पुण्य स्मृति: सावरकर, हेगडेवार व डॉ. अंबेडकर के सलाहकार और भौंसले मिलिट्री कालेज संस्थापक थे डॉ. मुंजे

*जय मातृभूमि ! जय मातृभूमि ! जय मातृभूमि !*

बच्चों में मानवीय मूल्यों के विकास, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* आज देश के स्वतन्त्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों एवं ज्ञात-अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके जयंती, पुण्यतिथि व बलिदान दिवस पर कोटिश: नमन करती है।🙏🙏

…………………………………………………………..
🌷🙏 *बालकृष्ण शिवराम मुंजे जी* 🙏🌷
……………………………………………………………

📝 मेरे राष्ट्रभक्त साथियों, पूरी संभावना है कि आपने बालकृष्ण शिवराम मुंजे का नाम नहीं सुना होगा। साथियों स्वतंत्रता उपरांत एक विशेष सोच में कुछ देशभक्तों, क्रांतिकारियों एवं स्वतंत्रता सेनानियों को स्वर्णिम इतिहास के पन्नों से दूर रखने का षडयंत्र चलता रहा है। बालकृष्ण शिवराम मुंजे का नाम भी ऐसे ही देशभक्तों की सूची में अंकित है। अगर एक वाक्य में बालकृष्ण शिवराम मुंजे का योगदान बताना हो तो बता दें कि पहले अंग्रेज़ जातियों के आधार पर सेना में भर्ती लेते थे और इस व्यवस्था को हटाकर सभी की भर्ती हो सके, ये व्यवस्था बालकृष्ण शिवराम मुंजे के प्रयासों से हो पाई थी। मातृभूमि सेवा संस्था आज उनके 73वीं पुण्यतिथि पर उन्हें शत शत नमन करती है तथा उनके देश के लिए दिए गए योगदान पर प्रकाश डालने का प्रयास करती है। बिलासपुर, छत्तीसगढ़ के एक ब्राह्मण परिवार में 12 दिसंबर, 1872 में जन्मे बालकृष्ण शिवराम मुंजे ने सन् 1898 में मुंबई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज से अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की थी। ये वो दौर था जब कांग्रेस में नर्म दल और गर्म दल अलग-अलग होने लगे थे। गर्म दल का नेतृत्व लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और बिपिनचंद्र पाल अर्थात लाल-बाल-पाल की तिकड़ी के हाथ में था। इस दौर तक दोनों कांग्रेसी धड़ों के बीच जूतेबाजी भी शुरू हो चुकी थी।

📝जब सन् 1907 में सूरत में कांग्रेस पार्टी का अधिवेशन हो रहा था तो दोनों हिस्सों के बीच कटुता बढ़ गईं। इस वक्त बालकृष्ण शिवराम मुंजे ने खुलकर तिलक का समर्थन किया और यही वजह रही कि तिलक के वो भविष्य में भी काफी करीबी रहे। पार्टी के लिए चंदा इकठ्ठा करने के कार्यक्रमों में वो तिलक के आदेश पर पूरे केन्द्रीय भारत में भ्रमण करते रहे। बाद में जब राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए लोकमान्य तिलक ने गणेश पूजा की शुरुआत की तो उसे भी बालकृष्ण शिवराम मुंजे का पूरा समर्थन मिला। पंडाल लगाने,मूर्ति बैठाने और उसे विसर्जित करने तक के कार्यक्रम के जरिए लोकमान्य तिलक ने जो व्यवस्था महाराष्ट्र में शुरू की थी, उसी को वो बाद में कोलकाता भी ले गए। कोलकाता के इस अभियान में लोकमान्य तिलक के साथ बालकृष्ण शिवराम मुंजे भी थे। आज जो आप कोलकाता के दुर्गा पूजा में विशाल पंडालों, मूर्तियों इत्यादि का आयोजन देखते हैं वो 1900 के शुरुआती दशकों में रखी गई थी। जैसा कि हर सौ वर्षों में होता ही है,शताब्दी का दूसरा दशक उस समय भी हिन्दुओं के पुनः जागरण का काल था। मोहनदास करमचंद गाँधी की ही तरह बोअर युद्ध के दौरान बालकृष्ण शिवराम मुंजे भी सन् 1899 में मेडिकल कॉर्प्स में थे। साइमन कमीशन के विरोध, रक्षा बजट का प्रावधान अलग करवाने और समाज सुधार के कार्यों में बालकृष्ण शिवराम मुंजे लगातार काम करते रहे। जब लोकमान्य तिलक का निधन हो गया तब वो सन् 1920 में कांग्रेस से अलग हो गए थे।

📝 बालकृष्ण शिवराम मुंजे की गाँधी की ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘अहिंसा’ जैसे विषयों पर घोर असहमति थी। आगे चलकर करीब 65 वर्ष की आयु में उन्होंने नासिक में भोंसला मिलिट्री अकादमी की स्थापना कर डाली। ये स्कूल आज भी जाने माने विद्यालयों में से एक है। उनके द्वारा स्थापित किए हुए कई संस्थान तो अब अपनी सौवीं वर्षगाँठ के आस-पास हैं और आश्चर्य की बात कि कोई भी बंद या सरकारी मदद माँगने वाली बुरी स्थिति में नहीं पहुँचा! कांग्रेस से दूरी बढ़ाने के वक्त भी उनकी हिन्दू महासभा से नजदीकी कम नहीं हुई। वो डॉक्टर हेडगेवार के राजनैतिक गुरु थे। उनकी प्रेरणा से ही डॉक्टर हेडगेवार ने सन् 1925 में आरएसएस की शुरुआत की थी। डॉक्टर बीएस मुंजे ने सन् 1927 में हिन्दू महासभा के प्रमुख का पदभार सँभाल लिया था और उन्होंने सन् 1937 में ये पद विनायक दामोदर सावरकर को दिया। सैन्य स्कूल स्थापित करने की प्रेरणा उन्हें अपनी इटली यात्रा से मिली थी,जहाँ सन् 1931 में वो मुसोलनी से भी मिले थे। कांग्रेस के घनघोर विरोध के बाद भी वो दो बार लंदन में गोलमेज़ सभाओं में भी सम्मिलित हुए थे। अपने पूरे जीवन वो यात्राएँ ही करते रहे। ऐसा भी नहीं है कि उनसे सलाह लेने और मानने वालों में केवल सावरकर और डॉक्टर हेडगेवार ही थे। जब डॉक्टर भीमराव राम आंबेडकर को धर्मपरिवर्तन करना था तो उन्होंने भी बालकृष्ण शिवराम मुंजे से सलाह ली और मानी थी। डॉक्टर आंबेडकर जी ने बालकृष्ण शिवराम मुंजे की सलाह मानते हुए बौद्ध धर्म अपनाया था।

*मातृभूमि सेवा संस्था आज काकोरी क्रांतिकारी घटना से संबंधित क्रांतिकारी रामकृष्ण खत्री एवं स्वतंत्रता सेनानी शंकर दयाल श्रीवास्तव की जयंती एवं स्वतंत्रता सेनानी फणींद्रनाथ बनर्जी की पुण्यतिथि पर उन्हें कोटिश: नमन करती है।*
🌷🌷🌷🌷🙏🙏🌷🌷🌷🌷

👉 लेख में त्रुटि हो तो अवश्य मार्गदर्शन करें।

✍️ राकेश कुमार
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477* 🇮🇳

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *