विश्लेषण:भाजपा बिना नितीश जीत सकती है 40 लोकसभा सीटें?
संपादकीय:कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न के बाद BJP को बिहार में नीतीश कुमार की कितनी जरूरत ?
तो क्या यह भी समझें कि अब नीतीश कुमार की जरूरत भाजपा को नहीं रही ? भाजपा अकेले बिहार में भाजपा के लिए लोकसभा की सभी 40 सीटें जीतने में सक्षम हो गई है?
नीतीश कुमार को लेकर एनडीए ऊहापोह की स्थिति में
नई दिल्ली,25 जनवरी 2024,नीतीश कुमार के परिवारवाद वाले बयान के बाद बिहार की महागठबंधन सरकार में बवाल मचा है. लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने ट्वीट करके नीतीश कुमार पर जम कर निशाना साधा है. ऐसे समय समझा जा रहा है कि नीतीश कुमार और लालू यादव की जोड़ी बहुत जल्दी टूटने को है. दूसरी तरफ बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न देकर केंद्र की एनडीए सरकार ने लोकसभा चुनावों को इंडिया गठबंधन के नेताओं से बढ़त ले ली है. कर्पूरी ठाकुर बिहार में सामाजिक न्याय के मसीहा रहे हैं. पिछड़े तबके को सबसे पहले आरक्षण देना उन्होंने ही शुरूआत किया था . यही नहीं, ईबीसी और ओबीसी को अलग-अलग आरक्षण देना भी उन्होंने ही शुरू किया था.
कहा जा रहा है कि बिहार की महागठबंधन सरकार के जाति जनगणना कराने और पिछड़ों को 75 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा के तोड़ के रूप में भाजपा सरकार ने जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का फैसला किया. तो क्या यह मान लिया जाए कि भाजपा के इस एक फैसले से बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की जोड़ी पर भाजपा भारी पड़ने वाली है? तो क्या यह भी समझा जाए कि अब नीतीश कुमार की जरूरत भाजपा को नहीं रही ? भाजपा अपने आप सक्षम हो गई है कि वो बिहार में लोकसभा की सभी 40 सीटें जीत सके? आइये इन तमाम सवालों का जवाब ढूंढते हैं.
बिहार में जाति की राजनीति
पिछले साल दो अक्तूबर को बिहार सरकार ने जातिगत सर्वेक्षण के आंकड़े जारी किए थे. इसके अनुसार बिहार की कुल जनसंख्या क़रीब 13 करोड़ है और इनमें सबसे अधिक संख्या अत्यंत पिछड़ा वर्ग की है. ये राज्य की कुल जनसंख्या के करीब 36 प्रतिशत हैं. दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या पिछड़ा वर्ग की है, जो राज्य में 27.12 प्रतिशत हैं. इन दोनों को मिलाकर करीब 64 प्रतिशत के करीब राज्य में पिछड़ा वर्ग है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सर्वे को आधार मानकर राज्य में आरक्षण की परिधि बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दी.
बिहार के ओबीसी वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा अब तक लालू यादव और नीतीश कुमार की पार्टियों के ही साथ रहा . इसके बाद जातिगत सर्वे और उसके बाद आरक्षण की परिधि बढ़ाने से निश्चित है कि इस वर्ग में नीतीश और लालू की पैठ और बढ़ी होगी.
जाहिर है कि केंद्र सरकार कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर पिछड़ी जातियों के वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रही है. हालांकि कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग हमेशा से ही आरजेडी और जेडीयू के नेता करते रहे हैं, पर भाजपा ने भारत रत्न देकर अति पिछड़ी जातियों को अपना बनाने की कोशिश की है.
बिहार में एनडीए के साथ अभी दलित नेता के रूप में जीतन राम मांझी और चिराग पासवान हैं.भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी भी पिछड़ी जाति से हैं. बिहार में नीतीश कुमार के साथ जब भाजपा सरकार बनी थी तब दोनो उपमुख्यमंत्री भी पिछड़ी जातियों से थे.बिहार में पिछले लोकसभा चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि आरजेडी एक भी लोकसभा सीट जीत नहीं पाई थी.मतलब साफ है कि भाजपा को पिछ़ड़ों और अति पिछड़ों का वोट मिला था. हां एक बात ध्यान देने की है कि पिछली बार भाजपा के साथ नीतीश कुमार थे जो अभी तक महागठबंधन के साथ हैं.
जाति जनगणना का तोड़ निकालने में बहुत दिनों से लगी थी भाजपा
बिहार में जाति जनगणना का मुद्दा छेड़कर महागठबंधन ने बहुत पहले से भाजपा पर बढ़त ले ली थी. कांग्रेस ने भी हाल फिलहाल जाति जनगणना को राष्ट्रीय विषय बनाने में बड़ी भूमिका निभाई. राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनावों में हर सभा में जाति जनगणना उठा रहे थे.पर बिहार सरकार ने सबसे पहले जाति जनगणना करा के उसके आधार पर रिजर्वेशन को भी बढ़ा दिया है. जाति सर्वे के क्रियान्वयन के आधार पर प्रदेश के सबसे गरीब करीब 95 लाख लोगों के सेल्फ एम्प्लॉयमेंट को सरकार हर घर को करीब 2 लाख रुपये देने की घोषणा कर चुकी है.
भाजपा ने यूं तो कभी जाति जनगणना का विरोध नहीं किया पर जाति जनगणना कराने का वादा भी नहीं किया. बिहार में जाति जनगणना की मांग का हमेशा से ही बिहार भाजपा इकाई ने समर्थन किया. सुप्रीम कोर्ट में भी बिहार सरकार के जाति जनगणना के फैसले का कभी केंद्र सरकार ने विरोध नहीं किया.उत्तर प्रदेश में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस,असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा आदि ने भी हमेशा जाति जनगणना का समर्थन ही किया है.
भाजपा की तैयारी थी कि वो जाति जनगणना के तोड़ को रोहिणी कमीशन रिपोर्ट लागू कर दे। बताते हैं कि इस रिपोर्ट में पिछड़े वर्ग को मिलने वाले 27 प्रतिशत आरक्षण को बांटने की सिफारिश है. पर बिहार में यह बंटवारा पहले से ही है.इसलिए इसका कोई विशेष लाभ भाजपा को नहीं होना था। शायद यही कारण है कि रोहिणी कमीशन पर अभी एक्शन नहीं हो रहा है.
क्या नीतीश बिना बिहार में सभी 40 लोकसभा सीटें जीतने में सक्षम है भाजपा ?
भाजपा को बिहार की सभी 40 सीटें जीतना जरुरी है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2024 में केंद्र में सरकार बनाने को भाजपा को बिहार में 40 में से 37 सीटें जीतनी होंगी.पिछली बार भाजपा के साथ नीतीश कुमार और स्वर्गीय रामविलास पासवान भी साथ थे इसलिए एनडीए ने एक सीट छोड़कर बिहार की सारी सीटें जीत ली थीं. भाजपा को 17 सीट मिली,16 सीट जद(यू) की झोली में गई और एलजेपी को 6 सीट मिली थी.नीतीश कुमार के पाला बदल लेने से वह प्रदर्शन दोहराना असंभव हो चुका है.यही कारण है कि एनडीए नीतीश को साथ लेने या ना लेने के असमंजस में है.
हाल के कुछ चुनाव देखें तो भाजपा सबसे ज्यादा वोट पाने वाली पार्टी बनी है इसका अपना वोट शेयर विधानसभा चुनावों में 20 प्रतिशत तथा लोकसभा के चुनावों में 25 प्रतिशत रहा है. आरजेडी का वोट शेयर पिछले विधानसभा चुनाव में 23 प्रतिशत था लेकिन लोकसभा चुनावों में कुछ अंकों की गिरावट रही. जेडीयू का वोट शेयर विधानसभा और लोकसभा दोनों ही चुनावों में लगभग 15 प्रतिशत है. अन्य दलों का वोट शेयर 10 प्रतिशत से कम रहा है जैसे, कांग्रेस का 7-9 प्रतिशत, वाम दलों का 4-5 और एलजेपी का 6 प्रतिशत.इस तरह महागठबंधन का वोट शेयर 45% है और एनडीए अपने 35 प्रतिशत के वोट शेयर के साथ कमजोर दिखती है.हालांकि उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए में आने और कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने से भाजपा के पक्ष में अति पिछड़ों की आने की हवा बन रही है. पर भाजपा लोकसभा चुनावों में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती.इसी से नीतीश भाजपा को जरूरी हो जाते हैं.
नीतीश कुमार की जरूरत भाजपा को नहीं रही ?
नीतीश कुमार के बारे में कहा जा रहा है कि वो कभी भी पलटी मारकर फिर एनडीए के साथ आ सकते हैं. एनडीए भी उनकी प्रतीक्षा कर रहा है. भाजपा को भी बिहार की राजनीति में कोई बड़ा चेहरा चाहिए. नीतीश कुमार के बिना एनडीए भी लोकसभा चुनावों में नहीं उतरना चाहता. पर बिहार भाजपा इकाई इसका विरोध कर रही है. बिहार भाजपा के नेताओं की मान्यता है कि राज्य में महागठबंधन को हराने में भाजपा अकेले ही सक्षम है. नीतीश कुमार के आने से स्थिति कमजोर होगी क्योंकि तब नितीश का एंटीइंकंबेंसी वोट भाजपा को नहीं मिलेगा. अतिपिछड़ों का जो वोट नीतीश के नाम पर मिलता रहा है वो जरूर भाजपा को मिल सकता है. क्योंकि बिहार में लालू राज में अति पिछड़े भी प्रताड़ित रहे हैं. अति पिछडे वोटर्स को पता है कि अगर गठबंधन को वोट दिया तो अगला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो होंगें नहीं . महागठबंधन के जीतने पर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनेंगें. इसलिए अति पिछड़ों के नीतीश समर्थक वोट बहुत संभव है कि भाजपा के साथ जाए. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने, मध्यप्रदेश-राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पिछड़े और दलितों आदि को उचित प्रतिनिधित्व मिलने से भाजपा के प्रति इस वर्ग का समर्थन लगातार बढ़ रहा है. यही कारण है कि नीतीश कुमार तो लगातार ऐसे संदेश दे रहे हैं कि वो एनडीए में आने को तैयार हैं पर भाजपा की ओर से अभी बहुत उत्साह नहीं दिखाया जा रहा है. हो सकता है भाजपा इसलिए भी अधिक उत्साह नहीं दिखा रही हो क्योंकि वो चाहती हो कि नीतीश कुमार अपनी नहीं भाजपा की शर्तों पर एनडीए ज्वाइन करें.
नीतीश के बिना भी भाजपा को मिल रही जीत
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस साल अगस्त में भाजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद कुढ़नी उपचुनाव का परिणाम भाजपा की बड़ी जीत मानी जाती है.उपचुनाव के नतीजे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बड़ा झटका थे. नीतीश कुमार ने पार्टी उम्मीदवार के लिए इस सीट पर जोरदार प्रचार किया था.उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कुढ़नी में चुनाव प्रचार में मतदाताओं से जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवार को वोट देने की भावनात्मक अपील भी की थी और कहा था कि वह उपचुनाव में महागठबंधन की जीत की खुशखबरी अपने पिता और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद को देना चाहते हैं. तेजस्वी ने अपने पिता लालू यादव के सिंगापुर में किडनी ट्रांसप्लांट का ऑपरेशन का भी हवाला दिया फिर भी मतदाताओं पर कोई असर नहीं हुआ.
नीतीश कुमार के एनडीए गठबंधन से बाहर होने के बाद बिहार में यह पहला चुनाव था जहां जनता दल यूनाइटेड का सीधा मुकाबला भाजपा से था. कुढ़नी उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवार को 3632 मतों के अंतर से हराया. भाजपा उम्मीदवार केदार प्रसाद गुप्ता ने 76648 वोट पाये जबकि जेडीयू उम्मीदवार मनोज कुशवाहा को 73016 वोट मिले. इससे पहले नवंबर में गोपालगंज और मोकामा में उपचुनाव हुए थे जहां दोनों सीटों पर भाजपा का सीधा मुकाबला आरजेडी से था. भाजपा ने आरजेडी को हराकर गोपालगंज सीट बनाये रखी थी, जबकि आरजेडी ने मोकामा सीट जीती थी.निषाद नेता मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) जिसने इस सीट से भूमिहार जाति के नीलाभ कुमार को मैदान में उतारा था वो भूमिहार वोटों को विभाजित करने में विफल रही और भाजपा जीत गई. नीलाभ को 9988 वोट मिले.
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