उत्तराखंड में बिजली अभी भी अन्य राज्यों से सस्ती: मनवीर सिंह चौहान
Electricity Bill Hike Uttarakhand: भाजपा ने कहा- ‘अन्य राज्यों की अपेक्षा बिजली सस्ती’ तो कांग्रेस बोली- ‘जनता को फिर ठगा गया’
भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी मनवीर सिंह चौहान ने कहा कि प्रदेश सरकार उपभोक्ताओं के हितों को लेकर सचेत है। अन्य राज्यों की अपेक्षा उत्तराखंड में बिजली सस्ती है और प्रतिवर्ष होने वाली दरों में बढ़ोतरी भी काफी कम है। वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने राज्य सरकार से बढ़ाई गई विद्युत दरों को वापस लेने की मांग की है।
उत्तराखंड में बिजली की दरें बढ़ीं
देहरादून उत्तराखंड में बिजली की दरें बढ़ते ही अब राजनीतिक पार्टियों में वार-पलटवार का दौर शुरू हो गया है।
भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी मनवीर सिंह चौहान ने कहा है कि प्रदेश सरकार उपभोक्ताओं के हितों को लेकर सचेत है। अन्य राज्यों की अपेक्षा उत्तराखंड में बिजली अभी भी सस्ती है और दरों में प्रतिवर्ष वृद्धि भी काफी कम है। उन्होंने कहा कि इस बार राज्य में बिजली की दरों में 6.92 प्रतिशत की वृद्धि की गई है, जो गत वर्ष की तुलना में कम है। पिछले वर्ष विद्युत दरों में 9.64 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।
चौहान ने इस मामले कांग्रेस के बयान को हास्यास्पद बताते हुए कहा कि प्रतिवर्ष विद्युत दरों में संशोधन होता है और यह कोई नई परंपरा नहीं है। कोरोना काल में भी विद्युत या अन्य वसूली में भी सरकार ने समय सीमा में जनता को राहत दी थी। सरकार ने सामान्य जन की चिंता करते हुए ही विद्युत दरों में कम वृद्धि की है। वहीं उत्तराखंड नागरिकों और उद्योगों को सस्ती और निर्बाध बिजली उपलब्ध करा रहा है।
विद्युत दरें बढ़ाकर जनता को फिर ठगा गया: कांग्रेस
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने राज्य सरकार से बढ़ाई गई विद्युत दरों को वापस लेने की मांग की है। उन्होंने कहा कि विद्युत दरों को बढ़ाकर प्रदेश की भाजपा सरकार ने जनता को एक बार फिर ठगा है। लगभग आठ वर्षों में कई बार विद्युत दरें बढ़ाई गई हैं।
माहरा ने एक बयान में कहा कि कोरोना महामारी की मार से अभी तक प्रदेशवासियों की आजीविका और रोजगार की व्यवस्था उबर नहीं पाई है। ऐसे में भी सरकार प्रत्येक क्षेत्र में महंगाई बढ़ा रही है। सामान्य जन के पानी और बिजली के बिल कम करने के बजाय भाजपा सरकार उन्हें बढ़ाकर घावों पर नमक छिड़क रही है।
राज्य में कई जलविद्युत परियोजनाएं संचालित हैं और कई निर्माणाधीन हैं। राज्यवासियों को घरेलू उपभोग को कम दर पर बिजली आपूर्ति अधिकार है। किसानों को खेती के लिए निःशुल्क बिजली दी जानी चाहिए। उन्होंने विद्युत परियोजनाओं की लाइन बिछाने को भूमि दी है। इस भूमि का उन्हें मुआवजा भी नहीं दिया जाता है।
माहरा ने कहा कि सरकार विद्युत उपभोक्ताओं से पहले ही मीटर चार्ज के रूप में कई वर्षों तक किराया वसूल करती है। विद्युत मीटर की कीमत मात्र कुछ ही समय में पूरी हो जाती है। जमानत में कनेक्शन लेते समय मोटी रकम वसूली जाती है। उन्होंने दो वर्ष बाद उपभोक्ताओं से फिक्स चार्ज व मीटर किराया की वसूली नहीं करने की मांग की।
उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष करन माहरा ने चुनाव को वोटिंग समाप्त होते ही उत्तराखण्ड प्रदेश में बिजली की दरों में भारी वृद्धि पर रोष प्रकट करते हुए इसे महंगाई के बोझ से दबी जनता के सिर पर और बोझ डालने वाला बताया।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को लिखे पत्र में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष माहरा ने कहा कि प्रदेश सरकार के बिजली दरों में 8 प्रतिशत की वृद्धि का निर्णय लिया गया है, जोकि जनहित में न्यायोचित नहीं है। बिजली दरों में वृद्धि के राज्य सरकार के निर्णय से पहले से ही मंहगाई की मार झेल रही प्रदेश की जनता पर दोहरी मार पड़ेगी जिसका कुप्रभाव गरीब, किसान व आम जनता पर पड़ेगा। विद्युत उत्पादक राज्य होने के बावजूद उत्तराखण्ड राज्य में पूर्व से ही बिजली की दरें अन्य कई राज्यों जिनमें विद्युत उत्पादन लगभग शून्य है, की अपेक्षा काफी अधिक हैं तथा अब अतिरिक्त बिजली खरीदने तथा नवीनीकरण के नाम पर एडीबी से लिये जा रहे नये लोन का बोझ भी प्रदेश की जनता पर थोपा जा रहा है।
श्री करन माहरा ने कहा कि लोकसभा चुनाव प्रचार में जनता को राहत का वादा करने वाली भाजपा सरकार ने वोटिंग समाप्त होते ही जनता पर महंगाई का बोझ डालना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार की उपेक्षापूर्ण नीतियों से गरीब जनता पहले से ही महंगाई की मार से त्रस्त है। राज्य सरकार ने वर्ष 2017 से 2024 के मध्य 7 वर्ष के अन्तराल में बिजली के दामों में लगभग 45 प्रतिशत वृद्धि की है। इसके विपरीत आम जरूरत की चीजों के दामों में कई गुना वृद्धि पर केन्द्र व राज्य सरकार नियंत्रण नहीं कर रही है। रसोई गैस, पेट्रोलियम पदार्थ तथा खाद्य पदार्थों के लगातार बढ़ते दामों के बाद अब राज्य सरकार ने बिजली की दरों में भारी वृद्धि कर जनता को मंहगाई के बोझ से लाद दिया है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने विभागीय लापरवाही के चलते होने वाले लाईन लॉस की क्षतिपूर्ति उपभोक्ता की जेब से किये जाने पर भी नाराजगी जताते हुए कहा कि विभाग का यह फैसला तर्क संगत प्रतीत नहीं होता है। उन्होंने कहा कि जहां एक ओर अस्पताल, स्कूल, कॉलेजों की बिजली भी मंहगी होने से शिक्षा मंहगी होने का अंदेशा है वहीं किसानों के नलकूपों के लिए बिजली दरों में भारी बढ़ोत्तरी पहले से कर्ज के बोझ से दबे किसानों की कमर तोड़ने जैसा है।
श्री करन माहरा ने यह भी कहा कि एक ओर राज्य सरकार द्वारा आम उपभोक्ता की बिजली दरों में भारी बढ़ोतरी करने का निर्णय लिया गया है वहीं दूसरी ओर गुजरात बेस अल्पस कम्पनी एवं श्रावंती कम्पनी को बिगत वर्षों से बिना बिजली उत्पादन किये ही करोड़ों रूपये का भुगतान किस ऐबज में किया गया है यह समझ से परे है। रसोई गैस, पेट्रोलिय पदार्थ तथा खाद्य्य पदार्थों की आसमान छूती कीमतों के कारण प्रदेश की जनता पहले ही महंगाई के भारी बोझ से दब रही है ऐसे में उत्तराखण्ड राज्य में बिजली की दरों में की जा रही भारी वृद्धि का राज्य सरकार का निर्णय आम जनता के हित में नहीं है तथा पहले से ही मंहगाई की मार से पीड़ित जनता के ऊपर यह एक और बोझ आम आदमी के जीने की राह में कठिनाई पैदा करेगा।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने राज्य सरकार को चेतावनी दी कि व्यापक जनहित को देखते हुए सभी प्रकार की विद्युत दरों में वृद्धि के निर्णय को तत्काल वापस लिया जाय अन्यथा कांग्रेस पार्टी सरकार की इस जन विरोधी एवं गरीब विरोधी नीति का सड़कों पर उतर कर विरोध करेगी।
*बिना अध्यक्ष और विधि सलाहकार के एक सदस्य नियामक आयोग ने बिजली दर वृद्धि फैसला कैसे लिया : शीशपाल सिंह बिष्ट ।*
उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल सिंह बिष्ट ने कहा कि लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग समाप्त होते ही प्रदेश में बिजली की दरों में भारी वृद्धि नियमानुसार नहीं की गई है। मनमाने तरीके से बिजली के दाम बढ़ाए गए हैं, क्योंकि विद्युत नियामक आयोग तीन सदस्यों वाली संस्था विद्युत नियामक आयोग में अध्यक्ष पद खाली है और विधि विशेषज्ञ पद भी रिक्त है केवल तकनीकी विशेषज्ञ सदस्य ही आयोग में है । एक सदस्य के दम पर किस तरीके से प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं के भाग्य का फैसला हुआ और मनमाने तरीके से विद्युत की दरें बढ़ाई गई यह समझ से परे हैं ,आखिर चुनाव आचार संहिता बीच मनमाने तरीके से अचानक बिजली दरें बढ़ाने की क्या मजबूरी थी कि दो सदस्यों की नियुक्ति का भी इंतजार नहीं हुआ और अब जानकार सवाल खड़े कर रहे हैं कि विद्युत नियामक आयोग बिना अध्यक्ष और विधि विशेषज्ञ कैसे इतना बड़ा फैसला ले सकता है । ऐसे फैसले व्यापक विचार विमर्श और सर्वसम्मति से होने चाहिए । इसके पालन के स्थान केवल तकनीकी सदस्य ने ही मनमाने तरीके से बिजली की दरें बढ़ाने का फैसला ले लिया। आखिर क्यों और किसके दबाव में किया गया यह बड़ा सवाल है ।
प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल सिंह बिष्ट ने केवल एक सदस्य के मनमानी बिजली दरें बढ़ाने के फैसले पर आक्रोश प्रकट करते हुए इसे ,पहले से ही महंगाई के बोझ से दबी जनता के सिर पर और बोझ डालने वाला फैसला बताया।
विद्युत नियामक आयोग ने लोकसभा चुनाव परिणाम आने का भी इंतजार नहीं किया जबकि अभी पूरे देश में आदर्श आचार संहिता लागू है और बिना चुनाव आयोग की अनुमति बिना कोई नीतिगत निर्णय नही हो सकता है। पहले से ही उत्तराखंड के विद्युत उपभोक्ता अघोषित बिजली कटौती की मार झेल रहे हैं । उद्योग धंधे और किसान बिजली कटौती से परेशान है ।पहले सरकार को प्रदेश की जनता को 24 घंटे बिजली उपलब्ध करानी चाहिए और बिजली कटौती का समाधान निकालना चाहिए तब इस प्रकार के फैसलों पर विचार होना चाहिए लेकिन सरकार अपनी गलतियां सुधारने की जगह महंगाई बढ़ाने वाले मनमाने फेसले कर रही है जो सरासर गलत व जन विरोधी निर्णय है।
बिष्ट ने सरकार से बिजली दर वृद्धि पर पुनर्विचार कर इसे तत्काल वापस लेने की मांग की । उन्होंने सरकार से पूछा कि क्या एकल सदस्य विद्युत नियामक आयोग बिना अध्यक्ष और विधि सलाहकार एक सदस्य आयोग फैसला ले सकता था? इसका जवाब भी सरकार को प्रदेश की जनता को देना चाहिए।