पत्नी के चरित्र प्रमाणन को बच्चे का गुणसूत्र परीक्षण आवश्यक नहीं: सुप्रीम कोर्ट
Father Can Not Do Dna Test Of Child To Test Mother Infidelity Said Supreme Court
पत्नी की बेवफाई जांचने का पैमाना नहीं है बच्चे का DNA टेस्ट… पति की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
पत्नी की निष्ठा जांचने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
पति-पत्नी के एक मामले में पैटरनिटी टेस्ट की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। पति ने पत्नी की निष्ठा का पता लगाने के लिए बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने की मांग की थी। कोर्ट ने इस पर कहा कि निष्ठा जांचने के लिए बच्चे का डीएनए टेस्ट कोई पैमाना नहीं हो सकता। पति को इसके लिए कोई और उपाय करना होगा।
हाइलाइट्स
पत्नी की निष्ठा जांचने के लिए पति ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका
सुप्रीम कोर्ट से पति की बच्चे की डीएनए टेस्ट कराने की मांग
शीर्ष अदालत ने कहा- यह कोई पैमाना नहीं है
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नई दिल्ली 22 फरवरी: पति-पत्नी के बीच विवाद के बीच पति ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। पति ने पत्नी पर विश्वासघात का आरोप लगाकर शीर्ष अदालत से पितृत्व परीक्षण की मांग की है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पत्नी के पक्ष में ही फैसला सुनाया है। देश की शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह का शॉर्टकट नहीं अपनाना चाहिए। बच्चे की गुणसूत्र परीक्षण से उन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह ट्रेंड आजकल बढ़ रहा है जिसमें देखा जा रहा है कि पति-पत्नी में विश्वासघात का संदेह होने पर बच्चों की गुणसूत्र परीक्षण ( डीएनए टेस्टिंग) की बात होने लगती है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए कही यह बात
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और बीवी नागरत्ना ने कहा कि बच्चों को इस बात का पूरा अधिकार है कि वह अपने को वैध ठहराने के लिए अपनी निजता से समझौता न करें। कोर्ट ने आगे कहा कि बच्चा कोई वस्तु नहीं है जिसका गुणसूत्र परीक्षण करा लिया जाएगा। खासकर उस समय जब मामला तलाक का हो और वह इस मामले में पक्ष भी नहीं है। हाई कोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां तक बात है गुणसूत्र परीक्षण की तो इसके लिए हमें बच्चों की दृष्टि से सोचने की जरूरत है न कि मां-बाप की तरफ से। बच्चे यह सिद्ध करने का माध्यम बिल्कुल नहीं हो सकते कि उनके मां-बाप अवैध संबंध रखते थे। कोर्ट ने आगे कहा कि यह पति का काम है कि वह और किसी तरीके से पत्नी की विश्वासघात सिद्ध करे।
गुणसूत्र परीक्षण से बच्चे पर पड़ता है बुरा प्रभाव
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि किसी भी बच्चे का गुणसूत्र परीक्षण करने पर यह पता चल जाता है कि उसका पिता कोई ऐसा व्यक्ति है जिसे वह जानता भी नहीं है। इससे बच्चे पर मानसिक रूप से काफी दबाव पड़ता है। उसके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अबोध बच्चों को इस तरह से तनाव नहीं दिया जा सकता है। आपको बता दें कि पति-पत्नी की शादी साल 2005 में हुई थी। तीन साल बाद पहले बच्चे का जन्म हुआ था। इसके बाद दोनों में विवाद शुरू हो गए। पति ने गुस्से में आकर बच्चे का गुणसूत्र परीक्षण कराने की बात कही। पति को संदेह था कि उसकी पत्नी का किसी दूसरे व्यक्ति के साथ संबंध था। पति ने निजी स्तर से गुणसूत्र परीक्षण भी करवाया था जिसके बाद उसे पता चला कि वह बच्चे का जैविक पिता नहीं है।