चार चरणों के चुनावी रूझान:नकारात्मकता लाने में सफल रहा विपक्ष?

क्या कहते हैं चार चरणों के चुनावी ट्रेंड

लोकसभा चुनाव के चार चरण पूरे होने के बाद कुल 543 में से 379 सीटों पर वोटिंग पूरी हो चुकी है। वहीं, 18 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों में मतदान पूरा हो चुका है। हालांकि अभी पंजाब, हरियाणा और दिल्ली जैसे राज्यों में मतदान बाकी है। फिर भी अभी तक के मतदान के आधार पर कुछ संकेतों और संदेशों को समझने की कोशिश की जा सकती है।

कम मतदान : इस चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा मतदान प्रतिशत गिरने के ट्रेंड की हो रही है। चौथे चरण का अंतिम मतदान प्रतिशत आने में समय लगेगा, जबकि तीसरे चरण में 65.68% मतदान हुआ। 2019 में इस चरण में 68.4% मतदान हुआ था। पहले चरण में 66.14% और दूसरे में 66.71% मतदान हुआ था। 2019 लोकसभा चुनाव में पहले चरण में 69.43% और दूसरे में 69.64% मतदान हुआ था। इस तरह देखें तो पहले चरण में 3.3%, दूसरे में करीब 2.9% और तीसरे चरण में 2.72% की कमी आई है। कुल मिलाकर, 2019 की तुलना में करीब 3% मतदान राष्ट्रीय स्तर पर कम हुआ है।

राज्यों में उतार-चढ़ाव : सामान्यतया राष्ट्रीय स्तर पर तीन प्रतिशत मतदान कम होना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है, लेकिन राज्यों के अनुसार देखें तो इनमें काफी उतार-चढ़ाव है। मसलन- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश और केरल जैसे राज्यों में मतदान का प्रतिशत कम रहा। दूसरी ओर, पूर्वोत्तर के लोगों ने भारी मतदान किया। पश्चिम बंगाल का 73-74% मतदान भी अच्छा कहा जाएगा, लेकिन यह पिछले चुनाव से काफी कम है। ऐसे में सबके दिमाग में यह सवाल है कि किसके मतदाता कम संख्या में निकले?

महिला मतदाताओं का रुझान : पिछले लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनावों में माना जा रहा था कि जहां भी BJP है वहां महिला वोटरों के ज्यादातर मत उसे ही मिलते हैं। इन चुनाव में महिला मतदाताओं की संख्या असम और पश्चिम बंगाल में 83% से अधिक रही, जो देश में सबसे ज्यादा है। बाकी जगहों पर महिलाओं का मतदान सामान्य रहा और पुरुषों की तुलना में ज्यादातर जगह कम।

मंदिर का उत्साह कम हुआ : विपक्ष के दावों के बावजूद कहीं भी व्यापक स्तर पर जनता के अंदर नरेंद्र मोदी सरकार को सत्ता से हर हाल में उखाड़ फेंकने का माहौल नहीं है। इसी तरह विपक्ष को केंद्र की सत्ता में स्थापित करना है, ऐसा सामूहिक भाव भी नहीं देखा गया। स्थानीय स्तर पर BJP के नेताओं-कार्यकर्ताओं और समर्थकों के एक समूह में कई कारणों से उदासीनता जरूर दिखी है। 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ बना हुआ स्वाभाविक अभूतपूर्व वातावरण भी कमजोर पड़ा है।

समर्थकों में विचलन नहीं : बावजूद इसके, BJP के प्रतिबद्ध समर्थक एकमुश्त उसके विरुद्ध मतदान करेंगे, ऐसा मानने का ठोस आधार नहीं दिखता। BJP विरोधी जितना प्रचार करें, चार चरणों के चुनाव में इस तरह की व्यापक प्रवृत्तियों की रिपोर्ट नहीं है। हां, अप्रतिबद्ध मतदाता इधर से उधर जाते हैं और इस चुनाव में गए हैं। हालांकि अभी तक की प्रवृत्तियों में ऐसा नहीं दिखा है कि दो लोकसभा चुनावों से BJP के साथ खड़े मतदाताओं का बहुत बड़ा समूह उसे हराने की मानसिकता में चला गया।

विपक्ष की कमजोरी : मगर अभी तक के चुनाव में विपक्ष ने उन मुद्दों को सबसे ऊपर लाने की कोशिश की है, जिनमें ज्यादातर सच नहीं है। उदाहरण के लिए, BJP ने 400 सीटों का नारा इसलिए दिया कि वह संविधान और आरक्षण को खत्म कर सके। या फिर यह कि नरेंद्र मोदी सत्ता में आ गए तो आगे चुनाव नहीं होगा। ये सब वही आरोप हैं जो संघ परिवार और BJP पर वर्षों से लगाए जाते रहे और गलत साबित हुए। इन 10 वर्षों के शासनकाल में भी ऐसा नहीं हुआ। जाहिर है, इस पर मतदाताओं का व्यापक समूह विश्वास नहीं कर सकता।

अल्पसंख्यकों से जुड़े विषय  :    गौर करने वाली बात यह भी है कि पहले चरण के साथ विपक्ष ने अल्पसंख्यकों के नाम पर मुसलमान से जुड़े उन मुद्दों को उभारा, जिनके विरुद्ध प्रतिक्रिया में BJP की ताकत बढ़ती रही है। खुद प्रधानमंत्री और BJP की इसके विरुद्ध प्रतिक्रियाओं ने निश्चय ही मतदान को प्रभावित किया होगा।

दक्षिण के राज्य : तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में साफ दिख रहा है कि सनातन, हिंदुत्व, राम मंदिर मतदाताओं को प्रभावित करने वाला बड़ा कारक है। वहां सत्तारूढ़ दलों के विरुद्ध प्रतिक्रिया में BJP को वोट मिला है। संदेशखाली बंगाल चुनाव को प्रभावित कर रहा है। बंगाल, ओडिशा और तेलंगाना में BJP शानदार प्रदर्शन करे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इसी तरह केरल और तमिलनाडु में भी उसका प्रदर्शन संतोषजनक हो सकता है।

पॉजिटिव मुद्दों से शुरुआत : दरअसल, सभी पार्टियों को चुनाव में परिपक्व लोकतांत्रिक व्यवहार का परिचय देना चाहिए था।‌ प्रधानमंत्री ने चुनाव अभियान की शुरुआत 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने जैसे मुद्दों से की। लेकिन संविधान और आरक्षण खत्म करने, लोकतंत्र का अंत करने जैसे आरोप इतने हावी हो गए कि अंततः ये चुनाव का मुख्य मुद्दा हो गए। अब जो स्थिति बन चुकी है, उसमें यह मानने का कोई कारण नहीं कि शेष तीन चरणों में ये मुद्दे नहीं रहेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अयोध्या में श्रीरामलला के दर्शन और रोड शो करना वास्तव में चुनाव को जातीय, स्थानीय और छोटे स्वार्थों वाले मुद्दों से निकालकर व्यापक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य की पटरी पर लाने की कोशिश है।

(लेखक अवधेश कुमार वरिष्ठ पत्रकार और विचारक हैं)

 

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