उद्योगपतियों के चंदे से पार्टियां चलाने वाले कोसते हैं उन्ही को!
उद्योगपतियों के बारे में अनर्गल बातें कर राहुल गांधी कर रहे हैं कांग्रेस का नुक़सान
भारत के विकास की दृष्टि से यह बहुत गलत परम्परा पड़ रही है कि कुछ राजनैतिक दलों के नेता उन्हीं उद्योगपतियों को ‘गाली’ दे रहे हैं, जिनके सहारे देश तरक्की की उड़ान भर रहा है। उद्योगपतियों का ऐसा अनादर पहले कभी नहीं हुआ,जैसा पिछले कुछ वर्षों से देखने को मिल रहा है। बात अनादर तक ही नहीं है अब तो दो कदम आगे बढ़ते हुए इन दलों के नेता और कार्यकर्ता तोड़फोड़ पर भी उतर आए हैं। आखिर किसी को क्या हक है कि अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने को जियो मोबाइल के टॅावरों को नुकसान पहुंचाए। इससे भी दुखद यह है कि यह सब उस सरकार के इशारे पर हो रहा है जिस पर यह आरोप लग रहे हैं कि वह नये कृषि कानून की आड़ में किसानों को भड़का रही है। यदि किसान नये कानून से नाराज थे तो सिर्फ पंजाब में ही जियो के मोबाइल टॉवर क्यों तोड़े गए,अन्य राज्यों के किसान भी तो इसी तरह का उपद्रव कर सकते थे। ऐसा इसलिए नहीं हुआ क्योकि पंजाब की तरह उत्तर प्रदेश,बिहार,मध्य प्रदेश या अन्य राज्यों की सरकारों ने किसानों को भड़काने की बजाए समझाया। जियो के मोबाइल टॉवरों को किसानों ने नुकसान पहुंचाया है या फिर किसानों की आड़ लेकर उपद्रवियों ने तांडव किया था, यह तभी पता चलता जब पंजाब पुलिस ऐसे उपद्रवियों को पकड़ कर सख्ती से पूछताछ करती।
सबसे खेदजनक यह है कि जब कृषि कानूनों के सहारे किसानों की माली हालत में सुधार होने की बात तमाम अर्थशास्त्री और बुद्धिजीवी भी मान रहे हैं तो फिर राजनीतिक बिरादरी के कुछ लोग नकारात्मकता क्यों फैला रहे हैं? क्यों देश में उद्यमियों के खिलाफ माहौल बनाने में जुटे हैं? चुनाव के समय इन्हीं उद्योगतियों के सामने झोली फैला कर खड़ी नजर आने वाली कांग्रेस या फिर उसके जैसे तमाम दलों का यह दोगलापन समझ से परे है।
यह देखकर काफी दुख होता है कि जिस गांधी-वाड्रा परिवार पर तमाम घोटालों के आरोप लगे हैं और जो नेता भ्रष्टाचार के मामलों में जमानत पर बाहर हैं, वे उन कारोबारी घरानों को निशाना बना रहे हैं जिन्होंने उद्योग-धंधे लगाकर,देश में गरीबी दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अगर राहुल गांधी या उनके जैसे अन्य नेता अंबानी-अडानी या अन्य उद्योगपतियों का विरोध करने से पूर्व उनका इतिहास खंगाल लेते तो उन्हें यह समझ आ जाता है कि यह उद्योगपति अपनी मेहनत से इस मुकाम पर पहुंचे हैं, राहुल गांधी की तरह मुफ्त में मिली राजनीतिक जागीर की तरह इन उद्योगपतियों के पास मेहनत के अलावा कुछ नहीं था। इन उद्योगपतियों ने बड़ी मात्रा में राष्ट्र के लिए संपदा सृजन की है। राहुल के पास क्या है गिनाने के लिए? जब देश पर विपदा आती है तो वह विदेश चले जाते हैं। कौन भूल सकता है कि इसी कांग्रेस ने इन्हीं अंबानी और अडानी से चुनावी चंदा और यात्रा को चार्टर्ड विमान जैसी सुविधाएं तक बेहिचक ली हैं। साथ ही अंबानी और अडानी को अपने शासनकाल में विभिन्न उद्योगों के लाइसेंस व स्वीकृतियां भी दी हैं।
दरअसल, लाख टके का सवाल यही है कि यदि राहुल गांधी और कांग्रेस किसानों की मांगों का समर्थन करते है तो करें, लेकिन इसके लिए उन्हें उद्योगपति को व्यर्थ में गाली देने से बचना होगा। जहां राहुल ने कृषि कानूनों को ‘अंबानी अडानी कानून’ बताया वहीं कुछ प्रदर्शनकारियों ने उनके उत्पादों के बहिष्कार की मुहिम शुरू दी। राहुल को इस बात का भी जवाब देना होगा कि 2019 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में उन्होंने कृषि सुधार के लिए उठाये जाने वाले जिन कदमों की घोषणा अपने घोषणापत्र में की थी, वह क्या बेईमानी थी। राहुल और कांग्रेस कुछ उद्योगपतियों को विशेष तौर पर इसलिए भी निशाना बना रहे हैं क्योंकि इन उद्योगपतियों की पारिवारिक पृष्ठभूमि गुजराती है। राहुल गांधी ने पिछले कुछ जनादेशों को ठीक से समझा होता तो वह जानते कि भारतीय समाज अब जाति,भाषा और क्षेत्रीयता की बेड़ियों को तोड़कर आगे देख रहा है। इसीलिए अंबानी और अडानी आज युवाओं के रोल मॉडल हैं।
कांग्रेस को इतिहास से सबक लेना चाहिए। उसे नहीं भूलना चाहिए कि आज यदि वामपंथी और समाजवादी हासिए पर खिसकते जा रहे हैं तो इसकी बड़ी वजह यही है कि यह दल आम हिन्दुस्तानी की सोच के साथ अपनी सोच नहीं बैठा पाए। देश के विकास को जितना जरूरी यह है कि शिक्षा का प्रसार हो, विज्ञान तरक्की करे, स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हों, किसान की पैदावार और आमदनी बढ़े, उतना ही जरूरी यह भी है कि देश में उद्योग-धंधों का जाल बिछे, जीवनयापन की सुविधाओं में बढ़ोत्तरी हो। यह तभी हो संभव हो सकता था जब जनमानस वामपंथी और समाजवादी सोच वाले दलों को हासिए पर डाल देती। फिर कांग्रेस तो कई दशकों से विकास की बात उद्योग-धंधों के साथ किया करती थी। क्या राहुल गांधी अपने पूर्वजों की ही विचारधारा के खिलाफ चलेंगे?
राहुल गांधी को इधर-उधर की बात करने की बजाए इस बात को ध्यान में रखना होगा कि संपदा सृजन और उद्यमियों का सम्मान करने वाले समाज ही संपन्न बनते हैं। अमेरिका इसका जीवंत उदाहरण है जहां हेनरी फोर्ड से लेकर बिल गेट्स अमेरिकी समाज के हीरो रहे हैं। दूसरी ओर राहुल और उनके जैसी उद्योग विरोधी मानसिकता के लोग हमारे उद्यमियों को अपशब्द का पर्याय बनाकर हमें वापस उस समाजवादी खुमारी में वापस धकेलना चाहते हैं जिससे देश बड़ी मुश्किल से उबरा है। कांग्रेस के पास यदि मोदी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के कोई सबूत हैं तो उन्हें उसे पेश करना चाहिए। कांग्रेस का इतिहास ही कोयले से लेकर 2जी स्पेक्ट्रम की बंदरबांट तक से कलंकित है और नेशनल हेराल्ड की जांच तो गांधी परिवार तक पहुंच गई। ऐसे में जब राहुल ‘अंबानी-अडानी’ जैसे जुमले फेंकते हैं तो वह न सिर्फ भ्रम फैलाते हैं, बल्कि संप्रग के शासकीय अपराधों का ठीकरा भी मोदी शासन पर ही फोड़ते दिखते हैं। लेकिन आज की तारीख में जनता को राहुल पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस और राहुल गांधी उद्योगपतियों को उसी तरह से बदनाम कर देना चाहते हैं, जैसे कि आज की राजनीति बदनाम है।