फैक्ट चैक:गधी का दूध 7000 नहीं तो 3000रूपये लीटर तो है ही
गधी का दूध भारत में 7,000 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है- जानें हक़ीक़त: फ़ैक्ट चेक
गधी का दूध
किसी को गधा कहना मूर्ख कहा जाना समझा जाता है. इसके अलावा कई लोग आम बोलचाल में लगातार काम करने वालों को ‘गधे की तरह काम करने वाला’ भी कहते हैं.
भारत में गधों का इस्तेमाल बोझा ढोने में होता है लेकिन मोटर वाहन के आने पर गधों की संख्या में काफ़ी कमी आई . लेकिन अब गधों के बारे में ऐसी बातें सामने आ रही हैं जिससे शायद इनकी संख्या बढ़ाने में लोगों की दिलचस्पी जागे.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने एक ख़बर प्रकाशित की कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का हिसार (हरियाणा) में मौजूद राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (NRCE) जल्द ही गधी के दूध की डेयरी स्थापित कर रहा है.इस डेयरी में हलारी नस्ल के गधे रख उनका दूध निकाला जाएगा.
एबीपी न्यूज़, नवभारत टाइम्स, नैशनल हेराल्ड ने भी ख़बरों में दावा किया कि गधी का दूध 7,000 रुपये प्रति लीटर तक बिक सकता है.
इन ख़बरों में गधी के दूध के फ़ायदों के बारे में भी काफ़ी कुछ कहा गया था. आइये हम फ़ैक्ट चेक में जानते हैं कि गधी के दूध के क्या लाभ हैं और क्या इसकी क़ीमत 7,000 रुपये प्रति लीटर तक कैसे हो सकती है.
गधी के दूध के लाभ
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन ने अपने शोध में पाया है कि बहुत से जानवरों के दूध को कम करके आंका जाता है, इनमें गधी और घोड़ी का दूध भी है. गधी और घोड़ी के दूध में प्रोटीन ऐसा है कि जिन्हें गाय के दूध से एलर्जी है, यह उनके लिए बहुत बेहतर है. संगठन के अनुसार यह दूध इंसानी दूध जैसा है, जिसमें प्रोटीन और वसा की मात्रा कम है लेकिन लैक्टॉस अधिक है. यह जल्द ही फ़ट जाता है लेकिन इसका पनीर नहीं बन सकता है.
संयुक्त राष्ट्र का खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार इसका उपयोग कॉस्मेटिक्स और फ़ार्मास्युटिकल उद्योग में भी होता है क्योंकि कोशिकाएं ठीक करने और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के भी इसमें गुण हैं. कहा जाता है कि प्राचीन मिस्र की महिला शासक क्लियोपैट्रा अपनी ख़ूबसूरती को गधी के दूध में नहाती थीं.
NRCG के पूर्व निदेशक डॉक्टर एमएस बसु के अनुसार गधी के दूध के दो प्रमुख लाभ हैं, पहला यह महिला के दूध जैसा है, दूसरा इसके एंटी-एजिंग, एंटि-ऑक्सिडेंट और रीजेनेरेटिंग कंपाउंड्स त्वचा को पोषण देने के अलावा उसे मुलायम बनाते हैं.
डॉक्टर बसु कहते हैं, “भारत में गधी के दूध पर अभी बहुत अधिक रिसर्च होनी है क्योंकि लोगों को इसके फ़ायदों की जानकारी नहीं है जबकि यूरोपीय इसके बारे में काफ़ी जानते हैं, कामकाजी महिलाएं अपने नवजात बच्चों के लिए गधी का पाश्चुरिकृत दूध इस्तेमाल करती हैं और अब अमरीका में भी इसकी है.” “इसमें लैक्टॉज़, विटामिन ए, बी-1, बी-2, बी-6, विटामिन डी और विटामिन ई भी है. गधी के दूध से बने साबुन, क्रीम, मॉश्चराइज़र की बाज़ार में मांग है और भारत में महिलाएं गधी के दूध के बने इन उत्पादों का इस्तेमाल करती हैं.” भारत में अभी गधी के दूध से कम उत्पाद बन रहे हैं लेकिन इसमें जब बढ़ोतरी होगी तो गधी के दूध की कमी होगी क्योंकि भारत में गधों की संख्या लगातार कम हो रही है.
कितना दूध देती है गधी
एनआरसीई गधी के दूध डेयरी के लिए गुजरात से हलारी नस्ल के गधे ला रहा है. आणंद कृषि विश्वविद्यालय के पशु आनुवंशिकी और प्रजनन विभाग के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर डी.एन. रांक कहते हैं कि भारत में गधों की नस्लों के बारे में पहली बार इस तरह काम हुआ है. “भारत में गधों की सिर्फ़ स्पीति नस्ल मान्य थी अब गुजरात के जामनगर और द्वारका के हराली नस्ल के गधों को भी मान्यता है. यह गधे आम गधों से थोड़े ऊंचे और घोड़ों से थोड़े छोटे और सफ़ेद हैं. अब तक भारत में सड़कों पर घूमने वाले गधों की नस्ल की पहचान नहीं थी लेकिन अब दो नस्लों को पहचान मिलना अच्छी बात है.” गधों का ध्यान न रखने और उनसे बेतरतीब काम कराने से दूध नहीं मिलेगा. एक गधी दिन में अधिकतम आधा लीटर दूध देगी और गधी का दूध रख-रखाव के तरीक़े से घट बढ़ सकता है
7,000 रुपये लीटर है गधी का दूध?
गधी के दूध का कारोबार भारत में वैसे नहीं है जैसे यह यूरोप और अमरीका में शुरू हो चुका है. भारत में अभी शुरुआत है, गधी का दूध महंगा ज़रूर है लेकिन यह अभी 7,000 रुपये प्रति लीटर तक नहीं बिक रहा. विभिन्न मीडिया संस्थानों ने भी 7,000 रुपये प्रति लीटर का आंकड़ा विदेशों के हवाले से दिया है.
वहीं, डॉक्टर बसु कहते हैं कि यह अभी शुरुआत है लेकिन फ़ार्म में रखकर गधे पालने का चलन तमिलनाडु, केरल या गुजरात में कुछ ही लोगों ने किया है और इसकी ख़रीद-फ़रोख़्त अधिकतर ऑनलाइन है.
सलीम अब्दुल लतीफ़ दादर मुंबई से वेरी रेयर ऑनलाइन डॉट कॉम वेबसाइट चलाते हैं जो ऊंट, भेड़, गाय और गधी के दूध के साथ-साथ उससे बना घी और मिल्क पाउडर भी ऑनलाइन बेचती है. “गधे के दूध का दाम तय नहीं है। यह फ़ार्म से नहीं आता. हम अपने लोगों से गांव से यह दूध मंगवाते हैं. दूध अधिकतर दवाई और कॉस्मेटिक्स के इस्तेमाल को ही लोग लेते हैं.”
सलीम कहते हैं कि 7,000 रुपये प्रति लीटर इसका दाम तब हो सकता है जब इसे आप किसी के पास कहीं दूर भेज रहे हों क्योंकि यह जल्दी ख़राब हो जाता है, अगर आप इसे मुंबई में ही हाथों हाथ लें तो 5,000 रुपये प्रति लीटर में मिल जाएगा. सिर्फ़ साबुन और कॉस्मेटिक्स के उत्पाद से अलग यह पेट के बैक्टीरियल इन्फ़ेक्शन में भी बहुत काम आता है.
युवा स्टार्टअप ने तैयार किया Donkey Milk Soap
दिल्ली के युवा पूजा और ऋषभ गधी के दूध से साबुन तैयार करते हैं, जो पूरी तरह से ऑर्गेनिक है. गधों के पालन और प्रजनन से जुड़े लोगों से पूजा कौल और ऋषभ दूध खरीदकर साबुन तैयार करते हैं. गधी के दूध के साथ-साथ इसमें प्राकृतिक संघटक (Natural ingredients) नीम, ऐलोवेरा, चंदन, पपीता पाउडर, बादाम का तेल, हल्दी आदि मिलाई जाती है जो त्वचा के लिए काफी फायदेमंद माने जाते हैं.
ऑर्गेनिको स्टार्टअप के फाउंडर पूजा और ऋषभ ने गधी के दूध से बने साबुन की खासियत बताई कि गधी का दूध एंटी ऐजिंग मिल्क और नरिशमेंट कंडीशनिंग के तौर पर जाना जाता है इसमें ए, बी1, बी2, ब6, सी, डी, ई विटामिन और ओमेगा 3, ओमेगा 6, केल्शियम, जैसे ऐलीमेंटस हैं जो स्कीन की कई बीमारियों के साथ-साथ रिंकल, एक्जिमा भी कंट्रोल करते हैं. गधी के दूध के फायदे ध्यान में रख उन्होंने गधी के दूध से साबुन बनाना शुरू किया.
गधी के दूध में सेहत का खजाना
पूजा ने बताया कि इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन हैं जो प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने में बेहद कारगर हैं. ऋषभ ने बताया कि फिलहाल वे दो तरह के गधी के दूध के साबुन तैयार करते हैं पहला, जो गधी के दूध में शहद और चारकोल का इस्तेमाल करके बनाते हैं जो एक्ने और ऑयली त्वचा के लिए लाभदायक होता है. दूसरा, साबुन गधी के दूध में ऐलोवेरा, चंदन, नीम, पपीता, हल्दी और कई तरह के तेलों का इस्तेमाल कर तैयार किया जाता है जो नाज़ुक त्वचा के लिए काफी फायदेमंद होता है.
10 घंटे के अंदर इस्तेमाल करना होता है दूध
ऋषभ ने बताया कि गधी के दूध से साबुन बनाना आसान नहीं क्योंकि जो लोग गधी के पालन से जुड़े हैं, उन्हें समझाना पड़ता है और साथ ही गधी के दूध देने का समय सुबह 4 बजे से 6 बजे का होता है. दूध सिर्फ 10 घंटे के अंदर इस्तेमाल हो सकता है. इसलिए जिस दिन दूध निकालते है उसका उत्पादन भी उसी दिन करना होता है.
पूजा और ऋषभ ने बताया कि जब वह पढ़ाई कर रहे थे तब उन्हें डेयरी सेक्टर में कुछ नया करने का प्रोजेक्ट दिया गया था. इस प्रोजेक्ट के दौरान उनके दिमाग में यह विचार आया. उन्होंने तमाम अध्ययन के बाद इसे स्टार्टअप रुप में शुरू किया.
गधा पालकों की आमदनी में इजाफा
उन्होंने बताया कि इससे गधा पालन और प्रजनन से जुड़े लोगों को भी लाभ हो रहा है. उनकी आय बढ रही है. बहुत कम लोग जानते हैं कि गधी का दूध इतना लाभदायक होता है. कई जगहों पर 2000 से 3000 रुपये प्रति लीटर बिकता है. यानी कि एक चम्मच दूध की कीमत 50 से 100 रुपये है. पूजा ने बताया कि अभी फिलहाल वह गाज़ियाबाद के लोनी, डासना और महाराष्ट्र के सोलापुर से गधी का दूध खरीद रहे हैं. उनकी टीम में छ: सदस्य हैं जो इस प्रोजेक्ट से जुड़े हैं.
पूजा कौल ने बताया कि सिर्फ साबुन ही ऑर्गेनिक नहीं है बल्कि, साबुन की पैकिंग पर खास ख्याल रखा गया है. पैकिंग भी शतप्रतिशत इको फ्रेंडली है. सुपारी के पेड़ के छाल से साबुन का कवर तैयार करते हैं. जूट के बैग में साबुन दिया जाता है. मोदी सरकार ने जैसे स्टार्ट अप को बढ़ावा दिया है. इससे युवा नए-नए प्रयोग को तैयार हैं.
पूजा कौल
गधी के दूध के प्रॉडक्ट का स्टार्टअप
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस से एमए करने के बाद दिल्ली की पूजा कौल ने तय किया कि वो गधों से मज़दूरी करने वालों के लिए कुछ बेहतर करेंगी. इसके बाद उन्होंने महाराष्ट्र के कोल्हापुर में ऐसे मज़दूरों और किसान इकट्ठा किये जिनके पास गधे थे.
उन्होंने गधी का दूध सामान्य जन को बेचने को मॉडल तैयार किया लेकिन यह तब विफल रहा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने कुछ साथियों के साथ ‘ऑर्गेनिको’ नाम से स्टार्टअप शुरू किया जो गधी के दूध से स्किन केयर उत्पाद बनाकर बेचता है.
पूजा कहती हैं, “दिल्ली में इस स्टार्टअप की शुरुआत 2018 में हुई. हमने ग़ाज़ियाबाद और उसके आसपास के उन मज़दूर चिन्हित किये जो गधे रखते थे. वे इनसे दिन में 300 रुपये कमाते थे लेकिन हमने उन्हें दूध बेचने को राज़ी किया. शुरुआत में उनके घर की औरतों ने इस पर आपत्ति भी की. उनको लगता था कि हम दूध जादू-टोने को ले रहे हैं जिससे उनकी गधी मर जाएगी लेकिन फिर वे दूध देने लगे. आज जब बाकी लोगों को पता चलता है कि हम गधी का दूध ख़रीदते हैं तो कई लोगों के फ़ोन आते हैं.”
पूजा कहती हैं कि वो 2,000 से 3,000 रुपये प्रति लीटर के दाम में दूध ख़रीदती हैं और फ़िलहाल 7,000 रुपये प्रति लीटर दूध कहीं नहीं बिक रहा है क्योंकि इसका दूध किसी फ़ार्म से नहीं बिकता है.
गधी के दूध के बने साबुन, मॉश्चराइज़र और क्रीम अच्छी ख़ासी संख्या में अमेज़न और फ़्लिपकार्ट जैसे ऑनलाइन स्टोर पर मिल जाएंगे लेकिन आप शायद उनकी क़ीमत देखकर दांतों तले उंगलियां दबा लें.पूजा ख़ुद बताती हैं कि उनके 100 ग्राम साबुन की क़ीमत 500 रुपये है और इन्हें ख़रीदने वाला एक ख़ास वर्ग है.
भारत में गधों की स्थिति
गधी के दूध के दाम जहां हज़ार रुपये प्रति लीटर से ऊपर हैं वहीं गधों की संख्या एक लाख में सिमट चुकी है.
गधों की संख्या में 2012 के मुक़ाबले 61 प्रतिशत की गिरावट हुई है. 2012 में पशुओं की गणना में जहां गधों की संख्या 3.2 लाख थी वो 2019 की गणना में 1.2 लाख हो चुकी है.
गधों की कम होती संख्या में अगर गधी के दूध की मांग बढ़ी तो उसकी क़ीमत भी ऊपर जाएगी लेकिन फ़िलहाल फ़ैक्ट चेक पड़ताल में पता लग रहा है कि गधी के दूध की क़ीमत 7,000 रुपये प्रति लीटर नहीं हुई है.