संपादकीयम् : कहां गई ऊर्जा:ये थकी-थकी सी मोदी सरकार

भाजपा में पीएम की बार-बार झंड कौन करा रहा है?

CAA लागू होने में चार वर्ष लग गए। NRC पर अब चर्चा तक नहीं होती। कृषि कानून निलंबित चल रहे हैं, और किसान फरवरी से हरियाणा बॉर्डर पर बैठे हुए हैं। मध्यप्रदेश में मोदी अजित पवार के घोटालों की बात करते हैं, सुबह महाराष्ट्र में वही घोटालेबाज किसी मास्टरस्ट्रोक के तहत भाजपा समर्थित सरकार का अंग बन चुका होता है।

लैटरल एंट्री का एकमात्र लक्ष्य होता है: प्रतिभाशाली विशेषज्ञों को सरकार का अंग बनाना। इसमें आप आरक्षण घुसा ही नहीं सकते। यदि किसी भी आरक्षित वर्ग का ही व्यक्ति प्रतिभाशाली और विशेष ज्ञान रखने वाला है, तो उसे भी बिना आरक्षण के बैगेज के आने का अधिकार है।

लैटरल एंट्री की आवश्यकता ही इसलिए होती है क्योंकि पाली और इतिहास से स्नातक IAS अधिकारी हर तीन साल में विभाग बदलते रहते हैं। उनसे यह आशा रखना कि वो प्रशासन के अलावा किसी भी विषय के विशेषज्ञ होंगे (अपवाद को छोड़ कर), यह उनके साथ अन्याय ही है।

जल संरक्षण से ले कर नदियों की सफाई तक, बाल पोषण से ले कर उपग्रहों के प्रक्षेपण तक, आपको इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स चाहिए न कि सरकारी तंत्र से चुने हुए छिछले जानकार। हर राज्य सरकार में आपको ऐसे दर्जनों लोग मिलेंगे जो ऐसे कार्य करते हैं।

पीएम द्वारा इस घोषणा की वापसी, उनकी सरकार के पिछले कई निर्णयों की वापसी की शृंखला में एक और नाम है। पहले तो आप ऐसे निर्णय मत लीजिए जिस पर तन कर बोल नहीं सकते।

यदि लेते हैं, तो अपने मंत्रियों से यह मत लिखवाइए कि ये तो कॉन्ग्रेस ही करती थी, हम तो बस आगे बढ़ा रहे हैं। यदि वह मूर्खता भी हो जाए, तो कम से कम वह मत कीजिए जो विपक्ष अवैध रूप से आपसे कराना चाहता है- निर्णय की वापसी!

राहुल गाँधी या कॉन्ग्रेस पर सत्य बोलने का दवाब नहीं है। वो हर दिन आधिकारिक रूप से मिथ्या लिख और बोल रहे हैं। वो टैक्स पर आधी बात लिखते हैं, आपके निर्णयों पर अपने ही पोजिशन से हटते हैं। बाद में आप वही करते हैं जो वो चाहते हैं।

संभव है इसलिए वो 99 सीटों को अपनी जीत मान रहा है क्योंकि कानून तो उसके मतलब के पास हो रहे हैं। भाजपा के नेताओं में इतना भी साहस नहीं है कि किसी भी बिल को यह कह कर लाए कि इससे ये लाभ होंगे, इसका यह तर्क है, यह इसलिए आवश्यक है। कृषि कानून भी यही कह कर लाया गया था कि कॉन्ग्रेस ही लाना चाहती थी।

इनका हर बिल, नेता का हर भाषण यह बताने पर केन्द्रित रहता है कि ये तो कॉन्ग्रेस का ही है, हम तो बस आपका रोका हुआ कार्य कर रहे हैं। ट्रोलिंग के लिए कथन पढ़ कर यह बताना कि ये नेहरू का है, एक-दो बार अच्छा लगता है, पर अपने गवर्नेंस का आधार ही कॉन्ग्रेस को मान लेना विचित्र स्तर की मूर्खता है।

यदि ऐसा ही चलता रहा तो यही राहुल गाँधी इनसे जातिगत जनगणना भी कराएगा, 75% आरक्षण भी लागू कराएगा, MSP की गारंटी भी दिलवाएगा और उसके बाद यह कह कर चुनाव भी जीत लेगा कि जब विपक्ष में रह कर हम यह सब करा रहे हैं तो सरकार में आने पर तो हम लाख रुपए भी सबको दे देंगे!

@PMOIndia को शीघ्रातिशीघ्र ऐसी मूर्खतापूर्ण दुर्घटनाओं से स्वयं को बचाना चाहिए, वरना ब्रांड @narendramodi को ब्रांड ‘तपस्या में कमी’ बनते देर नहीं लगेगी। निर्णय वही लीजिए जिस पर आप अडिग हों या निर्णय के बाद विपक्ष क्या बोल सकता है, उस हर आयाम के आकलन और समाधान के उपरांत ही कुछ सार्वजनिक करें।

आपसे कुछ भी रेडिकल या ड्रास्टिक तो हो नहीं रहा। बंगाल में इतना अच्छा अवसर है कि लाख लोगों को उतार कर, ममता को ही विवश कर दिया जाए कि वही केन्द्र से सहायता माँगने लगे। केन्द्र को राज्यपाल की अनुशंसा पर राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए। आप बंगाल जीतें या न जीतें, दूसरे राज्य अवश्य जीतेंगे।

पर ऐसा करने के लिए जो छ… छोड़िए, रहने दीजिए।

 

मोदी सरकार का ये वर्जन ठिठक कर इसलिए चल रहा है इसके 3 बड़े कारण हैं.

१. विपक्ष की झूठ फैलाने की मशीनरी अब हमारी साइड के तथ्य फैलाने पर बहुत ज्यादा हावी है. ये हमने पूरे लोकसभा चुनाव में देखा और उसके बाद भी.

२. जाति के आगे हम किसी भी सिविलाइजेशनल गोल को भुलाने को तैयार हैं, ये हम लगातार ही पिछले 3 साल से देख ही रहे हैं.

३. आत्मनिर्भर बनने के प्रयास में जो कोरोना की दवा के लिए हमने विदेश के आगे हाथ नहीं फैलाये और डिफेंस के क्षेत्र में या रूस यूक्रेन युद्ध में जो हमने अपने हितो को सबसे ऊपर रखने का निर्णय लिया उसकी एक कीमत है जो अब चुकानी पड़ रही है.

हाल फिलहाल में आसपास के घटनाक्रम को देखें तो पाएंगे कि मणिपुर जो अच्छा ख़ासा शांत था वो कोर्ट की आरक्षण पर एक टिप्पणी मात्र पर झुलस गया और ऐसी आग लगी कि साल भर से ज्यादा समय हो गया है लेकिन आग बुझ नहीं रही है. दूसरा केस हमने बांग्लादेश का देखा जहां सरकार ने जो आरक्षण 2018 में ही ख़तम कर दिया था उसको वापस कोर्ट द्वारा लागू करवा कर पूरा बांग्लादेश जलवा दिया गया और शेख हसीना को अपनी जान बचाने भारत भागना पड़ा, देश अभी भी जल रहा है.

हमारा विपक्ष वैसे ही पूरे देश में केरोसीन डाले बैठा है और हर बात, हर मुद्दे को वो सवर्ण/दलित/मूलनिवासी/आदिवासी/माइनॉरिटी में बाँट के झूठ फैलाना शुरू कर देता है. आप कितना भी फैक्ट चेक कर लें लेकिन जब तक आपका फैक्ट चेक ट्विटर पर कुछ सैकड़ों लोगों तक पहुँच पाता हैं वहीँ इंस्टाग्राम और व्हाट्सप्प के माध्यम से ये अपना झूठ लाखों करोड़ों टार्गेटेड ऑडिएंस में पहुंचा देते हैं. हाँ इसमें कमी भाजपा के तंत्र की है कि आपकी मशीनरी कहाँ है या जो dissemination आपका होना चाहिए था वो स्ट्रक्चर कहाँ हैं…पर इस पर कभी और.

यही वो हालात हैं जिसके बाद सरकार छाछ भी फूंक फूंक कर पी रही है..क्योंकि सरकार जनता और गठबंधन के सहयोगियों की चिंताओं को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहती. सरकार को समझ में आया कि लेटरल एंट्री से भर्ती का तरीका सही हो सकता है, लेकिन जब ३ प्रमुख राज्यों के चुनाव हों जिनमें २ राज्यों में पूरा चुनाव ही हिन्दुओं को जातियों में बाँट कर लड़ा जा रहा हो ऐसे समय में शायद सरकार रिस्क नहीं लेना चाहती.

मोदी जी की मजबूरी ये है कि एक तरफ उन्हें विशेषज्ञता और योग्यता को लाना है, लेकिन दूसरी तरफ उन्हें यह भी सुनिश्चित करना था कि विपक्ष को झूठ फैला कर बड़ा पोलिटिकल माइलेज न मिले और कैसे भी बड़े बवाल को सड़कों पर आने से भी रोक दिया जाए. इसलिए, उन्होंने ये फैसला किया कि पहले इस प्रक्रिया को ठीक से समझा जाए, उसमें सुधार किया जाए, और फिर आगे बढ़ा जाए, ताकि किसी भी तरह के अजेंडो को हवा न मिले.

बहरहाल, एक और सुधार जो सही वक़्त आने पर फिर से होता दिखेगा कुछ और समय के लिए आगे बढ़ गया.

 

 

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