मत: राहुल पर विपक्ष एक, चुनाव तक रहेगी ये एकजुटता?
Rahul Gandhi Disqualification May Hurt Bjp More Know The Impact Indian Politics
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बड़ी खुश हैैं भाजपा, लेकिन क्या राहुल गांधी की सांसदी छिनना PM मोदी के लिए अशुभ है?
राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म होने से बीजेपी को चुनावों में नुकसान की आशंका भी सताने लगी है। वजह ये है कि कहीं इससे कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की लहर ने पैदा हो जाए। कांग्रेस इसमें कोई कोर कसर भी तो नहीं छोड़ेगी। इस मुद्दे ने विपक्ष को मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट होने का बड़ा हथियार भी दे दिया है।
हाइलाइट्स
राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद और गोलबंद हुआ विपक्ष
विपक्षी दल एक सुर में कर रहे हैं राहुल गांधी की सांसदी छिनने का विरोध
कांग्रेस इस मुद्दे पर अपने पक्ष में सहानुभूति की लहर पैदा करने की करेगी कोशिश
नई दिल्ली : मोदी सरनेम पर टिप्पणी को लेकर आपराधिक मानहानि के मामले में दोषी ठहराए जाने और 2 साल की सजा के एक दिन बाद राहुल गांधी की संसद सदस्यता भी खत्म हो गई है। लोकसभा सचिवालय ने शुक्रवार को इसका नोटिफिकेशन जारी करते हुए कहा कि वायनाड सांसद की सदस्यता अदालती फैसले के दिन यानी 23 मार्च से ही रद्द मानी जाएगी। उनकी संसद सदस्यता ऐसे वक्त गई है जब लोकसभा चुनाव में बमुश्किल सालभर का ही वक्त बचा है। सुप्रीम कोर्ट के 2013 में दिए एक ऐतिहासिक फैसले के मुताबिक 2 साल या उससे ज्यादा सजा पाए सांसद या विधायक की सदस्यता तत्काल प्रभाव से खत्म हो जाती है। लेकिन विपक्ष राहुल गांधी की सांसदी खत्म किए जाने को लोकतंत्र पर चोट और जनता की आवाज दबाने की केंद्र सरकार की कोशिश बता रहा है। आखिर, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष की संसद सदस्यता जाने का भारतीय राजनीति पर क्या असर पड़ेगा? अलग-अलग गुटों में बंटा विपक्ष इस मुद्दे पर गोलबंद दिख रहा है तो क्या ये मुद्दा बीजेपी के लिए राजनीतिक नुकसान का सबब बनेगा? आइए समझते हैं।
राहुल की सांसदी जाने के बाद और गोलबंद हुआ विपक्ष
विपक्षी दल पहले ही मोदी सरकार पर ईडी, सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाता रहा है कि इनके जरिए विपक्ष के नेताओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया जा रहा है। अब राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म होने के बाद विपक्षी दलों की केंद्र के खिलाफ गोलबंदी और मजबूत हो गई है। इससे पहले तक भ्रष्टाचार या किसी अन्य आरोप में किसी विपक्षी पार्टी के नेता पर कार्रवाई हो रही थी तब सभी विपक्षी दल एक सुर में उसकी निंदा नहीं कर रहे थे। मिसाल के तौर पर, अभी पिछले महीने ही जब दिल्ली के तत्कालीन डेप्युटी सीएम और आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी हुई तो कांग्रेस उस पर एक तरह की रणनीतिक चुप्पी साधे रखी। लालू यादव परिवार के खिलाफ ईडी और सीबीआई की कार्रवाई पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार सीधे-सीधे कुछ भी कहने से बचते हुए नजर आए। लेकिन राहुल गांधी की सदस्यता खत्म किए जाने पर कांग्रेस के अलावा दूसरी विपक्षी दल भी एक सुर में मोदी सरकार पर हमलावर हैं। उद्धव ठाकरे इसे लोकतंत्र की हत्या ठहरा रहे हैं तो ममता बनर्जी बीजेपी पर संवैधानिक लोकतंत्र को नए गर्त में ले जाने का आरोप लगा रही हैं। सबसे तल्ख तेवर तो आम आदमी पार्टी चीफ अरविंद केजरीवाल के हैं जिन्होंने दिल्ली विधानसभा में बोलते हुए कहा कि ’12वीं पास पीएम का अहंकार’ सातवें आसमान पर है। इस तरह, अलग-अलग मोर्चों, क्षेत्रीय समीकरणों की वजह से छिन्न-भिन्न दिख रही विपक्षी एकजुटता को लोकसभा चुनाव से पहले नई जान मिलती दिख रही है। राहुल गांधी के मामले ने सरकार के खिलाफ विपक्ष को एकजुट होने के लिए बड़ा मुद्दा थमा दिया है।
कांग्रेस को मिल सकता है सहानुभूति का लाभ
राहुल गांधी की संसद सदस्यता जाने से कांग्रेस को सहानुभूति का लाभ मिल सकता है। कांग्रेस भी इसे भुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी। अगर राहुल गांधी को अपील कोर्ट से राहत भी मिल जाए तब भी 2024 के चुनाव में उसके पक्ष में सहानुभूति की लहर देखने को मिल सकती है। इसका सबसे हालिया उदाहरण 2021 का पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव है। तब नंदीग्राम में लोगों से मिलने के दौरान ममता बनर्जी के पैरे में चोट लग गई थी। उसके बाद दीदी वील चेयर पर बैठकर प्लास्टर चढ़े पैर और ‘खेला होबे’ नारे के साथ प्रचार अभियान में उतरकर चुनावी फिजा ही बदल दी। टीएमसी न सिर्फ सत्ता बचाने में कामयाब हुई बल्कि बीजेपी को 2 अंकों में समेट दिया। चुनाव में ममता के पक्ष में कहीं न कहीं सहानुभूति फैक्टर काम किया। राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद कांग्रेस भी इस मुद्दे को ‘जन सहानुभूति’ का हथियार बनाने की कोशिश में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी।
कहीं बीजेपी की बढ़ न जाए मुश्किल?
राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म होने से बिखरा हुआ विपक्ष न सिर्फ मजबूती से मोदी सरकार के खिलाफ लामबंद दिख रहा है बल्कि ये मुद्दा कांग्रेस के पक्ष में जन सहानुभूति की लहर भी पैदा कर सकता है। अगर मौजूदा स्थिति देखें तो कानून के मुताबिक, राहुल गांधी 2024 का चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे और न ही वोट दे पाएंगे। लेकिन बीजेपी के लिए ‘ऐक्टिव राहुल गांधी’ से कहीं ज्यादा ‘चुनावी समर से दूर राहुल गांधी’ नुकसान पहुंचा सकते हैं क्योंकि अगर कांग्रेस के पक्ष में जन सहानुभूति पैदा हुई तो बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
काउंटर के लिए भाजपा ने खेला ओबीसी कार्ड
बीजेपी को भी पता है कि कांग्रेस इस मुद्दे पर जनता की सहानुभूति हासिल करने की हर मुमकिन कोशिश करेगी ही करेगी। इसीलिए उसने अभी से उसे कांउटर करने के लिए ‘ओबीसी कार्ड’ खेल दिया है। मोदी समुदाय ओबीसी का हिस्सा है लेकिन राहुल गांधी के बयान को समूची पिछड़ी जातियों का अपमान बता रही है। बीजेपी आरोप लगा रही है कि राहुल गांधी ने ओबीसी समुदाय का अपमान किया है। वह देशभर में अभियान चलाकर ये नैरेटिव बनाने की कोशिश कर रही है कि कांग्रेस नेता ने ओबीसी समुदाय का अपमान किया, जिसकी वजह से उन्हें सजा मिली। इसके लिए पार्टी ने अपने प्रभावशाली ओबीसी चेहरों, सांसदों, विधायकों को आगे करने की रणनीति अपनाई है।
फिलहाल तो विपक्ष एकजुट लेकिन चुनाव तक गोलबंद रहें, इसमें संदेह
राहुल गांधी के मुद्दे पर अभी जो विपक्षी एकजुटता दिख रही है, वह तात्कालिक ही है। राहुल गांधी मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा रहे हैं। सबसे बड़ी विपक्षी दल के नेता हैं। अब उनकी सांसदी जाने और अगले चुनाव में लड़ने पर संदेह के बादल मंडराने को वे गैरकांग्रेसी नेता जो खुद को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में देखते हैं, एक मौके के तौर पर लेने की कोशिश करेंगे। ममता बनर्जी, के चंद्रशेखर राव, नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल…फेहरिस्त लंबी है। 2024 आने तक गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेसी क्षत्रपों की प्रधानमंत्री पद की अभिलाषा और महत्वाकांक्षा शायद ही उन्हें एक छतरी के नीचे आने दे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो इसका संकेत अभी से दे चुके हैं। राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द होने के बाद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में मोदी सरकार पर जबरदस्त हमला बोला। प्रधानमंत्री मोदी को ‘अबतक का सबसे भ्रष्ट पीएम’ बताया जो ‘देश को तबाह’ कर रहे हैं। केजरीवाल ने विधानसभा में कहा कि ’12वीं पास पीएम’ का अहंकार सातवें आसमान पर है। प्रधानमंत्री मोदी पर सीधे और बेहद तल्ख हमलों के जरिए केजरीवाल खुद को 2024 में उनका मुख्य प्रतिद्वंद्वी और मजबूत विकल्प के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं।