‘किसानों’ की अड़ी: सरकार का कानून स्थगन व एमएसपी कमेटी भी नामंजूर,वापसी की ही जिद

सरकार की पेशकश नामंजूर:किसान बोले- कृषि कानूनों की वापसी से कम कुछ मंजूर नहीं, केंद्र ने डेढ़ साल कानून लागू न करने की बात कही थी

टीकरी बॉर्डर पर गुरुवार को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक हुई। इस दौरान आंदोलन में शामिल सभी किसान संगठनों के नेता मौजूद रहे।
टीकरी बॉर्डर पर गुरुवार को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक हुई। इस दौरान आंदोलन में शामिल सभी किसान संगठनों के नेता मौजूद रहे।

देहरादून 21 जनवरी। किसानों ने कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक टालने की सरकार की पेशकश खारिज कर दी है। टीकरी बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा की गुरुवार को हुई बैठक में ये फैसला लिया गया। मोर्चा की फुल जनरल बॉडी मीटिंग में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने और फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी जामा पहनाने की मांग दोहराई गई।

बैठक के बाद किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहां ने कहा, ‘सरकार जब तक कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती, उसका कोई भी प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया जाएगा। कल हम सरकार को कहेंगे कि इन कानूनों को वापस कराना और MSP पर कानूनी अधिकार लेना ही हमारा लक्ष्य है। हमने सर्वसम्मति से ये फैसला लिया है।’ सरकार ने बुधवार को किसानों के साथ 11वें दौर की बातचीत में नए कानून डेढ़ साल तक लागू न करने की पेशकश की थी

सरकार ने दिए थे किसानों को दो प्रपोजल

किसानों के साथ 11वें राउंड की बातचीत 20 जनवरी को हुई थी। केंद्र ने इस बैठक में किसान नेताओं को दो प्रपोजल दिए। केंद्र ने किसानों के सामने प्रस्ताव रखा कि डेढ़ साल तक कृषि कानून लागू नहीं किए जाएंगे और वो इस संबंध में एक हलफनामा कोर्ट में पेश करने को तैयार है। इसके अलावा MSP पर बातचीत के लिए नई कमेटी का गठन किया जाएगा।

कृषि मंत्री ने जताई थी समाधान की उम्मीद

इस बैठक के बाद नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था, ‘मुझे लगता है 22 तारीख को समाधान की संभावना है। हमने किसानों को प्रस्ताव इसलिए दिया है, क्योंकि आंदोलन खत्म हो और जो किसान कष्ट में हैं, वो अपने घर जाएं।’

किसानों ने NIA की कार्रवाई पर ऐतराज जताया था

11वें राउंड की बैठक के दौरान किसानों ने कहा था कि सरकार हमारी प्रमुख मांगों पर कोई बातचीत नहीं कर रही है। MSP को लेकर हमने चर्चा की बात कही तो केंद्र ने कानूनों का मुद्दा छेड़ दिया। किसान नेताओं ने आंदोलन से जुड़े लोगों को नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) की तरफ से नोटिस भेजने का भी विरोध किया था। संगठनों ने कहा कि NIA का इस्तेमाल किसानों को परेशान करने के लिए किया जा रहा है।

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Farmers Protest: किसान संगठनों ने 11वें दौर की बातचीत से पहले खारिज किए केंद्र सरकार के प्रस्ताव

केंद्र सरकार के कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक रोकने और बातचीत के लिए एक समिति बनाने के प्रस्ताव को किसान संगठनों ने खारिज कर दिया है। बुधवार को दसवें दौर की बैठक में केंद्र सरकार ने किसान संगठनों को ये प्रस्ताव दिए थे।

हाइलाइट्स:
किसान संगठनों ने केंद्र सरकार के प्रस्ताव खारिज किए
कृषि कानूनों पर अमल टालने और समिति बनाने का दिया गया था प्रस्ताव
शुक्रवार को होगी सरकार और किसानों के बीच 11 वें चरण की बैठक

किसान संगठनों ने गुरुवार को 3 कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक टालने और समाधान का रास्ता निकालने के लिए एक समिति के गठन संबंधी केन्द्र सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। संयुक्त किसान मोर्चा के तत्वावधान में किसान नेताओं ने सरकार के इस प्रस्ताव पर सिंघु बॉर्डर पर एक मैराथन बैठक में यह फैसला लिया। शुक्रवार को सरकार और किसान सगंठनों के बीच 11वें दौर की बैठक से पहले किसानों ने यह फैसला लिया है। हालांकि एक अन्य किसान नेता ने कहा कि अभी बैठक चल रही है और ऐसा कुछ फैसला नहीं हुआ है।

किसान नेता दर्शन पाल की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, ‘संयुक्त किसान मोर्चा की आम सभा में सरकार द्वारा रखे गए प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया।’ उन्होंने कहा, ‘आम सभा में तीन केंद्रीय कृषि कानूनों को पूरी तरह रद्द करने और सभी किसानों के लिए सभी फसलों पर लाभदायक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए एक कानून बनाने की बात, इस आंदोलन की मुख्य मांगों के रूप में दोहराई गई।’

बैठक के बाद किसान नेता जेगिंदर एस उग्रहान ने ने कहा, ‘यह फैसला लिया गया है कि जब तक सरकार कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती, इसके प्रस्तावों स्वीकार नहीं किया जाएगा। हमारी केवल एक ही मांग है कि कानूनों को वापस लिया जाए और एमएसपी को कानूनों मान्यता दी जाए। आज यही फैसला हुआ है।’

वहीं सरकार के प्रस्ताव को खारिज करने की खबरों पर भारतीय किसान यूनियन के किसान नेता जगजीत से दल्लेवाल देर शाम मीडिया कहा, ‘ बैठक जारी है, ऐसा कोई फैसला नहीं लिया गया है।’ सयुंक्त किसान मोर्चा ने दावा किया कि अब तक इस आंदोलन में 147 किसानों की मौत हो चुकी है। उन्हें आम सभा ने श्रद्धाजंलि अर्पित की। बयान में कहा गया, ‘इस जनांदोलन को लड़ते-लड़ते ये साथी हमसे बिछड़े है। इनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।’ मोर्चा की बैठक अपराह्र लगभग ढाई बजे शुरू हुई थी।

बुधवार को हुई 10वें दौर की वार्ता में सरकार ने किसान संगठनों के समक्ष तीन कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक स्थगित रखने और समाधान का रास्ता निकालने के लिए एक समिति के गठन का प्रस्ताव दिया था। दोनों पक्षों ने 22 जनवरी को फिर से वार्ता करना तय किया था। इस बीच, उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित समिति ने वार्ता शुरू कर दी और इस कड़ी में उसने आठ राज्यों के 10 किसान संगठनों से संवाद किया।
उच्चतम अदालत ने 11 जनवरी को तीन कृषि कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी और गतिरोध को दूर करने के मकसद से चार-सदस्यीय एक समिति का गठन किया था। फिलहाल, इस समिति मे तीन ही सदस्य हैं क्योंकि भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने खुद को इस समिति से अलग कर लिया था।

सुप्रीम कोर्ट की कमिटी ने 8 राज्यों के 10 किसान संगठनों से की बातचीत

समिति ने एक बयान में कहा कि गुरुवार को विभिन्न किसान संगठनों और संस्थाओं से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात की गई। इसमें कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना, तमिलनाडु, और उत्तर प्रदेश के 10 किसान संगठन शामिल हुए। इससे पहले इन कानूनों के खिलाफ गणतंत्र दिवस पर किसानों की ओर से प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली के संदर्भ में दिल्ली पुलिस और किसान संगठनों के बीच दूसरे चरण की बातचीत हुई जो बेनतीजा रही।
आपको बता दें कि हजारों की संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर पिछले करीब दो महीने से आंदोलन कर रहे हैं। वे नये कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी किसानों का आरोप है कि इन कानूनों से मंडी व्यवस्था और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की प्रणाली समाप्त हो जाएगी और किसानों को बड़े कॉरपोरेट घरानों की ‘कृपा’ पर रहना पड़ेगा। हालांकि, सरकार इन आशंकाओं को खारिज कर चुकी है।

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