धामी ने जोशीमठ भूधंसाव की अफसरों के साथ की समीक्षा
*मुख्यमंत्री ने जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव की उच्चाधिकारियों के साथ की समीक्षा।*
*सचिव आपदा प्रबंधन, आयुक्त गढ़वाल मण्डल और जिलाधिकारी से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से मुख्यमंत्री ने ली विस्तृत जानकारी।*
*भु-धंसाव से प्रभावित संकटग्रस्त परिवारों के पुनर्वास की वैकल्पिक व्यवस्था सुनिश्चित करने के दिये निर्देश।*
*सभी संबंधित विभागों को दिये टीम भावना के साथ कार्य करने के निर्देश।*
देहरादून 06 जनवरी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शुक्रवार को सचिवालय में जोशीमठ शहर के भू धसाव से प्रभावित संकटग्रस्त परिवारों के पुनर्वास की वैकल्पिक व्यवस्था एवं भूधंसाव के कारणों आदि के संबंध में उच्चाधिकारियों के साथ समीक्षा की। मुख्यमंत्री ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जोशीमठ की अध्यतन स्थित की सचिव आपदा प्रबंधन, आयुक्त गढ़वाल मण्डल और जिलाधिकारी चमोली से विस्तृत जानकारी प्राप्त की। उन्होंने भुधंसाव से प्रभावित संकटग्रस्त परिवारों के पुनर्वास की वैकल्पिक व्यवस्था सुनिश्चित करने के निर्देश अधिकारियों को दिये हैं।
उन्होंने कहा कि संकट की इस स्थिति में जानमाल की सुरक्षा एवं बचाव पर ध्यान देने की जरूरत है। ऐसे समय में लोगों की मदद करना हम सबका दायित्व एवं जिम्मेदारी है। मुख्यमंत्री ने इस स्थिति में लोगों में भरोसा बनाये रखने की भी बात कही। उन्होंने प्रभावित क्षेत्रों में रह रहे लोगों के पुनर्वास तथा उन्हें अन्यत्र शिफ्ट करने में भी तेजी लाये जाने को कहा। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम प्रभावितों को बेहतर से बेहतर क्या मदद कर सकते हैं इस पर ध्यान दिया जाए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसे समय में सबसे महत्वपूर्ण होता है लोगों में सरकार और प्रशासन का भरोसा बनाये रखना। इसमें धरातल पर काम करने वाले प्रशासनिक मशीनरी को संवेदनशीलता से काम करना होगा तथा स्थिति पर निगरानी बनाए रखनी होगी। इसके लिये हमें तात्कालिक तथा दीर्घकालीक कार्य योजना पर गंभीरता से कार्य करना होगा। तात्कालिक एक्शन प्लान के साथ ही दीर्घकालीन कार्यों में भी लंबी प्रक्रिया को समाप्त करते हुए डेंजर जोन के ट्रीटमेंट, सीवर तथा ड्रेनेज जैसे कार्य को जल्द से जल्द पूरा किया जाए, इसमें सरलीकरण तथा त्वरित कार्यवाही ही हमारा सबसे बड़ा मूलमंत्र होना चाहिए। जोशीमठ मामले पर जल्द से जल्द हमारी कार्ययोजना बिल्कुल तय होनी चाहिए। हमारे लिये नागरिकों का जीवन सबसे अमूल्य है।
मुख्यमंत्री ने सचिव आपदा प्रबंधन, आयुक्त गढ़वाल मण्डल और जिलाधिकारी से विस्तृत रिपोर्ट प्राप्त करते हुए निर्देश दिये कि चिकित्सा उपचार की सभी सुविधाओं की उपलब्धता रहे। जरूरी होने पर एयर लिफ्ट की सुविधा रहे, इसकी भी तैयारी हो।
मुख्यमंत्री ने निर्देश दिये कि तत्काल सुरक्षित स्थान पर अस्थायी पुनर्वास केंद्र बनाया जाए। जोशीमठ में सेक्टर और जोनल वार योजना बनाई जाए। तत्काल डेंजर जोन को खाली करवाया जाए और जोशीमठ में अविलंब आपदा कंट्रोल रूम स्थापित किया जाए। स्थाई पुनर्वास के लिए पीपलकोटी और गौचर सहित अन्य स्थानों पर सुरक्षित जगह तलाशी जाए। कम प्रभावित क्षेत्रों में भी तत्काल ड्रेनेज प्लान तैयार कर काम शुरू हो। सहायता शिविरों में सभी जरूरी सुविधाएं हों। जिलाधिकारी और प्रशासन स्थानीय लोगों से निरंतर सम्पर्क में रहें। सम्भावित डेंजर जोन भी चिन्हित कर लिये जाएं। समय पर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुचाना जरूरी है। इस संबंध में सैटेलाइट इमेज भी उपयोगी हो सकती हैं। सभी विभाग टीम भावना से काम करे तभी हम लोगों की बेहतर ढंग से मदद करने में सफल होंगे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जोशीमठ का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। यहां पर किये जाने वाले तात्कालिक महत्व के कार्यों को आपदा प्रबंधन नियमों के तहत सम्पादित करने की व्यवस्था बनायी जाय। ऐसे समय में लोगों की आजीविका भी प्रभावित न हो इसका भी ध्यान रखा जाय। लोगों की आपदा मद से जो भी मदद हो सकती है वह की जाय। उन्होंने प्रभावितों की मदद के लिये एसडीआरएफ तथा एनडीआरएफ की पर्याप्त व्यवस्था करने तथा आवश्यकता पड़ने पर हेली सेवा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के निर्देश दिये। मुख्यमंत्री ने निर्देश दिये कि मानसून से पहले जोशीमठ में सीवरेज ड्रेनेज आदि के कार्य पूर्ण कर लिये जाय।
सचिवालय में आयोजित बैठक में अपर मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी, पुलिस महानिदेशक श्री अशोक कुमार, सचिव श्री शैलेश बगौली, श्री सचिव कुर्वे, श्री दिलीप जावलकर, पुलिस महानिरीक्षक एसडीआरएफ सुश्री रिद्विम अग्रवाल आदि के साथ ही वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से आयुक्त गढ़वाल मण्डल श्री सुशील कुमार,सचिव आपदा प्रबंधन डॉ रंजीत सिन्हा जिलाधिकारी चमोली श्री हिमांशु खुराना सहित अन्य अधिकारी मौजूद थे।
उत्तराखंड के जोशीमठ में पिछले कुछ समय से लोग अपने घर छोड़कर रिश्तेदारों के यहां शरण ले रहे हैं. जो लोग ऐसा नहीं कर पा रहे हैं, वो अपने घरों के बाहर खुले आसमान तले सोने को मजबूर हैं.
स्थानीय लोगों में राज्य सरकार के प्रति गुस्सा इतना ज़्यादा है कि गुरुवार सुबह आम लोगों ने बद्रीनाथ राजमार्ग जाम कर दिया और शाम को जलती मशालों के साथ जुलूस निकालते नज़र आए.
लेकिन सवाल ये उठता है कि जोशीमठ में एकाएक क्या हुआ है जिसके चलते प्रशासन को लोगों को उनके घरों से कहीं और शिफ़्ट करना पड़ रहा है.
यही नहीं, राज्य सरकार को आपदा प्रबंधन बलों से किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहने को कहना पड़ा है।
कई परिवारों को हटाया गया
अंग्रेजी अख़बार द हिंदू ने इस मुद्दे पर प्रकाशित ख़बर में बताया है कि अब तक कुल 38 परिवारों को उनके घरों से रिहैब सेंटर भेज दिया गया है.
जोशीमठ के अतिरिक्त ज़िलाधिकारी अभिषेक त्रिपाठी ने द हिंदू को बताया है कि ‘गुरुवार को चार परिवारों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया है. इसके साथ ही सभी तरह की कंस्ट्रक्शन गतिविधियों को भी बंद कर दिया गया है.’
अभिषेक त्रिपाठी ने बताया है कि ‘अब तक प्रशासन की ओर से 38 परिवारों को उनके क्षतिग्रस्त घरों से निकालकर रिहैब सेंटर ले जाया गया है.’
ज़िला प्रशासन ने एनटीपीसी और हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी से कहा है कि वह दो हज़ार प्री-फ़ैब्रिकेटेड इमारतें बनाए जहां जोशीमठ के परिवारों को रखा जा सके.
प्रशासन से लेकर सरकार की ओर से ये क़दम इसलिए उठाए जा रहे हैं क्योंकि जोशीमठ शहर के ज़मीन में समाने का ख़तरा बढ़ता जा रहा है.
जोशीमठ शहर के कई घरों की दीवारों और इमारतों में दरारें लगातार मोटी होती जा रही हैं और ऐसा पिछले कुछ दिनों से लगातार हो रहा है.
लेकिन अब जो कुछ हुआ है, उसके बाद यहां रहने वालों की चिंताएं बढ़ गयी हैं क्योंकि पिछले कुछ समय में यहां की सड़कों में भी दरारें दिखने लगी हैं.
जोशीमठ नगर निगम के अध्यक्ष शैलेंद्र पंवार ने गुरुवार को बताया कि ‘स्थिति अब चिंताजनक हो गयी है क्योंकि ये दरारें हर घंटे बड़ी होती जा रही हैं.’
बिगड़ते हालात को ध्यान में रखते हुए जोशीमठ शहर में एनटीपीसी के तपोवन विष्णुगढ़ हाइड्रोपावर प्लांट पर काम रोक दिया गया है. इसके साथ ही हेलांग बाइपास रोड के काम को भी रोक दिया गया है. साथ ही एशिया के सबसे लंबे रोपवे ‘ऑली रोपवे’ के परिचालन को भी रोक दिया गया है.
जोशीमठ में सरकार के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों का आरोप है कि सरकार ने एनटीपीसी के ताबड़-तोड़ कंस्ट्रक्शन को लेकर उनकी चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया.
प्रदर्शनकारियों के सवाल
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती ने सवाल किया है, ‘सरकार ने अब कंस्ट्रक्शन का काम क्यों बंद कर दिया है जब हम ज़मीन में समाने की कगार पर हैं. लेकिन उन्होंने हम पर पहले ध्यान क्यों नहीं दिया.’
अतुल सती ने डाउन टू अर्थ के साथ बात करते हुए दावा किया है कि तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना के तहत बनायी गयी सुरंग ने ज़मीन को खोखला कर दिया है.
स्थानीय लोगों की चिंताएं तब और बढ़ गयीं जब उन्होंने जोशीमठ के मारवाड़ी वॉर्ड और वॉर्ड 2 की ज़मीन से कीचड़ बाहर आते देखा गया. लोगों को शक़ है कि ये कीचड़ पहाड़ पर बनाई जा रही सुरंग से रिसता हुआ आ रहा है.
इस क्षेत्र का अध्ययन करने वाले भूगर्भशास्त्री एसपी सती बताते हैं कि मारवाड़ी में जो पानी बाहर निकल रहा है, उसका मिलान तपोवन में धौलगंगा के पानी से होना चाहिए. ये वो जगह है जहां एनटीपीसी के तपोवन विष्णुगढ़ की सुरंग परियोजना शुरू होती है.
तपोवन जोशीमठ से 15 किलोमीटर दूर है और सुरंग जोशीमठ से पांच किलोमीटर दूर सेलंग में शुरू होती है.
पहले भी दरकती रही है ज़मीन
स्थानीय लोगों के अनुरोध पर एसपी सती ने अहमदाबाद स्थित फ़िज़िकल रिसर्च लेबोरेटरी से जुड़े नवीन जुयाल और शुभ्रा शर्मा के साथ मिलकर इस क्षेत्र में दरकती ज़मीन का अध्ययन किया है.
इन वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि जोशीमठ के आसपास के ढलान काफ़ी अस्थिर हो गए हैं.
सती बताते हैं कि साल 2013 में चिंताएं जताई गयी थीं कि हाइड्रोपावर परियोजना से जुड़ी सुरंगे उत्तराखंड में आपदा ला सकती हैं. उस साल ये प्रोजेक्ट रोक दिए गए थे.
जोशीमठ नगरपालिका ने बीते दिसंबर में कराए अपने सर्वे में पाया है कि इस तरह की आपदा से 2882 लोग प्रभावित हो सकते हैं. नगर पालिका अध्यक्ष शैलेंद्र पंवार ने बताया कि अब तक 550 मकान असुरक्षित पाए गए हैं, जिनमें से 150 मकान ऐसे हैं, जो कभी भी गिर सकते हैं.
यही नहीं, साल 2021 की सात फ़रवरी को चमोली में आई आपदा के बाद से पूरी नीति वैली में ज़मीन दरकने की ख़बरें आ रही हैं. साल 2021 में जून से अक्तूबर महीने में भारी बारिश के बाद चिपको आंदोलन की नायिका रही गौरा देवी के रैणीं गांव में भी ज़मीन दरकने की ख़बरें आई हैं.
इससे पहले साल 1970 में भी जोशीमठ में ज़मीन धंसने की घटनाएं सामने आई थीं.
इस प्राकृतिक आपदा के कारणों की जांच के लिए गढ़वाल कमिश्रर महेश मिश्रा की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी. इस समिति ने साल 1978 में आई अपनी रिपोर्ट में बताया था कि जोशीमठ, नीति और माना घाटी में बड़ी निर्माण परियोजनाओं को नहीं चलाना चाहिए क्योंकि ये क्षेत्र मोरेंस पर टिके हैं.
मोरेंस से आशय उन क्षेत्रों से है जो ग्लेशियर पिघल जाने के बाद पीछे छूट जाते हैं.