नहीं रहीं कोरोना वारियर डॉ. शारदा सुमन

लखनऊ के लोहिया अस्पताल में भर्ती डॉक्टर डॉक्टर शारदा सुमन और उनकी बच्ची
कोरोना: आठ महीने की गर्भवती होने के बाद भी ड्यूटी करने वाली कोरोना वॉरियर डॉक्टर शारदा चली गईं
अनंत यात्रा पर
लखनऊ की 31 वर्षीया डॉक्टर शारदा सुमन का कोरोना से लंबी लड़ाई के बाद हैदराबाद में चार सितम्बर को निधन हो गया.

उन्हें लखनऊ के लोहिया अस्पताल से लंग ट्रांसप्लांट को हैदराबाद के लिए के.आई.एम.एस अस्पताल एयरलिफ़्ट किया गया था.

लखनऊ के लोहिया अस्पताल के जच्चा-बच्चा विभाग में काम करने वाली रेज़िडेंट डॉक्टर शारदा अप्रैल महीने में जब कोरोना संक्रमित हुईं तो वह ख़ुद आठ महीने की गर्भवती थीं.

उनके साथ काम करने वाली नर्स-इंचार्ज सुनीता द्विवेदी अक्सर रोगियों की देखरेख में उनका हाथ बटातीं थीं. कोराना की दूसरी लहर में जच्चा-बच्चा विभाग भी इमरजेंसी की तरह काम करता रहा. चाहे आने वाली माताएं कोरोना पॉज़िटिव भी हों, लेकिन वहां प्रसव होता था और डॉक्टर और नर्स दोनों ही अक्सर कोरोना की चपेट में आते थे.

सुनीता द्विवेदी डॉक्टर शारदा को याद करते हुए कहती हैं, “हम सब कहते थे कि आप आठ महीने की गर्भवती हैं, इस हालत में काम मत करिए. पेशंट मत देखिए. वो कहती थीं कि बस जाने वाली हूँ छुट्टी पर. जाने ही वाली हूँ. और फिर वो पॉज़िटिव हो गईं और फिर कभी निकल ही नहीं पाईं”

सुनीता डॉक्टर शारदा को याद करते हुए कहती हैं, “वह बहुत अच्छी थीं, काम भी अच्छा था और मरीज़ की देखभाल दिल से करती थीं.”

उसी लेबर रूम में काम करने वाली डॉक्टर समीना बेगम से हमने मुलाक़ात की.

डॉक्टर शारदा, समीना से एक साल सीनियर थीं. उनके मुताबिक़ वो “बहुत ही सभ्य थीं और मेहनती थीं. यहाँ आने के पहले साल में ही उनकी मंगनी हुई थी. हमारे सामने ही उनकी शादी हुई थी.”

वह कहती हैं, “डॉक्टर शारदा आठ महीने की गर्भवती थीं लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में स्टाफ़ की कमी की वजह से उन्होंने काम करना सही समझा और लीव पर नहीं गईं. उन्हें कोरोना जैसी महामारी में अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास था.”

डॉक्टर समीना बेगम और दूसरे डॉक्टर के साथ तस्वीर में डॉक्टर शारदा सुमन

कैसे बिगड़ी डॉक्टर शारदा की हालत, और क्यों पड़ी लंग ट्रांसप्लांट की ज़रुरत

14 अप्रैल को डॉक्टर शारदा सुमन कोविड पॉज़िटिव हुईं. 18 अप्रैल को सांस की तकलीफ़ के बाद उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. ऑक्सीजन थेरेपी लगातार बढ़ानी पड़ी. 1 मई को बच्ची को बचाने के लिए और डॉक्टर शारदा को साँस लेने में राहत देने को सिजेरियन ऑपरेशन कर डिलीवरी हुई.

9 मई को डॉक्टर शारदा सुमन कोविड निगेटिव हुईं और उन्हें नॉन-कोविड आईसीयू में शिफ़्ट किया गया और वेंटिलेटर पर रखा गया. 20 मई को चेस्ट ट्यूब डाला गया लेकिन ऑक्सीजन की कमी बनी रही.

इसके बाद डॉक्टर शारदा को इक्मो मशीन पर रखा गया जो एक आर्टिफ़िशियल लंग का काम करती है और फेफड़ों और दिल पर दबाव को कम करके उन्हें रिकवर करने का मौक़ा देती है. इससे शरीर के दूसरे अंगों,जैसे दिमाग़,दिल, किडनी,लिवर को होने वाले नुक़सान को रोका जा सकता है.

डॉक्टर शारदा को 52 दिनों तक लगातार कोविड विशेषज्ञ और इंटेंसिव रोग विशेषज्ञ डॉक्टर पीके दास ने 24 घंटे ख़ुद अपनी निगरानी में रखा. इक्मो मशीन के ख़राब होने या कोई भी चूक से डॉक्टर शारदा की जान जा सकती थी इसलिए डॉक्टर दास ने खुद रात दिन निगरानी कर डॉक्टर शारदा को ज़िंदा रखा.

लेकिन इसके बावजूद फेफड़ों में सुधार न होने पर लंग ट्रांसप्लांट और उसके ख़र्च की जानकारी जुटाई गई.

हैदराबाद के निजी अस्पताल के.आई.एम.एस. में लंग ट्रांसप्लांट की सुविधा थी लेकिन उसका ख़र्च लगभग डेढ़ करोड़ आंका गया. लोहिया अस्पताल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मदद की गुहार लगाई और तुरंत कमेटी बना कर डॉ शारदा के इलाज के लिए डेढ़ करोड़ की राशि जारी की गई।

होश में थीं डॉक्टर शारदा,नन्हीं बच्ची बनी जीने का सहारा

अर्टिफ़िशियल लंग्स के सहारे जी रही डॉक्टर शारदा पूरी तरह से होश में थीं. उन्हें पता था कि उनके लंग ट्रांसप्लांट की तैयारियां हो रही है लेकिन उनकी भावनात्मक स्थिरता बनाये रखना भी ज़रूरी था.

समय-समय पर उनकी नवजात बेटी को उनके पास रखा गया ताकि एक नन्ही सी जान अपनी माँ का साहस बढ़ा कर उसके जीने का सहारा बन सके.

डॉक्टर समीना बेगम जिन्होंने दूसरे डॉक्टरों के साथ मिल कर डॉक्टर शारदा की बेटी की देखरेख की, कहती हैं, “बच्ची के स्वास्थ्य को लेकर भी वो चिंतित थीं क्योंकि उनकी बच्ची प्रीटर्म (समयपूर्व जन्मी) बेबी थी तो हम लोग भी पीडिऐट्रिक टीम के साथ उसे देख रहे थे. बच्ची अब ठीक है और उसका वज़न भी बढ़ा है.”

उनके तनाव को कम करने के कई दूसरे उपाय भी किये गए लेकिन ट्रैकियो-इसोफेगल-फिस्ट्युला (मतलब खाने और सांस की नली में एक दूसरे का दख़ल होने) के कारण भी लंग ट्रांसप्लांट करने में काफी मुश्किल हुई.

लगभग दो महीने तक लखनऊ में उनका इलाज करने वाले डॉक्टर पी के दास ने बताया, “हर दिन जब उनके पास जाते थे तो उसकी आखों में एक विश्वास लगता था कि डॉक्टर दास आएं हैं, वो मुझे बचा लेंगे. हम लोगों ने कोशिश भी की कि बचा सकें. वो भी काफ़ी हिम्मती थीं. उन्होंने बहुत सहन किया. मैंने कभी भी उन्हें टूटते नहीं देखा. वह बहुत समझदार थीं.”

डॉक्टर शारदा के पति डॉक्टर अजय दरभंगा मेडिकल कॉलेज में प्रैक्टिस करते हैं. उनसे बात करने कोशिश की तो वो बेहद परेशान थे. उन्होंने कहा, “क्या करूंगा बात करके? मेरी जान वापस तो आएगी नहीं ।

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