स्मृति शेष: दशकों से चावल खाना छोड़े हुए थे पर्यावरणवादी सुंदर लाल बहुगुणा

विश्वविख्यात पर्यावरणवादी सुंदरलाल बहुगुणा नहीं रहे, आज एम्‍स ऋषिकेश में हुआ निधन
94 वर्षीय कोरोना संक्रमित प्रसिद्ध पर्यावरणवादी सुंदरलाल बहुगुणा नहीं रहे । बहुगुणा का नौ मई से ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में उपचार चल रहा था। शुक्रवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने पर्यावरणवादी बहुगुणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।
ऋषिकेश 21 मई । अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में भर्ती पर्यावरणवादी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व पद्मभूषण सुंदरलाल बहुगुणा (93 वर्ष) का शुक्रवार की दोपहर निधन हो गया। कोरोना संक्रमित होने के कारण उन्हें बीती आठ मई को एम्स ऋषिकेश में भर्ती किया गया था। एम्स के जनसंपर्क अधिकारी हरीश मोहन थपलियाल ने बताया कि उन्हें यहां आईसीयू में लाइफ सपोर्ट में रखा गया था। उनके रक्त में ऑक्सीजन का स्तर बीती शाम से गिरने लगा था। चिकित्सक विशेषज्ञ उनकी निरंतर स्वास्थ्य संबंधी निगरानी कर रहे थे। शुक्रवार की दोपहर करीब 12 बजे पर्यावरणवादी सुंदरलाल बहुगुणा ने अंतिम सांस ली। उनके पत्रकार पुत्र राजीव नयन बहुगुणा एम्स में ही मौजूद है। पर्यावरणवादी बहुगुणा का अंतिम संस्कार ऋषिकेश गंगा तट पर शुक्रवार को ही पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। एम्स के निदेशक प्रोफेसर रविकांत ने उनके निधन को उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश की अपूरणीय क्षति बताया है। उन्होंने उन्हें श्रद्धांजलि दी।
न सिर्फ देश बल्कि दुनिया में प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के बड़े प्रतीक सुंदरलाल बहुगुणा ने 1972 में चिपको आंदोलन को धार दी। साथ ही देश-दुनिया को वनों के संरक्षण के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप चिपको आंदोलन की गूंज समूची दुनिया में सुनाई पड़ी। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी बहुगुणा का नदियों, वनों व प्रकृति से बेहद गहरा जुड़ाव था। वह पारिस्थितिकी को सबसे बड़ी आर्थिकी मानते थे। यही वजह भी है कि वह उत्तराखंड में बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए छोटी-छोटी परियोजनाओं के पक्षधर थे। इसीलिए वह टिहरी बांध जैसी बड़ी परियोजनाओं के पक्षधर नहीं थे। इसे लेकर उन्होंने वृहद आंदोलन शुरु किया था ।

उनका नारा था-‘धार ऐंच डाला, बिजली बणावा खाला-खाला।’ यानी ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पेड़ लगाइये और निचले स्थानों पर छोटी-छोटी परियोजनाओं से बिजली बनाइये। सादा जीवन उच्च विचार को आत्मसात करते हुए वह जीवनपर्यंत प्रकृति, नदियों व वनों के संरक्षण अभियान में जुटे रहे। बहुगुणा ही वह सुविज्ञजन थे, जिन्होंने अच्छे और बुरे पौधों में फर्क करना सिखाया। उन्होंने धान में ज्यादा पानी लगने का तर्क देते हुए दशकों पहले भोजन में चावल लेना छोड़ दिया था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *