एग्जिट पोल:केजरीवाल की हार तो राहुल गांधी से भी बड़ी है

Exit Poll: केजरीवाल की हार तो राहुल गांधी से भी बड़ी है, AAP के सामने अब है असली संकट
Exit Poll 2024 के नतीजे भाजपा के लिए सबक हैं कि उसकी तमाम कल्याणकारी योजनाओं के बाद भी दिल्ली में उसका महिलाओं और मुसलमानों के बीच समर्थन घटा है तो अरविंद केजरीवाल के बारे में राजनीतिक भविष्यवाणी जैसे लगते हैं. केजरीवाल के जेल जाने के बाद भी दिल्ली में AAP का जो हाल दिखा है, वो तो उनके लिए राहुल गांधी से भी बड़ा झटका लगता है.
एग्जिट पोल की मानें तो अरविंद केजरीवाल चुनावी लड़ाई भी हारते दिख रहे हैं.
नई दिल्ली,02 जून 2024,Exit Poll 2024 के नतीजों ने तो अरविंद केजरीवाल के सारे दावे हवा हवाई जता दिये- अगर तिहाड़ जेल से बाहर आकर उनके चुनाव कैंपेन का कोई असर नहीं हुआ है,तो दोबारा जेल चले जाने से भी लगता नहीं दिल्लीवालों को कोई खास फर्क पड़ेगा.

दिल्ली की हार तो पूरे INDIA ब्लॉक के खाते में जाएगी, लेकिन राहुल गांधी को लगे झटके से तुलना करें तो अरविंद केजरीवाल की हार तो और भी ज्यादा बड़ी लगती है-और अब अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक भविष्य के साथ साथ आम आदमी पार्टी के भविष्य पर भी सवाल खड़ा हो गया है.
1. जेल का जवाब वोट से क्यों नहीं मिला?

अरविंद केजरीवाल ने अपनी जेल यात्रा को दिल्ली से लेकर पंजाब तक भुनाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन एग्जिट पोल के नतीजों से लगता है कि जनता ने पूरी तरह खारिज कर दिया है – और पंजाब की हार थोड़ी देर को किनारे भी कर दें, तो दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार ने तो अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल खड़ा कर दिया है.

अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद आम आदमी पार्टी ने जोरदार चुनाव कैंपेन चलाया था-‘जेल का जवाब वोट से’.

जेल से छूट संजय सिंह ने गोपाल राय के साथ कैंपेन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था – केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल भी सड़क पर उतरीं और जगह-जगह रोड शो भी किये, लेकिन अरविंद केजरीवाल को कोई फायदा मिलता नहीं दिखा।
चुनाव के नाम पर सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम जमानत पर जेल से छूट अरविंद केजरीवाल ने खुद सड़क पर उतर लोगों की सहानुभूति बटोरने में कोई कसर बाकी नहीं रखी – पति-पत्नी घूम-घूम कर दिल्ली के लोगों को समझाते रहे कि INDIA ब्लॉक के उम्मीदवार जीतते हैं, तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जेल नहीं जाना पड़ेगा.

लेकिन एग्जिट पोल के नतीजों से तो लगता है, दिल्ली के लोगों ने अरविंद केजरीवाल की बातों पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया – और अब तो लगता है, अरविंद केजरीवाल के लिए लोगों ने जेल का जवाब वोट से नहीं दिया.

2. स्वाति मालीवाल केस केजरीवाल को बहुत भारी पड़ा

पंजाब की बात और है, लेकिन दिल्ली के संभावित नतीजों से तो ऐसा लगता है कि स्वाति मालीवाल केस अरविंद केजरीवाल को बहुत भारी पड़ा है – और मारपीट केस के आरोपित विभव कुमार को लखनऊ तक केजरीवाल का साथ ले जाना किसी को भी हजम नहीं हुआ.

अपनी तरफ से अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री आवास पर मारपीट मामले में लोगों को मैसेज देने की कोशिश की थी. बिलकुल वैसे ही जैसे लखीमपुर खीरी केस के बाद अजय मिश्र टेनी को साथ लेकर घूमते अमित शाह ने भी मैसेज दिया था – लगता है केजरीवाल भूल गये कि अमित शाह और उनमें फर्क है, वैसा ही फर्क जैसा भाजपा और आम आदमी पार्टी में लग रहा है.

अरविंद केजरीवाल को लगा कि अपनी राजनीतिक ताकत के बूते स्वाति मालीवाल केस के प्रभाव को वो न्यूट्रलाइज कर देंगे – लेकिन, ऐसा बिलकुल नहीं हुआ.

मालीवाल केस में दिल्ली के लोगों को अपने मुख्यमंत्री पर बिलकुल भी भरोसा नहीं हुआ.लोगों ने समझ लिया कि अरविंद केजरीवाल अपने पीएस विभव कुमार का पक्ष ले रहे हैं, और स्वाति मालीवाल से अन्याय हो रहा है.

मालीवाल केस में संजय सिंह की प्रेस कांफ्रेंस के बाद आतिशी का मीडिया के सामने आकर स्वाति मालीवाल को भाजपा एजेंट साबित करने की कोशिश भी बेकार गई – चाहे जिन परिस्थितियों में संजय सिंह ने कहा हो कि मामले का अरविंद केजरीवाल ने संज्ञान लिया है,और वो एक्शन भी लेंगे,लेकिन अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक चातुर्य काम नहीं आया.

अरविंद केजरीवाल को स्वाति मालीवाल केस को राजनीतिक तौर पर मिसहैंडल करना बहुत भारी पड़ा है.

3. दिल्लीवालों की भी उम्मीदें लगता है, टूट गई हैं

अरविंद केजरीवाल के भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन ने अच्छी राजनीति को लेकर दिल्ली और देश ही नहीं, दुनिया भर में फैले भारत के लोगों के मन में उम्मीद जगाई थी – और बहुत सारे लोग अपना काम धाम छोड़ कर उनके साथ जुड़े थे, लेकिन गुजरते वक्त के साथ लोगों का साथ छूटता गया.
कुछ लोगों को तो अरविंद केजरीवाल ने किनारे कर दिया, और कुछ लोग ऐसे भी रहे जो निराश होकर चलते बने. ये सब होने के बावजूद दिल्ली के लोगों ने अरविंद केजरीवाल को सिर और आंखों पर बिठाये रखा – अब तो लगता है, अरविंद केजरीवाल को लेकर बाकियों की तरह दिल्ली वालों की भी उम्मीदें टूट गई हैं. कम से कम एग्जिट पोल के नतीजों से तो ऐसा ही लगता है.

4. केजरीवाल अब मोदी के चैलेंजर तो नहीं लगते

अरविंद केजरीवाल को लोगों ने न सिर्फ दिल्ली की कुर्सी तीसरी बार सौंप दी, बल्कि एमसीडी की सत्ता भी उनके हवाले कर डाली.

कामयाबी का नशा अरविंद केजरीवाल पर ऐसे हावी हुआ कि वो दिल्ली से निकल कर पूरे देश में पैठ बनाने में जुट गये. आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाने के बाद तो अरविंद केजरीवाल जमीन छोड़ कर उड़ने ही लगे थे, लेकिन अब तो लगता है जमीन ही खिसक चुकी है – क्योंकि दिल्ली शराब नीति केस में केजरीवाल का दावा  दिल्लीवालों ने अपने हिसाब से खारिज कर दिया है.

चाहे मनीष सिसोदिया को जेल भेजे जाने से पहले उनके खिलाफ ईडी की जांच पड़ताल हो, या फिर संजय सिंह की गिरफ्तारी  – ऐसे हर मौके पर आम आदमी पार्टी के नेताओं ने अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने सबसे बड़े चैलेंजर के तौर पर पेश किया.
एग्जिट पोल के नतीजों ने साफ कर दिया है कि अरविंद केजरीवाल अब मोदी के चैलेंजर तो नहीं हैं.

5. मुफ्त की चीजों को दिल्ली के लोगों ने ‘रेवड़ी’ मान लिया

अरविंद केजरीवाल का लगातार दावा है कि वो लोगों को बिजली,पानी,शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं मुफ्त देना चाहते है और उसीसे भाजपा की मोदी सरकार उन्हें जेल भेज 24 घंटे जेल में सीसीटीवी से उनकी निगरानी करती है.

अरविंद केजरीवाल की मुफ्त की चीजों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेवड़ी करार दिया था और अब तो लगता है,लोक सभा चुनाव में दिल्ली के लोगों ने भी मोदी की बात मान ली है,जब तक फाइनल नतीजे नहीं आ जाते,लगता तो ऐसा ही है.

क्या स्वाति मालीवाल फैक्टर महिला वोटरों के बीच केजरीवाल की छवि नहीं कर पाया धूमिल? क्या कहता है इंडिया टुडे-माई एक्सिस इंडिया एग्जिट पोल
इंडिया टुडे-माई एक्सिस इंडिया के एग्जिट पोल आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली के ज़्यादातर वर्गों में आम आदमी पार्टी गठबंधन और कांग्रेस ने 2019 के पिछले लोकसभा चुनावों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है. लेकिन सबसे ज़्यादा रोचक आंकड़े महिला वोटरों के भाजपा और इंडिया गठबंधन के घटक दलों में बंटवारे को  लेकर दिखता है.


लोकसभा चुनाव ठीक पहले महत्वपूर्ण घटना थी आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल पर मुख्यमंत्री निवास में हमला. आरोप अरविंद केजरीवाल के पीए विभव कुमार पर लगे कि उन्होंने दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष स्वाति से बदसलूकी कर पीटा भी. भाजपा ने हाथोंहाथ  विषय लपका और प्रदर्शन भी किए ताकि महिला वोटरों में इंडिया गठबंधन को नुकसान पहुंचे. इंडिया टुडे-माई एक्सिस इंडिया के एग्जिट पोल में अलग-अलग वर्गों ने किसे वोट किया, इसकी भी पड़ताल की गई.

एग्जिट पोल आंकड़ों के अनुसार दिल्ली के ज़्यादातर वर्गों में आम आदमी पार्टी गठबंधन और कांग्रेस ने 2019 के पिछले लोकसभा चुनावों से बेहतर प्रदर्शन किया है. लेकिन सबसे ज़्यादा रोचक आंकड़े महिला वोटरों में भाजपा और इंडिया गठबंधन के घटक दलों के बीच किसका पलड़ा भारी रहा उसे लेकर दिखता है.

स्वाति मालीवाल एपिसोड के बावजूद भाजपा को उठाना पड़ा नुकसान
इंडिया टुडे-माई एक्सिस इंडिया का एग्जिट पोल साफ बताता है कि भाजपा की लोकप्रियता 2019 के मुकाबले महिला वोटरों में कम हुई है. हालांकि अब भी लगभग 50% महिला वोटर भाजपा को ही वोट दे रहीं हैं लेकिन ये आंकड़ा पिछले चुनावों की तुलना में 4% कम है. वहीं आम आदमी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन को लगभग 47% महिला वोटरों का साथ मिल रहा है जो कि 2019 से लगभग 4% अधिक है. यानि अब भी भाजपा इस सेगमेंट में इंडिया गठबंधन के मुकाबले बीस तो है लेकिन मामला कांटे का है। एग्जिट पोल के आंकड़े इतना बताने को तो काफी हैं ही कि भाजपा जैसे चुनावों से ठीक पहले स्वाति मालीवाल पर हुए हमले का फायदा लेना चाहती थी उतना मिल नहीं पाया, उल्टे थोड़ी सिम्पैथी विरोधी गठबंधन को मिल गई।
गौरतलब है कि दिल्ली में महिलाएं केंद्र की तमाम योजनाओं के बावजूद अरविंद केजरीवाल सरकार की योजनाओं से ज्यादा प्रभावित दिखतीं हैं जिनमें एक हज़ार रुपए प्रति माह देने का दिल्ली सरकार का वायदा और बसों में मुफ्त यात्रा जैसी स्कीम भी शामिल हैं. पुरुष वोटर रुझान में दिल्ली के 58% वोटर भाजपा और 41% वोटर इंडिया गठबंधन को समर्थन देते दिखते हैं. यानि दिल्ली के पुरुष वोटरों की तुलना में भाजपा के प्रति महिला वोटरों में लगभग 8% का रुझान कम दिख रहा है.

बाकी वर्गों का अलग-अलग पार्टियों को लेकर कैसा रहा रुझान

जातिगत नजरिए से देखें तो इंडिया टुडे-माई एक्सिस इंडिया एग्जिट पोल के आंकड़ों में दलितों की पहली पसंद इंडिया गठबंधन रहा जहां उन्हें 53% वोट का अनुमान है वहीं भाजपा को दलितों के 45% वोट शेयर से संतुष्ट होना पड़ेगा. इस सेगमेंट में भी 2019 को मुकाबले भाजपा को 3% नुकसान उठाना पड़ रहा है तो इंडिया गठबंधन को उतने ही प्रतिशत वोटों का फायदा है. इसका मतलब ये हुआ कि संविधान बदलने की बात को लेकर काफी बड़ा वर्ग तो नहीं लेकिन एक छोटा हिस्सा भाजपा से छिटक रहा है, लेकिन इसकी भरपाई भाजपा ओबीसी और सामान्य वोटों से करती दिखती है. जहां 66% ओबीसी वोटरों की पहली पसंद भाजपा है वहीं मात्र 33% ओबीसी इंडिया गठबंधन के साथ हैं।
सामान्य श्रेणी में तो भाजपा के समर्थन का आंकड़ा 68% तक है तो वहीं इंडिया गठबंधन के लिए सिर्फ 31%। मुसलमान 89% आम आदमी पार्टी-कांग्रेस के साथ हैं तो 7% वोट भाजपा को भी मिलने का अनुमान है.हालांकि ओबीसी,सामान्य और मुस्लिम वोटरों में भी भाजपा को पिछले चुनावों के मुकाबले 1 से लेकर 3% वोटों के नुकसान की बात कही गई है.

दिल्ली वालों के रुझान पर क्या कहता है एग्जिट पोल

दिल्ली और देश में इन चुनावों में बेरोजगारी बड़ा विषय रहा लेकिन एग्जिट पोल के आंकड़ें देखें तो बेरोजगारों में भी भाजपा बाजी मारती दिखती है. आंकड़ों के मुताबिक इस वर्ग में 56% भाजपा का समर्थन कर रहे हैं तो बस 42% इंडिया घटक दलों का. श्रमिकों यानि लेबर क्लास में भी भाजपा पहली पसंद है जहां उसे 52% वोट मिलने की उम्मीद है जो इंडिया गठबंधन के 47% से लगभग 5% अधिक है. किसानों में 57% भाजपा के साथ बताए गए हैं तो स्क्लिड लेबर में 60% के समर्थन का अनुमान बताया गया है.किसानों और स्क्लिड लेबर श्रेणी में आम आदमी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन को मात्र क्रमशः 38 और 39% वोट मिलने की संभावना है.

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