मत:डॉ. यादव से सपा-आरजेडी तो भजनलाल से कांग्रेस होगी बेचैन

विचार एवं विश्लेषण

राजनीति के हाशिये पर थे ब्राह्मण, सपा-आरजेडी के बाद भजनलाल ने बढ़ाया कांग्रेस का ब्लडप्रेशर
मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री एक यादव को बनाकर समाजवादी पार्टी और आरजेडी का ब्लड प्रेशर बढ़ाने वाली भाजपा ने अब कांग्रेस को चिंता में डाल दिया है. आजादी के बाद से ही कांग्रेस देश में ब्राह्मण -दलित और मुसलमानों के नाम पर राज करती रही है. देश की राजनीति में हाशिए पर पहुंच चुके ब्राह्मणों को भजनलाल की नियुक्ति से वास्तव में खुश होने का कारण मिल गया है।

भाजपा ने राजस्थान में ब्राह्मण भजनलाल शर्मा को मुख्‍यमंत्री बनाकर सवर्णों की राजनीति को साधा है.

नई दिल्ली,12 दिसंबर 2023 भाजपा में मोदी-शाह का युग चौंकाने वाले फैसलों के लिए जाना जाता है. राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में भजनलाल शर्मा का नाम प्रस्तावित करके भाजपा ने एक बार फिर सबको चौंका दिया है. आम तौर पर सारे राजनीतिक विश्वलेषकों का मत था कि भाजपा किसी महिला, ओबीसी या दलित को मुख्यमंत्री बनाकर राजनीतिक हित साधेगी. पर सारे गणित और आंकलनों को ताक पर रखकर एक कार्यकर्ता और लाइम लाइट से दूर रहने वाले भजनलाल शर्मा का नाम मुख्यमंत्री के लिए प्रस्तावित करके सबको चौंका दिया . भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाने में सबसे बड़ी चौंकाने वाली बात यह है कि उनकी जाति ब्राह्मण है. ब्राह्मण देश की राजनीति में हाशिए पर थे. एक ब्राह्रण को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने यह संदेश दे दिया है कि भाजपा उनकी ही पार्टी है. दरअसल जिस तरह यादव उत्तर प्रदेश-बिहार में समाजवादी पार्टी और आरजेडी के कोर वोटर्स हैं उसी तरह पूरे देश में कांग्रेस के कोर वोटर्स ब्राह्मण रहे हैं. मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री एक यादव को बनाकर समाजवादी पार्टी और आरजेडी का ब्लड प्रेशर बढ़ाने वाली भाजपा ने अब कांग्रेस को चिंता में डाल दिया है. आजादी के बाद से ही कांग्रेस देश में ब्राह्मण -दलित और मुसलमानों के नाम पर राज करती रही है. और एक बार फिर से ब्राह्मणों को भाजपा से अपने पाले में वापस लाने की कोशिश करती रही है।

क्यों ब्राह्मण को मुख्यमंत्री बनाना चौंकाने वाला फैसला है

राजस्थान की राजनीति में ब्राह्मणों की जनसंख्या 7 से 12 प्रतिशत के करीब  है. इस तरह उनकी जनसंख्या का अनुपात राजपूतों -जाटों के ही आसपास ही है. पर टिकट देने में कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही अन्य जातियों के मुकाबले ब्राह्मणों को कम टिकट दिये थे.कांग्रेस ने 16 टिकट तो भाजपा ने ब्राह्मणों को 20 टिकट दिए थे. जबकि भाजपा ने राजपूतों को 25 टिकट तो कांग्रेस ने 17 टिकट बांटे थे. भाजपा ने 33 जाटों को टिकट दिया तो कांग्रेस ने 36 टिकट दिया था. इस तरह देखा जाए तो न तो कांग्रेस और न ही भाजपा को ब्राह्मणों की कोई विशेष चिंता थी.

राजस्थान में हरिदेव जोशी के मुख्यमंत्री रहने तक ब्राह्मणों का वोट कांग्रेस को जाता था. पर रामजन्मभूमि आंदोलन के बाद से ब्राह्मणों का वोट बीजेपी को मिलने लगा. पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने इस जाति को हाशिए पर ही डालने का काम किया . दोनों पार्टियों में मुख्यमंत्री कैंडिडेट तो छोड़िए प्रदेश अध्यक्ष के नाम भी दस साल के रिकॉर्ड में एक या दो ही मिलेंगे. यही कारण था कि किसी को राजनीतिक विश्वेषक तो यकीन नहीं था कि पार्टी किसी ब्राह्मण को भी सीएम बना सकती है. हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान सीपी जोशी के साथ पीएम की गुफ्तगू से ऐसा एक बारगी लगा था कि सीपी जोशी भी सीएम बन सकते हैं. पर यही कहा गया कि किसी ब्राह्मण को शायद ही आलाकमान सीएम की कुर्सी सौंपे.

राजनीति के हाशिए पर आ गए थे ब्राह्मण

जबसे देश में मंडल की राजनीति प्रभावी हुई ब्राह्मणों की राजनीति खत्म होती गई. एक दौर ऐसा भी था कि ब्राह्मण ही सीएम होते थे , अगर सीएम नहीं बने तो उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाता था. आजादी के बाद अधिकतर राज्यों में कांग्रेस की सरकार रही और सीएम या प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण ही होते थे. पर जमाना ऐसा बदला कि कांग्रेस और बीजेपी जैसी सवर्णों की पार्टी कहे जाने वाले दलों में भी ओबीसी नेताओं का वर्चस्व हो गया. कांग्रेस जिसके कोर वोटर ब्राह्मण होते थे उसने भी इस जाति से किनारा कर लिया. हिमाचल प्रदेश को छोड़कर कांग्रेस शासित किसी भी प्रदेश में किसी महत्वपूर्ण पद पर ब्राह्मण को जगह नहीं मिली थी. कांग्रेस की राजनीति भी ओबीसी सेंट्रिक होती गई. यूपी में भी कांग्रेस लगातार पिछड़े और दलितों को ही अपना अध्यक्ष बना रही है. बहुत दिनों बाद अजय राय (भूमिहार ) को उत्तर प्रदेश इकाई की कमान मिली है. राजस्थान- छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में कहीं भी सरकार में ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं थे. यही हाल बीजेपी में भी ब्राह्मणों की हो गई थी. यूपी और आसपास के सभी बड़े राज्यों में दशकों से मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष पद पर ब्राह्मणों की जगह ओबीसी या अन्य जातियों की ताजपोशी होती है.केंद्र में भी पावरफुल मिनिस्टर्स में एक भी नाम ब्राह्रण मंत्रियों के नहीं है. ये तो रही बीजेपी और कांग्रेस की बात. इन दलों के इतर दलों जैसे आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी आदि में भी ब्राह्मण नेता हाशिए पर है।
सपा के बाद कांग्रेस की बढ़ी चिंता

यूपी और बिहार में ब्राह्मण राजनीतिक रूप से निर्णायक भूमिका में होते हैं. यूपी में कांग्रेस इस ताक में थी कि मुस्लिम वोटर्स का वोट मिल ही रहा है ब्राह्मणों पर फोकस करके यूपी में मजबूत हुआ जा सकेगा. तेलंगाना में जिस तरह मुस्लिम्स का वोट कांग्रेस में शिफ्ट हुआ है उससे इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता था कि ब्राह्मणों और मुसलमानों को लेकर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में मजबूत हो सकती थी. पर अब यह कांग्रेस के लिए सपना ही रह जाएगा.
दरअसल पूर्वी उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों में इस बात से बहुत नाराजगी थी कि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद ब्राह्मणों पर अत्याचार बढ़ा है. विकास दूबे एनकाउंटर के बाद राजपूत माफियाओं पर कार्रवाई न होने से भी नाराजगी थी. फिलहाल उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण अभी भाजपा के साथ ही थे पर उन्हें तोड़ने की सारी कोशिशें कांग्रेस और सपा की ओर से हो रही थीं. भाजपा ने राजस्थान का मुख्यमंत्री पद एक ब्राह्मण को देकर उत्तर भारत के ब्राह्मणों को यह संदेश दे दिया कि ब्राह्मणों की पार्टी वास्तव में भाजपा ही है. उत्तर प्रदेश में पहले डॉक्टर महेश शर्मा और फिर बृजेश पाठक और अब मध्यप्रदेश में राजेंद्र शुक्ला को उप मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद से सोशल मीडिया पर ब्राह्मणों पर व्यंग्य कसते हुए एक पोस्ट वायरल हो रही थी. इस पोस्ट में कहा जा रहा है कि उपमुख्यमंत्री का पद ब्राह्मणों के लिए ही बना है. इस पोस्ट में बृजेश पाठक और देवेंद्र फडनवीस तक के नाम उपमुख्यमंत्री के रूप में दिखाकर ब्राह्मणों को भाजपा के खिलाफ भड़काया जा रहा था. बहुत दिनों बाद देश के किसी बड़े राज्य का मुख्यमंत्री पद किसी ब्राह्मण को मिला है.निश्चित ही इसका संदेश दूर तक जाएगा.

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