आंदोलन साइड-इफेक्ट: विनिर्माण 30% डूबा, कारोबारियों को 14 हजार करोड़ का फटका
किसान आंदोलन का साइड इफेक्ट:बॉर्डर सील होने से मैन्युफैक्चरिंग 30% घटी, कारोबारियों को 14 हजार करोड़ से ज्यादा का नुकसान
बॉर्डर सील होने से मैन्युफैक्चरिंग 30% घटी, कारोबारियों को 14 हजार करोड़ से ज्यादा का नुकसान|
कारोबारी कहते हैं कि ट्रांसपोर्ट नहीं मिल रहा है, जो गाड़ी पहले साठ हजार रु में जाती थी, वो अब 1.2 लाख में जा रही हैं
नई दिल्ली 31 दिसंबर (पूनम कौशल)सिंघु बॉर्डर पर प्रिंटिंग प्रेस चलाने वाले एक कारोबारी किसानों के आंदोलन से इतना डरे हुए हैं कि अपना नाम जाहिर करके बात करने को तैयार नहीं होते। उनकी प्रिंटिंग यूनिट के सामने बीते 35 दिन से किसानों ने डेरा डाला हुआ है। जैसे-तैसे उनकी यूनिट तक पहुंचे एक ट्रक में कतरन और वेस्ट मटेरियल भरा जा रहा है। बीते एक महीने में पहली बार है, जब कोई बड़ा वाहन उनकी यूनिट तक पहुंचा।
उनका महीने का टर्नओवर करीब आठ लाख का है, जो अब आधा रह गया है। उनकी यूनिट में 12 कर्मचारी काम करते हैं, जिन्हें समय पर वेतन देने के लिए उन्हें अब लोन लेना होगा। तनाव उनके चेहरे पर साफ दिखता है। वो कहते हैं, ‘हम कोरोना से उबर ही रहे थे कि ये आफत आ गई।’
वे कहते हैं, ‘आधी लेबर को घर बैठाना पड़ा है, लेकिन तनख्वाह तो उन्हें भी देनी है, क्योंकि उनका परिवार भूखे तो रहेगा नहीं।’ दिल्ली को उत्तर प्रदेश, हरियाणा और आगे पंजाब व दूसरे राज्यों से जोड़ने वाले अहम नेशनल हाईवे इस समय किसानों के कब्जे में हैं। भारी वाहनों के लिए रास्ते बंद हैं। ट्रांसपोर्ट प्रभावित होने का सीधा असर उन हजारों मेन्यूफेक्चरिंग यूनिटों पर पड़ा है जो दिल्ली के बाहरी इलाकों में स्थिति इंडस्ट्रियल एरिया में हैं.
तीन नए कानूनों के खिलाफ किसान दिल्ली बॉर्डर पर पिछले एक महीना से डेरा डाले हुए है। उनकी मांग है कि सरकार इसे वापस ले।
कारोबारियों के मुताबिक इसके तीन बड़े कारण हैं
ट्रांसपोर्ट उपलब्ध नहीं है, जो है वो बहुत महंगा है। ना कच्चा माल आ पा रहा है, ना तैयार माल जा पा रहा है।
कारोबारियों में असुरक्षा का भाव है, जिसकी वजह से बाहरी कारोबारी अब मार्केट में पहुंच ही नहीं पा रहे।
बॉर्डर सील होने की वजह से लेबर का मूवमेंट भी प्रभावित हुआ है। मजदूर काम पर आने में कतरा रहे हैं।
मायापुरी इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के जनरल सेक्रेट्री नीरज सहगल कहते हैं, ‘सबसे ज्यादा परेशानी ट्रांसपोर्ट की है। जो गाड़ी पहले साठ हजार रुपये में जाती थी वो अब एक लाख 20 हजार रुपए तक में जा रही हैं। महंगे रेट पर भी ट्रांसपोर्ट नहीं मिल पा रहा है।’
‘हरियाणा-पंजाब से आने वाला कच्चा माल नहीं आ रहा। हम तैयार माल भी बाहर नहीं भेज पा रहे। कभी रेल बंद, कभी सड़क बंद, पूरा इको-सिस्टम ही खराब हो गया है। सरकार कमर्शियल ट्रैफिक के लिए रास्ते नहीं खुलवा पा रही है। ड्राइवर भी किसी ना किसी तरह किसान परिवारों से ही जुड़े हुए हैं। वो भी आंदोलनकारियों के सपोर्ट में आ जाते हैं।’
बॉर्डर सील होने की वजह से लेबर का मूवमेंट भी प्रभावित हुआ है। मजदूर काम पर आने से कतरा रहे हैं।
‘35% प्रोडक्शन कम हुआ’
बवाना चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के प्रेसिडेंट राज जैन के मुताबिक बवाना इंडस्ट्रियल एरिया में ही 17 हजार से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं। किसान आंदोलन की वजह से इनका उत्पादन 35% तक कम हुआ है। जैन कहते हैं, ‘रोजाना सैकड़ों करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। हम कनेक्टिविटी से जूझ रहे हैं। दिल्ली को बांध दिया गया है। दिल्ली बाहरी राज्य से एक तरह से कट गई है। दिल्ली में रहने वाले ऐसे बहुत से व्यापारी हैं जिनकी फैक्ट्रियां दिल्ली के बाहरी इलाकों में हैं। सुरक्षा कारणों और ट्रैफिक जाम की वजह से व्यापारी अपनी फैक्ट्रियों तक भी नहीं जा पा रहे हैं।’
नरेला इंडस्ट्रियल कांप्लेक्स वेलफेयर एसोसिएशन के जनरल सेक्रेट्री आशीष गर्ग कहते हैं, ‘दिल्ली की अपनी खपत बहुत कम है, अधिकतर माल यहां से बाहर भेजा जाता है। बाहर के व्यापारी इंडस्ट्री और मार्केट में आकर सामान खरीदते हैं। लेकिन अब आंदोलन की वजह से व्यापारी सुरक्षा को लेकर डरे हुए हैं। वो दिल्ली नहीं आ पा रहे हैं।’ वो कहते हैं, ‘दिल्ली में जगह की कमी की वजह से कुछ पार्ट दिल्ली में बनते हैं और कुछ बाहर बनवाए जाते हैं। दिल्ली की यूनिटों से सामान बाहर नहीं जा पा रहा है जिसकी वजह से सोनीपत या दूसरे इलाकों में स्थित सहयोगी यूनिटों में भी काम प्रभावित है।’
बादली इंडस्ट्रियल एरिया में संचालित प्रेस्टीज केबल इंडस्ट्रीज के मालिक आशीष अग्रवाल कहते हैं, ‘हमारे अनुमान के मुताबिक तीस से पैंतीस फीसदी तक का नुकसान है। तैयार माल के डिस्पैच ना होने की वजह से सरकारी एजेंसियां पेनल्टी भी लगा रही हैं, ये अलग मार है जो उत्पादकों पर पड़ रही है। हमारे लिए हालात फिर से कोविड लॉकडाउन जैसे ही हो गए हैं। ये किसान आंदोलन इंडस्ट्री के लिए अघोषित लॉकडाउन ही है।’
दिल्ली को उत्तर प्रदेश, हरियाणा और आगे पंजाब व दूसरे राज्यों से जोड़ने वाले अहम नेशनल हाइवे इस समय किसानों के कब्जे में हैं।
‘रोज 3 हजार करोड़ का नुकसान’
कंफेडरेशन ऑफ इंडियन ट्रेडर्स ने बीते सप्ताह आंकड़े जारी कर बताया था कि 20 दिसंबर तक ही कारोबारियों को चौदह हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका था। वहीं द एसोसिएशन ऑफ चैंबर ऑफ कॉमर्स (ASSOCHAM) के अनुमान के मुताबिक, किसान आंदोलन की वजह से रोजाना तीन-साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है।
किसान आंदोलन की वजह से कारोबारियों को कितना नुकसान हुआ है इसका सही आंकड़ा देना मुश्किल है लेकिन जिन कारोबारियों और इंडस्ट्री एसोसिएशन से जुड़े लोगों से भास्कर ने बात की है उन सभी का कहना है कि मैन्युफैक्चरिंग 30 से 35% तक प्रभावित है।
राज जैन कहते हैं, ‘इंडस्ट्री जैसे-तैसे कोरोना वायरस के इंपेक्ट से उबरने की कोशिश कर ही रही थी कि किसान आंदोलन ने नई मुसीबत खड़ी कर दी। इस मुद्दे पर राजहठ और बालहठ दोनों हो रहे है, हम व्यापारी कहां जाएं और किससे बात करें? इसकी वजह से जॉब लॉस भी हो रहा हैं, जिन पर कोई बात नहीं कर रहा। सरकार को किसान आंदोलन के समाधान को प्राथमिकता देनी चाहिए।’
वहीं नीरज सहगल कहते हैं, ‘मेरा सीधा सवाल है- सरकार को अगर कल इस समस्या का समाधान निकालना है तो आज क्यों नहीं निकाल रही है। इस मुद्दे को प्राथमिकता क्यों नहीं दी जा रही है। सारा मामला सरकार की प्राथमिकता का है। सरकार को कल के बजाए आज ही इस मुद्दे का समाधान करना चाहिए।’