरे को लेकर आगाह करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आगे कहा, “भारत की सभ्यतागत प्रकृति को विभाजनकारी खतरों से बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। स्थिर और समृद्ध राष्ट्र सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक एकता को संरक्षित किया जाना चाहिए।”

धनखड़ ने कहा, “जैविक, प्राकृतिक, जनसांख्यिकीय परिवर्तन कभी भी परेशान करने वाला नहीं होता है। लेकिन, किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए रणनीतिक तरीके से किया गया जनसांख्यिकीय परिवर्तन भयावह दृश्य प्रस्तुत करता है। यदि इससे व्यवस्थित तरीके से नहीं निपटा गया तो यह अस्तित्व के लिए चुनौती बन जाएगा। दुनिया में ऐसा पहले भी हो चुका है।”

उन्होंने कहा कि जनसांख्यिकीय बदलाव के परिणाम परमाणु बम से भी कम गंभीर नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इस जनसांख्यिकीय विकार, जनसांख्यिकीय भूकंप के कारण कई देशों ने अपनी पहचान खो दी है। भारत के लोगों को आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि कुछ राजनेताओं को अख़बार की हेडलाइन के लिए राष्ट्रीय हित का त्याग करने या कुछ छोटे-मोटे पक्षपातपूर्ण हितों की पूर्ति करने में कोई परेशानी नहीं होती।

बता दें कि डेमोग्राफी बदलाव भारत के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है। देश भर के शहरों और इलाकों में इस तरह के बदलाव दिख रहे हैं, जिसके कारण कई इलाकों में तो हिंदुओं को पलायन करने को भी मजबूर होना पड़ा है। झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश के कई इलाके इससे गंभीर रूप से पीड़ित हैं। इसके परिणाम भी अब दिखने लगे हैं।

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