पुण्य स्मृति:अंडमान जेल में बेतों के निशान बलिदानी जयदेव कपूर के शरीर पर रहे मरते दम तक
…….. चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।🙏🙏🌹🌹🌹🌹
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🔥 क्रांतिकारी *जयदेव कपूर * 🔥
राष्ट्रभक्त साथियों, जब जब मातृभूमि की परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़ने की बात आएगी, तब तक अवश्य ही सरदार भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त तथा उनकी क्रान्तिकारी संस्था हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन *(HSRA)* से जुडे़ साथियों को भी याद किया जायेगा। साथियों आज के दिन उसी क्रान्तिकारी टीम के एक महत्वपूर्ण साथी जयदेव कपूर के 26वीं पुण्यतिथि पर उनके महान योगदान की बात करते हैं। *दीपों के पर्व* दीपावली की पूर्व संध्या पर 24.10.1908 को हरदोई, उत्तर प्रदेश में आर्य समाजी पिता, शालिग्राम कपूर के घर जन्मे जयदेव कपूर ने छोटे महाराज और ठाकुर राम सिंह के संरक्षण में कुश्ती सीखी। कानपुर के डीएवी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वह शिव वर्मा जी के साथ, शचींद्रनाथ सान्याल के गठित HSRA में शामिल हो गए। कुछ साल बाद (1925–27), जयदेव कपूर को बनारस में क्रांतिकारी नेटवर्क विकसित करने का काम सौंपा गया। तदनुसार, उन्होंने हिंदू बनारस विश्वविद्यालय में BSC पाठ्यक्रम के लिए दाखिला लिया। भगत सिंह उनके साथ लिम्बडी छात्रावास में उनके पास ही रूके थे।
📝जयदेव कपूर भारत भर में संचालित क्रांतिकारियों की अब तक की प्रसिद्ध बैठक में भाग लेने वाले थे, जिसे *फिरोजशाह कोटला के खंडहरों में 08 से 09 सितंबर 1928 को आयोजित किया गया था। इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि HSRA के दो विंग होंगे। एक प्रशासनिक और एक सैन्य। जयदेव कपूर सैन्य शाखा का हिस्सा थे।* एक दिन अंग्रेजी वायसराय लॉर्ड इरविन पर बम फेंकने की योजना बनाई गई तो बम फेंकने की जिम्मेदारी जयदेव कपूर को ही दी गई थी, लेकिन वायसराय के सुरक्षा दस्ते ने ऐन मौके पर उस दिन रास्ता ही बदलवा दिया। हालांकि सारे क्रांतिकारी इसी बात से खुश थे कि अब वायसराय को भी उनसे खौफ लगने लगा है। जयदेव कपूर ने भी असेंबली में बम विस्फोट केस में भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जब *”व्यापार विवाद विधेयक और जन सुरक्षा विधेयक”* बिलों के विरोध के लिए सेंट्रल असेम्बली में बम फेंकने की योजना बनी तो सबसे पहले जयदेव कपूर ने असेम्बली का दौरा किया था। जयदेव कपूर ने खुद को दिल्ली यूनीवर्सिटी का अर्थशास्त्र का छात्र बताकर सेंट्रल असेम्बली की लाइब्रेरी का इस्तेमाल करने की अनुमति ले ली थी, फिर कई दिन जाकर जयदेव कपूर ने सेंट्रल असेम्बली के एक क्लर्क से दोस्ती कर ली और उसके जरिए वो अंदर घुसने के पास की व्यवस्था करने में सफल रहे।
📝ऐसे ही पास लेकर एक बार जयदेव कपूर ने शिव वर्मा के साथ-साथ चंद्रशेखर आजाद को भी पूरी सेंट्रल असेम्बली का निरीक्षण करवाया। खासतौर पर उस हॉल का जहाँ बम फेंकना था। फिर बम फेंकने की तारीख तय की गई, 08 अप्रैल 1929 तो उससे एक सप्ताह पहले भगत सिंह के साथ साथ बटुकेश्वर दत्त को भी जयदेव कपूर ने ही असेम्बली के एंट्री पास लाकर दिए। वहाँ से बाहर निकलने के रास्तों की जांच पड़ताल की। जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने बम फेंक दिए, तो शिव वर्मा और जयदेव कपूर वो पर्चा फेंकने में जुट गए, जो सुखदेव ने बलराज यानी आजाद के नाम से लिखा था। भगत सिंह ने पिस्तौल निकाल ली, कुछ फायर किए, तो जयदेव कपूर शिव वर्मा को लेकर अफरातफरी में वहां से निकल गए, जैसा कि पहले से तय था। उनको वो पास लेकर भी वहाँ से जाना था, ताकि बाकी साथियों पर आंच ना आए। भगत सिंह की प्रसिद्ध हेट-बेयरिंग तस्वीर को असेंबली बमबारी से कुछ दिन पहले लिया गया था। जयदेव कपूर ने ही स्टूडियो की व्यवस्था की थी। यह तस्वीर रामनाथ फोटोग्राफर कश्मीरी गेट में दिल्ली में खींची गई थी। जयदेव कपूर ने खासतौर पर इसके लिए बम बनाने की ट्रेनिंग ली थी। बाद में HSRA का मुख्यालय आगरा से दिल्ली कर दिया गया।
📝दिल्ली के बम बाद फैक्ट्री उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में लगाने की योजना बनी, जिसके लिए डाक्टर गयाप्रसाद कटियार के साथ जयदेव कपूर और शिव वर्मा को भेजा गया। जहाँ डिस्पेंसरी की आड़ में बम बनाने की फैक्ट्री लगाई गई, लेकिन मुखबिर की सूचना पर उनको गिरफ्तार कर लिया गया। उस वक्त पुलिस ऑफिसर (डी.एस.पी मथुरा दत्त जोशी) बम फैक्ट्री देखकर इतना कांप गया था कि ठीक से जयदेव कपूर पर पिस्तौल भी नहीं साध पा रहा था। जयदेव कपूर उसके कांपते हाथों को देखकर हँसने लगे थे। जयदेव कपूर और शिव वर्मा को भी गिरफ्तार करके लाहौर षडयंत्र केस के लिए लाहौर जेल में ही भेज दिया गया। जयदेव कपूर को काला पानी की सजा हुई। तब उनकी भगत सिंह से आखिरी मुलाकात हुई बम विस्फोट में शामिल सभी क्रांतिकारियों को पकड़कर जेल भेजा जाने लगा। जयदेव कपूर भी जेल भेजे गए। अंडमान की जेल में उनको 60 दिनों तक रोज सुबह 30 बेंत मार खाने की सजा मिली। जयदेव के बेटे कमल कपूर बताते हैं कि जिस बेंत से उनको मारा जाता था वह बहुत बड़ा व पानी से भीगा हुआ होता था। बेंतों के निशान बाबू जी के पीठ पर मरते दम तक रहे। जयदेव कपूर जी सन् 1946 में रिहा हुए।🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
✍️ *राकेश कुमार*
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