ईसाईकरण को भारत के चार एनजीओ पाते हैं हर साल 10500 करोड़
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भारत में कौन बदल रहा धर्म, कहां हो रहा धर्मांतरण सर्वे में सामने आया सच
‘भारत में धर्म’ पर प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वेक्षण के नतीजे सामने आए हैं। सर्वेक्षण में शामिल ज्यादातर भारतीयों ने माना कि चाहे वह किसी भी धर्म के अनुयायी हों उन्हें अपने धर्म को मानने की आजादी है। परिणाम देश में होने वाले धर्मांतरण पर भी रोशनी डालते हैं।
By: Mayank Kumar Shukla
सर्वे के नतीजों का विश्लेषण करने पर उभरकर सामने आई बातों में प्रमुख हैं, किसी अन्य मतावलंबी की अपेक्षा मुस्लिम अपने धर्म के प्रति अधिक आस्थावान हैं, धर्म परिवर्तन कर ईसाई बने हिंदुओं का बड़ा हिस्सा दक्षिण भारत से है, हिंदू से ईसाई बनने वालों में अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों की संख्या अधिक है। सर्वे में दक्षिणी राज्यों में धर्म के प्रति बढ़ती उदासीनता की भी झलक मिलती है। वहीं जो लोग हिंदू बन रहे हैं उनमें शादी के बाद ऐसा करने वालों की अधिक संख्या है।
धर्म बदलकर ईसाई बने तीन चौथाई हिंदू दक्षिणी राज्यों से
सर्वेक्षण में शामिल 0.4 प्रतिशत जनों ने माना कि वह हिंदू धर्म बदल ईसाई बने हैं। जबकि 0.1 प्रतिशत ईसाईयों ने धर्म बदला है। धर्म बदलकर ईसाई बने तीन चौथाई हिंदू (74 प्रतिशत) दक्षिणी राज्यों से हैं। सर्वेक्षण अवधि में इसमें हिस्सा लेने वाले दक्षिण भारतीयों में ईसाई धर्म मानने वाले की संख्या में मामूली बढ़त देखी गई। 6 प्रतिशत ने माना कि वे ईसाई धर्म में पले बढ़े वहीं 7 प्रतिशत ने कहा कि वे अभी ईसाई धर्म को मानते हैं।
अनुसूचित जाति व जनजातियां हिंदू धर्म बदलकर बन रहीं ईसाई
सर्वे में शामिल ईसाई मत को अपनाने वाले 16% लोग देश के पूर्वी हिस्से (बिहार, झारखंड, ओडिसा व पश्चिम बंगाल) से हैं। यहां इसे अपनाने वाले 64% लोग अनुसूचित जनजाति से हैं। सर्वेक्षण को आधार बनाकर राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो धर्म बदलकर ईसाई बने हिंदुओं में अनुसूचित जाति (48%), अनुसूचित जनजाति (14%) अथवा अन्य पिछड़ी जाति (26%) का बड़ा हिस्सा है।
धर्म के प्रति मुस्लिम अधिक आस्थावान
सर्वेक्षण में यह बात भी निकलकर आई कि ज्यादातर भारतीयों की धर्म में गहरी आस्था है। भारतीय मुस्लिमों के जीवन में हिंदुओं की तुलना में धर्म की भूमिका अधिक है (91% बनाम 84%)। मुस्लिमों में हिंदुओं की अपेक्षा अपने धर्म के बारे पर्याप्त जानकारी रखने का दावा करने वालों की संख्या भी अधिक है (84% बनाम 75%)। लगभग सभी धर्मावलंबियों में नियमित पूजा पाठ करने वालों की बड़ी संख्या है। ईसाईयों में यह सबसे अधिक है (77%) बावजूद इसके कि धर्म को जीवन में महत्वूपर्ण बताने वालों में उनका हिस्सा कम है (76%)। ज्यादातर हिंदू व जैन भी नियमित प्रार्थना (59% व 73%) और दैनिक पूजा पाठ करते हैं (57% व 81%),घर अथवा मंदिर में।
दक्षिण भारतीयों के जीवन में धर्म की भूमिका सीमित
देश के किसी अन्य हिस्से के मुकाबले दक्षिण भारतीयों के जीवन में धर्म की भूमिका सीमित है (69%), यहां आधे से भी कम लोग नियमित पूजा-पाठ करते हैं। दक्षिण भारत में 10 में से 3 हिंदू (30%) ही रोज पूजा पाठ करते हैं जबकि शेष भारत के लिए यह आंकड़ा 68% है।
विवाह के बाद अपनाया हिंदू धर्म
हिंदू धर्म को मानने वालों की संख्या में कोई गुणात्मक बदलाव देखने को नहीं मिला। 0.7 प्रतिशत लोगों ने माना कि वे पले बढ़े हिंदू धर्म में लेकिन अब किसी और धर्म को मानते हैं। वहीं 0.8 प्रतिशत ने कहा कि वे हिंदू धर्म में पले बढ़े नहीं लेकिन अब उसका पालन करते हैं, इनमें से बड़ी संख्या उनकी है जिनका विवाह किसी हिंदू से हुआ है। इसी तरह 0.3 प्रतिशत लोगों ने बचपन से अब तक इस्लाम छोड़ने की बात मानी वहीं लगभग इतने ही लोगों ने उसे अपनाने की बात कही।
कैसे किया गया सर्वे
प्यू रिसर्च सेंटर का भारत में धर्म पर सर्वेक्षण 30000 वयस्कों से किए साक्षात्कार पर आधारित है, जो 2019 के अंत से 2020 के आरंभ (कोविड महामारी के पहले) के बीच किए गए। इसमें धर्म परिवर्तन के असर को समझने के लिए दो सवाल शामिल किए गए थे। पहला आपका वर्तमान धर्म क्यां है? दूसरा आप किस धर्म में पले बढ़े? सर्वे में शामिल 98 प्रतिशत लोगों ने दोनों ही सवालों का जवाब एक जैसा दिया। 82 प्रतिशत ने जवाब में कहा कि वे पले बढ़े हिंदू धर्म में, वहीं लगभग इतने ही लोगों ने माना कि वह वर्तमान में हिंदू धर्म मानते हैं। अन्य धार्मिक समूहों में भी कमोबेश ऐसा ही देखा गया। सर्वे धार्मिक आबादी के प्रतिशत में बदलाव के पीछे धर्मांतरण की बजाय विभिन्न धार्मिक समूहों में फर्टिलिटी रेट या प्रजनन दर को कारण मानता है।
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Exclusive: धर्म परिवर्तन पर हर साल खर्च होते हैं 10,500 करोड़!
By Richa Bajpa
आगरा में जबसे 200 मुसलमानों के धर्मांतरण, जिसे कुछ लोग ‘घर वापसी’ भी कह रहे हैं, की खबर आई है, देश में हंगामा मचा हुआ है। संसद में दो दिनों से यही बहस का मुद्दा बना हुआ है। इस बीच हम आपको एक ऐसे सच से रूबरू करवाने जा रहे हैं जिसे सुनने के बाद आपके होश उड़ जाएंगे। क्रिश्चियन मिशनरीज हर साल 10,500 करोड़ रुपए सिर्फ धर्मांतरण पर खर्च करती हैं।
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सरकार के पास पूरी जानकारीसरकार के पास कुछ ऐसी रिपोर्ट्स हैं जिनके मुताबिक भारत में कुछ एनजीओ को दान देने में मिशनरीज का नाम सबसे ऊपर है। चार एनजीओ को पूरे देश से धर्मांतरण के नाम पर करीब 10500 करोड़ रुपए तक दिए जाते हैं।
यह पैसा अमेरिका, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, नीदरलैंड्स, स्पेन और इटली से आता है। अमेरिकन वेद के लेखक फिलिप गोल्डबर्ग की मानें तो इसे धर्मांतरण नहीं बल्कि जबर्दस्ती कहना चाहिए। उनके मुताबिक इससे साफ होता है कि कैसे लोगों पर उनके विश्वास के बजाय सिर्फ संख्या बढ़ाने के लिए दबाव डाला जाता है।
1,000 लोगों का धर्म परिवर्तन और सिर्फ एक कंप्लेंट
इंटेलीजेंस ब्यूरो की मानें तो रिपोर्ट पर पिछली सभी सरकारों ने आंखें बंद रखीं। इन मिशनरीज के पास राजनेताओं का मुंह बंद करने का भी पैसा है। वहीं इस बात से यह भी पता चलता है कि यह सारा काम कानून को ताक पर रख किया गया।
इससे साफ है कि लोगों को जबरर्दस्ती धर्मांतरण के लिए मजबूर किया गया और जिसके लिए उन्हें सजा मिलनी चाहिए। वहीं इतने ज्यादा पैसे का लालच उन्हें दिया गया कि कोई भी आगे आकर शिकायत नहीं करेगा।
आईबी के अधिकारी के मुताबिक हर वर्ष करीब 1,000 लोगों का धर्म परिवर्तन कराया जाता है लेकिन सिर्फ एक ही शिकायत दर्ज होती है। मिशनरीज लोगों को लालच देकर उनकी मजबूरी का फायदा उठाती हैं और उनके भरोसे के साथ खेलती हैं।
एनजीओ को भेजे जाते हैं पैसे
वर्ष 2011 में कई एजेंसियों की ओर से की गई पड़ताल में पता लगा कि भारत में गलत तरीके से पैसा भेजा जा रहा है जिसका मकसद सिर्फ धर्मांतरण कराना है। कई एनजीओ के लिए इस रकम को भेजा जा रहा था।
इस रकम में काफी बड़ा हिस्सा ऐसा था जिसका कोई अकाउंट ही नहीं था। जब इसकी पड़ताल की गई तो पता चला कि कई तरह से इस रकम को भेजा गया था। जब एनजीओ से सवाल किए गए तो उनके पास कोई सही जवाब ही नहीं था।
उनकी ओर से कई तरह के विरोध तो किए गए लेकिन इस बात का जवाब नहीं दिया गया कि उन्हें यह पैसा कहां से मिला। वह इस बात को लेकर एजेंसियों को संतुष्ट नहीं कर सके कि इस रकम का उपयोग धर्मांतरण, विरोध प्रदर्शन या फिर मनी लॉड्रिंग के लिए नहीं किया गया था।
बेंगलुर इनीशिएटिव फॉर रिलीजियस डायलाग यानी बर्ड की ओर से एक सर्वे कराया गया जो इस तरह के धर्मांतरणों पर आधारित था। इस सर्वे में जो सच सामने आया उसके मुताबिक ईसाई धर्म का प्रचार करने वालों की ओर से इस बड़े स्तर पर धर्मांतरण की मार्केटिंग स्ट्रैटेजी को आगे बढ़ाया गया।
सर्वे के मुताबिक कुछ मिशनरीज की ओर से काफी आक्रामक तरीके से मार्केटिंग की गई थी। यह मिशनरीज धर्मांतरण के लिए गलत तरीकों का प्रयोग कर रही थीं।
वह लोगों को धर्मांतरण के लिए लालच देती और फिर जबर्दस्ती इस काम को अंजाम देती। ये मिशनरीज धर्म के लिए नहीं बल्कि अपने फायदे के लिए यह काम कर रही थीं।
भोले भाले लोगों को फंसाना
कई रिपोर्ट्स में यह बात सामने आई कि अपनी इस चाल से इन मिशनरीज ने सीधे सादे लोगों को अपना शिकार बनाया। गोल्डबर्ग के मुताबिक इस तरह के कट्टरपंथियों को अमेरिका की ओर से समर्थन मिल रहा था।
उन्होंने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि नौकरी के नाम तक पर कुछ लोगों का धर्म परिवर्तन कराया गया। अगर वह इसससे मना करते तो उन्हें धमकी दी जाती कि उनकी नौकरी चली जाएगी।
वहीं इस बात के भी सुबूत मिले हैं कि कुछ लोग साधुओं का भेष धरते फिर सीधे लोगों के पास जाकर उनसे बोलते कि हिंदु भगवान जीसस क्राइस्ट का बिगड़ा हुआ स्वरूप हैं।
ईसाई धर्म प्रचारक पॉल दिनाकरण पर IT का शिकंजा,118 करोड़ की अघोषित आय का खुलासा
पॉल दिनाकरन (Paul Dhinakaran) के पास अघोषित आय को लेकर आयकर विभाग ने बड़े पैमाने पर तैयारी की थी.विभाग ने 20 जनवरी अलसुबह 6 बजे उनके ठिकाने पर दबिश दी.पड़ताल में 200 से ज्यादा आयकर अधिकारी मौजूद थे.
आयकर विभाग (Income Tax Department) ने चेन्नई में ईसाई धर्म प्रचारक पॉल दिनाकरण पर शिकंजा कसा. विभाग ने दिनाकरण के 25 ठिकानों पर छापामार कार्रवाई कर 118 करोड़ रुपए की अघोषित संपत्ति का पता लगाया है.खास बात है कि विभाग ने उनकी संस्था जीसस कॉल्स मिनिस्ट्रीज (Jesus Calls ministries) को लेकर चेन्नई और कोयंबटूर में 20 जनवरी को सर्च ऑपरेशन चलाया था.दिनाकरण ईसाई समुदाय में काफी मशहूर हैं और करुण्य विश्वविद्यालय के कुलपति भी हैं.आयकर विभाग के अनुसार’आज यानी शनिवार को पूरे हुए ऑपरेशन के बाद विभाग ने पॉल दिनाकरण के कोयंबटूर स्थित निवास से 4.7 किलो सोना जब्त किया है.’उन्होंने जानकारी दी कि टीमों ने डोनेशन की रसीदों,विदेश में निवेशों,खर्च को बढ़ाकर दिखाने के समेत कई और तरीकों से 118 करोड़ रुपए की आय छिपाने का पता लगाया है।
पॉल दिनाकरन के पास अघोषित आय को लेकर आयकर विभाग ने बड़े पैमाने पर तैयारी की थी.विभाग ने 20 जनवरी को अलसुबह 6 बजे उनके ठिकाने पर दबिश दी.इस पड़ताल में 200 से ज्यादा आयकर अधिकारी मौजूद थे.ये सभी अधिकारी दिनाकरण के आद्यार स्थित मुख्य कार्यालय से लेकर कोयंबटूर जिलों में मौजूद शिक्षण संस्थानों तक फैले हुए थे.रिपोर्ट्स बताती हैं कि विभाग की मदद करने को अलग-अलग दफ्तरों पर अकाउंटेंट्स को बुलाया गया था.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक,इस जांच के दौरान विभाग ने दिनाकरण के संगठन को विदेशों से मिली पूंजी की भी जांच की.जीसस कॉल्स मिनिस्ट्रीज और करुण्य यूनिवर्सिटी की स्थापना उनके पिता डीजीएस दिनाकरण ने की थी.उनका देहांत 2008 में हो गया था जिसके बाद इनका नेतृत्व पॉल दिनाकरण के हाथों में आ गया.तमिलनाडु में दिनाकरण परिवार का खासा वर्चस्व है.राज्य में सत्तारूढ़ पार्टियों से उनके अच्छे संबंध रहे हैं.