सुको: वनफूलपुरा के अतिक्रमणकर्ताओं को मिले 8 हफ्ते और

UTTARAKHAND/ SUPREME COURTS DECISION ON ENCROACHED LAND OF RAILWAY IN VANBHULPURA HALDWANI
Railway Land Encroachment: 8 हफ्ते और नहीं टूटेंगे वनभूलपुरा के 4000 से ज्यादा घर, SC में अब 2 मई को सुनवाई

वनभूलपुर रेलवे भूमि अतिक्रमण मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट से बड़ी खबर है. सुप्रीम कोर्ट में आज इस मामले पर सुनवाई हुई. SC ने लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था पर काम करने और रेलवे की आवश्यकता पर विचार करने के लिए उन्हें 8 सप्ताह का समय देने के अधिकारियों के अनुरोध को स्वीकार कर लिया. अब 2 मई को सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई होनी है.

नई दिल्ली/नैनीताल: नैनीताल जिले में हल्द्वानी के वनभूलपुरा रेलवे भूमि अतिक्रमण पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने 7 फरवरी की तारीख दी थी. आज सुनवाई शुरू होते ही एएसजी एश्वर्या भाटी ने अपनी बात रखी. उत्तराखंड के लिए हल्द्वानी वनभूलपुरा रेलवे भूमि अतिक्रमण मामला एएसजी एश्वर्या भाटी के अनुरोध पर अगली सुनवाई तक स्थगित किया गया. एश्वर्या भाटी ने समाधान निकालने के लिए 8 सप्ताह का समय देने का सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था. सुप्रीम कोर्ट ने उनके अनुरोध को मान लिया.

सुप्रीम कोर्ट में आज क्या हुआ

उत्तराखंड के लिए एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने और समय देने का सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया. एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि समाधान निकालने के लिए सरकार को और समय चाहिए. एएसजी ने कहा कि हमें 8 सप्ताह का और समय दे दीजिए.

सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंसाल्विस ने क्या कहा

सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंसाल्विस ने का कहना था कि यह कृत्रिम रूप से बनाई गई समस्या है. इसे तुरंत हल किया जा सकता है. इस पर जस्टिस कौल ने उनसे एएसजी से बात करने और मंथन करने को कहा.
एसएजी ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि पत्र (स्थगन के लिए) चार सप्ताह के लिए है. लेकिन कृपया हमें एक व्यावहारिक समाधान खोजने के लिए आठ सप्ताह दें. इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि यदि यह पहले हो सकता है तो. इस पर अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि टाइटल से पता चलता है कि जमीन हमारी है.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

SC ने कहा कि अगर किसी के पास टाइटल है, अगर कोई अतिक्रमण कर रहा है, तो उसे एक व्यावहारिक समाधान की आवश्यकता होगी.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में रोचक समय भी आया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा आप एक वरिष्ठ हैं, उन्हें एक कप कॉफी के लिए आमंत्रित करें और विचार करें. विचार-मंथन करने में कोई बुराई नहीं है. एएसजी ने इस पर खुशी जताई. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कौल ने कहा जो भी पहल करना चाहता है, सैंडविच मंगवाए. इसके बाद जज साहब ने मामले को मई में सूची करने का आदेश सुना दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हल्द्वानी में रेलवे द्वारा दावा की गई भूमि से कब्जेदारों को हटाने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर राज्य और रेलवे अधिकारियों को अन्य बातों के साथ-साथ, कब्जाधारियों के पुनर्वास के लिए समाधान निकालने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले अवसर पर हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा कि पुनर्वास के पहलू को देखने के साथ-साथ रेलवे को भूमि कैसे उपलब्ध कराई जा सकती है, इस पर विचार करें। अदालत ने आदेश में दर्ज किया, “हमने एएसजी से कहा है कि ऐसी कोई कार्यप्रणाली हो सकती है जिससे रेलवे को उपलब्ध कराई जा रही भूमि के उद्देश्य को प्राप्त करने की साथ-साथ क्षेत्र में रह रहे व्यक्तियों के पुनर्वास को भी देखा जा सके।” कोर्ट ने आगे राज्य और रेलवे को व्यावहारिक समाधान खोजने के लिए कहा। जस्टिस ओक ने जोर देकर कहा, ”कोई हल निकालो। यह मानवीय मसला है।”

जस्टिस कौल ने राज्य से कहा, “उत्तराखंड राज्य को व्यावहारिक समाधान खोजना होगा”। जस्टिस एस.के. कौल और जस्टिस मनोज मिश्रा ने भाटी के अनुरोध पर सोमवार को निम्नलिखित आदेश पारित किया, “एएसजी ने निवेदन किया कि अंतिम तिथि के अनुसार समाधान निकालने के लिए 8 सप्ताह का समय दिया जाए। अनुरोध स्वीकार किया जाता है।”

सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंसाल्वेस ने संकेत दिया कि हल्द्वानी में समस्या कृत्रिम रूप से बनाई गई है और यदि पक्षों के वकील एक साथ बैठकर विचार-मंथन करते हैं तो इसे तुरंत हल किया जा सकता है। जस्टिस कौल ने दृष्टिकोण को प्रोत्साहित किया और बार के सीनियर सदस्य के रूप में प्रक्रिया शुरू करने के लिए कहा। पृष्ठभूमि हाईकोर्ट के आदेश के आधार पर संबंधित अधिकारियों ने 4000 से अधिक परिवारों को बेदखली नोटिस जारी किया, जो दावा करते हैं कि वे सरकारी अधिकारियों द्वारा मान्यता प्राप्त वैध दस्तावेजों के आधार पर वर्षों से क्षेत्र में रह रहे हैं। जब मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया तो उसने उत्तराखंड राज्य और रेलवे को नोटिस जारी किया और हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। कहा कि “…7 दिनों में 50,000 लोगों को नहीं हटाया जा सकता है।” सुनवाई की पिछली तारीख पर सुप्रीम कोर्ट इस बात से विशेष रूप से चिंतित है कि कई कब्जाधारी दशकों से पट्टे और नीलामी खरीद के आधार पर अधिकारों का दावा करते हुए वहां रह रहे हैं। याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता गरीब लोग हैं, जो 70 से अधिक वर्षों से हल्द्वानी जिले के मोहल्ला नई बस्ती के वैध निवासी हैं। याचिकाकर्ता के अनुसार, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 4000 से अधिक घरों में रहने वाले 20,000 से अधिक लोगों को इस तथ्य के बावजूद बेदखल करने का आदेश दिया कि निवासियों के शीर्षक के संबंध में कार्यवाही जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित है। बताया जाता है कि स्थानीय निवासियों के नाम नगर निगम के हाउस टैक्स रजिस्टर के रिकॉर्ड में दर्ज हैं और वे वर्षों से नियमित रूप से हाउस टैक्स का भुगतान करते आ रहे हैं। इसके अलावा, क्षेत्र में 5 सरकारी स्कूल, एक अस्पताल और दो ओवरहेड पानी के टैंक हैं। यह आगे कहा गया कि याचिकाकर्ताओं और उनके पूर्वजों के लंबे समय से भौतिक कब्जे, कुछ भारतीय स्वतंत्रता की तारीख से भी पहले, उसको राज्य और इसकी एजेंसियों द्वारा मान्यता दी गई है। उन्हें गैस और पानी के कनेक्शन और यहां तक कि आधार कार्ड नंबर भी दिए गए हैं।

[केस टाइटल: अब्दुल मतीन सिद्दीकी बनाम भारत संघ और अन्य।

नैनीताल हाईकोर्ट ने क्या कहा था

हल्द्वानी के वनभूलपुरा भूमि अतिक्रमण मामले पर हाईकोर्ट के फैसले के बाद ही ये केस सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. नैनीताल हाईकोर्ट ने वनभूलपुरा में रेलवे भूमि पर से अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए थे. अतिक्रमण वाली जमीन पर 4365 परिवारों ने अपने घर बनाए हुए हैं. अतिक्रमण हटाने पर इन घरों को तोड़ना होता.

हाईकोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था मामला

नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने के फैसले के बात मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में उत्तराखंड सरकार से पूछा था कि लोग 50 सालों से वनभूलपुरा में रह रहे हैं. उनके पुनर्वास के लिए कोई योजना होनी चाहिए. हमें कोई प्रैक्टिकल समाधान निकालना होगा. समाधान का ये तरीका नहीं है. सुप्रीम ने कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 7 फरवरी 2023 की तारीख दी थी. तब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से वनभूलपुरा के लोगों ने राहत की सांस ली थी.

संबंधित विभागों ने किया सर्वे

सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमण की गई जमीन पर अपना दावा जताने वालों से डिटेल्ड सर्वे रिपोर्ट मांगी थी. इसके बाद उत्तराखंड राजस्व विभाग, रेलवे, नगर निगम और वन विभाग की संयुक्त टीम ने दोबारा विवादित भूमि का सर्वे किया है. इसी सर्वे रिपोर्ट को आज सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया

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