बिजली संकट A टू Z: कारण समय पूर्व रिकार्ड तापमान से लेकर यूक्रेन युद्ध और आर्थिकी तक, समाधान…

विश्लेषण:बिजली संकट की वजह कोयले की कमी है या पेमेंट न करने की सजा? जानिए आगे और कितना रुलाएगी बिजली

देहरादून 30 अप्रैल। भारत इस समय पिछले छह सालों के सबसे बड़े बिजली संकट से गुजर रहा है। देश के कई हिस्सों में तापमान 45 डिग्री पार कर गया है। रिकॉर्ड तोड़ गर्मी से बढ़ती बिजली की मांग और कोयले की कमी ने बिजली संकट को और विकराल बना दिया है। देश के अधिकांश राज्य घंटों बिजली कटौती से जूझ रहे हैं। निकट भविष्य में ये संकट और गहरा सकता है, क्योंकि गर्मी बढ़ने से बिजली की मांग घटने के बजाय 8% और बढ़ सकती है।

ऐसे में चलिए समझें कि आखिर क्या हैं देश में बिजली संकट गहराने के कारण? बढ़ते तापमान और कोयले की कमी ने कैसे इस संकट को गहरा दिया? देश में कोयले की कमी की वजह क्या है? कब थमेगा देश में बिजली संकट?

आखिर क्या है बिजली संकट की वजह?

भारत करीब 200 गीगावॉट बिजली यानी करीब 70% बिजली उत्पादन कोयला चालित प्लांट्स से करता है, लेकिन इस समय ज्यादातर प्लांट्स बढ़ती बिजली की मांग और कोयले की कमी से कम बिजली सप्लाई कर पा रहे हैं।

देश के कोयले से चलने वाले बिजली प्लांट्स में पिछले 9 सालों में सबसे कम कोयले का भंडार बचा है। यानी बिजली की डिमांड ज्यादा है, लेकिन कोयले की कमी से प्लांट्स जरूरत के मुताबिक बिजली उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं।
कोल इंडिया बिजली प्लांट्स को रोज 16.4 लाख टन कोयला सप्लाई कर रहा है, जबकि कोयले की मांग प्रतिदिन 22 लाख टन पहुंच गई है।
कोयले की खपत इस साल 8% बढ़ी, लेकिन कोल इंडिया ने कोयले का उत्पादन नहीं बढ़ाया। देश में कोयले का 80% उत्पादन कोल इंडिया ही करता है।
देश में पीक आवर में बिजली की डिमांड इस साल कोरोना महामारी की वजह से दो साल बाद बढ़ी है।
रॉयटर्स के मुताबिक, अप्रैल के पहले 27 दिनों में बिजली सप्लाई डिमांड से 1.88 अरब यूनिट यानी 1.6% कम रही। ये पिछले 6 वर्षों में किसी एक महीने में सबसे ज्यादा बिजली की कमी है।
देश में पिछले हफ्ते 62.3 करोड़ यूनिट बिजली की कमी हुई। यह पूरे मार्च महीने में हुई बिजली की कमी से भी ज्यादा है।
यही वजह है कि जम्मू-कश्मीर से लेकर आंध्र प्रदेश तक देश के लगभग हर हिस्से में 2-8 घंटे तक बिजली कटौती हो रही है।
सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (CEA) के मुताबिक, देश के कोयला चालित150 बिजली प्लांट्स में से 86 में कोयले का स्टॉक बेहद कम हो गया है। इन प्लांट्स के पास अपनी सामान्य जरूरतों का 25% स्टॉक ही बचा है।
इस समय देश भर में स्थित थर्मल बिजली प्लांट्स में 2.12 मिलियन टन कोयला हैैैै जो सामान्य स्तर 6.63 करोड़ टन से काफी कम है।

पिछले साल अक्टूबर में भी कोयले की कमी से बिजली संकट पैदा हुआ था, लेकिन इस बार ये संकट गर्मियों के महीने में होने से और ज्यादा गहरा है।
बिजली संकट की एक और वजह कोयले की ढुलाई न हो पाना है। दरअसल, कोयला कंपनियों से बिजली प्लांट्स तक अतिरिक्त  कोयला पहुंचाने को रेलवे के पास पर्याप्त कोच नहीं थे।
बिजली संकट गहराने पर बिजली प्लांट्स तक कोयला ले जाने वाली ट्रेनों को रास्ता देने को रेलवे ने ट्रेनों के 670 फेरे रद्द किए हैं।
रेलवे बिजली प्लांट्स तक कोयला पहुंचाने को 415 कोच उपलब्ध करवा रहा है। हर मालगाड़ी से करीब 3500 टन कोयला ले जाया जा सकता है।
कोयला ढुलाई में कमी के आरोपों के बीच रेलवे का कहना है कि उसने वित्त वर्ष 2022 में कोयले के ट्रांसपोर्टेशन में 11.1 करोड़ टन की बढ़ोतरी कर 65.3 करोड़ टन कोयला ढोया। साथ ही अप्रैल के पहले दो हफ्ते में कोयला ढोने वाले कोचों की संख्या 380 से बढ़ाकर 415 कर दी है।

कोयला संकट कैसे गहराया?

इस संकट की एक और वजह है कोयला आयात घटना। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े कोयला आयातक भारत ने कुछ वर्षों से लगातार अपना आयात घटाने की कोशिश की है। लेकिन इस दौरान घरेलू कोयला सप्लायर्स ने उतनी तेजी से अपना उत्पादन बढ़ाया नहीं है। इससे सप्लाई गैप पैदा हुआ। अब यह गैप सरकार चाहकर भी नहीं भर सकती क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध से इंटरनेशनल मार्केट में कोयले की कीमत 400 डॉलर यानी 30 हजार रुपए प्रति टन के रिकॉर्ड स्तर पर हैं।

देश में कोयला उत्पादन के अतिरिक्त सालाना करीब 20 करोड़ टन कोयला इंडोनेशिया, चीन और ऑस्ट्रेलिया से आयात होता है। लेकिन अक्टूबर 2021 बाद इन देशों से आयात घटना शुरू हो गया और अब भी इन देशों से आयात पूरा प्रभावित है। नतीजा ये कि बिजली कंपनियां कोयले के लिए अब पूरी तरह कोल इंडिया पर निर्भर हो गईं।

इस संकट की एक और प्रमुख वजह ये है कि राज्यों ने कोल इंडिया को जरूरत से एक महीने पहले कोयले की मांग ही नहीं भेजी। साथ ही कई राज्यों ने निर्धारित समय पर कोयले का उठाव भी नहीं किया। गर्मी बढ़ने से बिजली की खपत भी तेजी से बढ़ी और कोयला कम पड़ने लगा और अचानक बिजली संकट खड़ा हो गया। इस संकट के अगले दो महीने तक बने रहने की आशंका है।

दरअसल, राज्यों का कोल इंडिया से सालाना करार होता है जिसमें हर राज्य को हर महीने निर्धारित कोयला उठाना होता है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कई राज्यों पर तो कोयले का उठान नहीं करने पर कोल इंडिया ने जुर्माना भी लगाया। सभी राज्य अगले 3-4 महीनों में कोयले की आवश्यकता का आकलन करने में चूक गये।

गर्मी ने कैसे गहरा किया बिजली संकट?

आमतौर पर मॉनसून में कोयले की कमी होना सामान्य है, क्योंकि बारिश से कोयला खनन प्रभावित होता है। इस बार हीट वेव बढ़ने से गर्मी में ही कोयले की कमी हो गई, क्योंकि तेज गर्मी से भी खनन कम हो पाता है।

इस साल अप्रैल में राजधानी दिल्ली में सबसे ज्यादा गर्मी का पिछले 72 सालों का रिकॉर्ड टूट गया। 11 अप्रैल को ही दिल्ली में तापमान 42.6 डिग्री तक पहुंच गया था।

बढ़ता तापमान बिजली संकट का प्रमुख कारण  है। अप्रैल में ही राजस्थान के चुरू का तापमान 50 डिग्री तक पहुंच गया, जबकि आमतौर पर इस समय वहां इतना तापमान नहीं होता।

बढ़ते तापमान से बिजली की मांग बढ़ी और ज्यादा बिजली पैदा करने को कोयले की जरूरत भी बढ़ी है।

एक और सबसे बड़ी समस्या है, कोल पावर प्लांट्स में गर्मी से पानी की कमी। यानी अगर बिजली प्लांट्स के पास पर्याप्त कोयला हो तो भी पानी की कमी से बिजली का उत्पादन कम ही होगा। इससे पहले 2015 में भी बिजली प्लांट्स ऐसे ही संकट से गुजर चुके हैं।

आगे कितनी और बिजली कटौती होने की संभावना है?

इस समय उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, हरियाणा, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश सबसे ज्यादा बिजली कटौती का सामना कर रहा हैं।

बिजली की कमी का सामना कर रहे 12 राज्यों में आंध्र प्रदेश की स्थिति सबसे खराब है। आंध्र ने इंडस्ट्रियल सप्लाई 50% घटाई और डोमेस्टिक यूजर्स के लिए बड़े पैमाने पर बिजली कटौती की है।
गुजरात ने 500 मेगावॉट की कमी पूरा करने के लिए इंडस्ट्री को हफ्ते में एक बार बंद रखने को कहा है। महाराष्ट्र पिछले 2-3 हफ्तों से औसतन 3,000 मेगावॉट से अधिक की कमी का सामना कर रहा है। इसके लिए उसने बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों को जिम्मेदार बताया है।
साउथ एशिया के क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क के डायरेक्टर संजय वशिष्ठ केे अनुुसार हमें आगे और बिजली कटौती का सामना करना पड़ सकता है। कोयला एनर्जी की बढ़ती मांग पूरा नहीं कर सकता। हम अपने प्रोडक्शन एरिया को बिजली नहीं दे पाएंगे, जिससे प्रोडक्शन पर और असर पड़ेगा।

उनके अनुसार हमने हमेशा कोयले को एनर्जी का एक विश्वसनीय स्रोत माना, लेकिन पानी की कमी और बढ़ती गर्मी से कोयला भी हमारी पहुंच से दूर होता जा रहा है।
बिजली की मांग बढ़ने से भारत में कोयले की भी बहुत ज्यादा कमी हो रही है। 28 अप्रैल को देश में बिजली की मांग रिकॉर्ड स्तर पर थी और अगले महीने यह 8% और बढ़ सकती है।

 बिजली संकट की कुछ और भी हैं बड़ी वजह

कई राज्यों में तो 10-10 घंटे की बिजली कटौती हो रही है. (फोटो साभारः सोशल मीडिया)

पिछले साल अक्टूबर-नवंबर की तुलना में इस अप्रैल में 27% ज्यादा कोयला उत्पादन हुआ है. फिर भी 28 अप्रैल को 173 कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में से 108 में कोयले का स्टॉक क्रिटिकल था.  अधिकारियों का दावा है कि कई बिजली कंपनियां पैसों की कमी के कारण ग्रिड से स्पॉट पावर नहीं खरीद रही हैं.

सलोगों को 10-10 घंटे तक अघोषित बिजली कटौती का सामना कर पड़ रहा है. लेकिन बिजली संकट कंपनियों के पास पैसों की कमी, पहले से समस्या की तरफ ध्यान न देने और कई प्लांटों में मेंटिनेस के चलते कम उत्पादन जैसे कई अन्य कारण भी है।

 

…इसलिए ज्यादा मालगाड़ी लगानी पड़ीं

रेलवे के एक अधिकारी ने दावा किया कि बिजली मंत्रालय ने इस साल रेलवे से 421 रैक मांगे थे, जिसमें से 411 उपलब्ध करा दिए गए. लेकिन असली समस्या डिब्बों की कमी की नहीं, कोयला लदान और उतारने में लगने वाले समय की है. उन्होंने दावा किया कि इसमें 10 से 15 दिन तक लग रहे हैं, जिससे मालगाड़ी के डिब्बे खाली नहीं हो पा रहे. हालांकि ऐसी भी खबरें मीडिया में आई हैं कि रेलवे ने 450 रैक मांगे थे, लेकिन मिले सिर्फ 380. बिजली मंत्रालय का दावा है कि कोयला उत्पादन में कमी नहीं है. पिछले साल अक्टूबर-नवंबर की तुलना में इस अप्रैल में 27 फीसदी ज्यादा कोयला उत्पादन हुआ है.

देश में बिजली की अधिकतम मांग 2,07,111 मेगावॉट के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची

जल्दी गर्मी आने से डिमांड में रिकॉर्ड बढ़ोतरी

इस बार बिजली की डिमांड तेजी से बढ़ी है. पावर सिस्टम ऑपरेशन कोऑपरेशन (Posoco) का 28 अप्रैल का डाटा बताता है कि पिछले साल इसी दिन जहां पीक पावर शॉर्टेज 450 मेगावॉट थी, वो इस साल 23 गुना बढ़कर 10,778 मेगावॉट हो गई है. शुक्रवार को बिजली की डिमांड रिकॉर्ड 2 लाख 7 हजार मेगावॉट थी. मार्च में जहां पूरे देश में बिजली की कमी 14 मिलियन यूनिट थी, वो अप्रैल में 79 मिलियन यूनिट हो गई है. इससे पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेेश और आंध्र प्रदेश में 8 से 10 घंटे तक की अघोषित कटौती करनी पड़ रही है. ये कटौती ज्यादातर ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों में हो रही है.पंजाब जैसे कई राज्यों में तो 50 फीसदी तक पीक पावर डिमांड बढ़ी है.

173 में से 108 प्लांटों में कोयला स्टॉक क्रिटिकल
सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी का डेली कोल स्टॉक डाटा बताता है कि 28 अप्रैल को देश के 173 कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में से 108 में कोयले का स्टॉक क्रिटिकल लेवल पर था. जब प्लांट में सामान्य  स्टॉक से 25 प्रतिशत  कम कोयला हो जाता है, तब उसे क्रिटिकल माना जाता है. बिजली प्लांट कोयले के इस संकट की मोटी वजह मालगाड़ियों की कमी, अपर्याप्त भुगतान, उच्च क्वालिटी का कोयला न मिलना और कोयले के लदान और उतराव में देरी बताते हैं. इसके अलावा, कोरोना महामारी के बाद पटरी पर आईं आर्थिक गतिविधियों से भी बिजली की मांग बढ़ी है.

ग्रिड में बिजली, खरीदने वाला कोई नहीं

बिजली मंत्रालय के अधिकारी इस संकट के पीछे एक और वजह बताते हैं. वह कहते हैं कि बिजली उत्पादन और वितरण कंपनियों के पास जरूरत के वक्त ग्रिड से आपातकालीन बिजली खरीदने का विकल्प होता है. लेकिन ये बिजली महंगी होती है. इसीलिए कई राज्यों में कई कंपनियां, चाहे वो सरकारी हों या प्राइवेट, ग्रिड से स्पॉट पावर नहीं खरीद रही हैं. इसके बजाय वो कटौती को वरीयता दे रही हैं. अधिकारी ये भी आरोप लगाते हैं कि कई कंपनियां तो ग्रिड को बिजली न भेजकर सीधे बेच  मुनाफा कमा रही हैं.

बिजली सचिव आलोक कुमार ने  कहा भी कि सेंट्रल पूल में 5 हजार मेगावॉट बिजली उपलब्ध है, लेकिन किसी भी राज्य ने बिजली खरीदने का आग्रह नहीं भेजा है. केंद्रीय बिजली मंत्री आरके सिंह का आरोप है कि बिजली संकट की मुख्य वजह ये है कि राज्य सरकारों ने कोल इंडिया को कोयले का बकाया भुगतान नहीं किया . पेमेंट न होने के वजह से वो अपना आवंटित कोयला समय से नहीं उठा रही .

 

संकट कोयले की कमी से है या पेमेंट नहीं करने से ?

कोयला खनन कंपनियों से लेकर बिजली उत्पादक प्लांट और बिजली डिस्ट्रीब्यूटर कंपनियों तक हर कोई बकाया भुगतान नहीं होने से जूझ रहा है।

सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड यानी CIL दुनिया की टॉप कोयला उत्पादक कंपनियों में से एक है। देश में कोयले का 80% खनन कोल इंडिया करती है। CIL का बिजली उत्पादन कंपनियों पर लगभग 7918.72 करोड़ रुपये का बकाया है और फिर भी यह अपने कस्टमर्स को कोयला बेच रही है।
इसमें भी सबसे ज्यादा बकाया महाराष्ट्र की बिजली उत्पादन कंपनी MAHAGENCO पर है। इस पर 2608.07 करोड़ रुपए का बकाया है।
वहीं पश्चिम बंगाल की WBPDCL पर 1066.40 करोड़ रुपए, झारखंड की TVNL पर 1018.22 करोड़ रुपए, तमिलनाडु की TANGEDCO पर 823.92 करोड़ रुपए और मध्य प्रदेश की MPPGCL पर 531.42 करोड़ रुपए शेष है।
बिजली उत्पादक कंपनियों पर बिजली डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों यानी डिस्कॉम का 1.1 लाख करोड़ रुपये से अधिक का बकाया है और फिर भी वे उन्हें बिजली बेचना जारी रखे हैं।
इसी तरह डिस्कॉम को 5 लाख करोड़ रुपये से अधिक का घाटा हुआ । इसके बावजूद उन्होंने बिजली डिस्ट्रिब्यूशन जारी रखा ।
ICRA सीनियर वाइस प्रेसिडेंट गिरिश कुमार कदम कहते हैं कि बकाया पेमेंट्स या पेमेंट्स में देरी से कुछ विशेष कंपनियों के लिए कोयला आपूर्ति में कमी आई है।
बिजली मंत्री आरके सिंह ने 28 अप्रैल को कहा कि कुछ राज्यों में बिजली की कमी  इसलिये है क्योंकि उत्पादन कंपनियों को भुगतान नहीं किया गया है।
सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी यानी CEA के अनुसार, 150 घरेलू कोयला यूनिट्स में से 86 के पास काफी कम स्टॉक है जो उनकी सामान्य आवश्यकताओं के 25% से भी कम है।

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